Monday, October 3, 2022

मनीष कुमार जोशी की कहानी - भिक्षु

 


मै अपने शहर के जिस हिस्‍से में रहता हूं वहां आश्रम बहुत है। हर एक किलोमीटर पर एक आश्रम है। हर किलोमीटर ही नहीं बल्कि हर सौ मीटर की दूरी पर एक आश्रम आपको मिलेगा। यह हिन्‍दू सनातन संस्‍क़ति के आश्रम है। इस क्षेत्र में रहने वाले बाशिन्‍दे अपने आपको आश्रम का हिस्‍सा ही मानते है। यहां के लोग का रहन सहन साधारण है और खान पान भी साधारण है। यहां तक की यहां कोई प्‍याज भी नहीं खाता है। हम लोग सुबह उठते है तो हमारे कानो में वेदमंत्र और प्रार्थनाओ की आवाजे पडती है। शाम को मन्दिरो की घंटिया सुनाई देती है। हमारे यहां इन आश्रमो को बगेचियां कहते है। इन बगेचियों में संत और साधु रहते है। महिला साधुओ और संतो की बगेचियां अलग से है। दोंपहर में इन बगेचियों में प्रवचन होते है जिसमें हर घर से काई न कोई जाता है। प्रवचनो की आवाजे हमारे घरो तक भी आती रहती है। जब कोई बडा संत किसी बगेची मे आता है तो आस पास के लोग उसमें सहयोग करते है। युवा बढ चढ कर इसमें हिस्‍सा लेते है। आने वाले संत की वो खूब सेवा करते है। सुबह सुबह जब आप निकलते हो तो आप को कहीं न कहीं कोई साधु और संत मिल ही जाता है।  यहां किसी वाशिदे को आज तक कभी किसी बगेची के कार्यक्रम से कोई परेशानी नहीं हुई है और वाशिंदो के किसी कार्यक्रम से किसी बगेची को कोई परेंशानी नहीं हुई है। 

मै इस क्षेत्र में रहता हूं तो मै भी बगेची की संस्‍कृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। मेरे घर से मेरी मां इन बगेचियो में जाती रहती है। जब घर से मां बगेची जाती है तो हमें भी कभी जाने का अवसर मिल ही जाता है। मैं जब छोटा था तो अपनी मां के साथ बगेची जाया करता था। मां कभी मेरे साथ बगेची में भेंट भी भेजती थी और मै दौडकर उस बगेची में दे आता था। हमारे लिए कोई बगेची घर से ज्यादा दूर नहीं थी। कभी मै अपने दोस्‍त के साथ उस बगेची में भेंट देने के लिए ले जाता था। किसी उत्‍सव या त्‍योंहार के अवसर पर मां हम सब घरवालो को बगेची में महंतजी से आर्शिवाद लेने भेजती । हम सब की यह आदत भी हो चुकी थी कि उत्‍सव या त्‍योंहार के अवसर पर हम सब एक साथ बगेची जाते । मै जब पन्‍द्रह – सत्रह वर्ष का रहा होउंगा। मै मां के साथ बेगची जाता था। बगेची मे मै महंत जी से आर्शीवाद लेता और मंदिर में दर्शन करता। यहां हर बगेची में मंदिर बना है। वहां साधुओ और संतो की टोलियो को देखता । मैं उन साधु और संतो की टोलियो को देखकर प्रभावित होता। मुझे हमेंशा से ही साधु और संतो के दर्शन करना अच्‍छा लगता है। उस समय में उनके कार्यकलापो को देखता कि वे कहां जाते और क्‍या करते है। एक उत्‍सुकता मेरे मन में हमेंशा बनी रहती। मैं उनके द्वारा उच्‍चारित किये जाने वाले वेद मंत्रो को ध्‍यान लगाकर सुनता। मै अपनी मां से इस बारे में बहुत सारे प्रश्‍न पूछता रहता ।  साधु और संत टीवी नहीं देखते क्‍या । साधु और संत दूसरे कपडे क्‍यो नहीं पहनते । ये भी त्‍योंहार मनाते है क्‍या। त्‍योहरो पर ये भी खरीदारी करते है क्‍या । बहुत सारे उटपटांग प्रश्‍न मै अपनी मां से पूछता। मेरी मां मेंरे हर प्रश्‍न का जवाब देकर मुझे संतुष्‍ट कर देती। उन दिनो में बगेची में गया तो मुझे एक लडका हमेंशा प्रभावित करता। वो मेरी उम्रं का ही रहा होगा। कोई चौदह- पन्‍द्रह वर्ष का। मैं बगेची जाता तो वो मुझे साधुओ के साथ चलता हुआ दिखता। मुंडन करवाया हुआ और भगवे वस्‍त्र पहने हुए। मै उसकी तरफ देखता तो वो मुस्‍कुरा देता। उसे आये हुए कुछ दिन ही हुए होंगे। उसके होठो के बीच निकले हुए सफेद दांत हमेंशा मेरे में उर्जा भर देते। साधु और संत वेदमंत्रो का उच्‍चारण करते तो वो भी उसी लय में वेदमंत्रो का उच्‍चारण करता। महंत जी उसे भिक्षु कहकर बुलाते । मैने कभी उसके माथे पर चिंता, भय और परेशानी की कोई रेखा नहीं देखी। मां के साथ कभी दोपहर में प्रवचन में जाता तो भिक्षु मंहत जी के पीछे बैठा होता। वैसे ही मुस्‍कुराते हुए। शाम को कभी मै बगेची जाता तो वो मंदिर में आरती करते हुए मिलता। वो जोर जोर से स्‍तुति के साथ आरती गाता। वहां आये हुए लोग आरती के बाद उसके चरण छुकर आर्शीवाद लेते । वो मुस्‍कुराते हुए आर्शीवाद देता।

मै उस समय किशोरावस्‍था में था। मेरे मन में कई प्रश्‍न उठते थे। भिक्षु को देखने के बाद तो मेरे न में प्रश्‍नो का झरना बह निकला। मै सोचता रहता कि इतना छोटा बच्‍चा साधु कैसे बन गया। क्‍या घर से भागकर साधु बना है। उसका मन साधु बनने में कैसे लग गया। मै अपनी मां से ये सारे सवाल पूछता । मेरी मां मेरे सवालो का कुछ न कुछ उत्‍तर दे देती परन्‍तु भिक्ष्‍ुा  पर दिये गये जवाबो से मै संतुष्‍ट नहीं था। मेरे मन में उलझन बनी रहती। एक शाम को मै बगेची गया। बगेची मै आरती हो रही थी। श्रद्धालुओ की भीड थी। सभी आरती में भाव विभोर थे। आरती समाप्‍त होने के बाद सभी जयकारे लगा रहे थे। भिक्षु आरती हर एक नजदीक ले जा रहा था। सभी आरती के उपर हाथ फेरकर अपनी आंखो के लगा रहे थे। भिक्षु मुस्‍कुराते हुए सभी को आरती के दर्शन कर रहा था। मैं भीड में सबसे पीछे खडा था। भिक्षु धीरे धीरे मेरी ओर आ रहा था। मेरी ओर भिक्षु आया। मै उससे कुछ पूछना चाह रहा था। मेरी हिम्‍म्‍त नहीं हो रही थी। इस कारण मेरे चेहरे पर शंका के भाव थे। भिक्षु मेरे नजदीक आया। वो ही मुस्‍कुराता हुआ। उसके दो सुदंर होठो में से सफेद दांत झांक रहे थे। ऐसे लग रहा था कि सुबह की लालिमा मे से भोर का सूरज निकल रहा हो। मैं कुछ बोल नही पाया। वह मुस्‍कुराते हुए बोल पडा- कैसे हो ब्रदर। कहते हुए आरती मेरे आगे कर दी।  मै सकपका गया। आरती के बाद घर लौटा तो मेरे जहन मे सवालो की जगह उस भिक्षु का मुस्‍रकुराता हुआ चेहरा था।

रात को बिस्‍तर पर सोने गया तो एक बार फिर सवाल मेरे सामने खडा हो गया। इतना छोटा बालक भिक्षु कैसे बन गया। उन दिनो दीवाली आने वाली थी। मै सोच रहा था कि मुझे दीवाली का इतना शौक है। मै दीवाली पर पूरे शहर की रोशनी देखने जाता हूं। इतने पटाखे फोडता हु और तरह तरह की मिठाईयां खाता हूं। मै इनके बिना नहीं रह सकता हूं। वो कैसे रहता होगा। उसके कानो में पटाखो की आवाज पडती होगी तो उस‍के मन में भी आता होगा। मै दीपावली को नये नये कपडे पहनता हु। तो भिक्षु के मन में भी दूसरे कपडे पहनने की आती होगी। यह सोच कर मै भिक्ष्‍ुा के लिए दुखी होता । मै करवटे बदलता रहा और भिक्षु के बारे में सोचता रहा।



अगले दिन मै खेलने गया। वहां भी सोचता रहा कि मुझे खेलने मे बहुत मजा आता है तो उस भिक्षुं के मन में भी तो आती होगी। उसके मन में भी तो खेलने की बात आयी होगी। पर वो खेल नही सकता। आश्रम के नियम ही है ऐसे। वो कैसे रहता होगा। उसकी जिंदगी तो रसहीन हो गयी होगी। एक बार फिर भिक्षुं को लेकर मै दुखी हुआ। बडो तक तो ठीक है पर एक बच्‍चा कैसे भिक्षु हो सकता है। तभी उस बगेची से साधुओ की एक टोली भिक्षा मांगने निकली। वैसे तो बगेचियो में बहुत से सेठ दान करते है और उन्‍हे भिक्षा मांगने की जरूरत नहीं होती है परन्‍तु भिक्षा मांगना उनकी एक परंपरा है। इसलिए वो महीने में किसी दिन भिक्षा मांगने निकलते है। कुछ एक घरो में जाकर परंपंरा का निर्वाह करते है। उन साधुओ की टोली में भिक्षु मुस्‍कुराता हुआ चल रहा था। मै उसे देखकर दुखी हो रहा था। उसके चेहरे पर कोई शिकन और चिंता नहीं थी बल्कि वो मुझ से दुगुना खुश्‍ दिखाई दे रहा था। मै फिर भी सोच रहा था कि वो इतना खुश क्‍यों है। क्‍या वो पहले अभावो में जी रहा था। हो सकता है वो पहले कहीं अनाथाश्रम में रहा हो। वहां से भागकर आया और यहां उसे अच्‍छा लगने लगा हो। फिर भी ऐसा नहीं हो सकता है कि वो इन बंधनो में खुश रहे ।

मै दिन भर उलझन में रहा। मेरे चेहरे पर उलझन साफ देखी जा सकती थी। मेरे चेहरे पर तनाव व उलझन उतनी ही थी जितनी भिक्षु के चेहरे पर खुशी और आनंद। मेरे पिताजी ने मुझे देख लिया और मेरे चेहरे पर लिखे तनाव और उलझन को पढ लिया। पिता जी ने पूछा- क्या बात है। तो मैने सारी बात अपने पिताजी को बता दी। पिताजी मेरी बात सुनकर मुस्‍कुराये और कहा कि कल मै तुम्‍हारे साथ बगेची चलूंगा। कल हम भिक्षु से ही पूछ लेते है। मै क्‍या तुम खुद ही पूछ लेना।

अगले दिन मै अपने पिताजी के साथ बगेची गया। महंत जी साधना मे व्‍यस्‍त थे। दूसरे संत अध्‍ययन कर रहे थे। भिक्षु भी अध्‍ययन कर रहा था। पिताजी ने वहां बात की  तो उन्‍होने भिक्षु से बातचीत करने की अनुमति दे दी। मै भिक्षु के सामने चुपचाप बैठा था। खामोशी से उसे देखता रहा । भिक्षु भगवे वस्‍त्र पहने हुए चेहरे पर मुस्‍कान के साथ बैठा था। भिक्षु पहले बोल पडा – क्‍या बात है ब्रादर।

मैने पूछा – एक बात पूछूं ।

भिक्षु बोला- एक नहीं दस पूछो।

मैने अपना माथा खुजाया और बोला- तुम्‍हारी मुस्‍कान असली है।

भिक्षु मेरे प्रश्‍न पर फिर मुस्‍कुराया और बोला- सौ प्रतिशत खरी। तुम्‍हे क्‍या लगा कि मै झूठा मुस्‍कुरा रहा हूं।

नहीं। मै तो ऐसे ही पूछ रहा था। तुम्‍हे कभी दूसरे प्रकार के कपडे पहनने की ईच्‍छा नहीं होती।

वो फिर मुस्‍कुराय और बोला- ब्रादर। रंग बिरंगे कपडे क्‍यों पहनते है। खुशी के लिए। मुझे वैसे ही इतनी सार खुशी मिली हुई । रंग बिरंगे कपडे पहनने लगगूगां तो ये खुशी मै खो दूंगा।

भिक्षु के जवाब से मै पूरा संतुंष्‍ट नही् हुआ। फिर मैने अगला सवाल किया – तुम्‍हे कभी खेलने का मन नहीं होता।

इस बार फिर भिक्षु मुस्‍कुराया नहीं बल्कि हंसा । उसने कहा- यहां खेलने की पाबंदी थोडे ही है। मै  जब चाहे खेल सकता हूं। मै तुम्‍हारे साथ भी खेल सकता हूं। मुझे मना थोडे ही है परन्‍तु मै ज्ञान के साथ खेलता हूं। मुझे उसमे आनंद आता है। मै महंत जी के प्रवचनो मे खो जाता हूं। मुझे शास्‍त्रो में नयी नयी चीजे मिलती है। मेरी जिज्ञासा शांत होने के बाद बढती जाती है।

इस जवाब के बाद तो मेरे को लगा कि मेरे पास सवाल है ही नहीं । फिर भी मैं पूर्ण रूप से संतुष्‍ट नहीं था। मैने फिर पूछ लिया – तुम्‍हे इतनी खुशी मिलती कैसे है।

इस बार भिक्षु मंद मंद मुस्‍काया और बोला – यह तो यहां आने पर पता चलता है।यहां पर महंत जी शास्‍त्रो का ज्ञान देते है और फिर ध्‍यान करवाते है। उस परमात्‍मा को ध्‍यान करता हूं तो मुझे खुशी मिलती है। मै परमात्‍मा में खोया रहता हूं। मेरी खुशी का कारण भी यही है। इसके लिए अभ्‍यास करना पडता है। महंत जी के सानिध्‍य में मै इसका कठोर अभ्‍यास कर रहा हू। इसी अभ्‍यास से मुझे खुशी मिलती है ब्रादर।

इस जवाब का मेरे पास कोई जवाब नहीं थी। इस जवाब ने मेरे सारे सवालो के जवाब दे दिये। अब मेरे पास कोई सवाल नहीं था। मै भिक्षु को देखता रहा। मैने भिक्षु का प्रणाम किया। आज मेरे मन में भिक्षु के प्रति आदर भाव बढ गया। मै और पिता जी मंदिर के दर्शन कर वहां से निकल लिये। हमारे कानो में वेदमंत्रो की ध्‍वनियां पड रही थी।

Sunday, September 18, 2022

मनीष कुमार जोशी की कहानी - बर्थडे गिफ्ट

 


करीब छ: महीनो बाद वो अपने फार्म हाउस आया था। हाउस उसने शिमला के मकानो के डिजायन का बनवाया था। पगडंडियो पर खरपतवार उग आयी थी। पगडंडियो पर चलने में घास फूस आडे आ रही थी। उसकी पेंट घासफूस से पूरी तरह से खराब हो चुकी थी। खेत में बना हाउस पतथर और लकडी से बना था। पिछले दिनो अच्‍छी बारीश हुई थी। खेत लहलहा रहा था। मकान में पतथरो के बीच में हर पत्‍ते निकल आये थे। छत्‍त पर भी बहुत ख्‍रपतवार इक्‍टठी हो गयी थी। वो निकल कर बाहर लटक रही थी। इन दिनो धूप तेज होने से कुछ पत्तियां जल गयी थी। हरे पत्‍तो के बीच चली हुई टहनियां लटक रही थी। बारिश से इतनी हरियाली हुई कि हाउस के ताले पर भी हरि टहनियां आ गयी थी। चारो तरफ हरियाली होने के बावजूद वो थके मन से चल रहा था। उसका मन कहीं ओर था। पगडंडी पर उगी हुई घास फूस उसके मन को लौटाकर फार्म हाउस पर नहीं ला पायी। वो हर दो महीने में फार्म हाउस आ जाता है। पिछले साल शादी के बाद उसका यहां आना कम हुआ है। मुश्किल से एक दो बार आया है। वो भी आने के बाद रात को यहां नहीं रूका था। वो हाउस के पास आकर खडा हो गया। उसने पूरे हाउस पर एक नजर दौडाई। धूप आज तेज थी। उसके सिर पर सीधे पड रही थी। उसे गरम लग रही थी। उसके माथे पर पसीना आ गया था। धूप में पैदल चलने से पसीना आ ही जाता है। उसके जल्‍दी आता है। रिंकू भी कहती है कि उसे पसीने की बीमारी है। चलते है तो पसीना। खाते है तो पसीना। कुछ पीते है तो पसीना । कोई काम करते वक्‍त उसके माथे पर पसीना आ जाता है। उसका मन उलझाव में खोया हुआ था। उसने ताले की तरफ नहीं देखा। दीवार में उग आयी पत्तियो को तोडने लगा। हर बार तो उसके आने पर किसना दौडकर आ जाता है परन्‍तु आज वो अभी तक नहीं आया। उसे भी ख्‍याल नहीं आया कि किसना को यहां रखवाली के लिए रखा हुआ है। वो दीवार को देखता रहा। फिर उसे ख्‍याल आया चाबी तो उसके पास है। उसने जेब से चाबी निकाली और ताले में लगायी। ताले को खोलने में थोडी मशक्‍कत करनी पडी। थोडी कोशिश के बाद ताला खुल गया। छ- हीने से बंद घर में एक अजीब सी बदबू आ रही थी। घर के अंदर धूल ही धूल थी। वो अंदर चला गया। उसने किसना को आवाज भी नहीं दी। घर में घूसते ही एक कमरा है। उसने कमरे को खोला। कमरे में भी मिटटी जमी हुई थी। वो कमरे के अंदर गया। वहां आरामदायक कुर्सी खिडकी के पास थी। उसने अपनी जेब से रूमाल निकाला और कुर्सी पर से रूमाल से धूल हटाई। फिर खिडकी खोलकर उस आरामदायक कुर्सी पर बैठ गया। खिडकी से उसका हरा भरा खेत दिखाई दे रहा था। आराम दायक कुर्सी पर अपनी गर्दन पीछे कर कुर्सी को आगे पीछे हिला रहा था। मन में विचारो का सैलाब उमड रहा था। अंदर विचारो का सैलाब बाहर की शांति को भंग नहीं कर पा रहा था। यह जरूर था बाहर की शांति अंदर मची हुयी उमड घुमड को रोकने में विफल थी। 



उसे लग रहा था कि रिंकू ने ठीक नहीं किया। उसकी भावनाओ का ख्‍याल उसे रखना चाहिए था। वो उसका ख्‍याल रखता है। उसे भी भावनओ को समझना चाहिए था। अब वो वापिस घर नहीं जायेगा। फार्म हाउस में ही रहेगा। रिंकू उसकी छोटी छोटी जरूरतो का ख्‍याल नहीं रख सकती तो शादी करने का मतलब ही क्‍या था। अब उसे यहीं रहना है। रिकू नौकरी करती है। अपना पेट खुद पाल सकती है। मेरी जरूरत क्‍या है। यह ठीक है कि मुझे समय नहीं मिलता है परन्‍तु फिर मै उसका ख्‍याल रखता हुं। परन्‍तु वो। वो मेरे लिए रूमाल जैसी चीज की भी व्‍यवस्‍था नहीं कर सकती। रोज होता है । वो रूमाल मांगता है और रिंकू कहती है भूल गयी। जब उसकी रिंकू के लिए अहमियत ही नहीं है तो उसे साथ क्‍यों रहना है। दुनिया बहुत बडी है। वो तो अपनी जिंदगी इस फार्म हाउस पर बिता सकता है। विचारो का सैलाब तुफान की तरह चल रहा था।

थोडी देर में किसना दोडकर आ गया। साब माफ करना। मैने आपको देखा नहीं । वो हाथ जोडकर बोलने लगा।

नहीं कोई बात नहीं । पानी लेकर आ।

अभी लाया।

किसना दौडकर पानी लेकर आया। उसने पानी पीया और थोडी देर तक कुर्सी पर टहला और खडा हो गया। उसने किसना से कहा कि आज से वो यहीं रहेगा। उसके हिसाब से ही सब कुछ ठीक कर देना। किसना ने पूछा मैम साहब भी आयेगी क्‍या। उसने मना कर दिया और कह दिया अब वो अकेले ही यहां रहेंगे। किसना कुछ बोला नहीं और घर की सफाई में लग गया।

वो खेत में आ गया। खेत के बीच मे चलता रहा। खेत में फसल उसके कमर तक आ गयी थी। चलते हुए वो टहनियो को अपने हाथो से किनारे कर रहा था। मन में विचारो की रेल अभी भी सरपट दौड रही थी। रिंकू के लिए उसने कितना कुछ किया। शादी के बाद से ही उसने रिंकू की भावनाओ का सम्‍मान किया है और वो उसे लज्जित करने का एक भी मौका नहीं छोडती है। आज उसने एक रूमाल की बात पर बखेडा खडा कर दिया। उसे समझाने के लिए उसके पास दिमाग नहीं है। वो तो अब सब कुछ छोड आया है। यही फार्म हाउस उसका घर है। अब वो संभाल लेगी अपना घर। एक बादल का टुकडा आसमान में आ गया था। उससे थोडी बहुत छाया खेत में हो गयी थी। वो चलते चलते किसना की झोंपडी तक पहुंच गया था। किसना की झौपडी के बाहर पेड के नीचे खाट बिछी थी और पास में ही भैंस बंधी हुई थी। वो खाट पर बैठकर लेट गया। पेड पर चिडियाऐं चहचहा रही थी। सभी चिडियाओ के एक साथ चहचहाने से शोर जैसा महसूस हो रहा था परन्‍तु उसे कुछ महसूस नहीं हो रहा था। उसके मन में तो रिंकू के प्रति गुस्‍सा निकल रहा था। आज जैसे उसने ठान लिया था कि वो फार्म हाउस में ही रहेगा। वो रिंकू को बताकर भी नहीं आया था। रिुकू काम पर चली गयी थी। वो इधर चला आया। सुबह झगडे के बाद रिंकू का फोन भी नहीं आया था। उसने भी फोन करने की जरूरत नहीं समझी थी।


किसना घर साफ करने के बाद आकर बोला- साहब । खाना लगा दूं क्‍या। बाजरे की रोटी और सब्‍जी है। उसने कुछ देर सोचा फिर बोला ले आओ। आज सुबह हो झगडे के बाद खाना भी खाकर नहीं आया था। किसना एक थाली में बाजरे की रोटी और सब्‍जी ले आया था। थाली कुछ देर उसके आगे पडी रही। किसना के कहने पर उसने एक कौर तोडा । धीरे धीरे अपने मुंह तक ले गया। उसका खाने का मन नहीं था। उसने आधी रोटी खायी और आगे खाने से मना कर दिया। अब शाम होने लगी थी। सूरज डूब चुका था। पक्षी लौटकर आने लगे थे। वो अभी तक खाट पर ही बैठा था। अब उठकर कमरे की ओर जाने लगा। उस खाट से कमरे की दूरी आधा किमी होगी परन्‍तु उसके लिए वो कई किमी दूर थी। वो धीरे धीरे जा रहा था। हाथ से बाजरे की फलियों को हटाते हुए। एक बार फिर वो घर के आकर खडा हो गया। पत्‍थरो से निकल पत्तियों को उखाडने लगा। फिर धीमे कदमो से अपने कमरे में गया। कमरे में कलैण्‍डर लटक रहा था।हवा तेज हो गयी थी। तेज हवा के झौंको से कलैण्‍डर के पन्‍ने फडफडा रहे थे। पहले उसने सोचा कि खिडकी बंद कर दूं परन्‍तु फिर उसने अपना विचार बदल लिया। कलैण्‍डर अब भी फडफडा रहा था। वो कलैण्‍डर के पास गया और कलैण्‍डर को उतार लिया। कलैण्‍डर को उतार कर उपर रखने लगा तो उसने कलैण्‍डर के महीने  के पन्‍ने को बदल दिया। उसने देखा आज की तारीख पर गोल किया हुआ है। वो महत्‍वपूर्ण दिनो को साल के पहले दिन ही गोल कर देता है। आज उसने याद नहीं आ रहा था कि क्‍यों गोल किया हुआ है। उसने अपने दिमाग पर जोर डाला परन्‍तु उसे याद नहीं आ रहा था। फिर अचानक से याद आया। आज तो रिंकू का बर्थडे है। बर्थ डे का विचार आते ही पहले से चल रही विचारो की रेल रूक गयी। जैसे विचारो की रेल का स्‍टेशन आ गया हो और दूसरी रेल चलने की तैयार हो। उसने अपना बैग उठाया और घर से निकल गया। किसना दौडता हुआ आया। उसने पूछा साहब वापिस आ रहे हो क्‍या। वो हाथो से मना करते हुए गाडी में बैठ गया। गाडी तेजी से दौडाता हुआ शहर में आ गया। उसने अपनी गाडी ज्‍वेलरी शॉप के पास पार्क की और ज्‍वेलरी शॉप में चढ गया। रिंकू पिछले एक बरस से अंगूठी मांग रही थी। उसने ज्‍वेलरी शॉप से एक अंगुठी खरीदी। हीरे की अंगुठी। रिंकू को हीरे की अंगुठी पसंद थी। उसने अंगुठी पैक करवाई और शॉप की सीढिया उतरने लगा। उसकी नजर ज्‍वेलरी शॉप के ठीक सामने गयी जहां से रिंकू उतर रही थी। सामने जैण्‍टस गिफट का शो रूम था। रिंकू शौ रूम की सीढिया उतर रही थी। रिंकू ने उसको देखा नहीं था। दोनो उतरकर बिलकुल एक दूसरे के सामने आ गये। उसके हाथ में रिंग का शो केस था तो रिंकू के हाथ में रूमालो का एक बंच था। दोनो ने एक दूसरे को देखा । दोनो जोर से मुस्‍कुराये । उसने रिंकू का हाथ पकडा और गाडी में बैठ गये। रात चांदनी थी। चांदनी राते में गाडी चमकते हुए हॉर्न बजाती हुई घर की तरफ जा रही थी।

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Sunday, September 11, 2022

असली कबूतर

 






मेरे पापा मेरे लिए किसी हीरो से कम नहीं थे। वे बचपन में मुझे अपनी मास्‍टरी के किस्‍से सुनाया करते थे। वे किसी तरह से गांवो में पढाने जाया करते थे जहां उन्‍हे कई मील धोरो में पैदल चलना पडता था। गांव वाले किसी प्रकार उनकी सेवा करते थे। गांव में उनकी सबसे ज्‍यादा ईज्‍जत होती थी। गांव के लोग राय लेने के लिए उनके पास आते थे। एक बार गांव जाते थे तो एक सप्‍ताह बाद ही उनका आना होता था। पापा बताते थे कि वे जिस गांव में पढाने जाते थे उस गांव में पानी की बहुत कमी थी। पीने के लिए भी मुश्किल से पानी मिल पाता था। पहली बार वे उस गांव गये थे तो पीने का पानी कहीं नही मिला। एक हर एक आदमी छाछ का लौटा ले आता परन्‍तु पानी कोई नहीं लाया । फिर शाम को सरपंच ने पानी का घडा भर कर दिया। पापा काफी सालो तक गांव में पढाते रहे । फिर शहर में नौक्‍री करने लग गये। पढाने का शौक उन्‍हे फिर भी था। शाम को बच्‍चे उनके पास पढने आते थे। वे बच्‍चो से फीस नहीं लेते थे। वो अपनी सेवाऐ ऐसे ही देते थे। उनका मानना था कि विद्या खर्च करने से बढती है। एक बार शहर के एक अमीर व्‍यक्ति ने अपने बच्‍चे को अलग से पढाने के लिए बहुत सारी फीस का आफर दिया। पापा ने उसे साफ मना कर दिया और कह दिया कि पढाई में कोई अमीर और गरीब नहीं होता है। मेरे लिए सारे बच्‍चे बराबर है। उन्‍हाने अमीर व्‍यक्ति को वापिस लौटा दिया। 



पापा के पढाये बच्‍चे जब अच्‍छे नंबरो से पास होने लगे तो पढने आने वाले बच्‍चो की भीड बढ गयी। फिर पापा ने शाम का स्‍कूल खोल लिया। वहां पढाने के लिए दूसरे मास्‍टरो को भी रख लिया। मै उस समय दसवीं में पढता था। मै भी शाम की स्‍कूल में जाने लगा। वहां पढाई को रोचक किस्‍सो के साथ पढाया जाता। हमे पढने में बहुत रूचि आती। बच्‍चे कभी भी कोई क्‍लास मिस नहीं करते । मैं और राजेश दोनो शाम की स्‍कूल में पढने जाते। राजेश मेरा मित्र था। वो मेरे पापा से प्रभावित भी था। वो शुरू से ही पापा के पास पढने के लिए आता था। उसके घर में समस्‍याऐ थी परन्‍तु पापा कभी उसे उदास नहीं होने देते और उसका मन पढाई में लग जाता । शाम की स्‍कूल खुली तो वो सबसे ज्‍यादा खुश हुआ। मेरे साथ वो शाम को स्‍कूल में आने लगा। हम दोनो स्‍कूल में खूब मन लगाकर पढते और क्‍लास में बतायी गयी बात पर खूब चर्चा करते।



एक बार क्‍लास में पापा पशु पक्षियो के बारे में बता रहे थे। पापा  बता रहे थे कि पशु प‍क्षी किसी प्रकार किसी को कोई तकलीफ नहीं देते । कोई मानव उसे प्रेम करता है तो वो भी उसी प्रेम से उसका जवाब देते है। पापा ने बताया किस प्रकार लोग कुत्‍ता पालते है तो कुत्‍ता वफादारी से घर की रखवाली करता है। उसी प्रकार कोई पशु या पक्षी जिसको पालते है तो वो भी अपने मालिक के प्रति प्रेम दर्शाता है। पापा ने बताया कि पशु पक्षियो को कभी भी बांधकर या पिंजरे में नहीं रखना चाहिए। उन्‍हे खुले घूमते रहने देना चाहिए। कुत्‍ता पालते है तो उसे बांधना नहीं चाहिए और पक्षी पालते है तो उन्‍हे पिंजरे में नहीं रखना चाहिए। राजेश ने पूछ लिया – पिंजरे में नहीं रखेगे तो पक्षी उड जायेंगे। इस पर पापा ने बताया कि यदि हम उसे वास्‍तव में प्रेम करते है तो वो हमारे प्रेम के कारण् कहीं नहीं जायेगे। पापा ने एक जीवंत उदाहरण देकर अपनी बात को समझाया। उन्‍होने सफेत कपोतो की बात बतायी। पापा ने पूछा आप सफेत कपोत के बारे मे जानते हो। तो सभी ने ना में अपनी गर्दन हिलायी। फिर पापा ने कहा जिसे आप सफेद कबूतर या असली कबूतर कहते हो वहीं सफेद कपोत होते है। हमारे यहां सफेद कपोत को असली कबूतर के नाम से जाना जाता हे। वे शहर में दिखाई नहीं देते है। उनको चिडियाघर में या जंगलो में देखा जा सकता है। पापा ने बताया कि यहीं जस्‍सूसर दरवाजे के अंदर एक व्‍यक्ति के पास दो असली कबूतर है। उसने दोनो असली कबूतर खुले में रखे हुए है। वो उसके घर में ही घूमते रहते है। शाम को वो छत्‍त पर अपने हाथो से उनको आसमान में छोडता है तो वे आसमान में उडते है और एक घंटे तक उडकर वापिस वो उसी छत्‍त पर लौट आते है। राजेश ने कहा – पक्षी उडने के बाद लौटकर नहीं आते है। पापा ने कहा कभी तुम शाम को उधर जाओ तो देखकर आना किस प्रकार वो लौटते है।



असली कबूतर की क्‍लास हम लोगो को बहुत पसंद आयी। राजेश तो जैसे पापा की बातो में खो गया। वो असली कबूतर की कई प्रकार से कल्‍पनाऐ करता। शाम को अपनी छत्‍त पर खडा हो जाता और असली कबूतरो का इंतजार करता। आसमान में कोई सफेद सा पक्षी दिखाई देता तो मूझे कहता तो देखो वो असली कबूतर जा रहे है। मै आसमान की ओर देखकर मुस्‍कुरा देता। जस्‍सूसर दरवाजा हमारे घर से दूर था इसलिए हमे वहां अकेले जाने की इजाजत नहीं थी। मै और राजेश कभी सोचते की पापा के साथ जायेगे तो पापा को समय नहीं मिलता। राजेश् के पापा रात को देर से आते। हम यह सोचते ही रहते कि किस प्रकार वो व्‍यक्ति असली कबूतरो को पालता होगा। कबूतर उडकर कैसे वापिस उसके पास लौट आते है। राजेश सोचता इंसान ही इंसान का कहना नहीं मानता तो पक्षी इंसान को इतना कैसे मानते है। राजेश की बुआ कॉलेज में पढती थी उस समय घर छोड कर गयी थी परन्‍तु अभी तक लौटकर नहीं आयी। राजेश के पापा ने उसे बहुत ढुंढा। उसके पापा दूसरे शहरो में भी गये परन्‍तु बुआ कुछ पता नहीं चला। कई दिनो तक पापा उदास रहते थे। उस समय राजेश छोटा ही था। उसके दिमाग से बुआ की बात अभी तक नहीं गयी। असली कबूतरो के जिक्र से उसके मन में फिर से बुआ की याद आ गयी । वो मुझे रोज कहता कि हम असली कबूतर देखने चले । उसकी रूचि असली कबूतर देखने से ज्‍यादा उसके लौटकर आने को देखने की थी। कैसे उडे हुए पक्षी लौटकर कैसे आते है। वापिस उसी जगह पर जहां उन्‍हे कैद में रखा गया है। हम दोनो रोज उस ओर जाने की जुगत भिडाते लेकिन जा नहीं पाते। शाम को स्‍कूल का समय हो जाता तो स्‍कूल आ जाते ।

एक बार पापा किसी काम से शहर से बाहर गये हुए थे तो मै अपनी मम्‍मी से परमिशन लेकर राजेश के साथ जस्‍सूसर दरवाजे के अंदर गया। शाम को वक्‍त था। हमे नहीं मालमू था कि असली कबूतर किस घर मे है। हमने आस पास पूछा तो किसी ने ईशारा करके सामने वाला घर बताया। हम उस घर की ओर जाने लगे तो उस घर के छत्‍त पर एक व्‍यक्ति दोनो हाथे में असली कबूतर लिये खडा था। बिलकुल सफेद कबूतर थे। जैसा पापा ने बताया था वैसे ही सफेद थे। हम उन कबूतरो को देखकर रोमांचित हो रहे थे। उस व्‍यक्ति ने कबूतरो को हाथ मे लेकर अपने छत्‍त्‍ के दो चक्‍कर लगाये। फिर अपने दोनो हाथ उपर किए और दोनो असली कबूतर आसमान में छोड दिये। वो दोनो असली कबूतर आसमान में उडते गये। मै और राजेश् बहुत देर तक आसमान में उन सफेद कपोतो को देखते रहे और थोडी देर में वो सफेद कपोत आसमान में दिखने बंद हो गये। मैने राजेश को वापिस चलने के लिए कहा परन्‍तु राजेश ने कह दिया असली कबूतरो के वापिस आने तक हम यहीं है। हम वहीं एक किनारे बैठ गये। धीरे धीरे शाम गहराने लगी। सूरज छिप चुका था। चिडियाओ की चहचहाट  बढ गयी। वो व्‍यक्ति फिर से छत्‍त पर आ गया। हमने आसमान में देखा असली कबूतर फिर आसमान में नजर आने लगे। धीरे धीरे वो उडते हुए नीचे आने लगे। धीरे धीरे वो वापिस उस व्‍यक्ति की छत्‍त पर आ गये। वो दोनो नीचे आकर उस व्‍यक्ति के कंधो पर बैठ गये। हम दोनो यह दश्‍य देखकर बहुत रोमांचित हुए। राजेश बहुत ज्‍यादा रोमांचित था। फिर हम घर लौट आये। मैने अपनी मम्‍मी को बडे कौतूहल से यह किस्‍सा सुनाया।

अगले दिन शाम की स्‍कूल में यही किस्‍सा चलता रहा कि हमने किस प्रकार असली कबूतर देखे और वो किस प्रकार उडकर लौट आये। आज पापा की क्‍लास आयी तो पापा क्‍लास में आये। आज पापा ने वापिस पशु पक्षियो का किस्‍सा छेडा। पापा ने राजेश् से पूछा असली कबूतर देखकर कैसा लगा। उसने रोमांचित होकर वो किस्‍सा सुनाया। फिर उसने एक सवाल पूछ लिया। इस सवाल का जवाब पापा भी नहीं दे पाये। उसने पूछ लिया- असली कबूतर वापिस शाम को अपने मालिक के पास लौट आते है तो क्‍या इंसान वापिस लौटकर आता है क्‍या। इंसान अपना घर छोडकर जाने के बाद क्‍यो नहीं लौटता है। उसको गली गली आवाज देने के बाद भी वो नहीं लौटता है। सर इंसान घर छोडने के बाद क्‍यो नहीं लौटता है। बताइये सर जो इंसान घर छोडकर चला गया है वो क्‍यो नहीं लौटता है। यह कहते हुए राजेश के गालो पर आंसू लुढक गये। पापा कुछ देर खडे राजेश को देखते रहे । फिर क्‍लास के दरवाजे पर खडे होकर आसमान को देखने लगे। मैने राजेश के कंधे पर हाथ रखकर उसे नीचे बैठाया। क्‍लास में बिलकुल शांति थी।

Sunday, August 21, 2022

लूण जी का गैरेज


आज से कई साल पहले संचार का माध्‍यम डाक था। हम दूर बैठे दोस्‍तो, रिश्‍तेदारो का हाल चिटठी पत्री के जरिये ही जानते थे। मै अपने डाक का पत्‍ता यही लिखता था कि लूणजी के गैरेज के पीछे वाली गली। लूण जी का गैरेज हमारे लिए पत्‍ते का निशान ही नहीं था बल्कि उसके इर्दगिर्द हमारी दुनिया घूमती थी। स्‍कूल से कोई दोस्‍त मिलने आता तो मै यही कहता था कि लूण जी के गैरेज पर आकर किसी को पूछ लेना हर कोई मेरा घर बता देगा। मां भी कभी कभार कह देती कि तेरे पापा देर से आयेगे तु दौडकर लूण जी के गैरेज से सब्‍जी ले आ। मै दौडकर लूण जी के गैरेज से सब्‍जी ले आता। हम बच्‍चे गली में आंख मिचौली खेलते तो कोई बच्‍चा छिपने के लिए लूण जी के गैरेज चला जाता और फिर वह हमे मिलता ही नहीं। फिर वही जीत जाता। आंख मिचौली खेलते समय हमे यह नियम बनाना पडता कि कोई भी लूण जी के गैरेज तक छिपने के लिए नहीं जायेगा। वैसे तो पत्‍ते की निशानी के लिए हमारे यहां दूसरी बडी चीजे भी थी परन्‍तु पत्‍ते की निशानी के लिए लोग लूण जी का गैरेज ही इस्‍तेमाल करते थे। हमारे यहां शहर का प्रसिद्ध जस्‍सूसर दरवाजा भी है फिर भी लोग पत्‍ते के लिए लूणजी के गैरेज का ही इस्‍तेमाल करते थे। एक बार मेरे मामाजी का लडका खो गया था। मेरे मामा जी गंगाशहर में रहा करते थे। उस समय मोबाईल नही थे। ढुढने के लिए स्‍वयं ही निकलना पडता था। मेरे पापाजी, चाचाजी और मामाजी ने साईकिल पर पूरा शहर छान मारा लेकिन मामाजी का लडका कहीं नहीं मिला। फिर थक हारकर पापाजी ने कहा लूण जी के गैरेज चलते है वहां कोई रास्‍ता निकलेगा। पापाजी और मामाजी लूण जी के गैरेज गये तो वहां वो एक दुकान पर खडा मिल गया। लूण जी के गैरेज पर भीड इतनी रहती थी कि कोई अपनी खोयी हुई चीज ढुंढने वहां आ जाता था। 

लूण जी का गैरेज दरअसल हमारे लिए बहुत महत्‍वपूर्ण स्‍थान था। आपके दिमाग में आ रहा होगा कि वो कोई गैरेज होगा जहां बहुत सारी गाडिया खडी रहती होगी यहां कोई गाडिया ठीक करने का कारखाना होगा जहां लोग दूर दूर से गाडी ठीक कराने आते होगे। यह भी सोच लिया होगा कि गाडियो के स्‍पयेर पार्टस वहां मिलते होगें। आप यह भी सोच सकते है कि गाडिया रूकने का स्‍टोपेज होगा जहां गाडिया और टेक्सियां आकर रूकती होगी। मै जब छोटा था तो मेरे को भी पता नहीं था कि उस जगह का नाम लूण जी का गैरेज क्‍यो है। मै भी और लोगो की तरह कहने लग गया लूण जी का गैरेज। मेरी मां कभी बडे बाजार जाती तो तांगा लूणजी के गैरेज से ही करती। बडे बाजार से वापसी का तांगा करती तो तांगे वाले को यही कहती कि लूण जी का गैरेज छोड देना। लूण जी गैरेज आप जैसा सोच रहे वैसा बिलकुल भी नहीं था। हमारे घर से थोडी दूर पर एक चौराहा था जहां से एक सडक सीधे पूगल रोड तक जाती थी। वह सडक शहर के दूर स्‍थानो पर जाने के लिए संपर्क सडक थी। सडक के दोनो और सब्‍जी के ठेले, पान की दुकान और कई छोटी छोटी दुकाने लगी रहती थी। सडक के बायीं ओर दुकानो के पीछे था लूण जी का गैरेज। गैरेज में मैने कभी कोई गाडी खडी नहीं देखी। जगह ऐसी थी कि कभी कोई गाडी वहां खडी हो ही नहीं सकती। दुकान के पीछे एक टूटी फुटी दीवार थी जिसको लोगो ने सार्वजनिक मुत्रालय बना रखा था। दीवार की सीमेंट लगभग उतर चुकी थी। ईंटे दिखाई दे रही थी। नीचे कई ईंटे तो टुट गयी थी। वहां बडे बडे छेद हो गये था जिनसे लूण जी के गैरेज के अंदर झांक सकते थे। लेकिन लूण जी के गैरेज में झांकने की जरूरत ही नहीं थी। आगे की तरफ की दीवार थी बाकि दोनो ओर की दीवार टूट चुकी थी। लूण जी के गैरेज में एक पूराना पेड था। जिस पर खेलते खेलते हम चढ जाते थे। कई बार बैर तोड्ने के लिए हम किसी को चढा देते थे। पूगल जाने वाली एक प्राइवेट बस वहां रूकती थी। वहां के दुकानदारो की अधिकांश बिक्री इसी बस से होती थी। गांव के लोग शहरो की चीजे यहीं से खरीदते थे। बस ज्‍योंही लूण जी के गैरेज पर आकर रूकती। दुकानदार हाथ में चने के पैकेट, टाफी के पैकेट, ठंडे की बोतले लेकर बस में चढ जाते थे।

पूगल की बस वहां आकर रूकती तो लूण जी के गैरेज की रौनक बढ जाती। बस से यात्री चाय पानी पीने के लिए उतरते । दुकानदारो की आवाजे शुरू हो जाती। पैकेट दो रूपया------- दो रूपया-------। आज का अखबार------- आज का अखबार । मै स्‍कूल से आता तो कई बार वहां खडा हो जाता और यह सब देखता। एक जवान सा बच्‍चा हाथ में चने के दो चार पैकेट लिए घूमता। बस में भी जाता। वह कुछ बोलता नहीं था। कोई उससे पूछता तो ईशारे से ही बता देता। वो बस आने पर दो चार पेकेट बेच लेता। उसका वहां खोखा था जिसमें चने और मूंगफली बेचता था। मै एक बार उससे मूंगफली लेने गया तो मेरे को पता चला कि वो बोल नहीं सकता है। वो बोल भले नहीं सकता था परन्‍तु वह सुंदर बहुत था। सुबह उसके पिताजी दुकान पर बैठते थे और दोपहर बाद वो बैठता था। दुकान में एक रेडियो रखा हुआ था जिस पर  दोपहर में आल इण्डिया रेडियो की उर्दू सर्विस चलती थी। इतनी भीड भाड में रेडियो के गाने उसके खोखे पर ही साफ सुनाई नहीं देते थे। परन्‍तु दोपहर को उस रेडियो् पर आल इण्डिया रेडियो की उर्दू सर्विस जरूर बजती।

लूण जी के गैरेज के थोडा आगे ही उसका खोखा लगा था। बिलकुल सडक के किनारे पर । उसका खोखा मौके पर लगा था। बस उसके खोखे के आगे ही आकर रूकती। मेरे को कभी चना या मूगफली लेनी होती तो मै उसी लडके की दुकान से लेता। हम खेलते हुए उसके पास पहुंच जाते तो वो मुस्‍कुरा देता। हम भी उसके ईशारे समझने लगे थे। पानी के लिए वो खोखे पर बादला रखता था। बादला खाली होता तो हम लोग उसे भरकर ला देते थे। लूण जी के गैरेज पर दोपहर में भीड बहुत होती थी क्‍योंकि दोपहर में ही पूगल वाली बस आकर रूकती थी। शाम को सब्जियो के ठेलो पर भीड होती थी। सडक के किनारे दुकाने लगी होने से सडक बहुत छोटी हो गयी थी। सडक पर वाहनो के आने जाने और पैदल जाने वालो के लिए बहुत कम जगह बचती थी। शाम को उस लडके की दुकान पर भीड नहीं होती थी तो कई हम बच्‍चे उसकी दुकान पर चले जाते । हम उस लडके से बाते करते तो वो सुनता रहता। कोई जवाब नहीं देता। कोई बात उसे पसंद आती तो वो मुस्‍कुरा देता। कुछ हम लोग पूछते तो ईशारे से बता देता। वो हमारे बहुत घनिष्‍ठ हो गया था या यों कहे हम बच्‍चो का दोस्‍त बन गया था। सडक पर कोई वाहन निकलता तो वो ईशारे से हमे किनारे होने के लिए कहता। मैने उसको अपने बर्थडे पर बुलाया था परन्‍तु वो नहीं आया। उसने ईशारो में बताया था कि वो खोखा छोडकर नहीं आ सकता । हम लोगो को उसका बर्थडे भी पता लग गया था। कल ही था उसका बर्थ डे । हम सब लोग मिलकर उसे गिफट देने वाले थे। हम उसके लिए एक रेडियो लाये थे। नया रेडियो। उसका रेडियो पूराना हो चुका था। हम बच्‍चो में बहुत उत्‍साह था कि हम उसे बर्थ डे पर रेडियो गिफट मे देगे। हमारे लिए अब अगले दिन की दोपहर का इंतजार हो रहा था। हम सोच रहे थे कि हम ज्‍योहि रेडियो उसे गिफट मे देंगे। उसकी आंखो में चमक आ जायेगी।

अगली सुबह हम स्‍कूल गये। स्‍कूल से आकर हम रेडियो लेकर सीधे लूणजी के गैरेज गये। वहां कुछ नहीं था। कोई दुकान और खोखा नहीं था। सडक बिलकुल खाली थी। एक खडे लोग बात कर रहे थे। सरकार ने सभी खोखो और दुकानो को हटा दिया। सरकार सडक चौडी करेगी। हम गिफट हाथ में लिये थे। उस लडके के खोखे वाली जगह देख रहे थे। अब वहां खोखा नहीं था । सामने लूण जी का गैरेज दिखाई दे रहा था।

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Sunday, July 31, 2022

धुली हुई धूप

 

सावन और भादो में धूप धुली हुई होती है। बिलकुल सफेद और चमकती हुयी। बरसात के दिनो में हम घर से बाहर बाजार में आते है तो सडक पर इकटठे हुए थोडे से पानी पर धूप गिरती है तो बहुत सारी चमक पैदा कर देती है। उसकी चमक सीधे हमारी आंखो पर आती है। आंखे चूंधियाने लगती है। बरसात से गीली हुई सडक पर गिरी हुई धूप सडक पर चांदी की परत सा अहसास कराती है। मेरे घर से कुछ दूर निकलते ही बाजार है। बाजार में दुकानो के आगे कई तरह के ठेले लाईन से लगे रहते है। इनमें ज्‍यादातर ठेले खाने पीने की चीजो के होते है। हर ठेले का अपना स्‍थान होता है परन्‍तु होते सारे एक पंक्ति मे है। उनके ठेलो पर खाने पीने की चीजो के नीचे फॅाईल पेपर लगा होता है। इन दिनो इन पर धूप गिरने से ऐसा लगता है कि सबने खाने पीने की चीजो के नीचे कोई बडी सी जलती हुई टार्च रख दी हो। यहां सडक पर आपको धूप की सफेदी दिखाई नहीं देती है। यहां पर आपको धूप चीजो को पॉलिश कर चमकाती हुई दिखती है। आप थोडा और आगे जाओ जहां सडक बिलकुल साफ हो। जहां बिलकुल भी पानी न हो। वहां जब इन दिनो धूप गिरती है तो आपकेा बिलकुल सफेद और धुली हुई धूप दिखाई देती है। इतनी साफ और सफेद धूप आपको और किसी मौसम मे नहीं मिलेगी1 कुछ देर जमीन पर गिरी होने के बाज ज्‍यो ही मैली होने लगती है वह फिर बादलो के पीछे चली जाती है। बादलो में धुल कर फिर जमीन पर आकर फैल जाती है।

सावन और भादो मे धूप का आना जाता लगा रहता है। एक क्षण के लिए धूप होती है और अगले ही क्षण छाया। मुझे याद आता है कि जब में बिलकुल छोटा था। अपने बचपन में। मै कोई दस बारह साल का रहा होंउंगा। सावन के दिनो में मै मां के साथ हर सोमवार को मेले जाया करता था। मारकण्‍डेश्‍वर महादेव मंदिर परिसर में सावन के प्रत्‍येक सोमवार मेला लगता था। शायद अब भी लगता है। हमारे घर से 5 से 7 किलोमीटर दूर पडता है। मै मां के साथ पैदल मंदिर तक जाता था। रास्‍ते में मुझे दूर धूप दिखाई देती थी। हम लोग छांव मे चल रहे होते । मेरे लिए आश्‍चर्य की बात होती कि दूर सामने धूप है और जहां हम चल रहे है वहां छाया। मां का ईशारा पाकर मै दौडकर धूप में जाता परन्‍तु मै जब धूप में पहुंचता तो धूप पीछे चली जाती । मेरे लिए यह खेल हो जाता। सावन भादो में धूप ऐसी ही आंख मिचौली करती है।


आफिस में काम करते करते जब थक जाता हूं तो नयी उर्जा भरने के लिए मै बाहर आकर खडा हो जाता हूं। बाहर पोर्च में लगी कुर्सियो पर गांव के बुढे लोग ऊंघ रहे होते है। बिलकुल सफेद कपडो में। मै बादलो को देखकर वहां खडा हो जाता हूं। फिर थोडी देर में बादलो की ओट से सूरज निकल कर आता है। इस समय जो धूप अपने शरीर पर पडती है तो वो जलाती नहीं है। गर्मियो में हमारे शरीर पर धूप पडती है जो शरीर को जला देती है। शरीर को सेकने लगती है। सावन भादो की धूप ठंड मिला हुआ ताप देती है। हमारी देह पर धूप गिरती है तो गरम तो लगता है परन्‍तु देह अंदर से शीतल होती है। इस कारण धूप में खडे रह सकते है। सर्दी और गर्मी की बीच की धूप होती है ये। यह एक दिव्‍य अहसास होता है जो आप इस धूप मे खडे रहकर ही महसूस कर सकते हो।

सावन भादो के दिनो मे ही मै एक बार अपने मित्र के खेत गया। उसके खेतो में बहुत से पेड भी लगे थे। बरसात के पानी से पेडो के पत्‍तो पर एक दो बूंद पानी रह जाता है। जब इन पर धूप गिरती है तो ऐसा लगता है कि इन पत्‍तो पर सफेद हीरे के नग रखे है। इस समय धूप गिरने से रेत के धारे सोने जैसे चमकते है। बरसात के बाद गीले हुए धोरो पर सफेद धूप गिरती है तो अहसास होता है कि कुदरत ने सारी जमीन पर सोने की परत बिछा दी है। यह कुदरत का करिश्‍मा है कि सडको पर यह धूप चांदी का अहसास कराती है वहीं धोरो पर सोने का। धूप स्‍वयं होती है बिलकुल सफेद। कोई रंग नहीं । कोई आकार नहीं । बिलकुल धुली हुई। जब यह मनुष्‍यो के चेहरो पर गिरती है तो चेहरो पर मुसकुराहट ला देती है। एक बारगी ताजगी भर देती है। यह धूप धुल कर जो आती है। कुदरत की धुली हुई धूप। सब कुछ धुल जाने का अहसास कराती हुई।

Sunday, July 24, 2022

कहानी - हुक्‍म का गुलाम




वह एक बहुत लंबा पुल था परन्‍तु संकरा था। संकरा होने के बावजूद खूबसूरत था। पुल पर विन्‍टेज रोड लाईटे लगी थी। पुल के बीचो बीच किनारे पर एक रेस्‍टोरेंट था। पुल पर कोई रेस्‍टोरेंट होता नहीं है। परन्‍तु इस पुल के किनारे रास्‍ता बनाकर बनाया हुआ था। पुल के देानेा ओर जगह बहुत कम छोडी हुई थी। दोनो ओर मकान और दुकान पुल के बिलकुल पास थी। अनुराग पुल पर खडा था। वह वहां  खडा इंतजार कर रहा था। पुल के सामने उपर पूरा आसमान दिखाई देता था। नीले आसमान पर एक बडा सा बादल का टुकडा आया हुआ था। बहुत सुंदर द़श्‍य दिखाई दे रहा था। वो खडा खडा नीचे पटरियो को देख रहा था। शाम का वक्‍त था सूरज भी ढल रहा था। पुल से सूरज पूरा ढलता हुआ दिखाई देता है। इतनी अच्‍छी शाम का लुत्‍फ उठाने लोग इस पुल पर आते थे। पुल पर शाम को आवागमन रहता है परन्‍तु आज छुटटी का दिन होने से आवागमन कम था। पास के लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे दो चार लड्के खडे थे। वे सिगरेट पीते हुए धुंआ छोड रहे थे। शाम की धूप में धूंऐ के छल्‍ले मेरे उपर से निकल रहे थे। वो एक दो कस लगाते और जोर जोर से ठहठहाकर हंसते थे। उसका ध्‍यान उन पर बिलकुल नहीं था। उसकी निगाहे तो उसके आने पर थी । लडके जिस लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे खडे थे वह रेस्‍टोरेंट से थोडी दूरी पर था। लडके किसी को तंग नहीं कर रहे थे परन्‍तु चारो एक साथ सिगरेट पी रहे थे उससे बहुत सारा धुंआ हवा में उडता हुआ निकल रहा था। उन चारो में एक हैट पहनी हुयी थी। 

लडके जिस लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे खडे थे। उनके ठहाके लगाने से उसका ध्‍यान उस लैम्प पोस्‍ट पर जा रहा था। लैम्‍प पोस्‍ट से उसे याद आया कि उसने शादी से पहले यहीं उसका इंतजार किया था। उसने यहीं खडा रहकर उसका इंतजार किया था। वह बहुत देर से आयी थी। वो जब देर से आने का कारण बता रही थी तो रेल बहुत जोर से हॉर्न बजाते हुए पुल के बिलकुल नीचे से निकली। वो बोलती रही अनुराग को कुछ सुनाई नही दिया। रेल के गुजरने के बाद वो चुप हो गयी। उसने अनुराग की तरफ देखा फिर वो जोर से हंस पडी। उसकी हंसी उस नीले आसमान मे फैल गयी। अनुराग को अपने लिए वो परफेक्‍ट लगी। अनुराग ने उसी समय उससे शादी करने का फैसला कर लिया था।


रेस्‍टोरेंट पर कांच का दरवाजा था। बाहर की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती थी। रेस्‍टोरेंट का मैनेजर हाथ में चाय का कप लिए रेस्‍टोरेंट से बाहर आया। चाय से धुआं निकल रहा था। धुआं मैनेजर के चेहरे के आगे निकल हुए जा रहा था। मैनेजर ने लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे खडे लडको पर निगाहे डाली। लडको की ठहाको की आवाज धीमी हो गयी थी। मैनेजर के लगतार देखने से लडके वहां से चल दिये। अब सभी लैम्‍प पोस्‍ट अब खाली थे सिवाय एक लैम्‍प पोस्‍ट के जिसके नीचे वो खडा था। मैनेजर चाय खत्‍म करने के बाद भी वहीं खडा था। चाय का कप अंदर से बैरा आकर ले गया। शादी के बाद पहली बार वो लोग बाहर चाय पीने यहीं आये थे। उस दिन भी मैनेजर बाहर खडा चाय पी रहा था। रेस्‍टोरेंट के आगे टीन का शेड था। उस दिन बारिश हो रही थी। मैनेजर टीन शैड के नीचे चाय पीते हुए बारिश्‍ का आनंद ले रहा था। वो चाहती थी कि वे भी यहीं चाय पीये परन्‍तु मैनेजर ने मना कर दिया था। अनुराग को बुरा लगा था। उसका मन था किसी और रेस्‍टोरेंट में चला जाय परन्‍तु वो चाहती थी कि यहीं ठीक है। पुल के नीचे ट्रेन की शंटिग हो हो रही थी1 उसके शोर से वह यादो से बाहर आ गया। रेल्‍वे स्‍टेशन पुल से ज्‍यादा दूर नहीं है। शंटिग पुल के नीचे ही होती है। शंटिग होने के बाद  ट्रेन के कुछ डिब्‍बे पुल के नीचे एक पटरी पर ही रह गये और  ट्रेन दूसरी पटरी से हॉर्न बजाते हुए निकल गयी। शादी के बाद उनके बीच सब कुछ ठीक चल रहा था। कभी ऐसा नहीं लगा कि उनके बीच कोई मतभेद और मनमुटाव होगा। सब कुछ ठीक था। ठीक ही नहीं उनके बीच बहुत प्रेम था। वो अपना समय टीवी के आगे नहीं बाते करने में ज्‍यादा बिताते थे। उसे ताश खेलने का बहुत शौक था। वो दोनो रोज रात को सोने से पहले ताश खेलते थे। वो हमेशा जीतती थी। अनुराग कभी जीत नहीं पाया। उसके पास हमेशा हुक्‍म का गुलाम कम रह जाता था। हुक्‍म का गुलाम हमेंशा उसकी पत्‍नी के पास ही आता था। वो ताश की खिलाडी थी। ताश हमेंशा वो ही फेंटती थी। फेंटने के बाद तीन गुलाम अनुराग के पास आते और हुक्‍म का गुलाम उसके पास ही जाता। वो जीतने के बाद जोर से हंसती थी। अनुराग उसे हंसते हुए देखता रहता था। वो कहता कि जिस दिन हुक्‍म का गुलाम उसे मिल जायेगा वो जीत जायेगा। वो कहती हुक्‍त का गुलाम तुम्‍हे कभी नहीं मिलेगा। उसने पूछा वो इसे कैसे हासिल कर सकता है। उसने कहा कि यदि मै किसी दिन तुम्‍हे छोडकर जांउगी तो हुक्‍म का गुलाम तुम्‍हे देकर जाउंगी। ऐसा कहने पर वो उदास हो जाता । वो जोर से हंसकर कहती कि मै तो मजाक कर रही थी।


पुल के नीचे से ट्रेन निकल चुकी थी। अब अंधेरा हो चुका था। पुल पर अनुराग अकेला आदमी ही दिखाइ दे रहा था। पुल पर वाहनो की रेलमपेल कम हो चुकी थी। सारे लैम्‍पपोस्‍ट जल चुके थे। रेस्‍टोरेंट का मैनेजर उसे घूर रहा था। उसे लगा कि वो जाकर मैनजर को कह दे कि वो किसी का इंतजार कर रहा है। मैनेजर अभी भी उसे घूर रहा था। अब वो खडा रहने में असहज हो गया था। वो मैनेजर की ओर जाने लगा। मैनेजर रेस्‍टोरेंट का दरवाजा खोलकर अंदर चला गया। वो फिर जाकर लैम्‍प पोस्‍ट ने नीचे खडा हो गया। वो अभी तक नहीं आयी थी। आज उसे फैसला सुनाना था। शादी के बाद उनके बीच ऐसा कुछ नहीं था। वो बहुत खुश थे। उसे पता नहीं था कि एक छोटी सी बात के लिए मामला इस हद तक चला जायेगा। उसने कभी भी उस पर कोई पाबंदी नहीं लगायी। वह महिलाओ की आजादी का हिमायती था। वो चाहता था कि वह इसी शहर में जॉब करे। उसके पास मल्‍टी नेश्‍नल कंपनी का आफर था। नोयडा में जॉब आफर थी। बहुत बडा पैकेज था। अनुराग ने उसे मना कर दिया। इस बात को लेकर दोनो के बीच कभी एकमत नहीं हो पाया। दोनो अपनी जिद पर अडे थे। अनुराग इस मामले को सुलझा लेना चाहता था। अनुराग ने उसे बता दिया कि वो तय करले क्‍या करना है। उसे नोयडा जाना है तो उसे अनुराग को छोडना होगा। वो कतई नहीं चाहता था कि वो छोडकर जाने का फैसला करे। सामने के लैम्‍प पोस्‍ट के उपर पूर्णमासी का चांद दिखाई दे रहा था। वो लैम्‍प पोस्‍ट से दूर आसमान में था परन्‍तु लैम्‍प पोस्‍ट पर टंगा हुआ महसूस हो रहा था। उसके इंतजार का तीसरा घंटा था। इतना इंतजार उसने शादी से पहले भी नहीं किया था। उसे लगा था कि वो नहीं आयेगी। आज फैसला नहीं हो पायेगा। वो कई दिनो से अपनी मां के घर रह रही है। आज उसने अपना फैसला बताने का तय किया था। अनुराग उसे छोडना नहीं चाहता था। वो चाहता था कि वो रूक जाये। अनुराग उसका नोयडा जाना भी स्‍वीकार नहीं चाहता था। रात के वक्‍त रेस्‍टोरेंट में भीड थोडी बढ जाती है। ज्‍यादा लोगो की आवाजाही से वो असहज महसूस करने लगा था। रेस्‍टोरेंट में जाने वालो में से एक महिला निकल कर उसकी ओर आ रही थी। अंधेरे में चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। नजदीक आने पर पता चला था वो ही है। वो चुपचाप लैम्‍प पोस्‍ट पर आकर खडी हो गयी। दोनो चुप थे। उनके बीच में लैम्‍प पोस्‍ट था और नीचे दो पटरियां जो अलग अलग दिशा में जा रही थी। उसने अनुराग की ओर कम और पटरिया की ओर ज्‍यादा देखा। कुछ देर अनुराग भी चुपचाप खडा रहा । फिर अनुराग ने उसकी तरफ देखे बिना कहा – फैसला कर लिया। इस पर उसने कोई जवाब नही दिया। उसने अपने बैग मे से लिफाफा निकाला और अनुराग को देते हुए कहा- इसमें मेरा फैसला है और यही अंतिम फैसला है। यह कहकर वह निकल गयी। अनुराग चाहता था कि रेस्‍टोरेंट में उसके साथ एक चाय पी जाये। लेकिन वो हैरान था उसके हाथ में लिफाफा था और वो जा रही थी। वो आंखो से ओझल हो गयी तो अनुराग ने लिफाफा खोला। लिफाफे में कोई चिटठी नहीं थी। लिफाफ में सिर्फ ताश का पता था – हुक्‍म का गुलाम।

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Sunday, July 10, 2022

एना कैथरीन

ठंडे प्रदेशो में और समुद्रो के किनारे रहने वालो को हमेंशा यही लगता है कि रेगिस्‍तान में खूबसूरती नहीं होती है। पहाडो पर रहने वाले कभी रेगिस्‍तान में गांव की कल्‍पना भी नहीं कर पाते है। बडे शहर वालो को लगता है कि रेगिस्‍तान में गांव की खूबसूरती तो दूर वे जीवन के बारे में भी नहीं सोच पाते है परन्‍तु रेगिस्‍तान के गांवो में न सिर्फ जीवन होता है बल्कि प्रक़ति की खूबसूरती भी होती है। कॉलेज में आने तक मेरा भी यही ख्‍याल था। कॉलेज के दिनो में मुझे मेरे शहर के पास के गांव में एक आवासीय शिविर में जाने को मौका मिला तो मैने पाया कि रेगिस्‍तान के गांव की खूबसूरती तो देखते ही बनती है। भोर में नाचते हुए मोर आपके दिल में रंग भर देते है।

कॉलेज में समाज सेवा का शिविर अटेण्ड करना जरूरी होता है। इस बार शिविर के इंजार्च भी सख्‍त थे इसलिए शिविर को बंक भी करना संभव नहीं था। मैं भी एडवेंचर के लिए शिविर चला गया। मेरे शहर के बिलकुल नजदीक सागर गांव में शिविर था। जहां शिविर था वहां एक बडा खुला मैदान था । वहां हम सब लोगो के टैंण्ट लगे थे। हमें एक सप्‍ताह टैण्‍ट में ही बिताना था। दस टीमे बनायी गयी थी और एक टीम में पांच सदस्‍य थे। हमारे ग्रुप का लीडर देवा था। हमारा टैण्‍ट सबसे अंत में था। टैण्‍ट के बाद एक खूबसूरत सी झौपडी बनी हुई थी। झौपडी के नजदीक ही बडा सा पीपल का पेड था। पीपल का पेड बहुत पूराना लगता था। बहुत घना और फैला हुआ था। शाम का वक्‍त था तो बहुत सारे पक्षी उस पेड पर चहचहा रहे थे। पक्षियो की चहचहाट से लगता था कि शाम हो गयी है। झोपडी के आगे सफाई अच्‍छी थी। झौपडी के बारह एक लकडी की टेबिल और दो कुर्सिया रखी हुर्इ थी। कुल मिलाकर पूरे मैदान में झौपडी सबसे खूबसूरत थी बाकि हमारे टैण्‍ट थे।

मै दौड कर स्‍टोर से ग्रुप के लिए जो सामान मिलना था ले आया। खाना हमे खुद ही बनाना था और खाना था। हम में से किसी को खाना बनाना आता नहीं था। हम एक दूसरे की ओर देख रहे थे। हमारे लीडर देवा ने कहा कि रोटियां तो मै बना लूंगा। सब्‍जी का क्‍या करें। देवा ने अधपक्‍की और कुछ गोल व कुछ चपटी रोटिया जैसे तैसे बनायी। हम सभी रसोई के काम में इतने व्‍यस्‍त हो गये कि पता नहीं चला कि हमारे टैण्ट के बाहर क्‍या हो रहा है। मैने सुझाव दिया कि पापड् की सब्‍जी बना लेते है। सबके यह आयडिया जंच गया। हमने पापड की सब्‍जी के लिए तपेला चूल्‍हे पर चढाया। पानी, तेल और पापड डालने के बाद तपेले में से धुंआ ही धुआ निकला। सारा तपेला जल गया। अंदर से काला काला हो गया। अब हम सारे टैण्‍ट के बाहर बैठ गये। मेरी नजर पास वाली झौपडी पर पडी। बाहर कुर्सी पर एक लडकी बैठी थी। लडकी विदेशी लग रही थी। उसकी पीठ हमारी तरफ थी और चेहरा पीपल के पेड की तरफ था। अंधेरा हो चुका था। झौंपडी में रोशनी में थी। हमें तो पंचलैट जलाना था जो देवा ने चार बार कोशिशो के बाद जला लिया। अब खाना समस्‍या थी। अधपक्‍की रोटिया खायें कैसे। मै खडा होकर टैण्‍ट के किनारे झौपडी तक गया। मैने आवाज दी – हैलो। पीछे से साथियो ने मुझे खींचा। मैने उनसे हाथ छुडाया और एक बार और आवाज दी – हैलो। उस लडकी ने कॉफी का कप हाथ में लिये पीछे मुडकर देखा। मुडकर देखने से बाल उसके चेहरे पर आ गये थे। उसने बाल चेहरे से हटाते हुए हमारी तरफ देखा। मैने फिर कहा – मे यू हैल्‍प अस टू प्रीपेयर समथिंग टू ईट।

उसने काफी का कप टेबिल पर रखते हुए जवाब दिया- व्‍हाई नाट। श्‍योर। यहां आओ।

मै चक्‍क्‍र में पड गया। यूरोपियन दिखने वाली लडकी हिन्‍दी कैसे बोल रही है। मैने फिर पूछा तो फिर जवाब हिन्‍दी में आया। मैं गोबर के लेप से बनी अस्‍थाई दीवार फांद कर झौपडी के आगे चला आया। वो अपने बाल पीछे करते हुए बोली – आप बिना पूछे दीवार फांदकर आ गये हो।

मैने सॉरी बोला। फिर कुछ देर चुप रहा । मेरे मन में बहुत सारे सवाल उठ रहे थे। वो चुपचाप मुझे देखती रही । मैने पुछ ही लिया- मैम आपका नाम ।

‘मेरा नाम एना कैथरीन है।‘

आप शक्‍ल से तो यूरोपियन लगती है परन्‍तु हिन्‍दी अच्‍छी बोल लेती है। ‘

उसने काफी का कप एक बार फिर टेबिल पर रखा और अपने दोनो हाथ टैबिल पर समेट कर रखते हुए बोली- हूं । यह बात तो है। आप बताओ । क्‍या मदद चाहिए।‘

उसने मदद के बारे मे पूछ लिया परन्‍तु उसके हिन्‍दी बोलने के आश्‍चर्य से मैं अभी भी बाहर नहीं निकला। अभी भी मै स्‍त्‍ब्‍ध था। मैने फिर पूछा – ‘आपने बताया नहीं कि आप हिन्‍दी कैसे बोल लेती है।‘

वो अपने हाथो की अंगुलियो से बाल पीछे करते हुए जोर से हंसते हुए बोली – मैं इंडिया में दो साल से सोशल वर्क पर कोर्स कर रही हूं। अपने कोर्स के प्रैक्टिल के लिए यहां हूं। अब दो साल पूरे हो रहे हे। इन दो सालो में लोगो को समझने के लिए मुझे हिन्‍दी सीखनी पडी। हो गया। अब बताओ आपको क्‍या मदद चाहिए।

मैने अपने बालो में अंगुलिया डालकर माथे को खुजाया। फिर बोला- हमें थोडी सी सब्‍जी चाहिए। हमें किसी को सब्‍जी बनानी नहीं आती है।

‘बनानी तो तुम्‍हे खुद चाहिए।‘

’ पर मैम वो क्‍या है ना। बनायी तो थी परन्‍तु सारी जल गयी।‘

मेरी मासूमयित से उसे हंसी आ गयी। वो उठकर अंदर गयी। वो करेले का अचार लेकर आयी। उसने अचार का डिब्‍बा मुझे देते हुए कहा – यह मैने अभी दो दिन पहले सीखा है और बनाया है। मै तो खाती नहीं। आपके काम आ जायेगा। परन्‍तु कल से तुम्‍हे खुद ही बनाना होगा।

मैं वो डिब्‍बा लेकर आ गया। उस शाम तो हमारी अच्‍छी पार्टी हो गयी। हमने रात को पंचलैट बंद किया और हमारी गानो की महफिल सजी। हमने जोर जोर से फिल्‍मी गाने गाये। ठंडी ठंडी बयार के बीच गुनगुनाकर सभी मस्‍ती कर रहे थे। मेरी नजर पडोस की झौपडी पर थी। ऐना दो ती बार बाहर आयी और हमें देखकर चली गयी। मैने देवा से कहा अब हमें सो जाना चाहिए। रात बहुत हो चुकी है।

सुबह मेरे कानो में आवाज पडी- जो सोवत है वो खोवत है। जो जागत है वो पावत है। अब रैन कहां जो सोवत है। ‘ यह गीत गाते हुए मेरे टैण्‍ट के आगे से प्रभात फेरी निकल रही थी। मेरे टैण्‍ट मे मै ही सो रहा था। मैने चददर हटाकर अपनी गर्दन बाहर निकालकर देखा। प्रभातफेरी में आगे आगे एना चल रही थी। पीछे बाकि सारे लोग जिसमें हमारा लीडर देवा भी था। मैं उठकर खडा हुआ। जल्‍दी से दैनिक कार्य निपटाये। हैण्‍ड पम्‍प से पानी निकाल कर नहाया और तैयार हो गया। एना प्रभात फेरी से आ गयी थी। उसकी झौपडी के आगे दो मोर घूम रहे थे। ऐना उनको दाने खिला रही थी। पीछे पीपल का पेड था। यह बहुत खूबसूरत तस्‍वीर थी। हम नाश्‍ते के लिए चले गये।

फिर दोपहर में हमारी क्‍लास थी। क्‍लास ऐना ले रही थी। ऐना अपने सोशल वर्क के अनुभव बता रही थी। उसने बताया कि यह उसका अंतिम कैम्‍प है। इसके बाद वापिस फ्रांस चली जायेगी। उसका पढाने का तरीका बहुत प्रभावी था। वो मोटिवेशनल स्‍पीकर की तरह क्‍लास लेती थी।

हमारा कैम्‍प ऐसे ही चला दोपहर में ऐना की क्‍लास होती थी। फिर शाम को फिल्‍ड में काम करते। रात को खाना और मस्‍ती । मै ऐना के बारे में सोचा करता था कि वो हजारो मील दूर एक गांव में कैसे जीवन गुजारती है। वो शाम को साईकिल पर गांव में जाती। गांव से कुछ सामान लाती और लोगो से बाते करके आती। शाम को बाहर कुर्सी पर बैठकर काफी पीती। एक सप्‍ताह कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। कल अंतिम दिन था। आज सुबह हमने सोचा एक बार फिर एना से करेले का स्‍वादिष्‍ट आचार ले लेते है। दरअसल करेले की सब्‍जी कडवी होती है परन्‍तु आचार स्‍वादिष्‍ट था। ऐचा आचार मैने पहले कभी नहीं खाया था तो एक बार फिर तलब हो गयी। मैने पहले तो संकोच किया। फिर मन बना लिया। मै सीधे रास्‍ते से ऐना की झोपडी पर गया। दरवाजे के बाहर खडा होकर दरवाजे को खटखटाया। ऐना झौपडी में लेटी हुई एक किताब पढ रही थी। दरवाजे पर मेरी खटखटाहट सुन कर वो बाहर आयी। उसने मुझे पूछा –कैसे आये हो। मैने बता दिया – मैम । कल अंतिम दिन है तो सोचा एक बार आपके हाथ का करेले का आचार खा लिया जावे। ऐना मुझे देखती रही। उसने इस बार श्‍योर नहीं कहा । वो मेरे सामने खडी रही। फिर कुछ सोच कर बोली – मैने थोडा सा बनाया है। अभी देती हूं। मै तो वैसे भी नहीं खाती हुं। वो अंदर जाकर आचार के डिब्‍बे को उठा लायी और मुझे दे दिया। मैने उसे थैक्‍स कहा और अपने टैण्‍ट में चला आया। हमने मस्‍ती से खाना खाया। ऐना यूरोपियन होकर जबरदस्‍त आचार बनाती थी। मै इस बात से भी आश्‍चर्यचकित था कि वो करेला पसंद नहीं करती थी फिर भी करेले का आचार बनाती थी। आज शाम का खाना और था अगले दिन सुबह तो कैम्‍प प्रशासन से खाना मिलना था। वैसे हम पांच दिनो में काम चलाउ खाना बनाना सीख गये थे।

शाम को ऐना झौपडी की सफाई करके बाहर टेबिल पर बैठी थी। थोडी देर बैठती फिर उठकर मैदान के गेट पर जाती और फिर आकर बैठ जाती। मै समझ नहीं पाया कि वो ऐसा क्‍यो कर रही है। शायद किसी का इंतजार कर रही है। शायद उसका मंगेतर आने वाला हो। थोडी देर टेबिल पर बैठी रहने के बाद वो उत्‍साह से उठ खडी हुयी। मैने सामने देखा। मैदान के दरवाजे से एक अंग्रेज युवा हाथ में एक बैग लिये दौडता आ रहा था। झौपडी के नजदीक आते ही ऐना भी दौड पडी। दोनो ने एक दूसरे को पकड लिया। वो झोपडी के नजदीक आते आते अपनी आंखे बंदकरके बोल रहा था- व्‍हेअर इज माई स्‍पाईसी बीटर गोर्ड (करेला)। आई एम हियर फार यॉर स्‍पाईसी बीटर गोर्ड नॉट फार यू। देट इज माई मोस्‍ट अवेटिंग डिश। व्‍हैअर देट इज।‘

यह सब बाते झोपडी के बाहर हो रही थी। हमे स्‍पष्‍ट सुनायी दे रही थी। ऐना कुछ बोल नहीं रही थी। उसके मुंह पर जैसे ताला लग गया हो। मै डस्‍टबिन में हमारे द्वारा फेके गये खाली करेले के आचार के डिब्‍बे को देख रहे थे। हमारे कानो में आवाजे आ रही थी – वहेअर इज माई इंडियन गिफट । वहैअर ।

सारी आवाजे उसके मंगेतर की थी। ऐना की कोई आवाज नहीं थी। वो निर्दोष अपराधी की तरह उसको सुन रही थी। हम यह सब देख रहे थे।