Friday, May 12, 2023

पिता


पटरियों पर दौडती हुई रेलगाडियां

पहली बार दिखाई थी मेरे पिता ने 

मैने अब तक किताबो की तस्‍वीरो में देखी थी रेलगाडिया

अपने कोच के दरवाजे पर खडे होकर

पिता को पीठ दिखाकर रोते हुए देखा है 

उसी तरह जैसे मुझे पहली बार स्‍कूल छोडकर घर जाते हुए मैने देखा था अपने पिता को । 

रेल हजारो पिताओ के प्रेम को संवहन करती है 

जो बैठ जाते है उसके पंखो की ताडियो पर 

और चिपक जाते है शायिकाओ पर बिछी चददरो में 

या फिर चले आते है उन यात्रियो के थैलो में 

उनके मना करने के बावजूद ।  

पिता उस पानी में भी घुले हुए होते है 

जो रेल चलने पर अपनी बोतल से पीते है।  

वो चले आते है मेरी नींद में भी 

ओढने की चददर बन कर 

बात नहीं करते है 

केवल सहलाते है

बालो में हाथ फिराते है

आंखो में जमा हुए पानी को पिघलाते है। 

पिता हमेशा साथ रहते है। 

@ मनीष कुमार जोशी

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