Sunday, April 30, 2023

राजस्‍थानी कहाणी - गोपलो

 






गोपलो बाल बधाओडा दिन भर चौक रे मायं फिरतौ रैवंतो। सिंझया नै पाटै माथै किस्‍सा सुणावतौ। लोगां नै हंसवाण रौ काम करतौ । कदै कोई जीसा रै बारै मांय पूछतौ जणै बात टाळ दैवंतो।


चौक रै पाटै माथै आधी दूर तांई तावडो आयग्‍यो हो। गोपलो छियां कानी खिसक ग्‍यो । आपरी दाडी माथै हाथ फैरतो अेकलौ पाटै माथै बैठो हो। दुपारै रा दो बज्‍या हा। दुपैर री बगत पाटै माथे कोई कोनी आवै। अैकलो गोपलो बैठौ रैवे। दाडी बधायोडो अर गुटखा खावंतौ बैठो रैवे। सिंझया नै पाटै माथै महफिल जमै। चौक रा खास खास लोग चौक रै मायं पाटै माथै आ'र बैठे। पछे सरू हुए ज्‍याफ बायडान सूं ले'र मौहतां रै चौक ताई री बात्‍यां। पाटै माथै गोपले रै किस्‍सा री घणी उडीक रैवे। व्‍हैरा किस्‍सा सुणन वास्‍ते लोग पाटै माथै आवै। आज पाटै पर महफिल जम्‍योडी ही। गोपलो आप री दाडी माथै हाथ फैरतो बोल्‍यो- सरदार । म्‍है पैला संसोळाव भौत जावंता। तनै क्या बताउं सरदार। एक बार म्‍है चौक रा दस बारह जणा गोठ करण वास्‍ते संसोळाव ग्‍या। पैला तो म्‍है लोग जम*र भांग ली । फैर सागीडी जैसराज री पंधारी अर दई चैप्‍यो। रात ने सगळा संसोळाव री धरमसाळा रै मायं ई रैया। रात ने धरमसाळा रै डागळै सुत्‍या। डागळे री डोळया भौत छोटी ही। सरदार तनै कांई बताउं। रात नै म्‍हनै पाणी री तीस लागगी। म्‍है उभौ हुयो। म्‍है देख्‍यो धरमसाळा रै चारूं कानी शेर ही शैर हा। म्‍है तो भायला डर ग्‍यो। म्‍है भी भायला दिमाग लगायौ। मुंडै रै मायं पाणी भरयो। फैर डागळे सूं नीचे धार बणा*र थूकणो सरू करयो। एक शेर पाणी री धार पकड उपर आवण लाग ग्‍यो। म्‍है तो डरग्‍यो। पण म्‍है भी तो ईण चौक रो हो। म्‍है फैर दिमाग लगायो। शेर डागळे तांई आवण लाग ग्‍यो जणै म्‍है धार बंद कर दी। शैर नीचे जा पडयो। सरदार मजो आयग्‍यो।

गोपलो रो किस्‍सो सूण सगळा जणा हंसण लाग ग्‍या। अचारजी तो हंसता हंसता लिटण लाग ग्‍या। गोपलो दिन भी नूवां नूवां किस्‍सा सूणावतो रैवे। बत्‍तीस साल रो हुयग्‍यो। अैकलौ फिरतो रैवे। चौक री पैली गळी रै मायं रैवे। घर रै मायं मां अर बैटा दोय जणा रैवे। गोपले रौ ब्‍यांव अबार तक नीं हुयौ। आ बात कोयनी कै गोपलो ब्‍यांव करै कोयनी। गौपनो सारलै चौक रै मायं रैवण वाळी नैनकी सूं ब्‍यांव करनौ चावंतौ हो। गोपलै री मां भी राजी ही अर नैनकी रा बाबूसा भी। पण जद नैनकी नै ठा लागी कै गोपलो कोटगेट रै बारै तो जावै कोयनी। स्‍यैर रो दरवाजौ हो कोटगेट। नूंवौ स्‍येर कोटगेट रै बारे अर पूराणो स्‍यैर कोटगेट रै मायं बसतो हौ। नैनकी ब्यांव रौ मना कर दियौ। कैयो जकौ छोरो कोटगेट रै बारै नीं जावै उण सूं म्‍है ब्‍यांव नीं कर सकूं। गोपले कनै ईण बात रो कीं जवाब नीं हो कै व्हौ आगे कोटगेट रै बारै जासी या नीं।

गोपलौ लारला बीस सालां सूं कोटगेट रै बारै नीं ग्‍यो। सकूल अर कालेज री पढाई कोटगेट रै मायं ई करी ही। कालेज रै मायं टॉप करी जणै ईनाम वास्‍ते यूनिवरसिटी बुलायौ पण गोपलो नीं ग्‍यो। गोपले ने छोटा थकां मां कसम दे दी ही कै तुं कदै भी कोटगेट रै बारै नीं जावैला। गोपले रा जीसा सरकारी नौकर हा। व्‍है रोज कोटगेट रै बारै नौकरी माथै जावंता। कोटगेट रै बारै रेल क्रासिंग हो। एक बार एक हादसै रै मायं गोपले रा जीसा रेल नीचे आयग्‍या। उण दिन मां औ तय कर दियौ कै उण रै घर सूं कोई भी कोटगेट रै बारै नीं जावैला। उण दिन बाद गोपला कदै भी कोटगेट रै बारै नीं ग्‍यो। गोपले रो सगळो परिवार कोटगेट रै मायं ई रैवंतौ। घर रै मायं मां अर बेटा दोय जणा ही हा। जीसा री जग्‍यां गोपले री नौकरी आयी जणै मां मना कर दियौ गोपलो कोटगेट रै बारै नीं जावैला। उण रौ घर पेंसन रै पीसा सूं चालतौ। नैनकी फैर भी उडीक राखी कै अैक दिन तो गोपलो कोटगेट सूं बारै जाणै री कसम तोड सी।

गोपलो बाल बधाओडा दिन भर चौक रे मायं फिरतौ रैवंतो। सिंझया नै पाटै माथै किस्‍सा सुणावतौ। लोगां नै हंसवाण रौ काम करतौ । कदै कोई जीसा रै बारै मांय पूछतौ जणै बात टाळ दैवंतो। लारैला दो बरसा सूं नैनकी सूं बात नी करी ही। नैनकी अबार तक ब्‍यांव कोनी करिया। गोपलो दिनूगै दिनूगै मां नै लखमीनाथ जी रा दरसण करवा लावंतौ। गोपलो मां री भौत सेवा करतौ। दाडी बधावडो आपरै बुशर्ट री बांवा री घुण्‍डीयां खुली करियोडी ईण दुकार सूं उण दुकान पर बैठौ टैम पास करतौ। किण सूं भी औछौ नीं बौलतो। कदै कदै गोपलो दुपैर रै मायं चौक रै पाटै माथै आंख्‍यां बंद कर पडयो रैवंतो। उण रौ दुख कोई नीं जाणतौ। मां री सेवा जकै रौ अैक काम हो। चौक रा लोग उण नै साधु मानता। हर एक जणै सूं हंसी मजाक करतौ । गोपले बिना चौक सूनौ होय जावंतौ। गोपलो चौक छोड ने जावंतौ ई कोयनी।

 

आवंती आखातीज नै नैनकी रा ब्‍यांव तय हुयग्‍या। गोपलै नै जद आ ठा लागी जणै व्‍हौ अणमनौ हुयग्‍यो। घर सूं बारै कोनी निकळतौ। सिंझया ने पाटै माथै एक आध किस्‍सा सुणा*र घरै आ जावंतौ। ज्‍यूं ज्‍यूं आखातीज नैडी आवै व्‍हौ अणमणौ घणौ रैवण लाग ग्‍यौ। मां री तबीयत भी खराब रैवण लागगी। डाक्टर साब री दवा कीं काम नीं कर रैयी ही। आखाबीज री रात मां री तबीयत घणी खराब होयगी। डाक्‍टर साब कै दियौ अबै मां ने पीबीएम हस्‍पताळ लै जाणौ पडसी। पीबीएम हस्‍पताळ कोटगेट रै बारै ही। मां कोटगेट रै बारै जावण सूं मना करियो हो। आखातीज नै दिनूगै मां ने बटीडा आवण लाग ग्‍या। गोपलो डरग्‍यो। बारै जा*र टैक्‍सी ने हैलौ करियो। मां ने उठ*र टैक्‍सी रै मांय घाली। टैक्‍सी वाळै नै कैयो- पीबीएम लै चाल। टैक्‍सी वाळै फैर पूछयो। फैर गोपलो रीस रै मायं कैयो- चालै नीं। टैक्‍सी वाळो टैक्‍सी दोडावतौ ले ग्‍यो। हस्‍पताळ रै बारै टैक्‍सी रोकी। मां हिलनौ ढुलनौ बंद कर दियौ। गोपले मां नै दो चार बार हैला करिया। पण मां रै सरीर में कीं हलचल नीं ही। गोपले री आंख्‍यां मायं सू पाणी निकळ मां रै माथै पड रैयो हो। टैक्‍सी वाळै टैक्‍सी पाछी चौक कानी मोड ली। चौक रै मांय टैक्‍सी आ*र खडी होयगी।उण बगत नैनकी गाडी रै मांय चौक सूं निकळी। गाडी रोकी । गोपले नै टैक्‍सी सूं बारै निकळते देख्‍यो। नैनकी री गाडी रै ड्राईवर गाडी आगे बधा ली। गोपलो टैक्‍सी रै मांय सूं बार निकळयो। टेक्‍सी नै एक हाथ सूं पकडी अर माथौ उंचौ कर*र जोर सूं बाकौ फाड दियो- मां----------------------मां-----------------   मां --------------------- मां----------------------------------------------।

गोपलै री आवाज सुण चौक रै मांय सगळ भैळा हुयग्‍या। आज गोपलो कोटगेट सूं बारै निकळयो मां और नैनकी दोनूं छुटग्‍या।

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Saturday, April 15, 2023

स्‍मृृतियों से लौटते हुए




















 कमरे में पलंग पर किताबे बिखरी पडी थी। एक दो किताबे खुली थी जिनके पन्‍ने हवा से पलट रहे थे। पलंग पर चदर भी ईधर उधर होकर नीचे लटक रही थी। टेबिल पर अखबार पडे थे। हवा से उड रहे थे। कमरे में अंधेरा था। बाहर शाम हो चुकी थी और आसमान में बादल आ जाने से अंधेरा सा हो गया था। बॉलकोनी वाला गेट खुला था। कमरे में बॅालकोनी के गेट से जितनी रोशनी आ रही थी वही रोशनी थी। टेबिल पर लैपटॉप खुला था जिसकी कुछ रोशनी टेबिल पर पड रही थी। कमरे के बीच में ही आरामदायक कुर्सी पर वो बैठा था। गर्दन को कुर्सी के सहारे पर रखे हुए। उसने टांगे फैला रखी थी और आंखे उसकी बंद थी। पंखे की हवा से उसके बाल उड रहे थे। उसने अपने एक हाथ की अंगुली अपनी आंखो पर और बाकि हथेली गाल पर रखी हुयी थी। कुछ देर में उसने अपने दोनो हाथो की अंगुलियो को आपस में बांधकर पेट पर  रख लिया था। उसने एक लंबी सांस ली और फिर नाक से जोर से सांस छोडी। फिर वह उठ कर खडा हो गया। हल्‍के हल्‍के कदमो से चलते हुए बॉलकोनी में आया। बालकोनी से सडक पर हो रही आवाजाही को कई देर तक एक टक देखता रहा । बादलो की गर्जना रूक रूक कर हो रही थी। बारिश की बूंदे सडको पर गिरने लगी थी। थोडी देर में बारिश तेज हो गयी। बारिश तेज होने के बाद भी वो बॉलकोनी में खडा रहा । ऐसा लग रहा था कि उसे कोई मतलब नहीं है कि मौसम में क्‍या चल रहा है। बॉलकोनी में बारिश की बूंदे नहीं गिर रही थी। फुहार उसके कपडो तक जरूर आ रही थी। वो थोडी थोडी देर में अपने बालो में हाथ फेर रहा था और फिर अपनी हथेली से मुंह पोंछ रहा था। बिजली जोर से कडकने लगी थी। ऐसा लगने लगा कि बिजली आज तो गिर ही जायेगी। गर्जना जोर से होने लगी तो वो अंदर चला आया।

अंदर आकर वो एक बार फिर कुर्सी पर बैठ गया।  पंलग पर बिखरी किताबो को देखता रहा। पलंग पर परिंदे किताब भी पडी थी। इस किताब को देखकर याद आया। यही किताब उसको वह देकर गयी थी। उसे वो लौटा नहीं पाया। वो इस किताब को उसे लौटाना चाहता था। वो अकेला ही खुश था। कमरे में कब आता और कब जाता कोई पता नहीं था। देर रात तक और फिर देर तक सोते रहना। पास के किचन में खुद ही चाय बना लेता था। देर रात को वो किचन में बरतन साफ करता तो सिंक में पानी के गिरने की आवाज रात के सन्‍नाटे को चीरती हुइर् प्रतीत होती थी। वो ढेर सारी किताबे पढता था। उसे याद है कि वह कई दिनो तक दाडी नहीं बनाता था। एक दिन वो उसे सेविग किट गिफट कर गयी।

वो अपनी इस जिंदगी से बहुत खुश था। उसे पता ही नहीं चला अचानक वो पास के कमरे में किरायेदार के रूप में आयी। उसे कभी उससे बात नहीं की। वो लडकियो से बात नहीं करता था। एक दिन वो उसके कमरे आयी तो वह किचन में था। बिखरे को कमरे को उसने सैट कर दिया। कमरे में कई दिनो से झाडू भी नहीं लगाया था। उसने झाडू भी लगा दिया। अब वो कमरा दिखने लग गया। लडकी ने उसे इतना गंदा कमरा रखने के लिए डांट भी लगायी।

बारिश के धीमे होने पर वो वापिस बॉलकोनी में आ गया। बाहर शायद पावर आफ था। सडक पर अंधेरा पसरा हुआ था। सडक पर गुजरे रहे वाहनो की रोशनी थी। उसने अपने दोनो हाथ बालकोनी की जाली पर रख दिये थे। उसने कभी अपना जन्‍म दिन नहीं मनाया था। पता नहीं उसने कैसे मेरी इंस्‍टाआईडी देख ली और एक दिन शाम को केक ले आयी। किस प्रकार उसने जोर जोर से हैप्‍पी बर्थ्र डे बोला था। उसने कभी उस लडकी को सीरीयसली नहीं लिया था। पर उस लडकी ने उसकी जिंदगी को व्‍यवस्थित कर दिया था। बालकोनी में खडे खडे उसने चाय पीने की सोची। चाय बनाने के लिए कीचन में गया। कीचन में प्‍लेटफार्म के आगे कुछ देर खडा रहा और फिर निकल कर बाहर आ गया। कमरा बंद किया और नीचे बाहर आ गया। दो कदम की दूरी पर चाय की थडी है। यहीं पर वो कई बार चाय पीता है। वहां रखी हुई एक स्‍टुल लेकर किनारे बैठ गया। थडी के उपर लगे छप्‍पर से अभी भी बारिश की बूंदे गिर रही थी। उसके कानो में चाय बनाने की आवाज ही पहुंच रही थी। आस पास के लोग क्‍या बात रहे है। उस पर कोई असर नही हे। वो चाय से नफरत करती थी। उसकी चाय बंद कराने के लिए वो लडकी ग्रीन टी का पैकेट भी लायी और ग्रीन टी पीने के बहुत सारे फायदे बताये। लेकिन उसने कभी ग्रीन टी नही पी। ग्रीन टी का डिब्‍बा अभी उसके कीचन की शोभा बढा रहा है। कुछ ही देर में थडी वाला चाय का कप ले आया। उसने चाय का कप सामने की स्‍टूल पर रख दिया। वो चाय के कप को देखता रहा । उसे याद हो आया कि वो यहां रिसर्च करने आयी थी। उसका सबजेक्‍ट हैल्‍थ था परन्‍तु उसे लडकी के सबजेक्‍ट से कोई मतलब नहीं दिया। वो अपनी ही दुनिया में व्‍यस्‍त रहता था। लडकी उसको हेल्‍थ के बारे में बताती रहती थी। ये खाने से ये हो जाता है और यह खाने से यह हो जाता है। लेकिन उसने खाने पीने की कोई भी आदत नहीं छोडी। यहां तक कि चाय भी नहीं छोडी। उसके कहने से शाम का खाना जल्‍दी खाने लगा था। रोज शाम को वो उसके कमरे में आकर हैल्‍थ पर भाषण देकर जाती थी। वो कभी भी एक भी शब्‍द नहीं बोलता था। रोज शाम को वो उसका इंतजार जरूर करता । उसके बाद ही वो कोई किताब पढना शुरू करता । उसे पता था वो आयेगी और डिस्‍टर्ब करेगी।

एक दिन शाम को वो नहीं आयी। उसे नयी किताब पढना शुरू करना था। उसने सोच उस लडकी के भाषण के बाद ही वो किताब शुरू करेगा। वो इंतजार करता रहा । शाम से रात हो गयी परन्‍तु वो नहीं आयी। रात से देर रात हो गयी परन्‍तु वो फिर भी नहीं आयी। वो कमरे से निकल कर बाहर गया। उसके कमरे पर ताला लटक रहा था। कमरे में वो अकेली रहती थी। कभी कोई उससे मिलने भी नहीं आता था। कमरे में ताला देखकर बालकोनी में गया और नीचे सडक पर देखा। रात को आवाजाही कम होने लगी थी। दूर से कोई आता साफ दिखाई दे जाता है। वो दूर सडक तक अपनी नजर जमा कर खडा हो गया। रात के बारह बज गये थो वो नहीं आयी। वो इतना कम बोलता था कि उसने लडकी का मोबाईल नं भी नहीं लिया था। कुछ देर और इंतजार करने के बाद वो अंदर आकर पलंग पर लेट गया। लेटकर पंखे को देखता रहा । उसकी आंख लग गयी। सुबह उठते ही वो बाहर पास वाला कमरा देखने गया। कमरे पर ताला लटक रहा था। उसने आज चाय भी नहीं पी। उस लडकी के बारे मे सोचता रहा। सुबह दस बज गये थे। वो अभी भी पलंग पर लेटा रहा । अचानक उसे बाहर दरवाजा खुलने की आवाज आयी। उसे लगा कि लडकी आ गयी। उठने लगा और फिर सो गया। उसके मन में था वो लडकी मेरी कौन है मै क्‍यों चिंता करूं। कुछ देर लेटा रहा। फिर उसे रहा नहीं गया। बाहर देखने के लिए खडा हुआ। दो कदम दरवाजे की और बढाये ही थे कि कमरे में हसंते हुए वो लडकी आयी। अभी तक नहीं नहाने के लिए उसने डांट लगायी। वो उससे पूछना चाहता था कि रात भर वो कहां थी। वो कुछ बोलता उससे पहले ही वो बो बोल पडी कि – कल रात मै अपने पापा के साथ थी। दो दिन बाद मेरी शादी है इसी शहर में।

कोग्रेच्‍यूलेशन। इसी शहर में। उसने चौकते हुए कहा।

हां इसी शहर में । मेरे साथ वो रिसर्च कर रह है। उसीसे। तेरे को जरूर आना है।उसने खुश होते हुए कहा। जल्‍दी मे होने का कहकर वो निकल गयी। वो दरवाजे को देखता रहा। कमरे में धूप की लकीर गिरी हुयी थी।

चाय ठंडी हो रही है।थडी वाले ने कहा । वो स्‍मृतियो से लौटकर चाय की थडी पर आया। चाय का कप उठाकर अपने मुंह से लगाया।

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Saturday, April 8, 2023

लैम्‍प पोस्‍ट वाली लडकी

 


यह शहर पढने वालो के लिए एक हैरिटेज शहर था। प्रतियोगी परिक्षाओ की तैयारी करने वालो के लिए यह एक मुश्किल शहर था। उन्‍हे काफी कुछ सामान्‍य ज्ञान इसी शहर से मिलता था। पूराने पत्‍थरो से बने हुए मकान और एक पंक्ति में बने हुए पूराने शिल्‍प के मकान देख कर लगता था कि किसी ठंडी दुनिया में हम आ गये है। ऐसा लगता था कि इस शहर की दीवारो पर शहर के लोगो की भोली भोली बाते बह रही है। यह जीवन धीमा चलता है परन्‍तु सकून से चलता है। शहर की सडको की बनावट भी पूरानी थी। इन सडको पर चलते हुए ऐसा लगता था कि हम किसी राजा महाराजा के राज में चल रहे है। सडको के बीच में थोडे थोडे गैप के बाद लगी हुई हैरिटैज लैम्‍प इस शहर को और खूबसूरत बनाते थे। छोटा सा शहर था। शहर में एक ही बडा सा पार्क था। पार्क में इस शहर के लोग कम आते थे। इस पार्क में पर्यटक ही देखे जा सकते थे। पार्क में एक पेड के नीचे एक चित्रकार कैनवास लगाकर पैंटिंग किया करता था। वो अभी अभी कई दिनो से पार्क में पेंटिंग कर रहा है। दिन भर वो पेंटिंग करता रहता है। शाम को शहर के कुछ लोग उसे पेंटिंग करते हुए कौतूहलवश देखने आ जाते है। लगता है ज्‍यादा भीड उसे डिस्‍टर्ब करती है। वो शाम को सामान समेट कर सामने बने रेस्‍टारेंट में आ जाता है।

पार्क में बना यह रेस्‍टोरेंट इस इलाकै में इकलौता रेस्‍टोरेंट है। रेस्‍टोरेंट के सामने पार्क की दीवारो के सहारे पूराने हैरिटेज लैम्‍प लगे है। इन लैम्‍पो से रेस्‍टोरेंट की शोभा बढती है। इन लैम्‍पो से यह रेस्‍टोरेंट खास बन गया है। दूसरे देशो से आये हुए पर्यटको के लिए यह रेस्‍टोरेंट भी एक हैरिटैज लुक का रेस्‍टोरेंट है। वह चित्रकार शाम को रेस्‍टोरेंट में चाय पीने आता है। रेस्‍टारेंट के बाहर दो पत्‍थर की टेबिले बनी है। उसके पर हैरिटेज लैम्‍प है। वो वहां बैठकर चाय पीता है और पार्क को देखता है। कुछ बोलता नही है। उसके बाल लंबे है। चाय पीते हुए कई बार वो अपनी बालो में हाथ फेरता है और फिर चश्‍मा ठीक करके पार्क मे देखने लगता है। चाय पीने के बाद एक किताब निकालता है और उसके कुछ पन्‍ने पढता है। फिर बंद करके अपने बैग मे डाल लेता है। फिर खडा होकर रेस्‍टोरेंट के काउण्‍टर पर आता है और बिल का बिना पूछे पैसे दे देता है। तब तक अंधेरा हो चुका होता है और पार्क में होकर पार्क के दूसरे दरवाजे से निकल जाता है। वो किसी से बात नहीं करता है। रेस्‍टोरेंट में भीड होने पर भी वह अकेला बैठा रहता है। कोई उससे मिलने नहीं आता है और ना ही वो किसी से मिलता है। दिन में एक लडकी रेस्‍टोरेंट में आती है। वो रेस्‍टोरेंट के अंदर बैठकर चाय पीती है और रेस्‍टोरेंट के कांच के गेट से पार्क मे देखती रहती है। वो उस चित्रकार को चित्र बनाते हुए देखती है परन्‍तु कभी उसके नजदीक नहीं गयी। चाय पीने के कुछ देर तक वो चित्रकार को देखती रहती है और फिर निकल कर लैम्‍प पोस्‍ट पर कुछ समय रूकती है और फिर रेस्‍टोरेंट के पास वाली सडक से निकल जाती है। ऐसा लगता है नदी चित्रकार की ओर बहना चाहती है परन्‍तु दूसरी ओर निकल जाती है।

रेस्‍टोरेंट का मालिक उस लडकी को कुछ कहने का विचार करता है परन्‍तु निजि मामला होने के कारण वो उसे कुछ कह नहीं पाता है। एक दिन लडकी पार्क के अंदर जाती है। चित्रकार को कुछ देर चित्र बनाते हुए देखती है। उसके कैनवास पर आडी तिरछी रेखाऐं खींची हुई है। उनमें वो रंग भर रहा है। वो कुछ देर चित्रकार को देखती है फिर वो निकल जाती है। तीन-चार दिन यही सिलसिला चला। एक दिन लडकी ने उससे पूछा- आप क्‍या बना रहे हो्।

चित्र बना रहा हूं।

ये कैसा चित्र है ।

ये मेरे मन की भावनाऐं है।

ये कैसी भावनाऐं है।

मेरे विचार उलझे हुए और चित्र में समाधान की खोज में बढ रहे है। ‘’

समाधान मिला।

अभी जो मेरे दिमाग की स्थिति है, वो इस पैंटिंग में दिखाया गया है।

लडकी कुछ देर चुप रही । वसंत का मौसम था। पूराने पत्‍ते पेडो से टूट कर पार्क में गिर रहे थे। दो पत्ते टूट कर लडकी के बालो में आकर गिरे। लडकी ने पत्‍तो को निकाल कर फैंकते हुए चित्रकार से कहा- आप मेरी पैंटिग भी बना सकते हो।

चित्रकार पैंटिंग में कलर करते हुए रूक गया और लडकी की तरफ बिना देखे ही कहा मैं पोट्रेट नहीं बनाता हूं।

लडकी पैटिंग की और थोडा झुकी और कहा – नहीं मुझे पोट्रेट नहीं बनवाना। मुझे तो आप जैसी पैटिंग बनानी है। मेरी भावनाओ की।

मुझे कैसे पता तुम्‍हारी भावनाऐं क्‍या हे।

वो मै आपको बता दूंगी।

चित्रकार ने कुछ क्षणो के लिए लडकी के प्रश्‍न का उत्‍तर नहीं दिया। फिर अपने बालो में हाथ फेरते हुए कहा -  शाम को मै सामने वाले लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे चाय पीता हूं। आज जाना। वहीं बात करेंगे।

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लडकी को चित्रकार का स्‍वभाव रूखा सा लगा। उसे बात से लगा वो उसके आग्रह को टाल रहा है। चित्रकार वापिस अपने काम में लग चुका था। लडकी सफेद कपडे पहने हुए अपने खुले बालो को पीछे करते हुए चित्रकार को देख रही थी। कुछ देर वो वहीं खडी रही । फिर चित्रकार को अपने काम में व्‍यस्‍त देख वहां से वापिस मुड गयी। सूखे पत्‍तो पर चलते हुए वो पार्क के बाहर जा रही थी। सूखे पत्‍तो के कुचलने की आवाज पार्क में आ रही थी।

शाम को चित्रकार लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे चाय का कप लिये बैठा था। वो पार्क में खडे अपने कैनवास को देख रहा था। उसी पार्क मे से वो लडकी सफैद कपडो में कैनवास के आगे से आ रही थी। चित्रकार की एकाग्रचितता में अवरोध हुआ। वो लडकी पार्क से निकल कर सीधे चित्रकार के सामने रखी कुर्सी पर बैठ गयी। रेस्‍टोरेंट से वेटर एक चाय का कप और लेकर आया। चित्रकार अभी चुप था। लडकी अपने काले बाल जो उसके चेहरे पर आ रहे थे, पीछ कर रही थी। चित्रकार ने चाय का कप टेबिल पर रखते हुए पूछा- आप सचमुच चित्र बनवाना चाहती है।

हां

आपको पता है इसकी कीमत क्‍या होगी।

मै इसकी कीमत चुका दूंगी।

चित्रकार ने अपना कप वापिस अपने होठो तक ले जाते हुए कहा – ‘ तो ठीक है। आप बताईये आप जीवन के बारे में क्‍या सोचती है।

लडकी ने चाय का कप उठाते हुए कहा – देखिये । मेरे ख्‍याल से जीवन का रंग सफेद है। जीवन शांत नदी की तरह है। उस शांत नदी पर चलते हुए उस परम परमात्‍मा को प्राप्‍त किया जा सकता है। मै हमेंशा उस परम पिता परमात्‍मा को प्राप्‍त करने की साधाना करती हूं। इसलिए मै हमेंशा सिंगल रहना चाहती हूं। घरवालो का हमेंशा मेरे पर शादी करने का दबाव रहता है जो मेरी साधना मे मुझे डिस्‍टर्ब करता है। उस परमपिता परमात्‍मा को प्राप्‍त कर लेने के बाद आपको पूर्णता के लिए किसी की जरूरत नही है। आप परमात्‍मा को प्राप्‍त करने के बाद पूर्ण हो जाते हो। घरवालो को कहना है कि पूर्ण होने के लिए आपको साथी की जरूरत होती है। उनका यह दबाव और सलाह मेरे लिए अवरोध पैदा करती है। यूं कहे मै खीझ सी जाती हूं।



चित्रकार ने चाय का घूंट लेते हुए कहा –मै आपके जीवन का सार समझ गया। अब मै आपकी भावनाओ को कैनवास पर उकेर सकता हूं। आपको मेरे पास बैठे हुए समय देना होगा ताकि मै आपके बारे मे और जान सकूं।

दोनो ने थोडी ही देर में अपनी बात समाप्‍त कर दी। दोनो ने अभी चाय भी पूरी नहीं पी थी। लडकी चाय का कप नीचे रखकर खडी हो गयी और पार्क के पास वाली सडक से निकल गयी। चित्रकार कुछ देर वहां बैठा बैठा उस लडकी के बारे में सोचता रहा।

अगले दिन पार्क में बसंत की धूप खिली हुयी थी। घास पर सुबह की ओस की बूंदे धूप में चमक रही थी। चित्रकार कैनवास लेकर चित्र बनाना शुरू कर दिया था। वो लडकी सफेद कपडो में नीचे घास पर बैठी थी। चित्रकार ने चित्र बनाते हुए कहा – आपकी सोच अच्‍छी है। परमपिता परमात्‍मा को प्राप्‍त करने के लिए जीवन में शांति होना जरूरी है।

हां । बिलकुल सही है जब तक आपके मन में ठहराव नहीं होगा आप परमपिता के रास्‍ते तक भी नहीं पहुंच सकते। लडकी ने कहा ।

चित्रकार ने अपने चश्‍मे को ठीक करते हुए कहा – आपका अपना मत है परन्‍तु मेरा मत है कि भगवान ने यह प्रकृति बनायी है। इस प्रकृति में कितने सुंदर रंग है। परमपिता तक उसके बनायी प्रकृति के सहारे ही पहुंचा जा सकता है। मै प्रकृति का आनंद लेता हूं और परमपिता का शुक्रिया अदा करता हूं। मै वसंत में पीला वस्‍त्र पहन कर महसूस करता हूं कि परमपिता मेरे नजदीक है। देखो आज मेरे पीले वस्‍त्र पहने हुए है। मै प्रकति के बनाये फल खाता हूं। इस प्रकति के जरिये ही परमपिता तक पहुंचा जा सकता है। चित्रकार बोलता रहा और चित्र बनाता रहा । इतना चित्रकार शायद कभी बोला नहीं था। लडकी उसकी बात ध्‍यान से सुन रही थी। उसके मन में प्रश्‍न कौंध रहे थे। उसने पूछ ही लिया – रंग आपकी एकाग्रता को भंग नहीं करते।

भंग नहीं करते एकाग्रता बनाते है। रंग मेरे अंदर की भावनाओ को तृप्‍त करते है। भावनाऐं तृप्‍त होने के बाद डिस्‍टर्ब नहीं करती। उपर सफेद पहन कर भावनाओ को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।

लडकी को चित्रकार की यह बात ठीक लगी। वो एक टक घास की ओर देखती रही। बातो बातो में शाम हो गयी थी। पहले लडकी फिर चित्रकार पार्क से निकल गये थे।

अगले दिन फिर सुबह चित्रकार अपने कैनवास में व्‍यस्‍त था। लडकी अभी आयी नहीं थी। आज धूप थोडी तेज थी। पार्क में धूप घास पर गिर कर चमक रही थी। कैनवास बनाते हुए उसने सामने देखा पीले लडको में वही लडकी आ रही है। उसने अपनी आंखो को बंद करके एक बार फिर देखा वो सफेद कपडे पहनने वाली लडकी आज पीले कपडे पहन कर आयी थी। चित्रकार ने उसके पहनावे के बारे में कोई सवाल नहीं किया वो चित्र बनाता रहा। उसने बात शुरू करते हुए कहा – आप अपने जीवन को इतना सादा क्‍यों रखना चाहती है।

मै परमपिता की प्राप्ति के रास्‍ते को एक शांत नदी की तरह देखती हूं। उथल पुथल होकर बहने वाली नदी में नाव डगमगा सकती है। लडकी ने कहा।

आप जिसे उथल पुथल कहती है वो भीतर की भावनाओ को शांत करने का साधन है। उन भावनाओ को समाप्‍त करने के लिए जीवन में रंगो की जरूरत होती है। जब तक आप सकारात्‍मक नहीं होओगे आप परमपिता तक नहीं पहुंच पाओगे। आप गीत संगीत को बाधक मानती है जबकि गीत संगीत से तो परमपिता तक पहुंचने का रास्‍ता सुगम होता है।चित्रकार ने अपने कैनवास पर ब्रश चलाते हुए कहा।

लडकी  चित्रकार की बात सुनते हुए एक टक घास पर देख रही थी। चित्रकार ने अपनी कूंची को बॉक्‍स में रखते हुए कहा कि ये लीजिये आपकी पैंटिंग तैयार है। लडकी ने खडे होकर कैनवास को देखा। पूरा कैनवास सफेद था। सफेद रंग की हल्‍की, मध्‍यम और भारी तीन तरह की लेयर थी। बीच में एक हल्‍के काले रंग का बिन्‍दू था। इन सब एक टेडी मेडी काली लाईन भी बनी हुयी थी। उसने पूछा – इसे मुझे समझाओ कि यह कैनवास मेरी भावनाऐं कैसे व्‍यक्त कर रहा है।

चित्रकार अपना सामान समेटते हुए कुछ देर सोचकर बोला – मुझे लगता है कि यह पैटिंग अभी तक पूरी नही है। यदि यह पूरी होती तो आप समझ जाती है कि यह आपकी भावनाऐ है। चलो ठीक है। आप कल सुबह आना । आपको यह पैटिंग पूर्ण मिलेगी।

चित्रकार शाम को लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे चाय पीते हुए सोचता रहा कि पैटिंग को कैसे पूरा करूं। उसने तो उस लडकी की भावनाऐं पूरी तरह से कैनवास पर उकेर दी थी। फिर भी वो अपनी भावनाओ को कैनवास पर कैसे नहीं देख पायी। वो घर पर भी रातभर सोचता रहा। वो इतना परेशान कभी नहीं रहा । उसने पहले कभी अपने आपको इतना असफल  नहीं पाया था। वो अपने आपको दुनिया का सबसे असफल चित्रकार महसूस करने लगा। उसे लगा कि अभी उसे और सीखने की जरूरत है। वो अब कल लडकी को क्‍या जवाब देगा। वो पैटिंग को कैसे पूरा करेगा। यह सोचते हुए उसे नींद आ गयी।

यह बसंत की एक और सुबह थी। रोज की तरह धूप अपनी चमक बिखेर रही थी। पार्क में सूखे पत्‍ते ईधर उधर बिखरे हुए थे। हल्‍की हवा चलने से पत्‍ते उड रहे थे। पार्क में कोई नहीं था। चिडियो की चहचहाट सुनायी दे रही थी। एक पेड के नीचे कैनवास लगा था। कैनवास एक सफेद कपडे से ढका था। चित्रकार वहां नहीं था। दूर से वो लडकी पार्क में चलते हुए आ रही थी। पीले कपडे पहने हुए और लाल बैग लटकाये हुए आ रही थी । वो पेड तक आयी। उसने इधर उधर चित्रकार को देखा। वो रेस्‍टोरेंट तक भी चित्रकार को ढुंढने को गयी । वो उसे नहीं मिला। कैनवास के आस पास उसका सामान भी नहीं था। कैनवास कपडे से ढका हुआ था। उसने कपडे को खींचा। कल वाली पैटिंग थी। सफैद की तीन लेयर के साथ एक टेडीमेडी काली लाईन थी। आज उसमे एक परिवर्तन था। पूरे कैनवास पर सफेद रंग की तीन लेयर थी। कैनवास के एक कौने पर पीला रंगा बिखरा हुआ और उसमें लाल रंग की चार पांच बिन्दिया थी। वो लडकी कैनवास को देखती रह गयी। उसने फिर अपने कपडो और अपने बैग को देखा। फिर पैटिंग को। उसने कैनवास को हाथ में लिया और पार्क के अंदर व बाहर सब जगह चित्रकार को देखा। वह उसे कहीं नहीं दिखाई दिया। उसने उसके बारे मे कुछ भी जानकारी  नहीं ली थी। वो पैटिंग को बार बार देखती रही और फिर अपने आपको।

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Sunday, April 2, 2023

झबरू

 

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धरमसाळा  री पिरोळ गढ रै पिरोळ जिती बडी ही। पिरौळ रै फाटकां माथै शूळ जिस्‍या तीरीयां तो हा कोयनी पण तीरीयां री जग्‍या चमकीले कलर रै मांय चौरस डिजायन बणियोडी ही। पिरोळ रै बिचाळै म्‍है उभौ ईयां लाग रैया हो ज्‍याण कै कुवै रै मांय जिनावर उभौ हुवै। आप म्‍हनै राजा मानौ तौ म्‍है पिरोळ बिचाळै राजा उभौ हुवै ज्‍याण उभौ हो। म्‍हारै आगै धरमसाळा री बरसाळी ही। बरसाळी रै आगै म्‍हारै साम्‍हे धरमसाळा रै सैठ रै दादौ सा री मूरत ही। मूरत रै माथै तावडे अर बिरखा सूं बचण खातर लौ रौ छोटौ सौ छपरौ हो। छपरै माथै दो चार कबूतर बैठा हा। मूरत रै चारां कांनी छौटौ सौ बाग हो। बाग री बैंच्‍या खाली ही। म्‍हारै एक कानी काउंटर हो। काउंटर री सीट माथै पागडी पैरोडो अर मुंडै रै मांय पान चबावतौ एक जणौ बैठयो रजस्टिर रै मांय पैन सूं लिख रैया हो। बिगैं आगै जात्री उभा हा। काउंटर रै लारै भौत बडी सैठ रै दादौ सा री तस्‍वीर लागौडी ही। दूजै कानी धरमसाळा री लाईब्रेरी  ही। जठै एक जणौ बैठौ छापौ बांच रैयौ हो। धरमसाळा री बरसाळी रै मांय कबूतरां रै पंखा रै फडफडाणै री आवाज आ रैयी ही। सागै जात्री बोल रैया हा। और कीं आवाज ईती बडी धरमसाळा रै मांय नीं ही। ईयां मैसूस हो रैया हो कै एक सूने गढ रै मांय दो चार लोगां रौ बोलारो हुव्‍वै। म्‍है हौळे हौळे दो पग आगै बधाया। म्‍हारै जूतां री आवाज बरसाळी रै मांय सुणीज रैयी ही। म्‍है काउण्‍टर माथै ग्‍यो, अर म्‍हारै कमरै री चाभी ली। चाभी लै अर म्‍है दूजै कानी री बरसाळी रा दो पगातियां चढया। म्‍हनै कीं नीं सुणीज रैया हो। आ बात नीं है के म्‍हारे कानां रै मायं की खराबी ही। पूरी धरमसाळा रै मायं बैवंती सूनी हवा मैसूस कर रैयो हो। दो पग आगूण उपरली बलकानी रै मांय जावण खातर पगातियां री नाळ ही। नाळ रै मायं दो कबूतर बैठया गूटर गूं कर रैया हा। म्‍है पगातियां चढतौ ज्‍यू म्‍हारै जूतां री आवाज आ रैयी ही ज्‍याण शौले फिलम रै मायं गब्‍बर सिंह रै जूतां री आवाज आवै।

म्‍है पगातियां चढ अर उपरली बालकानी रै मायं आ ग्‍यो। उपर री गैलेरी रै मायं सगळा कमरा रै आगै कूंटा माथै ताळा लटक रैया हा। छात माथै तीन पंखा लागौडा हा। अबै ठंड कम ही । पण पंखा चलाणै रौ मौसम नी हो। पंखा माथै चिडकल्‍यां बैठण लागगी ही । ईण पंखा माथै भी चिडकल्‍यां बैठी ही। गैलेरी री झाळया मांय सूं झीणौ तावडो आ रैयो हो। पूरी गैलेरी रै मांय कोई मिनख नी हो। ठैठ गैलेरी रै दूजी ठौड झीणै तावडै रै मायं पूराणौ कोट पैरोडो झबरू बैठो हो। माथै रै मायं काळै कैसां रै सागै दो चार धौळा केस चमक रैया हा। मुंछां रै मांय भी धौळा केस चमकण लाग रैया हा। आपरा गोडा भैळा करियोडा। हौळे हौळे गुन गुन कर रैयो हो। सुनी गैलेरी रै मायं झबरू रै गुन गुन री आवाज भीतां माथै चिप अर गूंज रैयी ही। पूरी गैलेरी रै कमरां रै मायं एक कमरौ म्‍हारै कनै अर दूजौ दूजै जात्री कनै हो। पूरी गैलेरी रै मायं म्‍है दो जात्री रूकोडा हा। म्‍हनै आवंतै देख झबरू उभौ हो अर हौळे हौळे भागतौ भागतौ म्‍हारै कनै आयौ।

बाउजी । चा लाउं कांई । ठंड भौत पड रैयी।झबरू आपरै दौनू हाथां री आंगळियां भैळी करियोडो बोल्‍यो।

नीं रैवण दै। म्‍है आराम करसूं। म्‍है जवाब दियौ।

बाउजी। अदरक री चा पी लो। गरमास रैसी। पढाई सौरी हुयसी। झबरू फैर कैयो।

अरै यार। अबै तुं ईत्‍तौ कैवे जणै जा लै आजा। म्‍है कैयो।

म्‍है म्‍हारै कमरै रौ ताळौ कूंटौ खोल्‍यो अर मायं बडग्‍यो। कमरै रै मांय माचै माथै पौथ्‍यां ईनै बिनै पडी ही। टैबुल माथै पाणी री बौतल गुडक्‍योडी ही। म्‍है कुरसी माथै बैठ अर जमीन माथै टांगा लंबी कर ली । म्‍है रावत मिष्‍ठान भंडार तक जा अर आयो हो। बारै ठंडी हवा चाल रैयी ही। आज ईम्तियान नीं हो। अबै दौ दिन री छुटी रै बाद दूजौ पेपर है। म्‍हारै त्‍यारी करियोडी ही। ईण कारण म्‍है आज थोडो आरोम सूं हूं। अबकी बार पेपर सौरा ही हा। लारली बार पेपर दौरा घणा आया हा। म्‍है लारलै दो सालां सूं सीएस रा पेपर दैवण नै जोधपुर आउं हूं। अबकी बार फाईनल पैपर हा। ईण धरमसाळा रै मांय म्‍हनै की याद नीं रैवै खाली औ झबरू याद रैवे। म्‍है सरदी रै मायं आउं हूं जणै म्‍है ईण नै हमेस औ पूराणो कोट पैरियोडो ही देखू। हाथ आपस रै मायं बांधोडा भागतौ रैवे। रात हौवते ही बाउजी थारीं सिरख आयगी है। आ लौ बाउजी थांरो तकियो। हर अेक जात्री रौ घर आळै ज्‍यू ठा राखै। म्‍हारी तौ औ घणी सैवा करै । म्‍हनै आवंतै ही पूछै बाउजी । घरै सब ठीक है। म्‍है धरमसाळा छौडू जणै ईण नै कांई ना कांई बख्‍शीस दे अर जाउं। म्‍है ईण नै घर रै बारै म्‍है पूछूं जणै कैवे – बाउजी। म्‍हारौ ब्‍यावं मंडसी जणै म्‍है घरै जायसूं। म्‍है पूछू- थारो ब्‍यावं कद होयसी जणै जवाब दैवे- म्‍हारै घर आळा छौरी देखे । सगपण पक्‍को हौवंते ई बाबूसा री चिटठी आ जासी। बाउजी थानै भी ब्‍यावं रै मायं चालणो है। ब्‍यांव रौ नांव लैवंते ई झबरू रै सरमा जावै। पूरी धरमसाळा रै मायं म्‍हनै झबरू ई घूमतौ दिखै। नीचे सूं सेठ आवाजां लगावंतौ रैवे झबरू..........झबरू................झबरू.....। ईण धरमसाळा री पैचाण झबरू ही है।


म्‍है छात पर लटकोडे पंखै नै देख अर सोच रै मायं डूबोडो हो। बांडै रौ खडकौ हौवंतै ही म्‍है सौच सूं बांडे आयग्‍यो। लौ बाउजी। गरमागरम चा। म्‍है झबरू रै हाथां सूं चा आपरै हाथ मांय लै ली। झबरू बांडै कानी मुडग्‍यो। फैर पाछौ घूम्यो । फैर म्‍हारै साम्‍ही उभौ हुयग्‍यो। आपरा दौनू हाथ आपरी ठोडी कनै भैळा कर उभौ हो। म्‍है पूछयो कीं पिसा दूं क्‍या।

नीं बाउजी । पिसा री जरूरत नीं है।

तौ

बाउजी। म्‍हारी चिटठी बांच दैसौ कांई। आपरै भौळे मुंडै सूं बोल्‍यो।

क्‍यूं नीं। बांच दैसां।म्‍हारै आ कैवते ई । आपरै कोट री जेब मायं हाथ घाल अर हळको टेडो होय अर चिठी निकाळ अर म्‍हनै दी। चिठी एक अंतरदेसी पत्‍तर हो। अंतरदेसी पत्‍तर म्है फाड अर बांचणौ सुरू करियो- म्‍है अठै सगळा राजी हा। तुं भी सैर रै मायं राजी हुवैला। थारी मां एकदम राजी है। तनै रोज याद करै । अजेरी गांव सूं एक सगपण आयोडो है। बात चालै है। बात पक्‍की होयसी तौ म्‍है तनै छौरी रो फौटू भेजसूं। रोटी पाणी  चोखी तरीके सूं खाये। ब्‍यांव खातर सरीर त्‍यारं करनौ है। रात नै दूध जरूर पीजै। जोधपुर री गळी मै दूध री मळाई मिलै । सेठां ने चिठी लिखोडी है। व्‍है थारै खातर दूध अर मळाई ला अर दैवेला। खा लीजै। मन लगा अर काम करीजै। म्‍है चिठी बांची। चिठी सुणतै ई व्‍हौ घणौ ई राजी हुयौ। चिठी सुण अर म्‍हनै पूछयो – बाउजी । अबकी बार म्‍हारो ब्‍यांव पक्‍कौ हो जासी नीं।

म्‍है कैयो – हुवै क्‍यूं कोयनी। थारै ईत्‍ती बढिया नौकरी है। अठै थारो रैवास भी चोखो है। म्‍हारी बात सुण अर राजी हौवंतौ बोल्‍यो- म्‍हारा बाबूसा म्‍हारै खातर चोखो सगपण देखै। ईण खातर देर लाग रैयी है। ठीक बाउजी। अबै आप पढाई करौ। कीं चीज री जरूरत हुवै तौ म्‍हनै आवाज दे दी जौ सा। आ कै अर झबरू बांडौ खौल अर निकळग्‍यो। म्‍है झबरू रै बारै मांय सोचण लाग ग्‍यो। उण टैम मोबाईल हा कोयनी। ईक्‍का दुक्‍का घरां रै मांय लैण्‍डलाईन फोन हा। म्‍है सोच्‍यो आज सैठां सूं ईण बारै मांय बात करसां। झबरू रो ब्‍यावं होवणौ चाईजै । उमर निकळ रैयी ही।

धरमसाळा रै मायं म्‍है सिंझया नै चाय पीवण नै नीचै जाउं। सिंझया नै धरमसाळा री कैंटीन रै मायं चा बण रैयी ही। कैंटीन रै मायं दूजौ कोई नीं हो। म्‍है अेकलौ हो। कोई बात नीं करण वाळो। चा आवंतै ही म्‍है साम्‍हे सेठ आळै कमरै कानी गयो। सेठ कमरै रै बांडै सौफै माथै बैठो हो। म्‍है चाय लै अर सैठ रै साम्‍हे पडी कुरसी माथै बैठग्‍यो। सैठ छापौ बांचतौ बांचतौ बार बार आपरै मुंछा माथै हाथ फैर रैयो हो। म्‍है चा रै कप सूं अैक घूंट लै अर सैठ सूं बोल्‍यो – ‘ झबरू रौ कुण सौ गांव है।

औदसरसैठ आपरी मुंछा पर हाथ फैरते उत्‍तर दियौ।

औ आपरै गांव जावे कोयनी क्‍या ।म्‍है पूछयो।

आप क्‍यूं ओ सब पूछौ हो।सैठ कैयो।

म्‍है संका करते करते जवाब दियौ – औ आज म्‍हारै कनै आपरै गांव सूं आयोडी चिठी लायो हो।

चिठी आप बांची।

हां। म्‍है बांची। चिठी रै मांय व्‍है रै ब्‍यांव री बातां लिखोडी ही। व्‍है रा बाबूसा व्‍है रै खातर अैक सगपण देख्‍यौ है।म्‍है चा रौ अैक और घूंट लैवंते लैवंते जवाब दियौ।

सैठ छापै ने समेटतां समेटतां कैयौ- कोई सात बरस पैला म्‍हारै गांव वाळा ईणनै म्‍हारे कनै धरमसाळा में छोडग्‍या। ईण रा मां बाबूसा अैक एक्‍सीडेंट में खत्‍म हुयग्‍या। ईण रै दिमाग रौ ईलाज चालै है। ईण नै बात री ठा नीं है कै ईण रा मां बाबूसा खत्‍म हुयग्‍या। म्‍हारै गांव रौ है। ईण खातर म्‍है संभळा हा। भौळो है। आपरौ टैम काढे है।

म्‍हारौ माथौ चकरा ग्‍यो। सैठ झबरू री चिठी सूं अलायदा बात बतायी। चा रौ घूंट म्‍हारे गळै में उतरतो रूकग्‍यो। म्‍है सोचतो रैयग्‍यो कै आ चिठी कठै सूं आयी। आयी तौ कुण ईणनै लिखी। म्‍है हिम्‍मत कर सैठ नै पूछयो – ईण रै गांव सूं चिठी कुण भेजै।

आपरै लारै कमरै रै मायं झांकौ घालौ।सैठ आपरै साम्‍है कमरे कानी सैनाण करते कैयो। सैठ री बात सुण म्‍है और सोच रै मांय पडग्‍यो। म्‍है आपरौ मुंडौ हौळे हौळे कमरे कानी घूमायो। म्‍है कमरै रै मायं देख्‍यो। टैबुल माथै अन्‍तरदेसी पत्‍तरां री डिगली पडी ही। कनै तख्‍ती अर पैन पडयो हो। पंखै री हवा सूं अत्‍तरदेसी पत्‍तरां रौ अैक पासो उड रैयौ हो। म्‍है सैठ कानी पाछौ मुंडौ करयो। सैठ आपरै माथै सळवटां घालते हौळे सूं कैयो – ‘ झबरू री चिठीयां अठै सूं ही जावै।

आ सुण म्‍है उभौ हुयग्‍यो। गैलेरी रै रोसनदान रै मायं बणियोडो घौसला म्‍हारै पगा कनै आ पडयो। साम्‍है बालकानी रै मायं झबरू हाथ लारै करियोडो हौळे हौळे चालतौ दिख रैयो हो।

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