Friday, May 12, 2023

सवाल




पूरानी किताबो ढेर में अब वो किताब नही मिलती 

जिसके सवाल मुझे रात भर उलझाते रहते थे

मै सडक पर चला जाता था 

और सैण्‍डविच खाकर उलझनो को भुलाया करता था । 

वो दौड जाते है पूरा जोर लगाकर 

जैसे स्‍कूल की छुटटी होने पर दौडते है यूनिफार्म पहने बच्‍चे। 

 

उस घर की सभी दीवारो को सफेदी से पोता है मैने

दिन भर भरी दुपहरी में माथे पर रूमाल बांधे हुए उनके साथ । 

रात भर पैर दबाये है मैने उस शख्‍स के 

जिसके घर के सारे दरवाजे और खिडकियो को नीले रंग से रंगा है मैने। 


उसकी दी हुई अठन्नियों से 

कई बार सडक पार दौडकर ताजे चन्‍ने लाया हूं मै। 

जी चुराया है मैने कई बार 

जैसे गाये घास के ढेर से मुंह फेर लेती है। 

वो आकर छिप गये है उसी शख्‍स की पीठ के पीछे

जिसकी बेंत की मार से सिखा है दो का पहाडा। 


मै उसे याद करूं 

या याद करूं अपने सवालो को। 

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