Monday, August 31, 2020

किस्सा दरवाजे का

मेरा घर बहुत पूराना था. घर मे दो ही कमरे थे. एक आगे और एक पीछे. आगे वाला डड्रांईग रूम था. इसे स्टोर रूम या बैड रूम भी कह सकते थे. हम चार भाई बहिन थे. बड़ा वाला अपनी मस्ती मे इधर उधर घूमता रहता था. हमे लगता कि वो अपने बड़े होने का मजा ले रहा है. हम तीनो घर मे ही रहते थे. मै घर की देहरी पर झुककर बाहर की ओर देखता रहता. मेरी छोटी बहिन देहरी पर खड़े होकर बाहर की तरफ देखती रहती. क ई बार वो फिसलकर गिर जाती. फिर पास के अंकिल उसे उठाकर मां को दे देते. इसलिए मां जब भी खाना बनाती तो वो दरवाजा बंद कर देती. दरवाजा भी घर की तरह पूराना था. दरवाजे मे जगह जगह छेद थे. मां दरवाजा बंद करती तो हम बंद दरवाजे के पीछे बैठे रहते. यहां भी हम खेल कर लेते. दरवाजे के छेदो मे से सुबह सुबह सूर्य की रोशनी एक धार मे आती. सूरज की रोशनी मे हम क ई छोटे छोटे कीटाणुओं को देखते. कभी सूरज की रोशनी की धार मे अंगुली रखते कभी बहते हुए कीटाणुओं को देखते.
यह दरवाजा हमारे लिए हमेशा से ही खेलने का साधन रहा. यह हमारा साथी था. कभी सूर्य ग्रहण होता तो मां घर का दरवाजा बंद कर देती. पापा दफ्तर जाते थे. मां सूर्य ग्रहण के समय अंदर वाले कमरे मे बैठकर माला फेरती. बड़े वाला मां को चकमा देकर अपने दोस्तो के साथ निकल जाता. हम तीन भाई बहिन बंद दरवाजे के पीछे बैठ जाते. हमारे लिए वही दरवाजा खेल बन जाता. दरवाजे के छेद मे से सूर्य की परछाई पड़ती हम हथेली पर ग्रहण वाले सूर्य की परछाई देखते. इस तरह से उस दरवाजे के जरिये हम सूर्य ग्रहण देखते.
दोपहर मे घर मे हम बच्चे अकेले होते थे. पापा अपने दफ्तर मे और मां महराज जी की बेची मे सत्संग मे होती थी. फिर घर पर हम अकेले धमाचौकड़ी मचाते. दोपहर मे कभी कभार घर की मालकिन आती. हमारा घर किराये का था. मकान मालकिन आकर दरवाजे के बीच मे बैठ जाती. फिर हम बच्चो को डांटती रहती. हम बच्चे कोशिश करते कि वह जल्दी से चली जाये. एक दिन दोपहर मे हम छत्त पर खेल रहे थे. भाई ने दूर से ही देख लिया कि मकान मालकिन आ रही है. बड़े वाला भाई थोड़ा ज्यादा ऊधमी था. उसने दरवाजे के एक पल्ले को चूड़ी मे से निकाल कर बीच मे आडा पटक दिया. फिर हम छत्त पर खड़े है गये. बूढ़ी मालकिन लकड़ी के सहारे हमारे घर तक आयी. उसने आडे पड़े हुए दरवाजे के एक पल्ले को देखा और फिर ऊपर हमारी ओर देखा. फिर चली गयी. हम बहुत खुश हुए. भाई ने वापिस दरवाजे का पल्ला चूड़ी मे लगा दिया.
शाम को बाहर चौक मे खेलते वक्त देखा कि पापा घर के बाहर खड़े है. मैने नजदीक जाकर देखा. एक कारीगर बैठा लकड़ी छिल रहा था. मैने पाप से पूछा तह क्या हो रहा है? पापा ने बताया- मकां मालकिन हमारे लिए नया दरवाजा  लगवा रही है. मै उस कारीगर को काफी देर तक देखता रहा. वो बार बार दरवाजे का नाप लेता और फिर लकड़ी छिलने लग जाता. देर रात तक वह काम करता रहा. फिर मेरे को नींद आ गयी. सुबह उठते ही दौड़कर दरवाजे तक गया. अब नया दरवाजा लग गया था. उस दरवाजे मे कोई छेद नही था. मै दौड़कर छत्त पर गया. छत्त पर पुराना दरवाजा पड़ा था. उस दरवाजे को मैने ऊपर से नीचे तक देखा. फिर बंद दरवाजे के पीछे आकर बैठ गया. अब वहां कोई रोशनी नही थी.
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Sunday, August 2, 2020

अनामिका






    मै पहली बार कोलकत्ता जा रहा था। किसी महानगर की मेरी यह पहली यात्रा थी। मेरा सीए के एग्जाम का सेंटर था। पापा ने सेंटर कोलकत्ता का भर दिया था। कोलकत्ता मेरे दूर के रिश्ते के चाचाजी रहते है। पापा ने कहा कि एक महीने पहले चले जाना ओर एक महीने वही रूक कर तैयारी कर लेना। मन मे कोलकत्ता देखने का भी कौतुहल था।  पापा ने कोलकत्ता के बारे मे बहुत सी बाते बताई थी वो सब मेरे माथे मे थी। कहते है कि कोलकत्ता मे दिन तड़के चार बजे ही निकल आता है।इस बात को तो मै अब देख सकता था। गाड़ी तीसरे दिन सुबह 5 बजे हावड़ा स्टेशन पहुंचती है। ट्रेन हावड़ा के नजदीक थी। दिन निकल चुका था । खिड़की से खेतो मे सूरज की किरणे दिखाई दे रही थी। गाड़ी बिलकुल राईट टाईम पर स्टेशन पहुंच गयी थी। जैसा पापा ने कहा था स्टेशन पर बहुत भीड़ थी। प्लेटफार्म लोगो से ठसाठस भरा था। भीड़ मे मै भी अपना सूटकेस और बैग लेकर उतर गया। हावड़ा स्टेशन पर ही आप निजि गाड़ी ला सकते है। प्लेटफार्म के एक किनारे लोगो की निजि गाड़ियां खड़ी थी। लोग अपना सामान गाड़ियो मे रख रहे थे। मै भीड़ मे खड़ा चाचाजी के लड़के की राह देख रहा था। मेरा फोन भी डिस्चार्ज हो गया था। मै अपने कोच के सामने ही खड़ा था। महानगर के  नाम से ही मन मे थोड़ा डर भी था। सोच रहा था कि भाई नही पहुंचा तो मै क्या करूंगा। इसी उधेड़पन मे था कि भाई ने मुझे देख लिया। पहले हम दोनो गले मिले। भाई ने मेरा बैग उठाया और हम चलकर स्टेशन से बाहर आ गये। स्टेशन के बाहर भी बहुत भीड़ थी। हम लोग टेक्सी स्टेण्ड की ओर गये। भाई ने टैक्सी किराये की और हम टैक्सी मे बैठकर घर की ओर रवाना हो गये टैक्सी की खिडकी से मै शहर को देख रहा था। भाई मुझे बता रहा था। हमारी टैक्सी हावड़ा ब्रिज से निकली तो भाई ने बताया कि यह हावड़ा ब्रिज हे जो सबसे पूराना है और बिना किसी खंभे बना है। मै आश्चर्य से हावड़ा ब्रिज देखता रहा। जल्द ही हमारी टैक्सी एक सड़क के किनारे रुकी। टैक्सी से उतर कर हम एक गली मे गये। गली मे दोनो ओर गगनचुम्भी बिल्डिग्स थी। हमलोग इन बिल्डिंग्स को बाड़ी कहा करते है। गली मे एक बाड़ी मे गये। सुन रखा था बाड़ियो मे रहने के लिए छोटे छोटे कमरे होते है और पूरी बाड़ी मे एक दो ही टायलेट होते है। यह सोचकर मै डर रहा था। बाड़ी मे अंधेरा ही अंधेरा दिख रहा था।हम लोग सीढ़ियो से ऊपर चढ़ते रहे। सीढ़ियो मे एक बल्ब की मद्धम रोशनी आ रही थी। हर एक मंजिल पर लोग रह रहे थे। कोई खाना बना रहा था तो कोई कपड़े सूखा रहा था। हम बसे ऊपर चौथी मंजिल पर आ गये। यह बाड़ी की आखिरी मंजिल थी। यह खुली छत्त थी एक ओर एक लाईन मे पांच कमरे मे थे। यही चाचाजी का घर था। इस छत्त से चारो ओर बड़ी बिल्डिग्स दिखाई दे रही थी। मैने चाचा और चाची के पैर छुए। भाई ने मुझे मेरा कमरा बताया। कमरा इतना था कि उसमे मै केवल सो सकता था। यह जानकर खुशी हुई कि चाचा के स्वंय के टायलेट थे। पहले दिन मैने चाचा और चाची के साथ खूब बाते की। यहां जैसे सुबह जल्दी होती है वैसे ही रात भी जल्दी हो जाती है। मै रात को अपने कमरे मे लेट गया। तभी जोर से किसी लड़की के खिलखिला कर हंसने की आवाज आयी। मै बैठ गया। सामने देखा। एक कमरे मे एक लड़की खिलखिलाकर हंस रही है। मुझे बैठा देखकर भाई आ गया । भाई ने बताया कि ये अनामिका है। ये लड़की अपने भाई और मां के साथ सामने के कमरो मे रहती है। यह बात बात पर खिलखिलाती रहती है। यह विडो है। शादी के पहले ही साल...। कोई नही तुम सो जाओ। मै कुछ देर तक सामने के कमरे मे लड़की को देखता रहा । 
    सुबह आंख खुली तो सामने वही लड़की दिखाई दी और इस बार भी खिलखिला रही थी। मेरा आज कोलकत्ता मे पहला दिन था। मुझे पूरा एक महीना यहा रहना था। पहले दिन नाश्ते मे चाचाजी ने मेरे लिए कोलकत्ता की स्पेशल कचौरी मंगवायी। ये छोटी छोटी बिना मशाले की कचौरिया होती है जिसे आलू की सब्जी डालकर खायी जाती है। पहले दिन चाचा जी ने खाने के बराबर नाश्ता करवा दिया। भाई ने कहा दिनभर आराम करो शाम को घूमने चलेगे। चाचा और भाई दोनो काम पर चले गये। मै अपने कमरे मे। कमरे से दिख रहा था लड़की तैयार होकर अपने कमरे से बैग लेकर निकली। उसने आसमानी कलर की बंगाली साड़ी पहनी थी। अपनी मां को हाथ से बाय बाय करके निकल गयी। मै दिनभर सोता रहा। शाम को भाई जल्दी आ गया। दोनो तैयार होकर कोलकत्ता घूमने के लिए निकले। सीढ़ियो से उतर रहे थे तो सामने वाली लड़की ऊपर चढ़ रही थी। मेने उसकी और उसने मेरी ओर देखा । फिर दोनो आगे चल दिए. सड़क पर बहुत भीड़ थी जैसे लोगो का हुजुम कही जा रहा हो। भाइ ने बताया यहां तो रोज ऐसा ही होता है। सड़क के नीचे मैट्रो थी। सड़क के ऊपर दो पुल थे। दोनो पर ट्रेफिक था। सड़क पर सभी तरह के वाहन घल रहे ते ट्राम भी सड़क पर बिछी पटरियो पर दूसरे वाहनो की तरह ही चल रही थी। हम दोनो सड़क के किनारे खड़े थे। घण्टी बजाती हुई ट्राम आई। हम दोनो भाई ट्राम मे चढ़ गये। ट्रेन के एक कोच की तरह थी ट्राम। कंडक्टर आने पर भाई ने कह दिया दो विक्टोरिया। कंडक्टर ने दो टिकिट काट दिए। मै ट्राम की खिड़की मे से शहर देख रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी गांव से मै बड़े शहर मे आ गया हुं। यह महानगर हर वक्त  दौड़ता रहता है। ट्राम से उतरकर  हम थोड़ी दूर तक पैदल चलकर विक्टोराया पहुंचे।  अ़ग्रेजो द्वारा बनाया गया यह रमणीय स्थल था। विक्टोरिया के अंदर जाकर देखने का समय समाप्त हो चुका था। अंदर पार्क मे रंगीन फव्वारे चल रहे थे। उसके किनारे गोलाई मे बेंचे लगी थी पूरे पार्क मे मद्धम रोशनी थी। लगभग हर बेंच पर लड़के व लड़कियां एक दूसरे के हाथ थामे बैठे थे। हमारे शहर मे ऐसे दृश्यो की कल्पना करना मुश्किल था। हम रंगीन फव्वारो को घूमकर देख रहे थे। एक जगह मे कुछ रूका ।भाई के पीछे देखने पर मै वापिस चल पड़ा। मुझे लगा कि कमरे के  सामने वाली लड़की किसी के साथ बेंच पर बैठी थी। परन्तु भाई के आने पर लगा वैसी ही कोई और लड़की होगी। फिर हम बाहर आ गये। बाहर क ई प्रकार के ठेले लगे थे। हम लोगो ने तरह की चीजे खायी। फिर हम लौट पड़े। आते वक्त हम टैक्सी से आये| घर पहुंचने तक हम थक गये |  मै सोने के लिए कमरे मे चला गया| कपड़े बदलकर लेटने लगा |सामने वाले कमरे मे से फिर खिलखिलाने की आवाज आई। मैने अपनी गर्दन ऊंची करके देखा। अनामिका अपना चेहरा ऊपर करके खिलखिला रही थी। पास में उसका भाई और मां बैठी थी। अनामिका के हाथ मे पानी का गिलास था। जिसका आधा पानी वह पी चुकी थी। हंंसते हुए पानी का गिलास लिये वस बाहर आयी। मेरे कमरे की ओर एक क्षण देखा और वापिस अपने कमरे मे चली गयी। मै कुछ देर अनामिका के बारे मे सोचता रहा । फिर नींद आ गयी।

    मैं यहां भी अपने शहर की तरह ही उठता। यह भूल जाता कि मै कोलकत्ता आया हुआ हूं और यहां दिन जल्दी निकलता है। आज नींद से जागा तब तक बहुत देर हो चुकी थी। चाचा जी और भाई काम के लिए निकल चुके थे। चाची जी घर पर थी। चाची जी ने चाय के लिए पूछा। मैने चाय के लिए हामी भर दी । मै कमरे से निकल कर छत्त के मुंडेर तक आ गया। अनामिका कपड़े सूखाने के लिए आई। उसने कपड़े सूखाते हुए टेढी नजर कर पूछा- घूमने आये हो।
    नही। परीक्षा देने।
    किसकी?
    सीए की।
    कब है।
    इस महीने के लास्ट मे।
    आप आज काम पर नही गयी?
    आज वीकली रेस्ट है। उसने अपने चेहरे पर आये बाल कान के पीछे करते हुए कहा।
    बाते होने लगी तो मैने पूछ ही लिया- आप ह़सती बहुत है।
    क्या आपको हंसने वाले लोग पसंद नही है।
    नही ऐसी बात नही है।
    तो फिर कैसी बात है।
    वो आप जोर........।
    वो मुस्कुराते हुए बोली- तो फिर आपको एसे भी पसंद नही। वैसे भी पसंद नही। कहते हुए खिलखिलती हुई अपने कमरो की तरफ चली गयी. कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा। चाची जी चाय ले आयी थी। मै चाय नाश्ता करने लग गया। दिनभर पढ़ता रहा कही नही गया।
    दो दिन तक मै कही नही गया। तीसरे दिन शाम को भाई मुझे बड़ा बाजार ले गया। हम बाड़ी से नीचे उतर कर सड़क पर आ गये थे। भाई ने एक हाथ रिक्शा वाले को रोका। दोनो रिक्शा मे बैठ गये। हाथ रिक्शा मे बैठने का मेरा पहला अनुभव था। रिक्शा वाला नंगे पांव रिक्शा लेकर दौड़ रहा था। रिक्शे मे एक घंटी लटक रही थी जो रिक्शा चलने पर बज रही थी। और भी रिक्शे दौड़ रहे थे जिस पर मोटे पतले सभी प्रकार के लोग बैठे थे। मुझे यह अमानवीय लग रहा था। पर यहां लोगो की आदत पड़ चुकी थी। बड़ा बाजार से थोड़ा पहले रिक्शा रोका। यहां से पैदल चले। बड़ा बाजार मारवाड़ी व्यापारियो का बाजार है। यहां रोज अरबो रूपयो कि व्यापार होता है। दोनो तरफ दुकानो के आगे फुट बने हुए है। फुट पर छोटे व्यापारी अपना सामान बेचते है। यहां भी बहुत भीड़ थी। यहां सामान थोड़ा सस्ता मिल जाता है। मैने क ई दुकानो से सामान खरीदा। एक जगह हम बैग देख रहे थे। वही से सड़क के उस पार अनामिका चश्मा लगाये हुए भेल मुड़ी खा रही थी। और बीच बीच मे खिलखिला कर हंस रही थी। साथ मे एक हम उम्र लड़का भी था। मै उसे देख ही रहा था कि भाई ने कहा- चलो। मै आगे चल पड़ा।  पीछे गर्दन घूमाकर अनामिका को देख रहा था।  वह भी गोलगप्पे खाते हुए ऊपर की ओर मुंह् करके हंस रही थी। भाई  आगे चल रहा था। भाई के थोड़ा आगे निकलने पर मै तेज चलकर उसके बराबर आ गया। भाई मुझे काली घाट ले गया। यहां बहुत भीड़ थी। लोगो मे जबरदस्त उत्साह था। बंगाली अपने परिवार के साथ आये हुवे थे। हम  दर्शन कर लौट गये। यहां से हम मेट्रो से घर आये । मैट्रो मे बैठने का मेरा पहला अनुभव था। मैट्रो क ई स्टेशनो पर रूकते रूकते चलती। एक स्टेशन पर अनामिका चढ़ी काला चश्मा लगाये हुवे । हमसे थोड़ी दूर की सीट पर बैठ गयी। बैग से मैबाईल निकालकर देखने लगी। मैने सोचा यहां उसके लिए हंसने का कोई बहाना नही है। उसके पास ही एक बच्चा बार बार उसके कंधे का सहारा लेकर खड़ा हो रहा था। वह उसकी तरफ देखकर मुस्कुराती और फिर मोबाईल देखने लग जाती। हमारी बाड़ी वाले स्टेशन पर मेट्रो रूकी। हम लोग उतर गये। भाई मुझे बड़ा बाजार ले गया। जहां पान की दुकान पर उसके दोस्तो का मजमा लगा था। दोस्तो के साथ देर तक गपशप करते रहे। रात को घर आ गये। अब मेरी परीक्षा भी नजदीक आने लगी थी। अब मै जोरशोर से परीक्षा मे जुट गया। पढ़ते वक्त रात को अनामिका की खिलखिलाहट उसके होने का अहसास कराती।  मै पूरी तरह पढ़ाई मे व्यस्त हो गया। दो दिन बाद ही परीक्षा थी परन्तु उसकी खिलखिलाह का ख्याल रहता। आज खिलखिलाट की आवाज आयी नही। परीक्षा नजदीक होने के कारण बाहर जाकर पत्ता करने की फूर्सत नही थी। दूसरे दिन भी आवाज नही आयी तो बाहर की तरफ देखा। वो  आपस मे बातचीत कर रहे थे। कल परीक्षा थी। चाचा ने परीक्षा के बाद रूकने को कहा था। मेरा भी मन रूकने का था। परीक्षा दिन भर थी। जल्दी सुबह परीक्षा के लिए निकलना पड़ा था क्योकि परीक्षा केंद्र पुरलिया मे था। दिनभर परीक्षा देने के बाद शाम को लौटा तो पहली नजर सामने के कमरो पर गयी। परन्तु कमरो मे कोई नही था। कमरो के बाहर एक विवाहित युगल खड़ा था जिनकी गोद मे एक छोटी बच्ची थी। घर पर चाची थी। चाची से सामने वाले कमरो के बारे मे पूछा तो बताया अनामिका का प्रमोशन हो गया। कंपनी ने उन्हे पुरलिया मे एक फ्लैट दिया है। आज वो वहां शिफ्ट हो गये है। यहां नये किराये दार आ गये है। मै कुछ देर अनामिका के बारे मे सोचता रहा। फिर अपने कमरे मे सामान बांधने लगा। चाची ने कहा दो दिन और रूकोगे नही। मैने कहा - नहीं। कल ही निकलना जरूरी है। सामान बांधकर बैठ गया। चाची चाय लेकर आयी। बैठकर चाय पीते हुए सामने वाले कमरे को देख रहा था।