Saturday, May 13, 2023

ख्वाहिशों की डकारे



वो आती है 

बिना कुछ कहे चली जाती है

सपने मुडे हुए है 

वो पाईप से सीधे भी नहीं होते है 

कल रात में सपनो की चटनी बनाकर 

रोटी के साथ खायी थी । 

पेट में भी वे हजम नहीं हुए

रात भर आती रही ख्‍वाहिशो की डकारे । 

वो बंद दरवाजो के पीछे देखना चाहता है 

उसकी दरारो में आंखे डालकर 

बहुत कुछ देख लेना चाहता है 

परन्‍तु उसे कुछ भी नजर नहीं आता है। 

कल अखबारवाला अखबार के साथ  

फेंक गया था मेरा सपना 

सारा अखबार पढ गया परन्‍तु 

सपना नहीं पढ पाया 

धुंधला छपा था । 

सीढियो से सपनो के उतरने 

की आवाजे आती है

कान भनभना उठते है 

बहुत तेज होती है सपनो के उतरने की आवाज । 

इंतजार करता रहता हूं

सपने बोलेगे जैसे बोलते है 

पहली क्‍लास में पढने वाले बच्‍चे 

सुनाई तो बहुत कुछ देता है 

परन्‍तु समझ कुछ भी नहीं आता है। 

रूके हुए सपनो के लिपट कर 

जान लेना चाहता हूं 

क्‍या है उनकी तासीर 

ठंडी या गरम ।

सपने ठहरते नहीं 

ख्‍वाहिशो को भी नहीं छोडते है 

कहीं किसी झाडी में 

अडते भी नहीं है 

इसलिए मै उसे केवल देखता हूं

जी भर कर देखता हूं

फिर जाने देता हूं। 

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