Thursday, March 20, 2014

लव डाॅट काॅम


लव डॅाट कॅाम

   

केफेटेरिया के काउण्टर पर भीड़ थी। राॅक्स ने दो चार स्टुडेण्टस के पीछे से ही हाथ लंबे कर टोकन को काउण्टर पर फेंकते हुए वेटर के हाथो से काॅफी के दोनो कप ले लिये। काफी के दोनो कपो को स्टुडेण्टस से बचाते हुए हाथ उपर किये हुए राॅक्स ज्यो ही घूमा प्रोफेसर सिन्हा से टकरा गया। सिन्हा के हाथ की काफी का कप नीचे छिटक गया। ‘ क्या हो गया है आजकल के छोकरो को । जरा भी देखकर नहीं चलते । चष्मा पहन कर हीरो बने फिरते है। कुछ भी दिखाई नहीं देता है।’ प्रोफेसर अपने कपडो को ठीक करते हुए बुदबुदाये।

    राॅक्स काफी के दोनो हाथ में कप लिये आगे निकल गया था। प्रोफसर की आवाज सुनकर उसने पीछे गर्दन घुमायी और शब्दो को लगभग प्रोफेसर की तरफ धकियाया - सर! हीरो बताने के के लिए थैक्यू और यू नो ! मेरे पीछे आंखे नहीं है ! इसलिए आपको देख नहीं पाया। सर। एक बात और बता दू। गोगल्स लगाने का मतलब आंखो पर पटटी बांधना नहीं है। इसमें से आप देख भी सकते है।

    राॅक्स प्रतिक्रिया का इंतजार किये बिना गोल टेबल्स के बीच में से कमर मटकाते हुए आगे निकल गया। नाम तो राकेष था। काॅलेज में राॅक्स नाम से ही जाना जाता था। बालो को बीच में खड़ा किये हुए, एक कान में रिंग्स, कलाई में फैषननुमा काले मोतियो की माला लपेटे हुए बिलकुल नये जमाने की जीव की तरह लग रहा था। कमर मटकाते हुए और गुनगुनाते हुए सीधे प्रीति की टेबल्स पर पहुंच गया। कोहनी टेबिल पर और सर हथेली में रखे प्रीति राॅक्स को ही देख रही थी। कंधे तक बाल। आई ब्रोे डिजायन किये हुए। आंखे जैसे पूरे चेहरे से मैच करती हुई। प्रीती राॅक्स की दोस्त है और दोनो ने इसी सालं साफट इंनीजियरिंग पूरी की है।

ये लो गरमा गरम काॅफी। कहते हुए राॅक्स बैठ गया।
क्यों उलझते हो हर एक से ।
मैं कहां उलझा। पता नहीं लोगो को क्या हो गया है।
क्या हो गया है? प्रीती ने काफी का घूंट लेते हुए कहा।
इनका मानना है कि हम लोग कुछ भी करे गलत है। हैयर स्टाइ्रल चेंज करे तो फैषन है और खुद आज भी राजेष खन्ना और देवानंद की हेयर स्टाईल मेंनटेन किये हुए है।
राॅक्स के व्यंग्य पर प्रीती मुस्कुरायी और बात बदलते हुए कहा - जाॅब ज्वाईन कर रहे हो ?


मैं तो नहीं । तुम ?
मैं तो अगले हफते ज्वाईनिंग के लिए दिल्ली जा रही हूॅ। तुम क्यों नहीं  ?
प्रीती । मै इस लफडे में नहीं पडता । साफटवेयर इंजीनियर बन कर किसी की गधा मजदूरी नहीं करूंगा। खुद क्रियेषन करूंगा। वैसे भी अभी मस्ती के दिन है। जाॅब्स के नहीं । राॅक्स ने काॅफी खत्म करते हुए कहा।
राॅक्स। सोच लो। आगे आफर मिले या नहीं ?प्रीति ने अपने बालो को आंखो के आगे से हटाते हुए सलाह दी।
प्रीती छोडो। इट इज मस्ती टाईम । अभी घर जाकर डैड से भी यही सब सुनना है। अरे हां। मुझे लैपटाप पर कुछ काम भी करना है। घर चलते है। मै तुम्हे ड्राप कर देता हू।  कहते हुए राॅक्स अपने लैपटाप के बैग को गले में लटकराते हुए खड़ा हो गया। राॅक्स ने बाईक स्टार्ट की और प्रीति झट से उसके पीछे बैठ गयी। राॅक्स की बाईक धुंआ छोडते हुए कुछ पलो में ही केफटेरिया की रोड से ओझल हो गयी। वहां खड़े लोगो तेजी से आष्चर्यचकित थे।

    राॅक्स के घर में प्रवेष करते ही पहले ड्रांईग रूम है। ड्राईग रूम में डैड अखबार  लिये बैठे थे। टीवी आॅन था। उनका ध्यान न टीवी में था और न ही न्यूजपेपर में । उनके कान तो राॅक्स के आने की आहट का इंतजार कर रहे थे। राॅक्स ने जैसे ही घर में कदम रखा, डैड का इंतजार खत्म हुआ। चेहरे के आगे से अखबार हटाये बिना ही बोल पड़े- वेलकम। सर। डैड का लहजा व्यंग्यात्मक था। राॅक्स वहीं दरवाजे पर ही खड़ा हो गया।

अंदर आओ। बैठिये सर। डैड का व्यंग्य जारी था। परन्तु राॅक्स पर कोई फर्क नहीं । गोगल्स को माथे पर करते हुए बोल पडा - डैड। मै हमेंषा की तरह सुनने के लिए तैयार हुु। कह डालिये।
हां । भई करेगा तो अपनी मर्जी की। मैने सुना है तुम जाॅब नहीं कर चाहते हो।
सही सुना है।
क्यों? पांच लाख का पैकेज है ।
डैड। मैं अभी जाॅब के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता हू। फिलहाल मेंरा जाॅब करने का कोई ईरादा नहीं है।
मेरे सोचने और नहीं सोचने का कोई मतलब नहीं है ?
किसी के सोचने पर कोई पाबंदी नहीं है। आप किसी के बारे में सोच सकते हो ।
मतलब मेरी तुम्हारे लिए कोई वैल्यू नही है ? डैड के शब्दो में तल्खी बढ़ती जा रही थी।
किस ने कहा ? आपकी वैल्यू है। आप मेरे डैड है।
केवल कहने को ?



किसी काम को मैं कैसे करता हू। यह मेरा काम है। आपकी सोच से मैं काम नहीं कर सकता है। मुझे जो करना है । मैं करूंगा। मैं यह जाॅब नहीं करूंगा। 

डैड  न्यूजपेपर को समेटकर टेबिल पर रखते हुए खड़े हो गये। नथूने फुलाते हुए राॅक्स के बिलकुल करीब आ गये। राॅक्स के चेहरे बिलकुल करीब फुले हुए नथुनो से सांस को छोड़ते हुए डैड ने दांतो को लगभग भीचते हुए कहा - आखिर क्यों नहीं करना चाहते हो जाॅब। तुमे इंजीनीयर बनाने के लिए मैने 13 परसेंट पर लाॅन लिया था। कब तक चुकाउंगा और तुं कब तक मेरी सेलरी पर पलता रहेगा।

डैड के गुस्से पर राॅक्स की स्थिर प्रतिक्रिया था। धीरे धीरे अपने चेहरे को उठाया। डैड के नजरो से अपने आपको अलग करते हुए गर्दन को दूसरी तरफ घुमाया। डैड की आंखो के गोले आंखो के बीच में रूके हुए राॅक्स को देख रहे थे। राॅक्स ने डैड का चेहरा देखे बिना ही धीमे स्वर में कहा - मुझे मेरे खर्चे के लिए पैसे देना या नहीं देना । ये डिसीजन आप ले सकते है। जाॅब करना या नहीं करना। ये डिसीजन मुझे करना है। मैंने अपना डिसीजन कर लिया है। आप भी अपना डिसीजन ले सकते है।’ राॅक्स के शब्दो में तल्खी नहीं थी। बहुत ही धीमे स्वर में उसने अपनी बात कही। डैड ने अपने नथुनो से और जौर से सांस लेकर छोड़ी- तो ठीक है मैंने भी अपना डिसीजन कर लिया। अब अपने खर्चो के लिए मेरी तरफ मुंह नहीं ताकना। मैने सोफटवेयर इंजीनीयर बना दिया। मेरी जिम्मेदारी खत्म।

थेक्स! डैड मुझे मंजूर है।कहते हुए राॅक्स अपने कमरे की तरफ चल दिया। डैड राॅक्स को देखते रहे ।आंखे बंद कर असहाय स्थिर भाव से खड़े हो गये । 

    पैट्रोप पंप पर बहुत भीड़ थी। एक ही लड़का पैट्रोल डाल रहा था। लगता है बाकि स्टाफ छुटटी पर था। नेक्स्ट! नैक्स्ट! नैक्स्ट ! कहते लड़का जल्दी जल्दी कस्टमर निपटा रहा था। राॅक्स के डैड भी लाईन में थे। आफीस के लिए देर हो रही थी। उनके पास स्कूटर था और स्कूटर में तेल की खपत भी ज्यादे होती है। पैट्रोल का दाम भी पसीने छुडा रहा था। यही सब सोचते हुए डैड अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। बारी आने पर टंकी का ढक्कन खोलकर पैट्रोल डलवाया। पर्स से पैसे निकाल कर ज्योही लड़के की तरफ बढ़ाये। शक्ल कोई जानी पहचानी लगी। कैप और चष्मा होने के कारण एकदम से नहीं पहचान पाये। चेहरा करीब आते ही डैड के चेहरा गुस्से से तमतमा गया । ‘ राॅक्स तुम!
राॅक्स ने डैड की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया । अपने काम में फिर से जुट गया।




नैक्स्ट ! नेक्स्ट ! आवाज के साथ ही डैड को आगे सिरकना पड़ा। कानो में अभी भी नैक्स्ट नैक्स्ट की आवाजे गुुज रही थी। पंप पर रूके बिना ही स्कूटर स्टार्ट कर आफीस की तरफ चल दिये।

    आफीस में टेबिल पर अपना बैग रख अपने चेहरे पर हथेली रखकर बैठ गये। आफीस की चहल पहल डैड के लिए बेअसर थी। माथे पर सलवटे। नजरे स्थिर । तनाव को साफ तौर पर उनके चेहरे पर देखा जा सकता था। पास बैठे माथुर साब भांप गये कि गुप्ता जी कुछ परेषान है।

क्या बात है गुप्ता जी ! कुछ परेषान दिख रहे हो।
क्या बताऊं माथुर साहब। हर एक की किस्मत आप जैसी कहां। ऐसे लगा माथुर साब ने राॅक्स के डैड की दुखती रग पर हाथ रख दिया था।
क्यों । किसने कहा आपकी किस्मत खराब है।
देखो आपका लड़का दुष्यंत कितना आज्ञाकारी और होनहार । इ्रंनीनियंरिंग करते ही 25 लाख का पैकेज मिल गया। इधर हमारा राकेष यानि राॅक्स। पूछो मत।
गुप्ता जी। परेषान मत होईये। राॅक्स को भी तो पांच लाख पैकेज मिला है। चिंता क्यों करते हो। यह तो बढ़ जायेगा। माथुर साहब ने गुप्ता जी को सात्वंना दी।
माथुर साहब। इतना भी होता तो ठीक था। परन्तु साहबजादे ये जाॅब नहीं करना चाहते है। क्रियेषन करना चाहते है।

माथुर साहब ने गंभीर होते हुए पूछा - आपने राॅक्स से पूछा क्या कि वह क्या क्रियेषन करना चाहता है।
माथुर साहब क्या पूछं आज तो उसने हद कर दी। कल मैंने डांट दिया तो आज से पैट्रोल पंप पर काम करता हुआ मिला।
इसमें परेषान होने की कोई बात नहीं ?
लोग क्या सोचेगें कि गुप्ताजी के घर मं इतनी कंगाली आ गयी है कि लड़के को पैट्रोल पंप पर काम करना पड़ रहा है।
गुप्ता जी। राॅक्स नई सोच का लड़का है। यूरोप में तो अक्सर बच्चे अपने हाथ खर्चे के लिए पैट्रोल पंप पर काम करने जैसा जाॅब करते है।
माथुर साहब यह यूरोप नहीं है। इंडिया है। यहां का समाज अलग है। लोग अलग है।
आप राॅक्स से बात तो करिये । वो क्या सोचता है। यह भी तो सुनिये।
कई बार सुन लिया । बस एक ही बात । क्रियेषन करना चाहता हूू।






माथुर साहब अपनी सीट से खड़े हो गये। मामले की गंभीरता को समझते हुए गुप्ताजी की सीट के बिलकुल सामने आ गये। दोनो हथेलिया गुप्ता की टेबिल पर टिका कर कहा- गुप्ता जी। आप राॅक्स को समझिये। नहीं पूछा तो पूछिये क्या क्रियेषन करना चाहता है। मुझे नहीं लगता वो कोई गलत कर रहा होगा।

नहींजी। कुछ अच्छा नहीं कर रहा । मैंने पूछा था तो बताया एक वेबसाईट बनायी है। लव डाॅट काॅम । दावा करता है कि दुनिया की पहली लव वेबसाईट जिसमें पेरेन्टस को भी जोडा गया है। उपलब्धि बताता है कि पूरी दुनिया में पचास हजार से भी ज्यादा यूजर हो गये है। खाक वेबसाईट बनायी। वेबसाईट से पेट नहीं भरता। कर्जे नहीं चुकाये जा सकते । कहते हुए गुप्ता जी ने अपना चष्मा उतार कर टेबिल पर रख दिया और दोनो हाथ बगलो में डालकर बैठ गये। माथुर साहब अब भी आषावादी दिख रहे थे। चहलकदमी करते हुए गुप्ता की सीट के पीछे आ गये।

गुप्ता जी। आप राॅक्स को ठीक से समझो। मुझे नहीं लगता वो बिगड़ेल है। उसे कोई जिम्मेदारी सौप कर देखो।
सौपी थी। मैंने कहा अपनी मम्मी की दवाई और डौक्टर्स को दिखाने का काम किया करो।
फिर ?
जनाब। ने हां तो कर दी। लेकिन आप जानते है उसने जिम्मेदारी कैसे निभाई।
कैसे ?
उसने सारी दवाईयां उठाकर उपर रख दी। कहा मैं वैसे ही मम्मी को ठीक कर दंूगा। जैसे उसने डाॅक्टरी पढ़ी है।
तो उसने जिम्मेदारी ली ?
जिम्मेदारी क्या ली ? रोज अपनी मां को बाईक पर बैठाकर सुबह शाम पार्क ले जाने लगा।
क्या फर्क पड़ा ?
गुप्ता जी को अब डिफेंसिव होना पड़ा। लंबी सांस लेते हुए कहा - मै डाॅक्टर के पास उसकी मम्मी को चैक अप के लिये ले गया। बीपी शुगर सब नाॅर्मल था। डाॅक्टर भी संतुष्ट था। यह फर्क तो पड़ा। अब उसकी मम्मी नाॅर्मल है। नाॅर्मल क्या, काफी बेहतर  फील कर रही है।

मै यही तो कह रहा था । राॅक्स को समझो। उसकी सोच अलग है। अच्छा बताओ आपके बच्चे में लाख बुराईयां होगी परन्तु कोई अच्छाई भी तो आपको नजर आयी होगी।




हां। यह जरूर है । उसने कभी भी मेंरी बात का गुस्सा नहीं किया। कभी मेरे सामने उंची आवाज में बात नहीं की।

देटस इट! यही मैं कहता हूूं। उसकी सोच को ध्यान में रखकर उससे बात करो। सब ठीक हो जायेगा। मुझे नहीं लगता राॅक्स बुरा है। डांट वरी। बैफिक्र होकर आफिस का काम करो। विदाउट टेंषन।

 यह कहकर माथुर साहब भी अपनी सीट पर बैठ गये। गुप्ता जी सब कुछ भुलाने की कोषिष करते हुए टेबिल पर पड़ी फाईलो को खोलने लगे।

    शाम को घर पहुंचने के बाद भी गुप्ता जी टेंषन में थे। राॅक्स को पैट्रोल पंप पर काम करते देख उन्हे बहुत बुरा लगा। माथुर साहब ने लाखा समझाया होगा परन्तु राॅक्स के प्रति उनका गुस्सा सातवे आसमान पर था। उन्हे लगा कि बेटा उनके हाथ से निकल गया। राॅक्स की मम्मी ने भी समझाने की कोषिष की परन्तु उनके लिए राॅक्स अब उनकी जिंदगी में नहीं है। यह सोच कर वो टेंषन बढ़ा रहे थे कि उन्होने अपने बेटे से कितनी उम्मीदे पाली थी परन्तु नालायक निकला। फिर सोचा एक ही लड़का है उनकी पेषन, प्रोविडेंट फण्ड से उसका काम निकल जायेगा। इसी उधेड़बुन में पता ही नही चला कब रात हो गयी। राॅक्स के आने का इंतजार किये बिना ही सो गये।

    गुप्ता जी को  रात को नींद ढंग से नहीं आयी । सुबह जल्दी उठ गये। टेंषन के साथ ही उठे। सोचा मेंरा भी बीपी आज चैक करा लूंगा। फिर राॅक्स के कमरे में गये । उसके चेहरे पर कोई टेंषन नहीं । ऐसे लगा बेफिक्री से सो रहा है। गुप्ता जी सोच रहे थे ऐसी है आजकल की औलादे। उनकी श्रीमती जी भी अभी तक सो रही थी। गरमी थी। सुबह सुबह हवा ठंडी होती है। ठंडी हवा लेने के लिए वे बाहर बरामदे में आ गये। न्यूज पेपर पड़ा था। गुप्ता जी ने न्यूज पेपर उठाया ज्यों ही उसे उसे खोला । मुख पृष्ठ पर नीचे बड़ी खबर थी - इंदौर के राॅक्स की वेबसाईट लव डाॅट काॅम को 1 करोड़ में खरीदने का आफर। हेडलाईन पढ़ते ही गुप्ता जी के पूरे शरीर में झुरझुरी छुट गयी। खबर में बाॅक्स मे राॅक्स का फोटो था और नीचे लिखा था काम्याबी का श्रेय पिता को। गुप्ताजी ने अखबार को लिये एक हाथ बगल में दबाया और दूसरे हाथ की हथेली को चेहरे पर फेरते हुए खड़े हो गये। ठंडी हवा के झोंको से उनके बाल उड़ रहे थे।