Monday, December 25, 2023

इस साल की सिमटी हुई ये घड़ियां


 

इस दिसम्‍बर में जाडे इतने ठिठुराने वाले नहीं है जितने कि पिछले सालो में हुआ करते थे। पांच साल पहले दिसम्‍बर में इतनी ठंड थी कि भोर में बाहर निकलने पर पूरा शरीर ढक कर निकलते थे। केवल और केवल हमारी आंखे ही बिना ढके रहती थी। आंखो पर भी चश्‍मा लगा लेते या हेलमेट के कांच से ढक लेते थे। इन जाडो में अभी तक ऐसी ठंड का अहसास नही हुआ है। आज सुबह अपने कमरे से निकला तो कमरे के बाहर पीली चमकती हुयी धूप बिछी हुई थी। दीवार पर बने घोसेले से कबूतर के बच्‍चे निकल कर धूप में आ गये थे। वे अपने पंख फैला कर पूरे बदन को धूप में सेक रहे थे। वे उड नही पा रहे थे। अभी उडने में थोडा समय है। साल का भी ऐसा ही है। पहले लगता है कि धीरे बहुत जा रहा है फिर एकदम से उड जाता है। साल २०२३ ऐसा ही था। अभी तो हम २०२३ लिखना सीखे थे कि वो हमारे हाथो से फिसल गया। लेकिन फिसलते हुए भी बहुत सारी मीठी यादे दे गया। इस साल आप लोगो कार भरपूर प्‍यार और स्‍नेह मिला। मेरे काम को आपने सराहा। इस साल वो भी मिला जो अब तक अधुरा था। वो पूरा नही मिला है। मन यही कहता है कि

अजीब है दिल के दर्द

यारो न हो तो  मुश्किल है जीना इसका

जो हो तो हर दर्द एक हीरा एक गम नगीना इसका।

इस साल के शुरू मे ही मेरी किताब मोळियो आयी। राजस्‍थानी भाषा की यह किताब आलोचको द्वारा एक तरह से रौंद दी गयी परन्‍तु पाठको का भरपूर प्‍यार मिला। एक शादी समारोह में एक युवा पिता अपने बच्‍चे को मेरी तरफ अंगुली कर बता रहा था कि ये मोळियो के लेखक है। इससे ही मुझे मेरी किताब का अवार्ड मिल गया। ऐसे ही सैकडो बच्‍चो को मेरी किताब पसंद आयी। एक पिता ने बताया कि उसकी बेटी चाहती है कि मोळियो के लेखक उसकी स्‍कूल में आये। इस प्‍यार से मुझे और ज्‍यादा लिखने की उर्जा मिली। साल के अंत में मेरी डिजीटल ई बुक बी के स्‍कूल की कचौरी आयी। जिसे पूरे देश के पाठको ने भरपूर प्‍यार दिया। ऑन लाईन बिक्री मे लॉंचिग के पहिले दिन ही किताब ने धूम मचा दी थी। जयपुर के एक पाठक ने मुझे फोन कर बधाई दी। सात समंदर पार बसे बीकानेरियो को भी यह किताब बहुत पसंद आयी। कुछ एक ने मेरे ई मेल पर अपना आर्शीवाद भेजा। मेरा दिल आल्‍हादित था। इस किताब ने एक बार फिर मुझे लेखक के रूप में स्‍थापित किया। आकाशवाणी ने इस किताब के लिए मेरा विशेष इंटरव्‍यू प्रसारित किया। इस प्‍यार के बावजूद कुछ लोगो के लिए चाहता था कि मेरी किताब पढे पर उन्‍होने नहीं पढी। उम्‍मीद है नये साल में वो मेरी किताबो केा पढेंगे।


इस साल भी जनसत्‍ता में मेरा कालम प्रकाशन जारी रहा। हर महीने में मेरा एक लेख जनसत्‍ता में प्रकाशित हुआ। कुछ एक लेख और कहानी दूसरे समाचार पत्रो में भी प्रकाशित हुए।

इस साल के शुरू में प्रोग्रेसिव सोसायटी ने मेरे लेखन के लिए मुझे सम्‍मानित किया। वरिष्‍ठ साहित्‍यकार मधु आचार्य ने मुझे सम्‍मानित करते हुए सकारात्‍मकता के साथ नये स्रजन के लिए बधाई दी। श्री लाल मोहता स्म्रति ट्रस्‍ट ने भी इस साल के मध्‍य में मुझे लघु कथा वाचन के लिए आमंत्रित किया। गिरीराज जी भाई साहब और ब्रजरतनजी जोशी ने मुझे सम्‍मान देते हुए मंच पर आसीन किया। मेरी लघुकथाओ को सराहा गया और लेखन के लिए मेरा सम्‍मान भी किया गया। इस साल कई साहित्‍यक कार्यक्रमो में जाना हुआा यह साहित्‍य स्‍वजनो को प्‍यार ही था जिससे कई कार्यक्रमो में भागीदारी भी निभाई। 



यह साल घुमक्‍कडी का भी रहा । इस साल परिवार में साथ ऋषिकेश और देहरादून की घुमाई की। बच्‍चो के साथ दिन मे तीन तीन घंटे गंगा में पडे रहने का सुख जैसा कोई सुख नही। कभी बच्‍चो के साथ पहाडो पर पैदल ही निकल जाता तो कभी झरनो के नीचे घंटो नहाते हुए घुमक्‍कडी का आनंद लिया। इस बार दिल खोलकर फोटो खिंचवाई। इस टुर पर मेरे फोन का सारा स्‍टोरेज खत्‍म हो गया। हमने यात्रा का समापन गिरीराज जी की यात्रा से किया। मथुरा और व्रद्धवन के सुंदर मंदिरो में दर्शन किये।



 पूरे परिवार के साथ भजन गाते और नाचते हुए गिरीराज जी की पदयात्रा की। ऐसी घुमक्‍कडी का आंनद पहले कभी नहीं आया।


यह साल मेरे लिए उत्‍सवो का भी रहा। सारे उत्‍सव दिल खोलकर मनाये। इस बार गणेश उत्‍सव पहली बार मनाया। गणेश चतुर्थी को गणेश की प्रतिमा लाकर स्‍थापित की और अनंत चतुर्दशी के दिन गाजे बाजे के साथ विर्सजन किया। होली के दिन यार दोस्‍तो के साथ खूब रंग खेले। इस बार आफिस में जिला कलेक्‍टर के साथ मस्‍ती के साथ होली खेली। ढोल और चंग की थाप पर साथियो के साथ खूब कदम थिरकाये। इस साल होली से पहले बीकानेर में राष्‍ट्रीय महोत्‍सव हुआ जिसमें जम कर भागीदारी की। इंडियन आयडल विनर सलमान की गायकी का तो जमकर मजा लिया। बीकानेर ने दलेर मेंहदी के प्रोग्राम के बाद पहली बार किसी गायक के गानो पर झूमकर आनंद लिया। दीवाली पर तो रात भर पटाखे चलाये और यार दोस्‍तो के साथ खूब बाते की। दीवाली हमेशा की तरह उल्‍लासित रही।आखातीज को पतंगबाजी का भी खूब आनंद लिया। दिनभर छत्‍तर पर माईक पर बोल बोल अपनी बायड निकाली। पतंगो में भी तरह तरह की पतंगे उडाई और जोर से यह गाते रहे

चली चली रे पतंग मेरी चली रे

चली बादलो के पार होके डोर पे सवार चली रे।  


साल पूरा मस्‍ती भरा रहा और उत्‍सवो के उल्‍लास से सराबोर रहा परन्‍तु एक घटना दहला गयी। इस साल मेरे छोटे साले साहेब किसन कुमार पूरोहित अपने प्रेम तान मे बांधकर हम से बिछुड गया। किसनजी मेरे मित्रवत थे। इस साल के शुरू में तो उनसे मिला था। वो कितनी मुस्‍कुराकर बात कर रहे थे। अपनी बेटी के साथ मस्‍ती कर रहे थे लेकिन इस साल के बीच में ही खबर आयी तो मै स्‍तब्‍ध था।

साल जैसे धीमे पदचापो के साथ जा रहा है वैसे ही नये साल की पदचाप सुनाई देने लगी है। इस साल जिनको जीत नही पाये उनको नये साल में जीतेंगे। नये साल का सूरज क्षितिज पर अपना उजास फैला रहा है। आसमान में भोर की लालिमा छा रही है। झूमते हुए दोस्‍तो के चेहरे इस लालिमा के साथ दिख रहे है। इनमें वो दोस्‍त भी है जिनको जितना बाकि है। नये साल में और ज्‍यादा लिखूंगा और आपको पढाकर परेशान करता रहूंगा। आपका और ज्‍यादा प्‍यार पाने की कोशिश करूंगा। मन कह रहा है।

इस साल में सिमटी हुयी ये घडिया फिर से न बिखर जाये

इस रात में जी ले हम  इस रात मे मर जाये।

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Tuesday, October 24, 2023

ये क्रिकेट है मेरी जान

 

 

मै आज दैनिक भास्‍कर में वरिष्‍ठ पत्रकार शेखर का एक लेख पढ रहा था जिसमें उन्‍होने क्रिकेट के दर्शको के सैकलुर होने की बात उठायी है। उनका ईशारा भारत पाक मैच के दौरान पाकिस्‍तान बल्‍लेबाज रिजवान के आउट होने पर दर्शको द्वारा जय श्रीराम का नारा लगाने की ओर था। उसी तरह मैने टिवटर पर एक पोस्‍ट देखी जिसमें क्रिकेट की समीक्षा जाति के माधयम से करने के पक्ष मे तर्क दिये गये थे। एक फेसबुक रील में मैने एक क्लिप देखी जिसमें कुछ दर्शक बांग्‍लादेशी दर्शको से उनके प्रतीक शेर के खिलौने को छिनकर उसका मजाक बना रहे थे। अब चाहे वरिष्‍ठ हो या साधारण आप क्रिकेट में क्‍या देख रहे है। इतना शानदार क्रिकेट विश्‍वकप चल रहा है। उसमें आपको चौक्‍के छक्‍के नही दिख रहे है। आपको इसमें ये सब कैसे दिख रहा है। एक क्रिकेट प्रेमी को मैदान पर क्रिकेट के अलावा कुछ नही दिखाई देता है। जो यह सब देखते है वो निश्चित रूप से क्रिकेट प्रेमी नही है। भारत पाक मैच में दर्शको दवारा वन्‍देमातरम भी गाया गया था। आपको वो दिखना चाहिए परन्‍तु जब क्रिकेट मैच मे मसाला नही मिला था इस प्रकार की चीजे दिखाई देने लग गयी।


वरिष्‍ठ पत्रकार शेखर ने अपने लेख में पाकिस्‍तान के कोच का हवाला देते हुए लिखा है कि उनके कोच को हार का एक कारण भारतीय दर्शक लगे। उनका कहना था कि पाकिस्‍तानी दर्शको को वीजा नही देने से एक भी पाकिस्‍तानी दर्शक मैदान में नही था। वरिष्‍ठ पत्रकार शेखर ने इस बात की वकालत की है कि बीसीसीआई और भारत को उदार दिल दिखाते हुए पाकिस्‍तानी दर्शको का भी वीजा दिया जाना चाहिए था। भारत पाक मैच के दौरान जब पाकिस्‍तानी बल्‍लेबाज रिजवान आउट होकर पवेलियन लौट रहे थे तो दर्शको ने जय श्रीराम के नारे लगाये। कई लोगो ने इसे मान लिया कि यह नारा दर्शको ने पाकिस्‍तानी बल्‍लेबाज को चिढाने के लिए बोला था। पत्रकार शेखर ने अपने लेख में यह भी लिखा है कि पाकिस्‍तानियो ने १९९९ की तरह अल्‍लाह हू अकबर के नारे नही लगाये। उनका यह भी मानना हे कि दर्शको को भी अब निष्‍पक्ष होना चाहिए। वो यह भी कहते है कि भारत के स्‍टेडियमो में माईक से दिल दिल पाकिस्‍तान का नारा लगने का सोचना भी एक सपने जैसा होगा। शेखर की तरह ही एक आस्ट्रेलियाई लेखक ने भारत पाक मैच के दौरान स्‍टेडियम में एक लाख से जयादा दर्शको के नीली जर्सी देखकर लिखा जैसे स्‍टेडियम में नीली जर्सी की बाढ आ गयी हो। उन्‍होने कहा स्‍टेडियम में मानो मैच नही कोई रैली हो रही हो। उन्‍होने इसकी तुलना नाजियो से भी की। ऐसे लेखको और पत्रकारो ने एक स्‍टेडियम में भारत पाक मैच के अलावा सबकुछ देख लिया। इन्‍होने मैदान में सिर्फ क्रिकेट नहीं देखा और इ्रन्‍हे सब कुछ दिखाई दे गया।

यहां एक टिवटर पोस्‍ट का जिक्र करना भी लाजिमी होगा। ए‍क सबक्राईबर की टिवटर पोस्‍ट में इस बात का समर्थन किया गया कि क्रिकेट को जातिवादी नजरिये से भी देखा जाना चाहिए। उन्‍होने इसे क्रिकेट की सामाजिक व्‍यवस्‍था का नाम दिया। आज तक किसी क्रिकेटर और समीक्षक ने क्रिकेट में जाति व्‍यवस्‍था की बात नही उठायी। यहां तक किसी क्रिकेटर और तबके ने भी क्रिकेट में जाति की समीक्षा नही की। लोग क्रिकेट को कहां ले जा रहे है। क्रिकेट में जाति कहां से आ गयी। क्रिकेट सिर्फ क्रिकेट है। उसकी आप जाति के आधार पर समीक्षा कैसे कर सकते हो। उनका कहना है कि वो इस प्रकार से क्रिकेट के सामाजिक प्रभाव का अध्‍ययन कर रहे है। क्रिकेट एक खेल है और खेल को खेल की नजर से देखा जाना चाहिए। इसमें कोई और चीज नही देखी जानी चाहिए।

भारत में विश्व कप चल रहा है और शानदार तरीके से चल रहा है परन्‍तु मसाला नहीं निकल रहा है। इसलिए लेखक और पत्रकार क्रिकेट से इस प्रकार मसाला निकाल रहे है। भारत पाक मैच में दोनो देशो के खिलाडियो के बीच सौहाद्रपूर्ण संबध रहे। पूर्व के मैचो की तरह दोनो देशो के खिलाडियो के बीच कुछ नहीं हुआ। इससे पहले के विश्‍वकपो के मैचो में भारत और पाक खिलाडियो के बीच छेडखानी और कहानी होती रही है। इस बार ऐसा कुछ नही हुआ तो पत्रकारो ने दर्शको मे से मसाला ढुंढ निकाला। कोई भी दर्शक अवांछनीय काम करता हे या नारा लगाता है तो उसके लिए कानून बने हुए है। यदि आप इस प्रकार से दर्शको और क्रिकेट को देखोगे तो फिर क्रिकेट क्रिकेट नही रह जायेगा। यह क्रिकेट है। इसमे आप मैच कैसे खेला गया , य‍ह देखिये। यह देखिये कि किसने रन बनाये और किसने नही बनाये। नही बनाये तो क्‍यो नही बनाये। उनका पूराना इतिहास क्‍या है। क्रिकेट में आप क्रिकेट देखिये। क्रिकेट में राजनैनिक चीजे देखने की अनावश्‍यक कोशिश नही करनी चाहिए। यह क्रिकेट है मेरी जान। इसका मजा लिजिए। इसमे आनंद के पल ढुंढये नफरत के लिए दूसरी बहुत सी जगहे है।

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Wednesday, September 27, 2023

हांगझोऊ एशियन गेम्स

 


एशियन गेम्स 2023 चीन के हांगझोऊ शहर में शुरू हो चुके है। यह एशियन गेम्स 2022 में आयोजित होने थे परन्तु कोविड के कारण इनका आयोजन 2023 में हो रहा है। पहने दो दिनो में चीन 40 से ज्यादा स्वर्ण पदक जीतकर प्रथम स्थान पर बना हुआ है और ऐसा लगता है कि वो अंत तक प्रथम स्थान पर बना रहेगा। चीन वैसे भी एशिया में खेलो मे ंसबसे आगे है और इस बार मेजबान होने के कारण उसकी पदक संख्या में और वृद्धि होगी। भारत भी अपनी ठीक शुरूआत कर चुका है। दो दिनो में दो स्वर्ण जीतकर छठे स्थान पर बना हुआ है। इस बार भारत को युवा खिलाडियो से बहंत ज्यादा उम्मीदे है क्योंकि एशियाई खेलो का प्रदर्शन ही आने वाले ओलम्पिक खेलो की प्रेरणा बनेगा। भारत के लिए चुन्नौती इसलिए भी बडी है क्योंकि वह जकार्ता एशियाई खेलो में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर चुका हे। जकार्ता में भारत ने 16 स्वर्ण सहित कुल 70 पदक जीते जो भारत का अब तक का सर्वश्रेष्ट प्रदर्शन है। भारत के लिए इस आंकडे को पार करना सबसे बडी चुन्नौत्ती होगी। 


भारत में हाल ही के वर्षो मे ंखेलो के लिए उत्साहवर्द्धक माहौल बना है। भारत के युवाओ ने ऐसे खेलो में अकल्पनीय सफलताऐं हासिल की है जिससे युवाओ का रूझान खेलो की ओर हुआ है। भारत में एथलेटिक्स में नीरज चौपडा की सफलता ने देश में एक नया माहौल पैदा किया है जिससे युवाओ में यह विश्वास पेदा हुआ कि वे क्रिकेट के अलावा भी अन्य खेलो के द्वारा भी अपना नाम कमा सकते है। नीरज चौपडा ने युवाओ को एक नया जोश दिया कि वे एथलेटिक्स को भी कैरियर बना सकते है। पीवी संधु और मीरा बाई चानू की सफलताओ ने इसे परे जाकर नयी उम्मीदे जगायी है। महिला क्रिकेट में भारत ने नये आयाम छुऐ है। इससे देश में यह विश्वास पैदा हुआ है कि महिलाये भी खेलो में भारत के लिए बडी सफलताऐं प्राप्त कर सकती है। महिला क्रिकेट की सफलताओ ने यह दिखा दिया कि खेलो में देश को पदको के लिए केवल पुरूषो पर निर्भर रहना जरूरी नही है बल्कि महिलाऐं भी पदक दिलाकर देश का नाम रोशन कर सकती है। इसी सोच के साथ भारत हांगझोऊ गेम्स में भाग ले रहा है। भारत की महिलाओ ने क्रिकेट में पहला स्वर्ण पदक जीत कर इसकी शुरूआत कर दी है। भारत ने जकार्ता में 69 पदक जीते थे परन्तुं पदक तालिका में में 8वां स्थान प्राप्त किया था। भारत ने पदकतालिका में 1951 में दूसरा स्थान, 1962 में तीसरा, 1966 और 1970 में पांचवा स्थान प्राप्त किया था। यह भारत के पदकतालिका मे उच्च स्तर है। भारत वापिस अब तक इन प्रदर्शनो को दोहरा नही पाया हे। भारत के युवाओ की हाल की सफलताओ से हांगझोऊ में यह उम्मीद जगी है। भारत ने अच्छी शुरूआत करके इसका आगाज कर दिया है। 


भारत ने इस बार बहुत बडा दल हांगझोऊ के लिए भेजा है। इसमें एथलेटिक्स की संभावनाऐं ज्यादा हे। एथलेटिक्स का दल बहुत बडा है जिसमें नीरज चौपडा भी शामिल है। इसके साथ ही अविनाश साबले और ज्योति बाराजी से भी पदक की उम्मीदे है। यह माना जा रहा है कि इस बार एथलेटिक्स में भारत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकता है। भारत को जिन नये खेलो मे ंउम्मीदे है उनके क्रिकेट और तीरंदाजी है। क्रिकेट में एक स्वर्ण पदक जीत चुका है और पुरूष वर्ग में भी भारत को उम्मीद है तीरंदाजी में अदिति गोपीचंद स्वामी से भारत को बहुंत बडी उम्म्ीद हे। निकित जरीन में बौक्सिंग मे भी भारत के लिए आशाऐ जगायी है। बोक्सिंग में भारत को इस बार अधिक पदक की उम्मीद है जो जरीन और लवनीना के रहते पुरी हो सकेगी। भारतीय टीम इस बार पूरे जोश के साथ एशियन गेम्स में गयी है। टीम को बहुत बडी उम्मीदे खेल प्रेमियो को नही है परन्तु टीम इतनी प्रतिभाशाली है कि वो गेम्स में पदको की झडी लगा सकती है। भारत ने एथलेटिक्स में 68 सदस्यो का दली भेजा है। इस दल से ज्यादा उम्म्मीदे है और यही दल है जो सबसे ज्यादा सुर्खिया बटारेगा। 



भारत के लिए एशियाई खेल खास महत्व रखते है। भारत को इन खेलो में अच्छा प्रदर्शन करना ही चाहिए। एशियाई खेलो में पदक तालिका में उच्च स्थान प्राप्त करना देश की प्रगति के अवसरो को बताता है। खेलो की सफलता बताता है कि देश विकसित राष्ट्र की ओर कितना बढा है। पिछले कुछ सालो में देश के खेल इन्फ्रास्ट्रक्चर में अभूतपूर्व सुधार हुआ है। इसका असर खेलो में देखा गया है। राष्ट्रमण्डल खेलो में भारत का प्रदर्शन इस बात का गवाह है। इससे युवाओ में आत्मविश्वास भी आता है और उन्हे लगता है कि वे देश के लिए कुछ कर सकते है।  एशियाई खेलो की सफलता ओलम्पिक के लिए मार्ग बनाती है। इसे ओलम्पिक की तैयारियों के रूप में भी लेना चाहिए। भारत को एशिया में महाशक्ति बनने के लिए खेलो में भी अपना जलवा दिखाना होगा। भारत के पदको की संख्या सौ नही तो लगभग सौ के आसपास तो होनी ही चाहिए। यह भारत क ेलिए अच्छी बात है कि हर एक खेल में युवा आगे आ रहा है। न केवल आगे आ रहा है बल्कि सफलताऐं भी हासिल कर रहा है। हाल ही के दिनो में ऐसी प्रतियोगिताओ में भारत ने सफलता हासिल की है जिनके बारे में कभी सोचा ही नही गया हो। नीरज चौपडा की सफलता इसी प्रकार की है। 


हांगझोऊ में भारत सफलता की नयी इबारत लिख सकता है। यह सबसे अच्छी बात है कि इस बार उम्मीदो का बोझ भारत पर नही है क्योकि एशियाड के साथ क्रिकेट का विश्वकप भी आयोजित होने जा रहा है। इस कारण भारतीय खिलाडी उन्मुक्त होकर प्रदर्शन कर सक्रेेगे। भारत को जकार्ता ओलिम्पिक से आगे निकलकर पदको की संख्या लगभग सौ पहंुचानी होगी। नीरज चौपडा की सफलता को भुनाते हुए और अधिक पदक जीतने होगे। भारतीय युवाओ की प्रतिभा देखते हुए यह संभव हे। हांगझोऊ में भारत की उम्म्ीदो की उडान कर तक उड पाती है यह देखना बाकि है। 

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सीताराम गेट के सामने, बीकानेर 

9413769053


Wednesday, August 30, 2023

एशिया कप में भारत पाक मुकाबले पर निगाह



एशिया कप किकेट की बात होती है तो निश्चित रूप से हमारे दिमाग में भारत और पाकिस्‍तान आते है। पूरी दुनिया में क्रिकेट पर बादशाहत करने वाले ये दो देश एशिया में क्रिकेट के पर्याय माने जाते है परन्‍तु आपको यह जानकर हैरानी होगी कि एशिया कप के फाईनल में एक बार भी भारत और पाकिस्‍तान का मुकाबला नही हुआ है जबकि अब तक इसके पन्‍द्रह संस्‍करण खेले जा चुके है। एशिया कप दुनिया के पूराने टुर्नामेंटो में से एक है और इसकी शुरूआत १९८४ में यूएई से हुई थी। यह भी सही है कि पूरी दुनिया में एशिया में क्रिकेट की भारत और पाकिस्‍तान के मुकाबले मशहूर है परन्‍तु एशिया कप में भारत पाक मुकाबले बहुत कम हुए और फाइ्र्नल में तो आपस में भिडे ही नही है। पाकिस्‍तान तो मात्र दो बार इसे हासिल कर पाया है। उन दिनो में भी पाकिस्‍तान इसे हासिल नहीं कर पाया था जब श्रीलंका कमजोर टीम मानी जाती थी और टुर्नामेंट तीन टीमो के बीच ही होता था। इस बार खेला जा रहा एशिया कप भारत और पाकिस्‍तान मुकाबले के कारण उत्‍सुकता का केन्‍द्र बना गया हे। इस बार फाईनल भारत और पाकिस्‍तान के बीच होने की संभावनाऐ भी व्‍यक्त की जा रही है। चार दशक बाद भी एशिया कप क्रिकेट दुनिया ए क्रिकेट में आकर्षण का केन्‍द्र बना हुआ है।

बदलते वक्‍त के साथ एशिया कप में प्रतिस्‍पर्धा बढ गयी है। १९८४ में शुरू हुई प्रतियोगिता में पहले केवल तीन देश ही भाग लेते थे। उनमें भी श्रीलंका दुनिया की सबसे कमजोर टीम होती थी। इसके बावजूद उस समय भी एशिया कप को देखने वालो की संख्‍या ज्‍यादा थी। उस समय भी इस प्रतियोगिता को भारत और पाकिस्‍तान के मुकाबले के लिए पसंद किया जाता था। यह टुर्नामेंट भारत और पाकिस्‍तान के खराब राजनैतिक संबधो की भेंट भी चढता रहा है। १९९०-९१ के टुर्नामेंट  में भारत और पाकिस्‍तान के खराब संबधो के चलते पाकिस्‍तान ने इस टुर्नामेंट में भाग नहीं लिया। १९९३ का टुर्नामेंट  भारत और पाकिस्‍तान के खराब संबधो के कारण रदद ही कर दिया गया। पिछले पांच वर्षो से भारत और पाकिस्‍तान के खराब संबधो के चलते टुर्नामेंट यूएई में आयोजित हुआ। इस बार के टुर्नामेंटपर भी इन संबधो का साया है। भारत और पाकिस्‍तान का लीग मैच भी श्रीलंका के कैण्‍डी में खेला जायेगा। टुर्नामेंट शुरू होने से पहले तक पाकिस्‍तान खेलने से इनकार कर रहा था परन्‍तु आईसीसी के नियामो के चलते वो खेलने को राजी हुआ । इसके बाद से इस मुकाबले को भारत-पाकिस्‍तान के महामुकाबले को लेकर माहौल बनाया जा रहा है। जब हम भारत – पाकिस्‍तान के महामुकाबले की बात करते है तो यह भूल जाते है कि वो एशिया कप के टुर्नामेंट में खेल रहे है जहां दूसरी और टीमे भी खेल रही है। यह भी उल्‍लेखनीय है कि इस टुर्नामेंट को भारत ७ बार श्रीलकां ६ बार और पाकिस्‍तान सिर्फ दो बार जीता है। भारत और पाकिस्‍तान के बीच एक बार भी फाईनल नहीं हुआ है परन्‍तु १७ लीग मैच हुए है जिसमें ९ में भारत जीता है और ६ में पाकिस्‍तान जीता है। पिछले वर्ष २०२२ में दोनो टीमो में एक एक मैच जीता है। इसके बावजूद एशिया कप क्रिकेट को भारत पाकिस्‍तान महामुकाबले के तौर पर देखा जा रहा है।

इस बार एशिया कप वनडे फॉर्मेट में खेला जायेगा। पिछले साल यह टी-20 के फॉर्मेट में खेला गया था। इस बार ग्रुप ए में भारत और पाकिस्‍तान के अलावा नेपाल भी शामिल है वहीं ग्रुप बी में श्रीलंका बांग्‍लादेश और अफगानिस्‍तान है। ग्रुप बी अपेक्षाकत कठिन ग्रुप है। इसमें किसी भी टीम को कम नहीं आंका जा सकता है। वहीं ग्रुप ए आसान है। नेपाल नया क्‍वालिफायर है। नेपाल के लिए यह देखना महत्‍वपूर्ण होगा कि वो भारत और पाकिस्‍तान का मुकाबला किसी तरह से करता है। मुख्‍य मुकाबला भारत और पाकिस्‍तान के बीच ही रहेगा। इस बार भारत और पाकिस्‍तान के बीच फाईनल होने की प्रबल संभावना है। पाकिस्‍तान की टीम इस समय बेहद मजबूत स्थिति में है वहीं भारत की टीम भी बुमराह की वापसी के बाद संगठित आक्रमण के लिए तैयार है। भारत की शुरूआती बैटिंग लाइन किसी भी आक्रमण की बधिया उधेडने में सक्षम है। भारतीय टीम की सलामी जोडी यदि सफल होती है तो भारत के लिए मैच काफी आसान हो जायेगे। शुभग गिल अपनी लय कैसे बरकरार रख पाते है,उसी पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। गेंदबाजी में भारत के लिए बेहतर विकल्‍प उपलब्‍ध है। देखना यह है कि प्रबंधन इन विकल्‍पो का कैसे उपयोग कर पाते है। भारत के दिमाग में पाकिस्‍तान की टीम ही केन्‍द्र में रहेगी क्‍योंकि लीग मैचो में पाकिस्‍तान को हराना महत्‍वपूर्ण होगा ताकि ग्रुप टॉप कर सके। दूसरे दौर में भी उसे टॉप टु में रहने के लिए पाकिस्‍तान को हराना ही होगा। टुर्नामेंट का फॉमेंट इस प्रकार का है कि दर्शको को टुर्नामेंट में कम से कम दो बार भारत पाकिस्‍तान का मुकाबला देखने को मिले। यह मुकाबला उस समय और महत्‍वपूर्ण हो जाता है जब दोनो देशो के बीच द्विपक्षीय सीरीज २०१३ में बाद खेली नहीं गयी है।

इन सब के बावजूद एशिया कप को भारत और पाकिस्‍तान से ईतर बडे फलक पर देखा जाना चाहिए। यह भी देखा जाना चाहिए कि क्‍वालिफाई टुर्नामेंट खेलकर नेपाल जैसी टीम मुख्‍य मुकाबला खेलने के लिए आयी है। अफगानिस्‍तान जैसी टीम किसी भी टीम को पटकनी दे सकती है। अब्‍दुल राशिद की गेंदबाजी टुर्नामेंट में चार चांद लगायेगी।बांग्‍लादेश एक बार भी प्रतियोगिता नहीं जीत पाया परन्‍तु बांग्‍लादेश टीम भी एक दावेदार है और वो टीम इतनी सक्षम है कि टुर्नामेंट जीत सकती है। हमे इन टीमो के मुकाबलो को भी देखना चाहिए। इन टीमो के मैचो में भी रोमांच चरम पर होता है। खासकर बाग्‍लादेशी क्रिकेट जो क्रिकेट को लेकर बहुत जुनूनी है। भारत और पाकिस्‍तान की असली परीक्षा इन टीमो के विरूद्धद मुकाबलो में होगी । इसलिए एशिया कप को भारत – पाकिस्‍तान के महामुकाबले के नजरयिे न देखकर इसे वहद स्‍तर पर 6 टीमो के मुकाबले के तौर पर देखा जाना चाहिए। इस बार टीमो के संयोजन को देखते हुए यह संभावना नजर आ रही है कि टीमो के बीच मुकाबला कांटे का रहेगा और बल्‍ले और बॉल का रोमांच चरम पर रहेगा।

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Tuesday, August 15, 2023

दी हेयर एण्‍ड दी टॉरटाईज




 

मै दसवीं मे था तो मेरे मास्‍टरजी हमेंशा मुझे हेयर एण्‍ड टॉरटाईज की कहानी रटने को कहते थे। मास्‍टरजी का कहना था कि अंग्रेजी में यह कहानी याद कर ली तो पन्‍द्रह नंबर तो पक्‍के हो जायेंगे। हम लोगो उन दिनो हिन्‍दी मीडियम स्‍कूलो में पढते थे। पढाने वाले भी हिन्‍दी मीडियम के ही होते थे। कहने का मतलब उनकी भी अंग्रेजी कोई ज्‍यादा स्‍ट्रांग नहीं हुआ करती थी। हम बच्‍चो को रटा रटा करके तैंतीस नंबर लायक तैयारी करवा देते थे। मैने हैयर एण्‍ड टारटाईज कहानी का मतलब समझा तब से मै इसे झूठ मानता था। मेरा मानना था कि कछुआ कभी भी खरगोश से जीत नहीं सकता है। मेरा नाना हमेंशा कहते कि जीवन का अनुभव आयेगा तो समझ आयेगा। नाना घर के अहाते मे बैठे धनजी से बाते करते रहते । धन जी लकडी पर रन्‍दा चलाते हुए किस्‍से बताते रहते । दरअसल अहाता धन जी को किराये पर दे रखा था वहां लकडी का काम करते थे। नजदीक ही उनके लडके की लटठ बेचने की दुकान थी। उसकी दुकान में बहुत सारे लटठ पडे रहते। रस्‍सीयां और फावडे भी उनकी दुकान में थे। उनकी दुकान पर गांव वाले ही आते थे। गरमियों की छुटिटयों में सुबह मै तैयार होकर छत्‍त पर खड होता तो मेरे माथे पर पसीने की बूंदे चमकने लगती थी। मेरी नानी मेरे चेहरे पर तेल लगाती थी। इसलिए पसीने की बूंद माथे पर चमकती थी। मै छत्‍त पर खडा नीचे सडक पर देखता था। सुबह फटफटियों की आवाज कानो में गूंजती थी। ग्‍यारह बजे तक सभी दुकाने खुल जाती थी। दूर से श्‍यामजी को साईकिल पर आते मै देख लेता था। श्‍यामजी साईकिल पर आगे अपने बेटे को बैठाकर लाते थे। धूप से आंखो को अंदर धंसाते हुए वो साइकिल के हैडिल को कसकर पकडे रखता । श्‍यामजी को दुकान खोलने में आधा घंटा लगता था। दुकान खोलने के बाद सामान लगाने में उन्‍हे समय लगता था। वो अपने बेटे बाबू को सामने गददी पर बैठा देते थे। बाबू दिनभर गददी पर बैठा रहता। दरअसल बाबू मंदबुद्धि था और गूंगा था। मै दुकान खुलने के थोडी देर बाद दुकान पर चला जाता । बाबू से खेलता रहता। बाबू कुछ बोलता नही था। पर वो समझता था। बाबूलाल जी दुकान के अंदर बैठे उपन्‍यास पढते रहते । उन्‍हे वेदप्रकाश के उपन्‍यास पसंद थे। वे वर्दी वाला गुण्‍डा, सलाखो का बदला, बिना मांग सिंदूर जैसे उपन्‍यास पढते थे। मै कभी समझ नहीं पाया कि बिना चित्रो की किताब पढने में उन्‍हे क्‍या मजा आता है।

धन जी श्‍याम जी के पिता थे। धन जी हमारे अहाते में लकडी का काम करते । तैयार काम दुकान भिजवा देते । श्‍यामजी कई बार अहाते में आते और बाउजी को बताते कि क्‍या सामान तैयार करना है और ग्राहक कैसा सामान चाहते है। धन जी लकडियो पर रन्‍दा फेरते हो और फिर एक आंख बंद करके उस लकडी को जांचते। नानी चाय लाती तो धनजी लकडी को एक आंख से जांचते हुए बोलते मांजी सा भूखे पेट चाय भी नहीं निगली जाती। चाय भी कुछ पेट में हो तो अच्‍छी लगती है। नानी भी धन जी को कहती – खाली पेट है। इसलिए कहती हूं पी लो। आधार रहेगा। इतना कहने के बाद धनजी चाय पीने बैठ जाते। धन जी चाय पीते हुए अपने दुकान पर बैठे अपने पोते को देखते रहते । पोते के चेहरे पर धूप आती तो वो ऐं ---- ऐं------ ऐं --- करता तो श्‍यामजी उसके उठाकर छाया में बिठा देते । धन जी कभी अपने पोते के बारे में बात नहीं करते । ना ही श्‍याम जी कभी अपने बेटे के बारे में बात करते । श्‍याम जी दिन भी दुकान में काम करते तो बाबू चुपचाव उसे देखता रहता। शाम को मै कभी गली में फुटबाल से खेलता तो वो मुझे देखकर खुश होता। धन जी ने एक बार नाना जी से कहा था कि डाक्‍टर को दिखाया था । डाक्‍टर ने कहा एक आपरेशन के बाद यह बोलने लगेगा। तीन लाख का खर्व आयेगा। श्‍यामू मेहनत कर रहा है। पैसे इकक्टठे होते ही इसका इलाज करायेंगे। श्‍यामू ने पैस काफी इकटठे कर लिये है। जल्‍दी ही इलाज करायेगा। ये बोलने लगेगा। श्‍याम जी कम बात करते थे। त्रिशूल फिल्‍म के अमिताभ की तरह मुस्‍कुराहट उनके चेहरे के आस पास भी नहीं फटकती थी। धनजी की नजर अपने बेटै की दकान पर बराबर बनी रहती थी। उनका व्‍यवहार एक खामोशी का था। खामोशी श्‍याम जी की दुकान में तैरती रहती थी। अपने बेटे के साथ उन्‍होने भी खामोशी को ओढ लिया था।

एक दोपहर मै श्‍यामजी की दुकान पर बैठा था। एक युवा अमिताभ जैसे जूते पहने हुए और काला चश्‍मा लगाये हुए आया। उसने बाबू के गाल छेडे और श्‍याम जी को एक पर्ची दी । श्‍याम जी ने उसे पैसे दे दिये। उसने मेरी तरफ देखा और बोला – मुकरी । मुकरी दरअसल एक फिल्‍मी कलाकार का नाम था। उसने बताया कि वो बाबू का चाचा है। बाहर पढकर आया है। अमिताभ का बडा फैन था। बाते भी अमिताभ की तरह ही करता था। लंबाई भी उसकी थी। आज पहली बार आया था परन्‍तु अब वो रोज आने लगा। कभी धनजी के पास चला जाता । कभी मेरी नानी से बाते करता। वो कहता मां सा मुंबई पैसेा की फैक्‍ट्री है। वहां पैसा डालो दुगुना पैसा निकलता है। हर्षद मेहता को देखो करोडो कमा लिये। मेरे पास पैसे हो तो मै सबके वारे न्‍यारे कर दूं। नानी उसे कहती कि मेहनत का कमाया हुआ पैसा बरकत करता है। पर वो अपने उलटे सीधे तर्क देता। फिर चाय पीकर चला जाता। फिर हमारे लिये रह जाती वही श्‍याम जी की दुकान जिसमें वो उपन्‍यास पढते रहते। बाबू बाहर दौड रहे फटफटयिो को देखता रहता। कभी दिक्‍कत होती तो ऐं -----ऐं-------ऐं-----------करता तो श्‍याम जी उसे ठीक कर देते।उसका चाचा भगवान आता तो पैसा की बाते करता या फिर फिल्‍मो की। कभी बताता कि धीरूभाई कैसे धनवान बना। बडे बडे सपने दिखाता। मै तो उसकी बाते सुनकर विस्मित रह जाता । कभी कभी धन जी भगवान को डांट लगा देते परन्‍तु भगवान की बाते साईकिल की तरह दौडती रहती। हम लोग भगवान कही बाते बडे चाव से सुनते। मुझे लगता था कि ये एक दिन बहुत पैसे वाला आदमी बनेगा। कभी कोई पेन लाकर दिखाता कि यह मेड इन जापान है। कभी कैमरा लाता और कहता कि यह मेड इन रसिया है। हम इन चीजो को देखकर दांतो तले अंगुली दबा लेते।

श्‍याम जी ने कहा था कि दो दिन या तो भगवान बैठ जायेगा दुकान में या फिर बंद रखनी पडेगी। बाबू का ओपरेशन कराना है। सब बाते तय हो गयी है। दो दिन बाद आपरेशन था। अगले दिन सुबह दुकान बंद थी। कोई नहीं आया था। नाना ने कहा ओपरेशन तो दो दिन बाद था आज दुकान बंद कैसे है। उन दिनो फोन भी नहीं थे। नाना ने कुछ देर इंतजार किया। फिर अखबार पढने लग गये। मै बैचेन हो गया । क्‍या हो गया । वे आये क्‍यों नहीं। पास की दुकान के अग्रवाला साहब आ गये थे। मैने उनसे श्‍याम जी के बारे मे पूछा तो उन्‍होने बताया कि कल रात उनका भाई भगवान घर से तीन लाख रूपये लेकर भाग गया। नाना खबर सुनकर बाहर आये और बोले थाने में रपट लिखवाई है क्‍या। अग्रवाल साहब नहीं नहीं में सिर हिलाया। नाना अंदर आ गये। हाथ टुठी पर रखकर बैठ गये। तीन बजे के करीब श्‍याम जी साईकिल पर बाबू को बिठाकर आये। दुकान खोलकर जंचाई और सामान बेचना शुरू कर दिया। अग्रवाल साहब श्‍याम जी से पूछने गये कि भगवान कैसे पैसे लेकर भाग गया तो श्‍याम जी ने कहा – आपसे किसने कहा। वो भाग कर नहीं गया है। वो पढने गया है। सुनकर अग्रवाल साहब अपनी दुकान पर चले गये। श्‍याम जी ग्राहक को सामान देने के बाद वापिस एक उपन्‍यास जिस पर बंद दरवाजे लिखा था पढने बैठ गये। बाबू बाहर फटफटिये की आवाजे सुनकर ऐ ऐ कर रहा था।

Wednesday, August 2, 2023

भारत का स्‍टार शटलर है लक्ष्‍य सेन

 

सुनील गावस्‍कर को हमने क्रिकेट कोमेण्‍ट्री करते देखा व सुना है। यह हम जानते है‍ कि वो क्रिकेट की प्रतिभा को दूर से ही पहचान लेते है परन्‍तु वो क्रिकेट के अलावा बैडमिंटन से भी बहुत लगाव रखते है। उन्‍होने जब अपने इंस्‍टाग्राम पर एक युवा शटलर के साथ तस्‍वीर पोस्‍ट करते हुए लिखा कि प्रकाश पादुकोन के बाद मेरे नये एकमात्र बैडमिंटन हीरो। उनकी इस पोस्‍ट के बाद सोशल मीडिया पर लाखो युवा इस युवा शटलर के बारे में जानने के लिए सर्च करने लगे। यह और कोई नही भारत का युवा और दुनिया का 13वे नंबर का शटलर लक्ष्‍य सेन है। लक्ष्‍य सेन ने अपनी युवावस्‍था में ही अनेको उपलब्धियां हासिल कर ली है। हाल ही में जापान ओपन के सेमिफाईनल में जगह बनायी थी जहां वो दुनिया के ९वे नंबर के खिलाडी इंडोनेशिया के जॉनाथन क्रिस्‍टी से संघर्षपूर्ण मुकाबले में पराजित हो गये। पहला सैट हारने के बाद लक्ष्‍य ने वापसी की परन्‍तु अंतिम सैट में वो क्रिस्‍टी को पकड नहीं पाये और मैच हार गये। इस हार के बाद भी उसने दुनिया भर के खेल प्रेमियो का ध्‍यान अपनी ओर खींचा है। प्रतिष्ठित आल ईग्‍लैण्‍ड ओपन बैडमिंटन ओपन में उपविजेता रहे लक्ष्‍य सेन भारतीय शटलरो की दुनिया में नयी सनसनी है।

लक्ष्‍यसेन उत्‍तराखंड के अल्‍मोडा से आते है। लक्ष्‍य सेन का परिवार शुरू से ही बैडमिंटन से जुडा रहा है। उनके पिता डी.के. सेन राष्‍ट्रीय बैडमिंटन कोच है और भाई चिराग सेन अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर के शटलर है। लक्ष्‍य को बचपन से बैडमिंटन से लगाव था। उसके पिता व भाई जब टुर्नामेंट के लिए बाहर जाते तो वो भी साथ जाने की जिद करता। भाई चिराग को बैडमिंटन खेलते देख लक्ष्‍य ने भी शटल को कैरियर के रूप में चुना। उसने अंडर 13, अंडर -15 और अंडरा -१९ में अच्‍छा प्रदर्शन किया और राष्‍ट्रीय स्‍तर पर छा गया। लक्ष्‍य ने अंडर -१५ में पहला नेशनल मेडल जीता था। वर्ष २०१६ में पहली बार एशियाई जूनियर प्रतियोगिता में भारत की ओर खेला और पहली बार में ही कास्‍यं पदक जीत लिया। इस मैच में उन्‍होने जूनियर नंबर वन को हराया था। इसके बाद शिखर छुने वाले वो गौतम ठक्‍कर और पी वी संधु के बाद तीसरे शटलर बने। वर्ष २०१८ में युवा ओलम्पिक में भारत के लिए पदक जीता। इसके बाद लक्ष्‍य के कदम नहीं रूके । वो एक के बाद एक लक्ष्‍यो को साधता गया। जैसे सफल होता गया उससे उम्‍मीदे बढती गयी। वर्ष २०१८ में एशियाई जूनियर में शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत को ५३ साल बाद गोल्‍ड दिलाया।

भारत में महिला शटलरो का बोलबाला था। साईना नेहवाल और पी वी संधु ने ओलम्पिक में भारत के लिए पदक जीतकर शटल की दुनिया में भारत को नाम दिया। भारत की बैडमिंटन में पहचान महिला शटलरो से होने लगी। इनके साथ ही भारत के श्रीकांत कदांबी ने कुछ उपलब्धियां हासिल कर पुरूष वर्ग में भी भारत को सम्‍मान दिलाया परन्‍तु पुरूष वर्ग में अभी और मेहनत की जरूरत थी। श्रीकांत की काम्‍याबी से देश को उम्‍मीदे बढ गयी थी। देश अब पुरूष वर्ग में चमत्‍कारी शटलर को देखना चाहता था। लक्ष्‍य जिस पर अपने लक्ष्‍यो केा भेदते हुए आगे बढ रहे थे उससे लगा कि भारत की उम्‍मीदे पूरी होने वाली है। वर्ष २०२१ में स्‍पेन में आयोजित विश्‍व चैम्पियनशिप में लक्ष्‍य ने भारत के लिए कास्‍य पदक जीता वहीं किदाम्‍बी ने रजत पदक जीता। यहीं तय हो गया कि भारत के लिए अब आने वाले समय लक्ष्‍य का होगा। वो एक साल से बेहतरीन फॉर्म में चल रहे है। उनके जीवन का सबसे बडा टुर्नामेट आल ईग्‍लैड बैडमिंटन था। य‍ह प्रतिष्ठित र्दुनामेंट अब तक केवल दो भारतीय प्रकाश पादुकोन और पुलेला गोपीचंद जीत चुके है। इनके अलावा कोई यह टुर्नामेंट नहीं जीत पाया है। इस बार लक्ष्‍य के अलावा किदांबी श्रीकांत और पी वी संधु भी भाग ले रहे थे। आल ईग्‍लैण्‍ड बैडमिंटन के फाईनल में पहंचने से देशवासियों की उम्‍मीदे काफी बढ गयी थी। फाईनल में उसका मुकाबला दुनिया के नंबर एक खिलाडी विक्‍टर एक्‍सलसेन से था जहां वो सीधे सेटो मे पराजित हो गया परन्‍तु इस प्रतिष्ठित टुर्नामेंट के फाईनल में पहुंचना भी बडी उपलब्‍धी है। इस उपलब्‍धी के बाद लक्ष्‍य ने दनिया भर के खेल प्रेमियों का ध्‍यान अपनी ओर खींचा है। वर्ष २०२२ में ही लक्ष्‍य ने कॉमन वेल्थ गेम्‍स में मलेशिया के जी योंग को पराजित कर गोल्‍ड मेडल जीता। इस जीत के बाद लक्ष्‍य स्‍टार शटलर बन चुके थे। इसी साल लक्ष्‍य ने चीन के स्‍टार खिलाडी शी ली फेंग को पराजित कर कनाडा ओपन का खिताब जीता । ऐसा करने वाले महज वह दूसरे भारतीय है। वे २०२२ मे थॉमस कप जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्‍य भी रहे। भारत ने पहली बार थॉमस कप जीता था। हाल ही में जापान ओपन के सेमिफाईनल में वे पराजित हो गये थे परन्‍तु वो सबसे सफल भारतीय रहे थे। इस उपलब्धि पर भारत के प्रधानमंत्री ने उनकी सराहना की थी।

लक्ष्‍य को खेल के प्रति समर्पित रहने की सीख अपने दादा से मिली जिन्‍हे अल्‍मोडा में बैडमिंटन का भीष्‍म पितामह कहा जाता है। लक्ष्‍य ने प्रकाश पादुकोन अकादमी में प्रशिक्षण लिया है। यहां वो साईना नेहवाल के साथ अभ्‍यास करते थे। उनके कोच विमल कुमार का कहना है कि वो अकादमी में अकेले ऐसे खिलाडी थे जो साईना नेहवाल को पराजित कर देते थे। यहीं से उनके कोच ने उनकी प्रतिभा को पहचान लिया था। आज वो दुनिया के सामने है। आज वो भारत के स्‍टार शटलर है। उनकी तुलना श्रीकांत कदाम्‍बी से की जाती है। विश्‍व चैम्पियन शिप के सेमिफाईनल में लक्ष्‍य का मुकाबला श्रीकांत से हुआ था जहां वो श्रीकांत से हार गये थे। उनकी तुलना श्रीकांत से नहीं की जानी चाहिए। दोनो के खेलने का तरीका अलग अलग है। श्रीकांत के पास अनुभव है और लक्ष्‍य अनुभव प्राप्‍त कर रहा है। लक्ष्‍य युवाओ  की पहली पसंद है क्‍योंकि वो अपने खेल में शानदार स्‍मेशिंग करता है। स्‍मेशिंग उसके खेल की विशेषता है।

लक्ष्‍य सेन महत्‍वपूर्ण मुकाबलो में अंतिम समय पर चूक जाता है। अभी हाल ही में जापान ओपन के सेमिफाईनल में पूरे समय गेम मे रहने के बाद भी अंतिम समय पर चूक गये। कई बडे टुर्नामेंटस में वो फाईनल में पराजित हुआ है।उसे एकाग्रता पर काम करना होगा। बडे मुकाबलो से पहले अपने प्रतिद्न्‍द्वी के खेल पर रिसर्च करनी चाहिए। उसके कोच इस बात पर जरूर ध्‍यान देते होगे। यदि वो महत्‍वपूर्ण मुकाबलो में सफल हो जाये तो आज वो दुनिया का नंबर एक खिलाडी हो सकता है। इस बात में कोई शक नहीं है कि वो भारत को अभी सबसे बडा खिलाडी है जिसके बारे में सुनील गावस्‍कर की टिप्‍पणी निश्चित रूप से उत्‍साह बढाने वाली है। सुनील गावस्‍कर खुद भी खाली समय में बैडमिंटन खेलते रहे है। जब उन्‍होने लक्ष्‍य को अपना हीरो बताया है तो निश्चित रूप से वो आज युवाओ का हीरो है। लक्ष्‍य के लिए एक ही चुन्‍नौत्‍ती है कि वो महत्‍वपूर्ण मुकाबलो में अति उत्‍साह न दिखाकर संयम का खेल दिखाये । आने वाले समय में ओलम्पिक जैसे टुनामेंट में भारत को सफलता हासिल करनी है ऐसे में लक्ष्‍य सेन जैसे खिलाडी भारत के लिए गोल्‍डन हीरो साबित हो सकते है।

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सीताराम गेट के सामने, बीकानेर ९४१३७६९०५३

Sunday, July 16, 2023

सहस्‍त्रधारा की रोमांचक यात्रा

 


ऋषिकेश में गंगा नदी के सामने ही सारे आश्रम बने हुए है। सुबह सुबह मै गीता भवन से निकला। सामने गंगा नदी बह रही थी। मै कुछ देर वहीं खडा हो गया गंगा को देखता रहा । गंगा अपने पूरे आवेग के साथ बह रही थी। कोई उसमें नहाकर रोमांचित हो रहा था तो कोई पुण्‍य कमा रहा था। छोटे छोटे बच्‍चे नदी के अंदर अठखेलियां कर राजी हो रहे थे। गंगा को छुकर आने वाली हवा शीतलता का अहसास करा रही थी। कुछ देर रूकने के बाद मै वहां से चल दिया। आश्रमो के बाहर गली में नये नये रेस्‍टोरेंट बने है। यहां फास्‍ट फुड और भोजन आधुनिकता में उपलब्‍ध है। आश्रमो में सात्विक भोजन मिलता है जबकि यहां आधुनिक परन्‍तु यहां भी वेज ही मिलता है। गली से निकलते हुए साधुओ की टोलियां मिलती है। कुछ साधुओ के काली दाडी और बाकि के सफेद दाडी है। कुछ के हाथ में कमण्‍डल और कुछ के हाथ में गठरी होती है। मौन धारण किये हुए अपने गंतव्‍य की ओर जा रहे होते है। यहां साधुओ की टोलियां प्राय दिख जाती है। मै ट्रैवल ऐजेन्‍सी के यहां गया था । आज हमें देहरादूर जाना था। ट्रैवल ऐजेन्‍सी वाला मिल गया था। पांच हजार रूपये मांग रहा था। कुछ मोल भाव किया तो साढे चार हजार में राजी हुआ ।  बात तय हो गयी। उसने कहा कि गाडी आपको जानकी पुल पर मिल जायेगी। ऋषिकेश में गंगा नदी पर तीन पुल है। एक लक्ष्‍मण झुला, राम झुला और जानकी झुला। लक्ष्‍मण झुला सबसे पुराना है। उसके बाद बना राम झुला और अब नया बना है जानकी झुला। बिना किसी पोल के ये पुल बने है। इन पर चलते है तो ये पुल हिलते है इसलिए इन्‍हे झुला कहा जाता है।


यात्रा में जितने लोग आये थे उनमें से केवल 6 लोग ही देहरादून भ्रमण पर जा रहे थे। धूप बहुत तेज थी। तेज धूप में गंगा नदी किसी आईने की तरह चमक रही थी। हम सब लोग जानकी पुल से गुजर रहे थे। यहां पुल से पैदल ही जाना होता है। इस पर वाहनो की अनुमति नहीं है। स्‍कूटी जरूर इस पर चलती है। माताजी को स्‍कूटी पर बिठाकर पुल के पार भेज दिया। हम सब लोग पैदल मस्‍ती करते हुए चल रहे थे। पुल पर बहुत भीड थी। काफी बच्‍चे सैल्‍फी के लिए पुल पर खडे थे। पुल से निकलते ही हमारी गाडी तैयार थी। ऐ सी गाडी होने से मानस बहुत खुश था। अब तक उसे पैदल ही यात्रा करवायी थी। पुल के बाहर बडा बाजार था। हमने दो पानी की बोतले और खाने पीने का सामान खरीद कर रख लिया। अब हमारी गाडी देहरादून के लिए रवाना हो गयी।


ऋषिकेश की सीमा पार होते ही हम जंगल में आ गये। कार की खिडकी से पहाड और उसके आगे घने जंगल दिखाई दे रहे थे। ये जंगल वैसे ही थे जैसे बेटा फिल्‍म में तु मेरा मै तेरी वाले गाने में बताये हुए थे। कार की खिडकी से जंगल किसी पिक्‍चर की तरह चल रहे थे। ऋषिकेश और देहरादून समुद्रतल की उंचाई मे ज्‍यादा अलग नही है। दोनो लगभग एक ही उंचाई पर है। गाडी में गाने गाते हुए हम जल्‍द ही देहरादून शहर पहुंच गये। यहां के शहर की सडके साफ सुथरी है। सडको पर धूल बिलकुल नहीं है। सडको पर जगह जगह फल के ठेले लगे हुए है जिन में अधिकांश पर लीची लदे हुए है। कई घरो में लीची के पेड भी लगे हुए दिखाई दिये परन्‍तु फिर भी लीची यहां सस्‍ते नहीं है। यहां लीची १४० से १८० रूपये किलो तक है। यह बात जरूर है कि यहां लीची ताजे मिल जाते है। अब हमारी गाडी सहस्‍त्र धारा की ओर जा रही थी। सहस्‍त्र धारा देहरादून में नीचे घाटी की ओर है। ड्राईवर हमें सहस्‍त्रधारा के बारे में बता रहा था। ड्राईवर अच्‍छा आदमी था। उसने बताया कि उसका गांव केदारनाथ के पास है। उसने बताया कि उसका परिवार कैसे मुश्किल में रहता है। वो बर्फबारी का तो वो साल में कई बार सामना करते है। उनके यहां स्‍कूल और अस्‍पताल की दिक्‍कते है। उसने अपने पहाडी खाने के बारे में भी बताया। उसने बताया कि वो ठंड में भटट की दाल बनाते है। पहाडी खाने में भटट की दाल विशेष होती है। उसने बताया कि पहाडो में कितनी ठंड पडती है। हमने भी उससे हमारे यहां पानी की कमी साझा की। हमारा जीवन पानी के बिना कितना मुश्किल है, यह भी बताया। बाते करते करते हम सहस्‍त्र धारा पहुंच गये। गाडी एक किनारे पार्क की। ड्राईवर ने बताया कि एक घंटे में आप आ जाना। हम सब गाडी से निकले और अपने हाथ मुंह धोये।



सबसे पहले मंदिर में गये। यहां शिव मंदिर है। सहस्‍त्रधारा एक बहुत बडा पहाड से जिसमें से लगातार पानी की धाराये निकलती रहती है। कहीं गंधक की धारा तो कहीं दूसरे पानी की सहस्‍त्रो धाराऐ निकलती रहती है। यह धाराऐ बरसो से अनवरत निकल रही है। मंदिर में शिव अभिषेक के लिए भी पानी उन्‍ही धाराओ से ही आ रहा था। पानी एकदम कंचन की तरह साफ था। सबसे पहले हम सब ने पानी से शिवअभिेषेक किया। फिर बाहर सहस्‍त्र धारा की ओर आ गये। सबसे पहले गुरूद्रोण की मुर्ति लगी थी। उस मुर्ति को प्रणाम किया और फोटो खिंचवाये। यहां पहुंचते ही ठंडी हवाऐं  आपको छुने लगती है। पहाडो से गिरने वाली सहस्‍त्र धाराऐं रोमांचित करती है। चारो और पहाडो से घिरा हुआ स्‍थान है ये। इसे घाटी भी कहा जा सकता है। इस पहाड पर कई गुफाऐं भी बनी हुई है। सब जगह से पानी आ रहा है। पहाडो से गिरने वाले पानी को तीन जगह बांध दिया है ताकि लोग वहां नहा सके। कई जगह छोट छोटे झरने बन गये है। हमारे चारो तरफ हरियाली से भरे हुए पहाड थे जिनमें से सहस्‍त्रो धाराऐं बह रही थी। हम दुनिया की सुंदरतम जगहो में से एक पर खउे थे। हमारे पीछे उंचाई पर गुफाऐं थी जिनमेंसे पानी आ रहा था। कुछ लोग उंचाई पर जाकर गुफाओ में जा रहे थे। गुफा से एक साथ पानी आने से वहां झरना बन गया था। दूसरी ओर उंचाई पर एक रेस्‍टोरेंट था जिसमें लोग रोपवे द्वारा जा रहे थे।



अनवरत धाराओ में बहने से बडे बडे पत्‍थर नीचे आ गये थे। उन पत्‍थरो पर चलते हुए हम सुरक्षित स्‍थान देख रहे थे। पानी को देखकर हम लोगो का भी नहाने का मन हो गया था। एक स्‍थान पर हम लोगो ने अपने कपडे रखे और पानी में कूद पडे। हमने ऐसा स्‍थान देखा जहां छोटा झरना भी था। पानी गहरा नहीं था। धाराओ से निकला हुआ पानी था। पानी के अंदर छोटे छोटे पत्‍थर थे जो पांवो में चुभ रहे थे। मै चलता हुआ झरने के पास पहुंचा । कुछ देर झरने के नीचे बैठा रहा। वहां मैने मानस और मंयक को भी बुला लिया था। यहां भी स्‍नैप जरूरी थे। कुछ स्‍नैप हमने वहां खींचे। फिर पानी में चलते हुए दूसरे झरने पर गये। वहां पानी का बहाव तेज था। पानी हमें धक्‍के मार रहा था। रोमांचित करने वाला अनुभव था। पानी के बीचे पडे बडे पत्‍थरो पर हम बैठ गये। कुछ देर बाद फिर पानी में उतर आये। एक पिता अपने छोटे से बच्‍चे को नहला रहा था। बच्‍चे चेहरे की खुशी देखी जा सकती थी। बच्‍चो अठखेलिया कर रहा था। पानी से सहस्‍त्र धाराओ वाला पहाड विशाल दिखाई दे रहा था। यहां से पहाडो से निकलती सहस्‍त्र धाराऐ, झरने और गुफाऐं दिखाई दे रही थी। अदभुत दृश्‍य था । अब एक घंटे से भी ज्‍यादा का समय हो चुका था। हम निकल कर बडे से पत्‍थर पर आ गये थे। वहां खडे होकर कुछ स्‍नैप और कुछ सैल्‍फी ली। फिर वहीं बैठकर भेल मुडी खायी। नहाकर निकले थे तो भेलमुडी बडी स्‍वादिष्‍ट लग रही थी। भेलमुडी खाने के बाद हमने कपडे पहने और बाहर की ओर चल दिये। यहां से जाने का मन नहीं हो रहा था। कुछ दूर जाकर वापिस पीछे आया। एक बार ओर इस अदभुत दृश्‍य को देखा। जी अभी भी नहीं भरा था परन्‍तु जाना तो था।




गाडी पर जाने से पहले हमे चाय की जोरदार तलब हो रही थी। नहाने के बाद ठंडे वातावरण में चाय तो जरूरी थी। गाडी पार्किंग के पास ही एक रेस्‍टोरेंट था। हमने रेस्‍टोरेंट में चाय और नाश्‍ता किया। चाय अच्‍छी थी इसलिए सबने दो दो कप लिये। चाय पीने के बाद वापिस हम अपनी गाडी में बैठ गये और गाडी रवाना हो गयी हमारे अगले डेस्‍टीनेंशन की ओर। अगला पडाव अगली कडी में …………
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Sunday, July 9, 2023

हिमशैैल वाटर फॉल से नीलकंठ महादेव



ऋषिकेश के गीता भवन की बालकॉनियों में जालियां लगी है ताकि बंदर यहां रहने वालो को परेशान नहीं कर सके। अस्‍थायी निवास में ठहरे यात्री जब भोजन बनाते है तो उसकी खूशबू से बंदर उन जालियो को पकड कर खडे हो जाते है। मै इन बंदरो को कमरे के बाहर रखी कुर्सी पर बैठकर देख रहा था। बंदर जाली से ऐसे लटके हुए थे जैसे कि उन्‍हे न्‍यौता देकर बुलाया गया है। मै उन्‍हे चौकीदार लग रहा था । मेरी ओर घूर रहे थे। पास बैठे भानजे ने कहा आज कहां चलना है मामा। मैने उसे गुगल में कोई नया टुरिस्‍ट प्‍वांईट या वाटरफाल देखने को कहा । हम ऋषिकेश की गली गली घूम चूके थे। हमे कुछ नया चाहिए था। भानजे ने अपने मोबाईल में दो तीन झरनो के नाम बताये। इनमेंसे नील झरना और पटना झरने पर जा चुके थे। मैने हिमशैल झरने पर जाने का निश्‍चय किया। मैने पूछा कितना दूर है तो गुगल में कोई 2 किमी दूर बताया। हम तीन लोग थे । तीनो तैयार हो गये । मैने भानजे से कहा तौलिया, कपडे और कुछ खाने का सामान बैग में डाल ले। मानस और मयंक ने बैग अपने कंधो पर डालकर तैयार थे। फिर चल पडे हिमशैल वाटर फाल की ओर


गीता भवन के बाहर से हमने गुगल मैप देखना शुरू किया। गुगल मैप देखते हुए गीता भवन के पीछे की सडक पर गये। एक ऐसी गली में भी घुस गये जो आगे बंद थी। गुगल मैप से मिलान करने मे हम गलती कर गये। आगे गली में कुछ लोग आते हुए दिखे। हम भी गुगल मैप वाली गली मानकर उसमें चलने लगे। गली में चढाई बहुत थी। हर पांच मिनट बाद रूकना पड रहा था। गली पार करने के बाद एक थडी पर मै बैठ गया। मानस मेरी हालत देखकर हंसने लगा। मयंक मेरे लिए नारियल पानी लाया। नारियल पानी पीने के बाद गुगल नक्‍शा देखकर चलने लगे। सामने भूतनाथ मंदिर था। उससे सीधे जाना था। हम उस ओर चल पडे। आते जाते लोगो से पूछ रहे थे हिमशेल वाटर फाल कहां है। किसी ने सही उत्‍तर नहीं दिया। अधिकांश लोगो ने तो कहा कि आगे कोई वाटर फाल नहीं है। रास्‍ता चढाई का था तो हम वापिस लौटने का सोचने लगे। आगे दो लडकियां दुकान लगाकर बैठी थी। उन्‍होने आवाज देकर कहा कि हिमशैल वाटर फाल आगे है। हमारे मन में नई उम्‍मीद जगी। उन्‍होने बताया थोडी दूर चलने पर उसका पानी सडक पर फैला हुआ दिखाई देने लग जायेगा। मानस ने कहा तो फिर ठीक है, चलते है परन्‍तु लडकियो ने कहा वो वाटर फाल बंद हो गया। किसी हाथी के हमले के बाद बंद कर दिया गया है। अब वहां पाईप लगा दिया गया है जिससे पानी आता है। हर मन मसोस कर लौट गये। लौटकर भूतनाथ मंदिर के बाहर थडी पर बैठ गये। मैने हिसाब लगाया और सोचा कि यदि 1000 रू तक कोई गाडी नीलकंठ चलती है तो नीलकंठ चल लेते है। मयंक ने वहां खडी गा‍डी वालो से पूछो तो किसी ने 2000रू से कम नहीं कहा । पहले हमने वहां कटा हुआ खीरा खाया तो वहां बैठे दो लोगो ने बताया हम अभी नीलकंठ जाकर आये है। एक आदमी का दो सौ रूपये लगे। मैने पूछा – कैसे । उन्‍होने बताया कि आगे एक टैक्‍सी स्‍टैण्‍ड है वहां 200 रू सवारी में आप जा सकते है। मै बहुत खुश हुआ। मैने कहा चलो नीलकंठ चलते है।


 टैक्‍सी स्‍टैण्‍ड पर जाते ही टेक्‍सी मिल गयी। टैक्‍सी में हमारे साथ बिहार से आये हुए चार युवक भी थे। वे पूरे रास्‍ते भोजपुरी में बाते कर रहे थे। इसका हमने बहुत मजा लिया। उन मेसे एक महाराज जैसा था । जिससे वो लोग हर बात की हां करवाते थे। वो बोल रहा था – हम तो सावन में यहां आते है। सावन में ससुरी यहां इतनी भीड होती है कि दर्शन करते में चार घंटे से नंबर आता है। हम तो यहां तक पैदल आते है। वो इतनी बाते कर रहे थे कि हम आपस में बात ही नहीं कर पा रहे थे।


मैने मानस से मोबाईल से रास्‍ते का वीडियो बनाने के लिए बोला। साथ में यह भी बोला कि मेरा भी फोटो साथ आना चाहिए। मै मानस का बता रहा था कि यहां से राफटिंग होती है। वहां राफटिंग वाले नावे लेकर खडे थे। कुछ लोग नदी में राफटिंग कर रहे थे। हमारी टैक्‍सी काफी उंची चल रही थी। गंगा में राफटिंग करने वाले काफी छोटे छोटे दिखाई दे रहे थे। एक तरफ गंगा नदी बह रही थी और दूसरी और विशालकाय पहाड थे जो हरियाली से आच्‍छादित थे। हमारी गाडी कुछ देर में राजाजी नेशनल पार्क से भी गुजरी। यहां गाडी रोकना मना था क्‍योंकि यहां जंगली जानवरो का भय था। पास बैठे युवक ने कहा वो देखो सुसरा शेर। दूसरे ने कहा- कहां है कहां है। गाडी मे बैठे सभी उत्‍सुकता से देखने लगे। महाराज ने कहा – वो सुसरी बकरी है। तुमको पता नहीं क्‍या क्‍या दिख जाते है। हम सभी ने महाराज की बात सुनकर जोर से ठहाका लगाया। गाडी अब नीचे घाटी में उतर रही थी। हमें अब वो सडक दिखाई दे रही थी जहां से चलके हम आये थे। सडक पर गाडियो की लंबी लाईन लगी थी। हम घाटी में उतर रहे थे। पहाडो पर सफेद बादल रूई के फौव्‍वो की तरह दिखाई दे रहे थे। हरियाली में सफेद बादल पहाडो पर गहनो के श्रंगार की तरह लग रहे थे। गाडी हमारी टैक्‍सी स्‍टैण्‍ड पर रोक दी। हम सब ने एक दूसरे के नंबर लिये ताकि समय पर लौट सके। गाडी टैक्‍सी स्‍टैण्‍ड पर खडी थी।




अब हम नीलकंठ में थे। चारो और पहाडो से घिरा हुआ। सारे पहाड हरे भरे। रोमांचित करने वाला दृश्‍य था। यहां फोटो खिंचवाने का मोह छोड नहीं पाया। मंदिर जाते हुए रास्‍ते में एक दो फोटो तो खिंचवा ही लिये। हम जहां खडे थे उसके नीचे और घाटी थी। एक ओर चाय पानी और प्रसाद की दुकाने लगी थी। सभी दुकानदार अपने यहां से प्रसाद लेने की मनुहार कर रहे थे। मंदिर के नजदीक पहुंच गये थे। मंदिर सीढिया उतर कर था। हम लोगो ने एक दुकान से प्रसाद लिया और वहीं चप्‍पले खोल दी। यहीं से मंदिर के द्वार में प्रवेश किया। लंबी लाईन थी।




आगे जबरदस्‍त भीड दिखाई दे रही थी। लोग बम बम भोले बोल रहे थे। मैने भी हर हर महादेव का उदघोष किया। लाईन में हम आगे पीछे हो गये थे। निज मंदिर में बहुत भीड थी। महोदव की लिंगी पर मैन जलाभिषेक किया। यह जलाभिषेक कुछ ही सैकिण्‍ड में पूजारी ने करवा दिया। पीछे भीड बहुत थी। मै जलाभिषेक कर आगे आ गया। मानस और मयंक भी पीछे पीछे आ गये। मंदिर के बाहर आने पर देखा मंदिर के बाहर बहुत सारे धागे बंधे थे। कुछ मन्‍नतो के लिए बांधे हुए थे और कुछ प्रसाद की थाली में आने वाले धागे को वैसे ही बांध देते थे। मैने मंदिर के बाहर अपने स्‍नैप खिंचवाये। मैने मानस से कहा फोटा में लगना चाहिए कि हम नीलकंठ महादेव के मंदिर में है। मंदिर में लगातार बम बम भोले के स्‍वर सुनाई दे रहे थे। 



मंदिर के बाहर आकर चारो ओर घिरे पहाडो को फिर से देखा। अपने जूते चप्‍पल पहन कर सबसे पहले कुछ खाने पीने का काम किया। एक रेस्‍टोरेंट में गये। जिसके पीछे बालकॉनी से नीचे घाटी और पहाड दिखाई दे रहे थे। हमने वहां बैठकर चाय का आनंद लिया। यहां के स्‍नैप अलग से लिये। नीचे घाटी में भी कुछ अस्‍थायी मकान बने हुए थे। चाय पानी करने के बाद बाहन निकले तो एक हैण्‍डपंप पर पानी भरा। मैने हैंड पंप चला कर देखा। फिर घाटी के सुंदर दश्‍य में कुछ योगा करते हुए स्‍नैप खिंचवाये। 





आने वाले सावन मास को देखते हुए परिसर में तैयारियां चल रही थी। ठंडी हवा में हम लोग हाथ फैलाकर खडे हो गये। हवा का भीतर तक अहसास किया। वहां दश्‍य इतना सुंदर था कि आधे घंटे तक हम वहां वीडियो सैल्‍फी और फोटो बनाते रहे । मैने कहा हम लोगो को साथ में दो ड्रेस और लानी चाहिए थी। शाम हो रही थी। हम जल्‍दी से टैक्‍सी की ओर गये। बिहारी युवक पहले से ही आ चुके थे। जल्‍दी से हम गाडी में बैठे। गाडी में बैठ कर हर हर महादेव का उदघोष किया और गाडी रवाना। लौटते वक्‍त समय का पता ही नहीं चला। गाडी राम झुले पर रूकी। हम लोग वहां उतर गये और वहां से हर हर महादेव का उदघोष करते हुए गीता भवन की ओर चल दिये। 

Wednesday, July 5, 2023

क्रिकेट से रोशनी जा रही है

 


वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम को भारत में होने वाले वनडे विश्‍व कप से बाहर होना एक सामान्‍य घटना नहीं है बल्कि क्रिकेट की दमकती ईमारत के एक कोने पर लगा दाग है। चाहे इसके लिए कोई दोषी हो परन्‍तु वेस्‍टइंडीज के बाहर होने से दुनिया भर के करोडो क्रिकेट प्रे‍मियों को निराशा हुई है । एक टीम जिसने कभी दुनिया ए क्रिकेट पर राज किया था उसे क्रिकेट की जंग के सबसे बडे जलसे में शामिल होने का हक अब हासिल नहीं है। पूरी दुनिया जिन खिलाडियो की गेद और बल्‍ले से कांपती थी आज उसी वेस्‍टइंडीज की टीम के कदम जंग के मैदान के बाहर ही ठिठक गये है। जिस वेस्‍टइंडीज के गेंदबाजो के सामने दुनिया की कई पूरी की पूरी टीमे सामना करने से कांपती थी आज उसी वेस्‍टइंडीज टीम को एक क्‍वालिफायर टीम ने पराजित कर विश्‍व कप में खेलने का अधिकार छिन लिया । दो बार की विश्‍व चैम्पियन के बाहर होने पर क्रिकेट के दीवानो को बेहद अफसोस हुआ। जिस वेस्‍टइंडीज टीम के बिना क्रिकेट की कल्‍पना करना संभव नहीं था आज उसके बिना विश्‍वकप खेला जायेगा। एक टीम जिसने क्रिकेट को अपना अविस्‍मरणीय योगदान दिया उसी टीम के बिना क्रिकेट की सबसे बडी जंग आयोजित होगी। अब यह तय हो ही गयी है कि वेस्‍टइंडीज आने वाले विश्‍वकप का हिस्‍सा नहीं होगा तब यह विचारणीय प्रश्‍न है कि कभी अपनी कलाईयों के दम पर पूरी दुनिया को अपने बल्‍ले के नीचे रखने वाली टीम की इतनी दुर्दशा कैसी हुई। 

वर्ष १९७५ में जब पहला विश्‍वकप आयोजित होना तय हुआ तब वेस्‍टइंडीज ने अपनी प्रतिभा के दम पर पूरी क्रिकेट की दुनिया का अपने कब्‍जे में कर रखा था । किसी भी टीम के पास उस टीम का सामना करने की क्षमता नहीं थी। मैल्‍कम मार्शल, ज्‍यॉल गॉर्नर जैसे गेंदबाज अपनी गेंदो से आग उगलते थे। दुनिया के बडे बडे बल्‍लेबाज इनके आगे धराशायी हो जाते थे। क्‍लाईव लॉयड और विव रिर्चडस, डेसमंड हेंस और गॉडर्न ग्रीनीज जैसे बल्‍लेबाज से सुसज्जित टीम ने पहला और दूसरा विश्‍वकप आसानी के साथ जीत लिया था । उस समय लग रहा था कि यह टीम अजेय है। १९८३ में कपिल देव की कप्‍तानी में भारत की टीम ने फाईनल में पहली बार विश्‍वकप में पराजित किया। उसके बाद से वेस्‍टइंडीज टीम वापिस कभी भी फाईनल में नहीं पहुंच पायी है। विश्‍वकप के फाईनल में भारत के हार जाने के बाद भी वेस्‍टइंडीज टीम अपने विरोधियों पर भारी पडती रही । दुनिया भर के क्रिकेट खेलने वाले देश वेस्‍टइंडीज से निपटने की युक्तियां खोजते रहते। उस समय श्रीलंका के खिलाडी तो वेस्‍टइंडीज के गेंदबाजो का सामना ही नहीं कर पाते थे। १९८७ के विश्‍वकप में वेस्‍टइंडीज पहले दौर में बाहर हो गयी। पाकिस्‍तान के विरूद्ध एक मैच हार कर टीम बाहर हो गयी थी तब विव रिचर्डस मैदान में रो पडे थे। उस समय रोने का वक्‍त नहीं था क्‍योंकि टीम संघर्ष कर हारी थी परन्‍तु आज वेस्‍टइंडीज के लिए रोने का वक्‍त है। १९९० तक वेस्‍टइंडीज विश्‍वकप नहीं जीतने पर भी सिरमौर रही । विव रिचर्डस, रिचि रिर्चडसन, डेसमंड हेंस, लैरी गोम्‍स, जैफ डुजो, रोजर हार्पर जैसे खिलाडियो ने वेस्‍टइंडीज की मान मर्यादा बनाये रखी। 

दुनिया की सिरमौर टीम का पतन १९९० के बाद से शुरू हो गया था जब विव रिचर्डस ने संन्‍यास लिया। उसके बाद कमान रिची रिर्चडसन को सौंपी गयी। गेंदबाजी मे कर्टनी वाल्‍श बडा हथियार था परन्‍तु धीरे धीरे वेस्‍टइंडीज अपनी लय खोने लगी। उस समय ब्रायन लारा उनके साथ बडा बल्‍लेबाज था जिसने सचिन की तरह कई रिकार्ड बनाये। ब्रायन लारा ने काफी हद तक वेस्‍टइंडीज के पतन को रोके रखा। १९९६ के विश्‍वकप में टीम सेमिफाईनल तक पहुंचने में सफल रही । एम्‍ब्रोस, इयान बिशप गेंदबाजी के उच्‍च मानको को बनाये रखने में असफल रहे। फिर भी खिलाडियो ने टीम को स्‍वर्णकाल में ले जाने का प्रयास किया। एक बार चैम्पियंस ट्राफी भी जीतने में सफल रहे । २०१२ में आईसीसी टी २० चैम्पियनशिप भी जीती । १९९५ से २०१५ तक वेस्‍टइंडीज का प्रदर्शन मिश्रित रहा। कभी जीत जाते जो कभी बुरी तरह हार जाते। इस दौरान टीम का दबदबा नहीं रहा परन्‍तु टीम का एक औसत प्रदर्शन रहा । 

वेस्‍टइंडीज टीम के लिए बडी दिक्‍क्‍त यह है कि यह एक देश नहीं है। यह एक कैरबियन देशो का समूह है जिसके देशो के खिलाडियो से मिलकर टीम बनती है। इस कैरेबियन समूह का एक ही क्रिकेट बोर्ड है। बोर्ड और खिलाडियो के बीच २००५ में विवाद शुरू हुआ जो अभी तक किसी न किसी रूप में जारी है। एक बार तो कैरेबियन समूह के देशो की अलग अलग टीम के रूप में खेलने की भी कल्‍पना की जाने लगी। एक बार शिव चन्‍द्रपॉल कप्‍तानी में दूसरी टीम भेज दी गयी। खिलाडियो ने कई बार टीम से बगावत कर दी। उसके बाद टी २० आने के बाद वेस्‍टइंडीज के खिलाडियो को नया रोजगार मिल गया। वे राष्‍ट्रीय टीम से बगावत करके टी२० लीग में खेलने लग गये। पोलार्ड और दूसरे खिलाडी अपना अधिकांश वक्‍त टी २० लीगस को देने लग गये। इससे वेस्‍टइंडीज टीम को बहुत बडा नुकसान हुआ। उसकी राष्‍ट्रीय टीम कमजोर हो गयी। टीम का मैनजमेंट विव रिचर्डस के सन्‍यास के बाद ही हो गया क्‍योंकि उसके बाद डेसमेंड हेंस को बीच में ही हटा दिया गया। बार बार कप्‍तान बदले गये। गस लोगी को अंदर बाहर किया गया। २००५ के बाद टीम पूर्णत गर्त के रास्‍ते पर आ गयी। जिसकी परिणित यह हुई कि क्‍वालिफायर स्‍कॉटलैंड से हार कर बाहर हो गयी। 

वेस्‍टइंडीज के पतन में वहां का बोर्ड पूरी तरह से जिम्‍मेवार है। जब टीम का स्‍वर्णकाल था तो भविष्‍य की टीम के बारे में नहीं सोचा गया। प्रतिभाऐं अपने आप नहीं आती है उन्‍हे खोजना पडता है और अवसर देना पडता है। एम्‍ब्रोस और वाल्‍श के बाद तेज गेंदबाजो को नहीं तराशा गया। वेस्‍टंडीज बोर्ड की ओर से प्रोत्‍साहन नहीं मिलने से गुयाना और बारबोडोस के प्रतिभाशाली युवाओ ने अपना रूख ऐथेलेटिक्‍स की ओर कर लिया। मनोरंजन के नये साधान आने से युवा संगीत की ओर भी मुड गये। क्रिकेट में विवादो के चलते युवा क्रिकेट की ओर आकर्षित नहीं हुए। टीम का धरेलू क्रिकेट ढांचा भी दरकने लगा था जिसका नुकसान टीम को हुआ। किसी भी देश की क्रिकेट के लिए घरेलू क्रिकेट का मजबूत होना जरूरी है। वेस्‍टइंडीज टीम के गर्त में जाने का सबसे बडा कारण उनकी घरेलू क्रिकेट का विवादो में घिर जाना है। 

वेस्‍टइंडीज दुनिया के सबसे बडे क्रिकेट जलसे से बाहर है। इसका दुख सभी क्रिकेट प्रेमियों केा है परन्‍तु एक कमजोर वेस्‍टइंडीज टीम को भी हम स्‍वीकार नहीं कर सकते है। अब जरूरत है कि आईसीसी वेस्‍टइंडीज क्रिकेट टीम को मजबूत करने का जिम्‍मा ले क्‍योंकि वेस्‍टइंडीज क्रिकेट की विरासत है। उस विरासत को बचाये रखना जरूरी है। नयी टीमे आती रहेगी और क्रिकेट से जुडती रहेगी परन्‍तु हमें विरासत को भी लुप्‍त होने से बचाना जरूरी है। वेस्‍टइंडीज टीम के बिखरने के बाद क्रिकेट अधूरा हो जायेगा। इसलिए अब वक्‍त है कि वेस्‍टइंडीज टीम को एक विरासत के तौर पर बचाया जाय। वेस्‍टइंडीज का क्रिकेट की मुख्‍य धारा से बाहर होना वैसा ही जैसे चिरागो से रोशनी जा रही है। 


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