Monday, May 22, 2023

आत्मा

 


बार बार देह पाती है 

आत्‍मा 

हर एक देह में 

नये दुखो का करती है सामना 

उन दुखो से लडती है 

पर जीत नहीं पाती है 

देहो की यात्राओ में उसने 

इतने दुख इक्‍टठे कर लिये है 

कष्‍ट पाने के लिए देहे छोटी पडने लगी है। 

समन्‍दर की अनंत गहराईयों में

डुबो दी थी आत्‍मा 

फिर भी उसने वहां 

कोई देह पा ली । 

उसने टूटी हुई चप्‍पले 

फेंकी थी बाहर 

कोई टांका लगाकर 

वापिस लौटा गया । 

दुख भी लौटाये जाते है 

इसी तरह । 

बिना देह के तडपती है 

आत्‍मा 

ज्‍यों बिन पानी के मछली। 

देह की अनंत यात्राओ के साथ 

खत्‍म होना चाहती है आत्‍मा 

अमर नहीं होना चाहती है आत्‍मा 


2 comments:

  1. ❣️❣️सही कहा है। आत्मा मुक्त होना चाहती है।❣️❣️

    ReplyDelete