Wednesday, November 25, 2020

लिच्छा



 
कोलकत्ता नाम का कोई रेल्वे स्टेशन नही है. कोलकत्ता जाने वाली ट्रेन हावड़ा स्टेशन पर जाकर रूकती है. हावड़ा से पहले एक स्टेशन आता है लिलुआ. हावड़ा जाते वक्त हमेशा मै लिलुआ को खिड़की से ही देखता था. लिलुआ मे कभी गाड़ी नही रूकती थी. टैन मे साथी यात्री बताते है कि लिलुआ आने के लिए आपको पहले हावड़ा उतरना होगा ओर फिर वहां से लोकल मे लिलुआ आना होगा. मुझे इस मित्र के घर फंक्शन मे लिलुआ जाना था. हावड़ा की टेन मे लिलुआ स्टेशन आया तो बीच मे बड़ा मन हुआ उतरने का पर गाड़ी कहां रुकने वाली थी. गाड़ी तो सीधे हावड़ा जाकर रूकी. हावड़ा स्टेशन से  लोकल मे बैठकर हम लिलुआ आये.

लिलुआ एक छोटा सा जंक्शन है. दो प्लेट फार्म है और एक पुल. मै सामान लेकर पटरियों के ऊपर से आ गया बाकि लोग पुल से नीचे आये. लिलुहा दो भागो मे बंटा हुआ है. स्टेशन के एक तरफ बहुत बड़ा शहर और दूसरी तरफ एक कस्बा. मेरे मित्र  का मकान कस्बे मे था. हम लोग रिक्शा करके मित्र के घर पहुंचे.  मित्र का घर बाजार से थोड़ा दूर था. एक लंबी अंधेरी गली के बाद  मित्र का घर था. हम लोग शाम को पहुंचे थे. 

फंक्शन दो दिन बाद था. रात को बातो की महफिल सजी. देर रात तक मतलब अगले दिन की भोर तक बाते और हंसी मजाक चलती रही. दूसरे दिन शाम को चार बजे नींद से उठे.

मित्र फंक्शन की तैयारी मे व्यस्त था. मित्र का भाई वरूण मेरे साथ था. शाम को वरूण के साथ बाजार घूमने निकला. छोटा कस्बा था इसलिए दुकाने भी छोटी थी. कोई बड़ा शो रूम नही था. वरूण के साथ पैदल चलते चलते स्टेशन तक आ गये. स्टेशन के नजदीक ही एक इडली डोसा का ठेला था. ठेले पर भीड़ बहुत थी जो बता रही थी कि इसका इडली डोस बहुत फेमस है.  हम लोगो ने भी वहां इडली डोसा लिया. इतने स्वादिष्ट इडली बोले पहली बार खाये थे. भरपेट नाश्ता कर लिया था. कस्बा छोटा ही था इसलिए वही से वापिस लौट लिये. रात को भी दुकाने ज्यादा देर तक खुली नही रहती. हम लौट रहे थे तब तक दुकाने बंद होने लगी थी. भेल मुड़ी, फल सब्जी और चाय के ठेले वाले खड़े थे. 

हम घर की तरफ लौट रहे थे. एक बच्ची ने सड़क के बीच मे आकर रास्ता रोक लिया. वह बच्ची बारह तेरह बरस की रही होगी. टी शर्ट और लंबा स्कर्ट पहने थी. बहुत मीठी आवाज मे बोल रही थी.कह रही थी हमारी भेल मुड़ी खाकर जाइये. एक बार खाओगे बार बार खाओगे. लिलुहा की प्रसिद्ध मुड़ी से तैयार भेल मुड़ी. हाथ मे भेल मुड़ी की प्लेट लिए वो मनुहार कर रही थी. हम लोग भरपेट इडली डोसा खाकर आये थे. हम लोगो की भेल मुड़ी खाने की कोई इच्छा नही थी. वो बच्ची बार बार मनुहार कर रही थी. मनुहार करते वक्त वो मुस्कुराती तो उसके गालो मे डिंपल पड़ जाते.  उस बच्ची की किशोरवय मासूमियत देखकर मुझ से रहा नही गया. वरूण के साथ उसके ठेले पर गये. भेल मुड़ी उस बच्ची का बापू बना रहा था. भेल मुड़ी वाकई बहुत स्वादिष्ट थी. ईच्छा नही होने पर भी हमने एक प्लेट खा ली. मैने इतनी स्वादिष्ट भेल मुड़ी कभी खायी नही थी. हम वहां से निकल लिये वो बच्ची फिर से सड़क पर लोगो की मनुहार कर रही थी.

वरूण ने कोलकत्ता घूमने को कहा था परन्तु मेरा मन इस कस्बे मे लग गया था. यहां घूमने को खास नही था परन्तु यहां के लोग प्यारे थे. मित्र और उसका भाई फंक्शन की तैयारी करते तो हम लोग भेल मुड़ी खाने निकल जाते.  उसी ठेले पर. उस बच्ची के ठेले पर. हम लोग ठेले के नजदीक रखी बैंच पर बैठ जाते. वो बच्ची हमारे लिए भेल मुड़ी लाती. मैने उस बच्ची से नाम पूछा. उसने अपना नाम लिच्छा  बताया. लिच्छा मुस्कुराते हुए बहुत प्रेम से भेल मुड़ी खिलाती. लिच्छा के मासूमियत भरे प्रेम से भेल मुड़ी और स्वादिष्ट हो जाती. भेल मुड़ी खाने के बाद हम पैदल घूमते हुए स्टेशन तक निकल जाते. स्टेशन के पास ही एक सिनेमा हाल था. सिनेमा हाल मे कोई ज्यादा भीड़ नही होती थी. सिनेमा हाल के बाहर भी चाय और गोलगप्पो के ठेले लगे होते थे.

दो दिन हो गये थे लिलुहा आये हुए. दो दिन मे क ई बार लिच्छा के ठेले पर हो आया था.कल मित्र का फंक्शन था. तैयारियों जोरो पर थी. मै भी तैयारियो मे हाथ बंटा रहा था. जिस भवन मे कार्यक्रम होना था उसके ठीक सामने ही लिच्छा का ठेला था. जब भी खाली होता लिच्छा के ठेले पर बैठ जाता. लिच्छा और उसके बापू से बाते करता रहता. उसके बापू ने बताया कि लिच्छा स्कूल नही जाती. उनके यहां लड़कियो को स्कूल नही भेजते. लिच्छा उसकी ठेले पर बहुत मदद करती है.

आज फंक्शन था. सुबह से ही बहुत काम था. शाम को खाना था. कोलकत्ता से काफी मेहमान आने वाले थे. बहुत बड़ा शामियाना लगाया गया था. शामियाने को सजाया जा रहा था. जब तक शामियाने को सजाया जा रहा था, मै भवन के बाहर खड़ा था. बाहर लिच्छा खड़ी थी. लोगो की मनुहार कर रही थी. इस समय सड़क पर भीड़ नही थी. यहां दोपहर मे सड़क सुनी हो जाती थी. यहां दोपहर मे सारी दुकाने बंद हो जाती है. कभी कोई सड़क पर आदमी दिखता तो लिच्छा सड़क पर आ जाती. अभी सड़क पर कोई नही था. वो मेरी ओर आयी. मनुहार के लिए हाथ उठाकर रोककर दिए. मैने पूछा- आज मेरी मनुहार नही करोगी.

बाउजी आप तो रोज आते हो. लिच्छा ने कहा.

मैने पूछा - तुम नही खाती हो भेल मुड़ी.

मुझे पसंद नही.

तुम्हे क्या पसंद है.

मुझे तो चकलेट पसंद है बड़ी वाली.

खायी हुई है बड़ी वाली चाकलेट.

हां भाई की शादी मे खायी थी.

भाई अब कहां रहता है.

वो बताने लगी तब तक बापू ने आवाज दे दी. वो ठेले पर चली गयी. मै भी शामियाने की तैयारी देखने भवन मे चला गया. 

शाम को फंक्शन था. कोलकत्ता से काफी मेहमान आये. मेरे मित्र ने मुझे सबसे मिलवाया. मित्र ने खाने मे खास बंगाली मिठाईयां बनवायी. मधुर संगीत के साथ हमने फंक्शन का आनंद लिया.

अभी तीन चार दिन मे लिलुहा मे ही था.  मित्र के साथ कोलकत्ता घूमने चला गया. दो दिन कोलकत्ता मे ही बिताये थे. कोलकत्ता मे खूब चीजे खायी परन्तु लिच्छा की भेल मुड़ी जैसा स्वाद कही नही था. यात्रा का एक दिन और था. भेल मुड़ी कानून के लिए जल्दी से हम लिलुहा आ गये. रात हो चुकी थी. अगले दिन शाम को रवानगी. अगले दिन सुबह भेल मुड़ी खाने के लिए निकला. सोचा कुछ मुड़ी घर के लिए भी ले लुंगा. फिर ख्याल आया कि आज निकल रहे है तो लिच्छा को कुछ गिफ्ट दे आऊं. कस्बे की दुकानो मे बड़ी वाली चाकलेट लेने गया लेकिन कही नही मिली. मित्र ने बताया कि वह चाकलेट स्टेशन के उस पार माल मे मिलेगी. मै मित्र के साथ स्टेशन के उस पार गया. स्टेशन के पार की दुनिया कस्बे की दूनिया से अलग थी. बाजारो मे भीड़. बड़े बड़े माल. मित्र मुझे यहां के प्रसिद्ध सुपीरीयर माल ले गया. यह माल बहुत आकर्षक था. मैने वहां कुछ फोटो भी खींचे. फिर चाकलेट सेक्शन से लिच्छा के लिए एक बड़ी चाकलेट ली. आज शाम की गाड़ी थी. इसलिए जल्दी निकलना था. हम जल्दी से माल से निकलकर स्टेशन आ गये. स्टेशन को पार कर वापिस कस्बे मे आ गये. मै जल्दी से लिच्छा की भेल मुड़ी खा लेना चाहता था. हम जल्दी जल्दी चलकर लिच्छा के ठेले तक आये. लेकिन यह क्या. वहां ठेला नही था. इधर उधर देखा ठेला कहीं नही था. पास की दुकान मे पूछा उसने बताय- दो दिन से ठेले वाला नही आ रहा है. कल उसकी बेटी लिच्छा की शादी थी.

मै हैरान था बच्ची की शादी? मैने फिर पूछा उस लड़की की कि जो उसके साथ ठेले पर काम करती थी. दूकानदार ने कहा - हां. 

उसकी हां ने मेरे पैर जमा दिये. ऐसा लगा हाथ मे पकड़ी हुई चाकलेट पिघल रही थी.

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