बार बार देह पाती है
आत्मा
हर एक देह में
नये दुखो का करती है सामना
उन दुखो से लडती है
पर जीत नहीं पाती है
देहो की यात्राओ में उसने
इतने दुख इक्टठे कर लिये है
कष्ट पाने के लिए देहे छोटी पडने लगी है।
समन्दर की अनंत गहराईयों में
डुबो दी थी आत्मा
फिर भी उसने वहां
कोई देह पा ली ।
उसने टूटी हुई चप्पले
फेंकी थी बाहर
कोई टांका लगाकर
वापिस लौटा गया ।
दुख भी लौटाये जाते है
इसी तरह ।
बिना देह के तडपती है
आत्मा
ज्यों बिन पानी के मछली।
देह की अनंत यात्राओ के साथ
खत्म होना चाहती है आत्मा
अमर नहीं होना चाहती है आत्मा
❣️❣️सही कहा है। आत्मा मुक्त होना चाहती है।❣️❣️
ReplyDeleteधन्यवाद
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