Sunday, March 24, 2024

गोऽली मारो भेजे को.........।

 


गोली मारो भेजे को,

भेजा शोर करता है! 

अरे !नहीं नहीं ! गोली मत मारिये भेजे को । भेजे को बीेकानेर ले आईये। होली की मस्ती में भेजे का सारा शोर फुर्रर्र हो जायेगा। इन दिनो बीकानेर के परकोटे के चौको मे युवाओ की जो भीड दिखती है यह भीड नही युवाओ का ज्वार है। इस उठते हुए ज्वार में सारे तनाव और शोर बहते नजर आते है। बिस्सो के चैक में रम्मत से पहले जब माताजी प्रकट होते है तो युवाओ में भक्ति का अदभूत ज्वार देखने को मिलता है। भेजे का सारा तनाव का शोर मस्ती के शोर में बदल जाता है। फिजांओ में तनाव धुंऐ की तरह उडता नजर आता है। वे अपना ही नही दूसरे का तनाव भी फुर्रर कर देते है। 





इस हफ्ते बीकानेर में जहां एक ओर होली की मस्ती थी तो दूसरी ओर बीकानेर थियेटर फेस्टिवल शुरू हुआ । ऐसा लग रहा था कि बीकानेर के बारहगुवाड चौक से शुरू हुई नाटयकला टी.डी आटोडोरियम के मंच तक पहुंच गयी। कला के पारखी लोगो को हुजूम दोनो जगह उमड़ पडा। मै रंगमंच का शौख रखता हूं और बीकानेर थियेटर फेस्टिवल का तो इंतजार रहता ही है। इस बार फेस्टिवल के नाटक रविंद्र रंगमंच पर नही होने से मै देख नहीं पाया। शहर से दूर गंगाशहर में टी डी आटोडोरियम में शाम के नाटक खेले गये । मै दूसरे दिन मुंबई नाटक मंडली की प्रस्तुती देखने गया। ये हिंजड़ो के जीवन और संघर्ष पर आधारित नाटक था। कलाकारो का बेहतरीन अभिनय था। नाटक लंबा होने से दर्शको को बोरियत होने लगी। फिर भी कलाकारो ने अपनी अदाकारी से दर्षको का ध्यान खींचा। बाकि दिनो में मैने बहुत कोशिश की परन्तु समय नहीं निकाल पाया। 


उधर बीकानेर थियेटर फेस्टिवल शुरू हुआ ईधर शहर में होली की मस्ती शुरू हो गयी। पहले दिन नत्थुसरगेट पर फक्कडदाता की रम्मत खेली गयी। रम्मत एक लोक कला तो है ही साथ में यह अच्छी बात है कि दर्शक, कलाकार और वीआईपी सब एक समान माने जाते है। कोई भी मंच तक जा सकता है। कोई भी कलाकारो का साथ गायन में दे सकता है। भीड का रैला का रैला चल रहा था। 



दूसरे दिन बिस्सो के चौक में रम्मत थी। रम्मत से पहले माताजी के प्रकट होने के दृश्य को देखने के लिए हजारो लोग आते है। घरो की छत्ते और चौक का हर कोनो भीडसे ठसाठस भर जाता है। मै अपने दोस्त उमेश के संग गया था। भीड से एक धक्का आता है और हम सीधे मंच तक पहुंच जाते है और एक धक्के के साथ ही वापिस पीछे पहुंच जाते है। भीड मे हमे कई कलाकार दिखाई दिये जो अलग अलग प्रकार के रूप धरे हुए थे। माताजी के प्रकट होने पर भीड पूरी तरह से भक्तिभाव से माताजी को समर्पित हो जाती है। माताजी का आर्षीवाद लेने के लिए होडा होडी मच जाती है। हमने भी माताजी के दर्शन किए और  भीड से निकल कर घर को आये। 



होली के चौथे दिन आचार्या के चौक में अमर सिंह राठौड की रम्मत थी। इस रम्मत से पहले भी हम पहुंच गये। रम्मत के कार्यक्रम रात को 12 बजे बाद शुरू होते है। हम मोहता चौक् पहुंचे वहां डांडिया का कार्यक्रम चल रहा था। बाईक हमारी पहले ही रोक ली थी। डांडिया की कुछ देर मस्ती ली। फिर हमारे कदम आचार्यो के चैक् की ओर चल दिये। जहा माता भवानी के प्रकट होने की तैयारी चल रही थी। ष्यहां धक्का मुक्की बिस्सौ के चौक् से ज्यादा थी। यहां भी घरो की छत्तो पर बेशूमार लोग थे। जय भवानी के प्रकट होने पर युवाओ का जोश सब कुछ भुला देने वाला था। आपके तनाव और भेजे का शोर कहीं रह जाता है।

 


अगले दिन पहले जस्सूसर गेट पर फाग उत्सव पर मुन्ना सरकार और मास्टर नानू अपनी आवाज के जलवे बिखेर रहे थे। मुंबईया के शो की तरह उनकी प्रस्तुत थी। मुन्ना सरकार और मास्टर नानू की जुगलबंदी कमाल की थी। मै भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात बतात हूं....... गीत पर तो उन्होने कमाल कर दिया। युवाओ की भीड उनके स्वरो पर झूम उठी। यहां से निकल की हम पहुंचे नत्थुसर गेट पर जहां पर भांग की कुल्फी, भंग की कचाडी, भुजिये, सब कुछ भांग का। बहुत बडा बाजार और उस बाजार में उतनी ही बडी भीड। हम भीड में आगे चलते गये। एक गाडे पर ग्रामीण वेषभूषा धरे युवा बैठे थे। हमने युवाओ के साथ गाढे पर बैठकर एक तस्वीर ली। इसके आगे एक मंडली चंग की थाप पर फिल्मी गाने गाकर झूम रही थी। थोडो और आगे चले तो हमारे उपर पानी एक गुब्बारा आकर गिरा। दरअसल आगे बच्चे लोगो पर पानी के गुब्बारे फेंक रहे थे। आगे सडक पर एक भूतनी बैठी हुई थी। एक बार तो हम डर गये। फिर भूतनी के साथ एक तस्वीर उतारी। आगे तो भाई बारहगुवाड चौक् था। बीकानेर होली की राजधानी। व्यासो की गेवर से अटा हुआ था। युवाओ के शोर में कुछ सुनाई नही दे रहा था। यहां भेजे का शोर फुर्रर हो जाता है। धक्का मुक्की से आगे निकल की कोशिश की परन्तु नहीं निकल पाये। दूसरे रास्ते से निकले। सदाफते पर लगे मंच पर फिल्मी गाने गाये जा रहे थे। मौका देखकर हमने भी अपना जैसा था वैसा गला साफ किया। भीड से निकल कर वापिस नत्थुसर गेट आयें। यहां पर हमने भी जोशी आईसक्रीम की आईसक्रीम का स्वाद ले ही लिया। आईसक्रीम का स्वाद लेते हुए हम पुष्करणा स्टेडियम तक पहुंचे तो होली पीछे छुट गयी। भेजा फिर शोर करने लगा। अब लग घर जाकर सो जाना चाहिए। तडके 3.00 बज रहे थे।