कविता
सन्यासियों का झुण्ड बाते करता है
सन्यासियों का झुण्ड बाते करता है
सन्यासियों
का झुण्ड अपने आश्रम में
गोल घेरे में
बैठा हुआ
गेहरूऐं वस्त्रो
को संभालते हुए
अपने सपाट सिर
पर हाथ फेरते हुए
बाते कर रहा
है।
गेहरूऐं वस्त्रो
ने विषय आसक्ति से
उन्हे दूर
कर दिया है
सपाट सिर ने
उन्हे कर्मकाण्डो से
मुक्त कर दिया
है
फिर भी
वे अपने
आश्रम में एक झुण्ड मे
बातें कर रहे
है
उनके चारो ओर
शून्य है
बाहर भी और
भीतर भी
एकाकार होना
चाहते है वे शून्य में
अपने को विलीन
कर देना चाहते है
शून्य में
पर
कर नहीं पा
रहे है वे विलीन अपने आपको
कोने में आसन
पर गुरू बैठे है
बिलकुन मौन
वो एकाकार हो
गये है
बाहर से और
भीतर से
इसीलिए वो
बातो में शामिल नहीं है
परन्तु
सन्यासियों
का झुण्ड गोल घेरे में
आश्रम में
बैठा हुआ
बाते कर रहा
है।