उंघते हुए घर थे
सभी इस गली में।
कोई फूलवाला नहीं गया
इस गली से ।
कल रात चोरो ने दहाड लगायी थी
कानो में पत्थर डालकर सोये थे सभी
चोरो को कुछ नहीं मिला
आंगन में लटक रही थी
अनगिनत छेदो वाली बनियाने
अखबार में यह खबर छपी थी
घुटनो के बल गये थे चोर
स्कूटर की किश्त चढ आयी थी
उसने चढना ही नहीं आया
उसे पता ही नहीं था
यहां वहां वो बढेगी
घटेगी नहीं ।
सारे सवाल कुओ में
लटक रहे थे
गली वाले सवालो को
खींच रहे थे
इसीलिए सवाल हर किसी के पीछे
चिपके पढे थे
वो आसमान में छेद करना चाह रह थे
उनके पास स्क्रु नहीं था
रोज अखबार में देखते थे
सरकार कभी हमारा भी लोन माफ करेगी।
बहुत सारा पानी बह आया था गली में
गली में सारे घरो की पटरीयां डूब गयी
हम छत्तो पर खडे थे
सडक पर जा रहे विद्रोह के जुलुस को देख रहे थे
यह कौनसा विद्रोह था
मुझे कल के लिए चीनी भी पडोसी से लानी पडेगी
सारी उबासियां, थकावटे और सुस्ताई को
एक ताले में बंद कर दूंगा
और एक बार फिर निकलूंगा
कुछ किश्तो का
मुछ मुस्कानो का
कुछ बदन ढकने का
कुछ धुंऐ का
इंतजाम करूंगा ।
इस बार घर उंघेगे नहीं
इस बार घर खडे रहेगे
पहले की तरह
अपनी जगह ।
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