Thursday, October 31, 2019

बड़े जोर की पड़ी थी नाना की बेंत

मैने अपना बचपन नानी के पास ही बिताया है। नानी से इतना लगाव था कि मेरे ज्यातर समय नानी के घर पर ही बितता था।  मेरी शादी होने तक रात को मै नानी के घर ही सोता था।मैने मेरे बचपन की सारी बदमाशिया नानी के घर ही करी है। ये नही है कि नानी के घर हमे डाटने वाला नही था इसलिए दुनियाभर की ऊधम हम वहां कर लेते थे। एक बार मैने अपने एक दोस्त के कहने से बीड़ी के सुट्टे का कस लगा लिया थाः जिस समय मे सुट्टे का कस लगा रहा था उसी समय नाना वहां से गुजर रहे थे। उन्होने मुझे देख लिया। मै उन्हे देख नही पाया और सुट्टे के जोर से कस लगा रहा था। सुट्टे के कस लगाने से नाक से धुंआ निकलता देख हम बच्चे लोग हंस रहे थे। शाम को मैं नानी के घर पहुंचा तो नाना आंगन के बीच मे कुर्सी लगाकर बैठे थे। नाना को देखते ही मै तो पत्थर की मूर्ति हो गया न पांव आगे खिसक रहा था और न पीछे सरक रहा था। दिल जोर जोर से धड़क रहा था। रोना भी आ रहा था लेकिन नाना की गुस्से से भरी आंखे देखकर मेरी आंखो के आंसू ठहर गये। अभ मै मन ही मन.प्रार्थना कर.रहा था कि कही से नानी आ जाये। नानाजी ने भी मौका देखकर अदालत लगायी थीः नानी आज महाराज जी की कथा सुनने गयी हुई थी। अब मै भागने की कोशिश करू तो ऐसा लग रहा था मानो मेरे पैर जमीन पर चिपक गये हो। नाना.बोल कुछ नही रहे थे। उनके नथुने फुले हुए थे। वो खड़े हुए। चलकर मेरे पास आये। उनके काले रंग की जूतियां पहने हुए थी। वो जब चलकर मेरे पास आ रहे थे मुझे लग रहा था जैसे गब्बरसिंह अपना बेल्ट हाथ मे लिए मेरे पास आ रहा है। मेरे नजदीक आकर हाथ मे पकड़ी हुई छड़ी से मेरी ठुडी ऊपर उठाकर पूछा- क्यों बड़ा मजा रहा था।? खूब कस लगाये जा रहे थे। छड़ी मेरी ठुडी पर अटकी हुई थी। छड़ी जोर की चुभ रही थी। मैने अपनी आंखो के गोलो को ऊपर की ओर घूमा कर देखना चाहा। मुझे केवल नाना की दाढ़ी दिखाई दे रही थी। मै कुछ बोलना चाह रहा था परन्तु आवाज गले मे ही आकर रह गयी। मै बोलने के लिए अपने होठ खोलता उससे पहले ही सड़ाक से एक बेंत मेरे पिछवाड़े पर पड़ी। मैं अपनी हथेली से पिछवाड़े को रगड़ने लगा। बेंत की बड़ी जोर से लगी थी। मै कुछ ओर बोलता इससे पहले एक बेंत और पड़ी।  मेरे ठीक पीछे दरवाजा था। जोर की दो बेंत पड़ने के बाद और खाने की हिम्मत नही थी। मै दरवाजे से बाहर निकल गया। नाना मेरे पीछे आ गये। मै आगे चल रहा था पीछे नाना। बेंत पिछवाड़े पर पड़ रही  थी। नाना के डर से भाग नही पा रहा था। अब मेरी चिल्लाहट निकलने लगी थी। मै रोता हुआ चल रहा था पीछे नाना बेंत मारते हुए चल रहे थे। रोते हुए.मै आंसू पोंछते हुए चल रहा था। कुछ दूर चलने के बाद बेंत पड़नी बंद हो गयी। मैने नजर उठाकर देखा सामने नानी खड़ी थी। मै दौड़कर नानी से लिपट गया। अब नाना पत्थवरवत खड़े हो गये। नानी ने मेरे माथे पर हाथ फेराः फिर अपने पल्लू से अपने होठ के निचले हिस्से से पोंछते हुए बोली- जल्लाद हो गये हो क्या। छोरे की जान लेओगे क्या। ऐसा क्या कर दिया इसने। कुछ किया भी है तो ये कौनसा तरीका है समझाने का। नानी मुझे घर ले गयी। बाद मे नानी को मेरी बदमाशी का पता चला तो बहुत जोर से डांटा और कहा असकी बार ऐसा किया तो मै तेरे नाना को सजा देने से नही रोकूंगी। आज भी मै किसी बुरी चीज की ओर हाथ बढ़ाता हुं नाना की बेंत और नानी की डांट का स्मरण हो जाता है और मै बुरा काम करने से रूक जाता हुं।