Sunday, May 14, 2023

नानी

 

नानी इस कमरे की कुर्सी पर बैठती थी

एक अंगुली से काला दंत मंजन अपने दांतो पर रगडते हुए । 

वो हमारे पहाड थी 

जहां से टक्‍कर कर गरम हवाऐं भी ठंडी होकर आती है 

वो एक नदी थी जो स्‍वयं चल कर आती थी 

जिसमें हम नहा भी सकते थे और प्‍यास भी बुझा सकते थे

और कपडे भी धो सकते थे। 

वो हमारे लिए स्‍कूल की  गरमी की छुटिटयां थी 

जिस पर हम खेला करते थे लुडो और कैरम 

और शाम को खाते थे बर्फ का छत्‍ता।

वो हमारे लिए कपंकपाती सरदी में कंबल थी 

जिसे ओढ कर सुनते थे परी देश की कहानियां 

जिसमें हमेंशा परी हमेशा लाती है बहुत सारे उपहार। 

वो हमारे लिए रैपर में लिपटी हुई कैडबरीज थी 

जिसको मुंह में रखकर मिठास का आनंद लेते है। 

अब वो नहीं है 

तो मिठा खाने से पहले जीभ सोचती है कि मुहं मीठा होगा या नहीं 

मैदान मे खेल मिलेगे या नहीं 

रसोई बनने वाली रोटी की महक आयेगी या नहीं 

अब वो नहीं है तो आसमान में चांद भी नहीं 

हवा भी नहीं है 

रोशनी की ठंडक भी नहीं है 

बादलो के खिलौने भी नहीं है 

नानी नहीं है तो 

कुछ भी नही है। 

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