Sunday, July 16, 2023

सहस्‍त्रधारा की रोमांचक यात्रा

 


ऋषिकेश में गंगा नदी के सामने ही सारे आश्रम बने हुए है। सुबह सुबह मै गीता भवन से निकला। सामने गंगा नदी बह रही थी। मै कुछ देर वहीं खडा हो गया गंगा को देखता रहा । गंगा अपने पूरे आवेग के साथ बह रही थी। कोई उसमें नहाकर रोमांचित हो रहा था तो कोई पुण्‍य कमा रहा था। छोटे छोटे बच्‍चे नदी के अंदर अठखेलियां कर राजी हो रहे थे। गंगा को छुकर आने वाली हवा शीतलता का अहसास करा रही थी। कुछ देर रूकने के बाद मै वहां से चल दिया। आश्रमो के बाहर गली में नये नये रेस्‍टोरेंट बने है। यहां फास्‍ट फुड और भोजन आधुनिकता में उपलब्‍ध है। आश्रमो में सात्विक भोजन मिलता है जबकि यहां आधुनिक परन्‍तु यहां भी वेज ही मिलता है। गली से निकलते हुए साधुओ की टोलियां मिलती है। कुछ साधुओ के काली दाडी और बाकि के सफेद दाडी है। कुछ के हाथ में कमण्‍डल और कुछ के हाथ में गठरी होती है। मौन धारण किये हुए अपने गंतव्‍य की ओर जा रहे होते है। यहां साधुओ की टोलियां प्राय दिख जाती है। मै ट्रैवल ऐजेन्‍सी के यहां गया था । आज हमें देहरादूर जाना था। ट्रैवल ऐजेन्‍सी वाला मिल गया था। पांच हजार रूपये मांग रहा था। कुछ मोल भाव किया तो साढे चार हजार में राजी हुआ ।  बात तय हो गयी। उसने कहा कि गाडी आपको जानकी पुल पर मिल जायेगी। ऋषिकेश में गंगा नदी पर तीन पुल है। एक लक्ष्‍मण झुला, राम झुला और जानकी झुला। लक्ष्‍मण झुला सबसे पुराना है। उसके बाद बना राम झुला और अब नया बना है जानकी झुला। बिना किसी पोल के ये पुल बने है। इन पर चलते है तो ये पुल हिलते है इसलिए इन्‍हे झुला कहा जाता है।


यात्रा में जितने लोग आये थे उनमें से केवल 6 लोग ही देहरादून भ्रमण पर जा रहे थे। धूप बहुत तेज थी। तेज धूप में गंगा नदी किसी आईने की तरह चमक रही थी। हम सब लोग जानकी पुल से गुजर रहे थे। यहां पुल से पैदल ही जाना होता है। इस पर वाहनो की अनुमति नहीं है। स्‍कूटी जरूर इस पर चलती है। माताजी को स्‍कूटी पर बिठाकर पुल के पार भेज दिया। हम सब लोग पैदल मस्‍ती करते हुए चल रहे थे। पुल पर बहुत भीड थी। काफी बच्‍चे सैल्‍फी के लिए पुल पर खडे थे। पुल से निकलते ही हमारी गाडी तैयार थी। ऐ सी गाडी होने से मानस बहुत खुश था। अब तक उसे पैदल ही यात्रा करवायी थी। पुल के बाहर बडा बाजार था। हमने दो पानी की बोतले और खाने पीने का सामान खरीद कर रख लिया। अब हमारी गाडी देहरादून के लिए रवाना हो गयी।


ऋषिकेश की सीमा पार होते ही हम जंगल में आ गये। कार की खिडकी से पहाड और उसके आगे घने जंगल दिखाई दे रहे थे। ये जंगल वैसे ही थे जैसे बेटा फिल्‍म में तु मेरा मै तेरी वाले गाने में बताये हुए थे। कार की खिडकी से जंगल किसी पिक्‍चर की तरह चल रहे थे। ऋषिकेश और देहरादून समुद्रतल की उंचाई मे ज्‍यादा अलग नही है। दोनो लगभग एक ही उंचाई पर है। गाडी में गाने गाते हुए हम जल्‍द ही देहरादून शहर पहुंच गये। यहां के शहर की सडके साफ सुथरी है। सडको पर धूल बिलकुल नहीं है। सडको पर जगह जगह फल के ठेले लगे हुए है जिन में अधिकांश पर लीची लदे हुए है। कई घरो में लीची के पेड भी लगे हुए दिखाई दिये परन्‍तु फिर भी लीची यहां सस्‍ते नहीं है। यहां लीची १४० से १८० रूपये किलो तक है। यह बात जरूर है कि यहां लीची ताजे मिल जाते है। अब हमारी गाडी सहस्‍त्र धारा की ओर जा रही थी। सहस्‍त्र धारा देहरादून में नीचे घाटी की ओर है। ड्राईवर हमें सहस्‍त्रधारा के बारे में बता रहा था। ड्राईवर अच्‍छा आदमी था। उसने बताया कि उसका गांव केदारनाथ के पास है। उसने बताया कि उसका परिवार कैसे मुश्किल में रहता है। वो बर्फबारी का तो वो साल में कई बार सामना करते है। उनके यहां स्‍कूल और अस्‍पताल की दिक्‍कते है। उसने अपने पहाडी खाने के बारे में भी बताया। उसने बताया कि वो ठंड में भटट की दाल बनाते है। पहाडी खाने में भटट की दाल विशेष होती है। उसने बताया कि पहाडो में कितनी ठंड पडती है। हमने भी उससे हमारे यहां पानी की कमी साझा की। हमारा जीवन पानी के बिना कितना मुश्किल है, यह भी बताया। बाते करते करते हम सहस्‍त्र धारा पहुंच गये। गाडी एक किनारे पार्क की। ड्राईवर ने बताया कि एक घंटे में आप आ जाना। हम सब गाडी से निकले और अपने हाथ मुंह धोये।



सबसे पहले मंदिर में गये। यहां शिव मंदिर है। सहस्‍त्रधारा एक बहुत बडा पहाड से जिसमें से लगातार पानी की धाराये निकलती रहती है। कहीं गंधक की धारा तो कहीं दूसरे पानी की सहस्‍त्रो धाराऐ निकलती रहती है। यह धाराऐ बरसो से अनवरत निकल रही है। मंदिर में शिव अभिषेक के लिए भी पानी उन्‍ही धाराओ से ही आ रहा था। पानी एकदम कंचन की तरह साफ था। सबसे पहले हम सब ने पानी से शिवअभिेषेक किया। फिर बाहर सहस्‍त्र धारा की ओर आ गये। सबसे पहले गुरूद्रोण की मुर्ति लगी थी। उस मुर्ति को प्रणाम किया और फोटो खिंचवाये। यहां पहुंचते ही ठंडी हवाऐं  आपको छुने लगती है। पहाडो से गिरने वाली सहस्‍त्र धाराऐं रोमांचित करती है। चारो और पहाडो से घिरा हुआ स्‍थान है ये। इसे घाटी भी कहा जा सकता है। इस पहाड पर कई गुफाऐं भी बनी हुई है। सब जगह से पानी आ रहा है। पहाडो से गिरने वाले पानी को तीन जगह बांध दिया है ताकि लोग वहां नहा सके। कई जगह छोट छोटे झरने बन गये है। हमारे चारो तरफ हरियाली से भरे हुए पहाड थे जिनमें से सहस्‍त्रो धाराऐं बह रही थी। हम दुनिया की सुंदरतम जगहो में से एक पर खउे थे। हमारे पीछे उंचाई पर गुफाऐं थी जिनमेंसे पानी आ रहा था। कुछ लोग उंचाई पर जाकर गुफाओ में जा रहे थे। गुफा से एक साथ पानी आने से वहां झरना बन गया था। दूसरी ओर उंचाई पर एक रेस्‍टोरेंट था जिसमें लोग रोपवे द्वारा जा रहे थे।



अनवरत धाराओ में बहने से बडे बडे पत्‍थर नीचे आ गये थे। उन पत्‍थरो पर चलते हुए हम सुरक्षित स्‍थान देख रहे थे। पानी को देखकर हम लोगो का भी नहाने का मन हो गया था। एक स्‍थान पर हम लोगो ने अपने कपडे रखे और पानी में कूद पडे। हमने ऐसा स्‍थान देखा जहां छोटा झरना भी था। पानी गहरा नहीं था। धाराओ से निकला हुआ पानी था। पानी के अंदर छोटे छोटे पत्‍थर थे जो पांवो में चुभ रहे थे। मै चलता हुआ झरने के पास पहुंचा । कुछ देर झरने के नीचे बैठा रहा। वहां मैने मानस और मंयक को भी बुला लिया था। यहां भी स्‍नैप जरूरी थे। कुछ स्‍नैप हमने वहां खींचे। फिर पानी में चलते हुए दूसरे झरने पर गये। वहां पानी का बहाव तेज था। पानी हमें धक्‍के मार रहा था। रोमांचित करने वाला अनुभव था। पानी के बीचे पडे बडे पत्‍थरो पर हम बैठ गये। कुछ देर बाद फिर पानी में उतर आये। एक पिता अपने छोटे से बच्‍चे को नहला रहा था। बच्‍चे चेहरे की खुशी देखी जा सकती थी। बच्‍चो अठखेलिया कर रहा था। पानी से सहस्‍त्र धाराओ वाला पहाड विशाल दिखाई दे रहा था। यहां से पहाडो से निकलती सहस्‍त्र धाराऐ, झरने और गुफाऐं दिखाई दे रही थी। अदभुत दृश्‍य था । अब एक घंटे से भी ज्‍यादा का समय हो चुका था। हम निकल कर बडे से पत्‍थर पर आ गये थे। वहां खडे होकर कुछ स्‍नैप और कुछ सैल्‍फी ली। फिर वहीं बैठकर भेल मुडी खायी। नहाकर निकले थे तो भेलमुडी बडी स्‍वादिष्‍ट लग रही थी। भेलमुडी खाने के बाद हमने कपडे पहने और बाहर की ओर चल दिये। यहां से जाने का मन नहीं हो रहा था। कुछ दूर जाकर वापिस पीछे आया। एक बार ओर इस अदभुत दृश्‍य को देखा। जी अभी भी नहीं भरा था परन्‍तु जाना तो था।




गाडी पर जाने से पहले हमे चाय की जोरदार तलब हो रही थी। नहाने के बाद ठंडे वातावरण में चाय तो जरूरी थी। गाडी पार्किंग के पास ही एक रेस्‍टोरेंट था। हमने रेस्‍टोरेंट में चाय और नाश्‍ता किया। चाय अच्‍छी थी इसलिए सबने दो दो कप लिये। चाय पीने के बाद वापिस हम अपनी गाडी में बैठ गये और गाडी रवाना हो गयी हमारे अगले डेस्‍टीनेंशन की ओर। अगला पडाव अगली कडी में …………
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Sunday, July 9, 2023

हिमशैैल वाटर फॉल से नीलकंठ महादेव



ऋषिकेश के गीता भवन की बालकॉनियों में जालियां लगी है ताकि बंदर यहां रहने वालो को परेशान नहीं कर सके। अस्‍थायी निवास में ठहरे यात्री जब भोजन बनाते है तो उसकी खूशबू से बंदर उन जालियो को पकड कर खडे हो जाते है। मै इन बंदरो को कमरे के बाहर रखी कुर्सी पर बैठकर देख रहा था। बंदर जाली से ऐसे लटके हुए थे जैसे कि उन्‍हे न्‍यौता देकर बुलाया गया है। मै उन्‍हे चौकीदार लग रहा था । मेरी ओर घूर रहे थे। पास बैठे भानजे ने कहा आज कहां चलना है मामा। मैने उसे गुगल में कोई नया टुरिस्‍ट प्‍वांईट या वाटरफाल देखने को कहा । हम ऋषिकेश की गली गली घूम चूके थे। हमे कुछ नया चाहिए था। भानजे ने अपने मोबाईल में दो तीन झरनो के नाम बताये। इनमेंसे नील झरना और पटना झरने पर जा चुके थे। मैने हिमशैल झरने पर जाने का निश्‍चय किया। मैने पूछा कितना दूर है तो गुगल में कोई 2 किमी दूर बताया। हम तीन लोग थे । तीनो तैयार हो गये । मैने भानजे से कहा तौलिया, कपडे और कुछ खाने का सामान बैग में डाल ले। मानस और मयंक ने बैग अपने कंधो पर डालकर तैयार थे। फिर चल पडे हिमशैल वाटर फाल की ओर


गीता भवन के बाहर से हमने गुगल मैप देखना शुरू किया। गुगल मैप देखते हुए गीता भवन के पीछे की सडक पर गये। एक ऐसी गली में भी घुस गये जो आगे बंद थी। गुगल मैप से मिलान करने मे हम गलती कर गये। आगे गली में कुछ लोग आते हुए दिखे। हम भी गुगल मैप वाली गली मानकर उसमें चलने लगे। गली में चढाई बहुत थी। हर पांच मिनट बाद रूकना पड रहा था। गली पार करने के बाद एक थडी पर मै बैठ गया। मानस मेरी हालत देखकर हंसने लगा। मयंक मेरे लिए नारियल पानी लाया। नारियल पानी पीने के बाद गुगल नक्‍शा देखकर चलने लगे। सामने भूतनाथ मंदिर था। उससे सीधे जाना था। हम उस ओर चल पडे। आते जाते लोगो से पूछ रहे थे हिमशेल वाटर फाल कहां है। किसी ने सही उत्‍तर नहीं दिया। अधिकांश लोगो ने तो कहा कि आगे कोई वाटर फाल नहीं है। रास्‍ता चढाई का था तो हम वापिस लौटने का सोचने लगे। आगे दो लडकियां दुकान लगाकर बैठी थी। उन्‍होने आवाज देकर कहा कि हिमशैल वाटर फाल आगे है। हमारे मन में नई उम्‍मीद जगी। उन्‍होने बताया थोडी दूर चलने पर उसका पानी सडक पर फैला हुआ दिखाई देने लग जायेगा। मानस ने कहा तो फिर ठीक है, चलते है परन्‍तु लडकियो ने कहा वो वाटर फाल बंद हो गया। किसी हाथी के हमले के बाद बंद कर दिया गया है। अब वहां पाईप लगा दिया गया है जिससे पानी आता है। हर मन मसोस कर लौट गये। लौटकर भूतनाथ मंदिर के बाहर थडी पर बैठ गये। मैने हिसाब लगाया और सोचा कि यदि 1000 रू तक कोई गाडी नीलकंठ चलती है तो नीलकंठ चल लेते है। मयंक ने वहां खडी गा‍डी वालो से पूछो तो किसी ने 2000रू से कम नहीं कहा । पहले हमने वहां कटा हुआ खीरा खाया तो वहां बैठे दो लोगो ने बताया हम अभी नीलकंठ जाकर आये है। एक आदमी का दो सौ रूपये लगे। मैने पूछा – कैसे । उन्‍होने बताया कि आगे एक टैक्‍सी स्‍टैण्‍ड है वहां 200 रू सवारी में आप जा सकते है। मै बहुत खुश हुआ। मैने कहा चलो नीलकंठ चलते है।


 टैक्‍सी स्‍टैण्‍ड पर जाते ही टेक्‍सी मिल गयी। टैक्‍सी में हमारे साथ बिहार से आये हुए चार युवक भी थे। वे पूरे रास्‍ते भोजपुरी में बाते कर रहे थे। इसका हमने बहुत मजा लिया। उन मेसे एक महाराज जैसा था । जिससे वो लोग हर बात की हां करवाते थे। वो बोल रहा था – हम तो सावन में यहां आते है। सावन में ससुरी यहां इतनी भीड होती है कि दर्शन करते में चार घंटे से नंबर आता है। हम तो यहां तक पैदल आते है। वो इतनी बाते कर रहे थे कि हम आपस में बात ही नहीं कर पा रहे थे।


मैने मानस से मोबाईल से रास्‍ते का वीडियो बनाने के लिए बोला। साथ में यह भी बोला कि मेरा भी फोटो साथ आना चाहिए। मै मानस का बता रहा था कि यहां से राफटिंग होती है। वहां राफटिंग वाले नावे लेकर खडे थे। कुछ लोग नदी में राफटिंग कर रहे थे। हमारी टैक्‍सी काफी उंची चल रही थी। गंगा में राफटिंग करने वाले काफी छोटे छोटे दिखाई दे रहे थे। एक तरफ गंगा नदी बह रही थी और दूसरी और विशालकाय पहाड थे जो हरियाली से आच्‍छादित थे। हमारी गाडी कुछ देर में राजाजी नेशनल पार्क से भी गुजरी। यहां गाडी रोकना मना था क्‍योंकि यहां जंगली जानवरो का भय था। पास बैठे युवक ने कहा वो देखो सुसरा शेर। दूसरे ने कहा- कहां है कहां है। गाडी मे बैठे सभी उत्‍सुकता से देखने लगे। महाराज ने कहा – वो सुसरी बकरी है। तुमको पता नहीं क्‍या क्‍या दिख जाते है। हम सभी ने महाराज की बात सुनकर जोर से ठहाका लगाया। गाडी अब नीचे घाटी में उतर रही थी। हमें अब वो सडक दिखाई दे रही थी जहां से चलके हम आये थे। सडक पर गाडियो की लंबी लाईन लगी थी। हम घाटी में उतर रहे थे। पहाडो पर सफेद बादल रूई के फौव्‍वो की तरह दिखाई दे रहे थे। हरियाली में सफेद बादल पहाडो पर गहनो के श्रंगार की तरह लग रहे थे। गाडी हमारी टैक्‍सी स्‍टैण्‍ड पर रोक दी। हम सब ने एक दूसरे के नंबर लिये ताकि समय पर लौट सके। गाडी टैक्‍सी स्‍टैण्‍ड पर खडी थी।




अब हम नीलकंठ में थे। चारो और पहाडो से घिरा हुआ। सारे पहाड हरे भरे। रोमांचित करने वाला दृश्‍य था। यहां फोटो खिंचवाने का मोह छोड नहीं पाया। मंदिर जाते हुए रास्‍ते में एक दो फोटो तो खिंचवा ही लिये। हम जहां खडे थे उसके नीचे और घाटी थी। एक ओर चाय पानी और प्रसाद की दुकाने लगी थी। सभी दुकानदार अपने यहां से प्रसाद लेने की मनुहार कर रहे थे। मंदिर के नजदीक पहुंच गये थे। मंदिर सीढिया उतर कर था। हम लोगो ने एक दुकान से प्रसाद लिया और वहीं चप्‍पले खोल दी। यहीं से मंदिर के द्वार में प्रवेश किया। लंबी लाईन थी।




आगे जबरदस्‍त भीड दिखाई दे रही थी। लोग बम बम भोले बोल रहे थे। मैने भी हर हर महादेव का उदघोष किया। लाईन में हम आगे पीछे हो गये थे। निज मंदिर में बहुत भीड थी। महोदव की लिंगी पर मैन जलाभिषेक किया। यह जलाभिषेक कुछ ही सैकिण्‍ड में पूजारी ने करवा दिया। पीछे भीड बहुत थी। मै जलाभिषेक कर आगे आ गया। मानस और मयंक भी पीछे पीछे आ गये। मंदिर के बाहर आने पर देखा मंदिर के बाहर बहुत सारे धागे बंधे थे। कुछ मन्‍नतो के लिए बांधे हुए थे और कुछ प्रसाद की थाली में आने वाले धागे को वैसे ही बांध देते थे। मैने मंदिर के बाहर अपने स्‍नैप खिंचवाये। मैने मानस से कहा फोटा में लगना चाहिए कि हम नीलकंठ महादेव के मंदिर में है। मंदिर में लगातार बम बम भोले के स्‍वर सुनाई दे रहे थे। 



मंदिर के बाहर आकर चारो ओर घिरे पहाडो को फिर से देखा। अपने जूते चप्‍पल पहन कर सबसे पहले कुछ खाने पीने का काम किया। एक रेस्‍टोरेंट में गये। जिसके पीछे बालकॉनी से नीचे घाटी और पहाड दिखाई दे रहे थे। हमने वहां बैठकर चाय का आनंद लिया। यहां के स्‍नैप अलग से लिये। नीचे घाटी में भी कुछ अस्‍थायी मकान बने हुए थे। चाय पानी करने के बाद बाहन निकले तो एक हैण्‍डपंप पर पानी भरा। मैने हैंड पंप चला कर देखा। फिर घाटी के सुंदर दश्‍य में कुछ योगा करते हुए स्‍नैप खिंचवाये। 





आने वाले सावन मास को देखते हुए परिसर में तैयारियां चल रही थी। ठंडी हवा में हम लोग हाथ फैलाकर खडे हो गये। हवा का भीतर तक अहसास किया। वहां दश्‍य इतना सुंदर था कि आधे घंटे तक हम वहां वीडियो सैल्‍फी और फोटो बनाते रहे । मैने कहा हम लोगो को साथ में दो ड्रेस और लानी चाहिए थी। शाम हो रही थी। हम जल्‍दी से टैक्‍सी की ओर गये। बिहारी युवक पहले से ही आ चुके थे। जल्‍दी से हम गाडी में बैठे। गाडी में बैठ कर हर हर महादेव का उदघोष किया और गाडी रवाना। लौटते वक्‍त समय का पता ही नहीं चला। गाडी राम झुले पर रूकी। हम लोग वहां उतर गये और वहां से हर हर महादेव का उदघोष करते हुए गीता भवन की ओर चल दिये। 

Wednesday, July 5, 2023

क्रिकेट से रोशनी जा रही है

 


वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम को भारत में होने वाले वनडे विश्‍व कप से बाहर होना एक सामान्‍य घटना नहीं है बल्कि क्रिकेट की दमकती ईमारत के एक कोने पर लगा दाग है। चाहे इसके लिए कोई दोषी हो परन्‍तु वेस्‍टइंडीज के बाहर होने से दुनिया भर के करोडो क्रिकेट प्रे‍मियों को निराशा हुई है । एक टीम जिसने कभी दुनिया ए क्रिकेट पर राज किया था उसे क्रिकेट की जंग के सबसे बडे जलसे में शामिल होने का हक अब हासिल नहीं है। पूरी दुनिया जिन खिलाडियो की गेद और बल्‍ले से कांपती थी आज उसी वेस्‍टइंडीज की टीम के कदम जंग के मैदान के बाहर ही ठिठक गये है। जिस वेस्‍टइंडीज के गेंदबाजो के सामने दुनिया की कई पूरी की पूरी टीमे सामना करने से कांपती थी आज उसी वेस्‍टइंडीज टीम को एक क्‍वालिफायर टीम ने पराजित कर विश्‍व कप में खेलने का अधिकार छिन लिया । दो बार की विश्‍व चैम्पियन के बाहर होने पर क्रिकेट के दीवानो को बेहद अफसोस हुआ। जिस वेस्‍टइंडीज टीम के बिना क्रिकेट की कल्‍पना करना संभव नहीं था आज उसके बिना विश्‍वकप खेला जायेगा। एक टीम जिसने क्रिकेट को अपना अविस्‍मरणीय योगदान दिया उसी टीम के बिना क्रिकेट की सबसे बडी जंग आयोजित होगी। अब यह तय हो ही गयी है कि वेस्‍टइंडीज आने वाले विश्‍वकप का हिस्‍सा नहीं होगा तब यह विचारणीय प्रश्‍न है कि कभी अपनी कलाईयों के दम पर पूरी दुनिया को अपने बल्‍ले के नीचे रखने वाली टीम की इतनी दुर्दशा कैसी हुई। 

वर्ष १९७५ में जब पहला विश्‍वकप आयोजित होना तय हुआ तब वेस्‍टइंडीज ने अपनी प्रतिभा के दम पर पूरी क्रिकेट की दुनिया का अपने कब्‍जे में कर रखा था । किसी भी टीम के पास उस टीम का सामना करने की क्षमता नहीं थी। मैल्‍कम मार्शल, ज्‍यॉल गॉर्नर जैसे गेंदबाज अपनी गेंदो से आग उगलते थे। दुनिया के बडे बडे बल्‍लेबाज इनके आगे धराशायी हो जाते थे। क्‍लाईव लॉयड और विव रिर्चडस, डेसमंड हेंस और गॉडर्न ग्रीनीज जैसे बल्‍लेबाज से सुसज्जित टीम ने पहला और दूसरा विश्‍वकप आसानी के साथ जीत लिया था । उस समय लग रहा था कि यह टीम अजेय है। १९८३ में कपिल देव की कप्‍तानी में भारत की टीम ने फाईनल में पहली बार विश्‍वकप में पराजित किया। उसके बाद से वेस्‍टइंडीज टीम वापिस कभी भी फाईनल में नहीं पहुंच पायी है। विश्‍वकप के फाईनल में भारत के हार जाने के बाद भी वेस्‍टइंडीज टीम अपने विरोधियों पर भारी पडती रही । दुनिया भर के क्रिकेट खेलने वाले देश वेस्‍टइंडीज से निपटने की युक्तियां खोजते रहते। उस समय श्रीलंका के खिलाडी तो वेस्‍टइंडीज के गेंदबाजो का सामना ही नहीं कर पाते थे। १९८७ के विश्‍वकप में वेस्‍टइंडीज पहले दौर में बाहर हो गयी। पाकिस्‍तान के विरूद्ध एक मैच हार कर टीम बाहर हो गयी थी तब विव रिचर्डस मैदान में रो पडे थे। उस समय रोने का वक्‍त नहीं था क्‍योंकि टीम संघर्ष कर हारी थी परन्‍तु आज वेस्‍टइंडीज के लिए रोने का वक्‍त है। १९९० तक वेस्‍टइंडीज विश्‍वकप नहीं जीतने पर भी सिरमौर रही । विव रिचर्डस, रिचि रिर्चडसन, डेसमंड हेंस, लैरी गोम्‍स, जैफ डुजो, रोजर हार्पर जैसे खिलाडियो ने वेस्‍टइंडीज की मान मर्यादा बनाये रखी। 

दुनिया की सिरमौर टीम का पतन १९९० के बाद से शुरू हो गया था जब विव रिचर्डस ने संन्‍यास लिया। उसके बाद कमान रिची रिर्चडसन को सौंपी गयी। गेंदबाजी मे कर्टनी वाल्‍श बडा हथियार था परन्‍तु धीरे धीरे वेस्‍टइंडीज अपनी लय खोने लगी। उस समय ब्रायन लारा उनके साथ बडा बल्‍लेबाज था जिसने सचिन की तरह कई रिकार्ड बनाये। ब्रायन लारा ने काफी हद तक वेस्‍टइंडीज के पतन को रोके रखा। १९९६ के विश्‍वकप में टीम सेमिफाईनल तक पहुंचने में सफल रही । एम्‍ब्रोस, इयान बिशप गेंदबाजी के उच्‍च मानको को बनाये रखने में असफल रहे। फिर भी खिलाडियो ने टीम को स्‍वर्णकाल में ले जाने का प्रयास किया। एक बार चैम्पियंस ट्राफी भी जीतने में सफल रहे । २०१२ में आईसीसी टी २० चैम्पियनशिप भी जीती । १९९५ से २०१५ तक वेस्‍टइंडीज का प्रदर्शन मिश्रित रहा। कभी जीत जाते जो कभी बुरी तरह हार जाते। इस दौरान टीम का दबदबा नहीं रहा परन्‍तु टीम का एक औसत प्रदर्शन रहा । 

वेस्‍टइंडीज टीम के लिए बडी दिक्‍क्‍त यह है कि यह एक देश नहीं है। यह एक कैरबियन देशो का समूह है जिसके देशो के खिलाडियो से मिलकर टीम बनती है। इस कैरेबियन समूह का एक ही क्रिकेट बोर्ड है। बोर्ड और खिलाडियो के बीच २००५ में विवाद शुरू हुआ जो अभी तक किसी न किसी रूप में जारी है। एक बार तो कैरेबियन समूह के देशो की अलग अलग टीम के रूप में खेलने की भी कल्‍पना की जाने लगी। एक बार शिव चन्‍द्रपॉल कप्‍तानी में दूसरी टीम भेज दी गयी। खिलाडियो ने कई बार टीम से बगावत कर दी। उसके बाद टी २० आने के बाद वेस्‍टइंडीज के खिलाडियो को नया रोजगार मिल गया। वे राष्‍ट्रीय टीम से बगावत करके टी२० लीग में खेलने लग गये। पोलार्ड और दूसरे खिलाडी अपना अधिकांश वक्‍त टी २० लीगस को देने लग गये। इससे वेस्‍टइंडीज टीम को बहुत बडा नुकसान हुआ। उसकी राष्‍ट्रीय टीम कमजोर हो गयी। टीम का मैनजमेंट विव रिचर्डस के सन्‍यास के बाद ही हो गया क्‍योंकि उसके बाद डेसमेंड हेंस को बीच में ही हटा दिया गया। बार बार कप्‍तान बदले गये। गस लोगी को अंदर बाहर किया गया। २००५ के बाद टीम पूर्णत गर्त के रास्‍ते पर आ गयी। जिसकी परिणित यह हुई कि क्‍वालिफायर स्‍कॉटलैंड से हार कर बाहर हो गयी। 

वेस्‍टइंडीज के पतन में वहां का बोर्ड पूरी तरह से जिम्‍मेवार है। जब टीम का स्‍वर्णकाल था तो भविष्‍य की टीम के बारे में नहीं सोचा गया। प्रतिभाऐं अपने आप नहीं आती है उन्‍हे खोजना पडता है और अवसर देना पडता है। एम्‍ब्रोस और वाल्‍श के बाद तेज गेंदबाजो को नहीं तराशा गया। वेस्‍टंडीज बोर्ड की ओर से प्रोत्‍साहन नहीं मिलने से गुयाना और बारबोडोस के प्रतिभाशाली युवाओ ने अपना रूख ऐथेलेटिक्‍स की ओर कर लिया। मनोरंजन के नये साधान आने से युवा संगीत की ओर भी मुड गये। क्रिकेट में विवादो के चलते युवा क्रिकेट की ओर आकर्षित नहीं हुए। टीम का धरेलू क्रिकेट ढांचा भी दरकने लगा था जिसका नुकसान टीम को हुआ। किसी भी देश की क्रिकेट के लिए घरेलू क्रिकेट का मजबूत होना जरूरी है। वेस्‍टइंडीज टीम के गर्त में जाने का सबसे बडा कारण उनकी घरेलू क्रिकेट का विवादो में घिर जाना है। 

वेस्‍टइंडीज दुनिया के सबसे बडे क्रिकेट जलसे से बाहर है। इसका दुख सभी क्रिकेट प्रेमियों केा है परन्‍तु एक कमजोर वेस्‍टइंडीज टीम को भी हम स्‍वीकार नहीं कर सकते है। अब जरूरत है कि आईसीसी वेस्‍टइंडीज क्रिकेट टीम को मजबूत करने का जिम्‍मा ले क्‍योंकि वेस्‍टइंडीज क्रिकेट की विरासत है। उस विरासत को बचाये रखना जरूरी है। नयी टीमे आती रहेगी और क्रिकेट से जुडती रहेगी परन्‍तु हमें विरासत को भी लुप्‍त होने से बचाना जरूरी है। वेस्‍टइंडीज टीम के बिखरने के बाद क्रिकेट अधूरा हो जायेगा। इसलिए अब वक्‍त है कि वेस्‍टइंडीज टीम को एक विरासत के तौर पर बचाया जाय। वेस्‍टइंडीज का क्रिकेट की मुख्‍य धारा से बाहर होना वैसा ही जैसे चिरागो से रोशनी जा रही है। 


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