Thursday, June 20, 2013

प्लेन




मैं कमरें में छवि का पासपोर्ट और वीजा ढुंढ रहा था। कल उसे जरूरत पड़ेगी। पहले से ही ढुंढ कर एक जगह रख दूं ताकि सुबह आसानी से मिल जाये। फिर रात भर शादी के कामो में वक्त नहीं मिलेगा। हमारे यहां शादी में कन्यादान घर का बड़ा करता है। मेरे घर में मेरे भाई साहब बड़े है इसलिए मेरी बेटी का कन्यादान भी भाई साहब ही करेंगे। मेरे जिम्मे शादी के दूसरे काम रहेगे । मेहमानो को अटेण्ड करना और बाकि व्यवस्थाऐ ंदेखना ।  अब बारात आने ही वाली  है। दो बार बुलावा आ गया । छवि अपने पापा को बुला रही है। अब नहीं गया तो नाराज हो जायेगी। पासपोर्ट और वीजा ढुुढकर एक लिफाफे मे आलमारी के एक कोने में रख दिया। जब पैकिंग होगी तो यह सब छवि के पर्सनल डाॅक्यूमेंटस में रख दूंगा।

छवि का कमरा खोला। कमरा खोलते हुए छवि बिलकुल सामने बैठी थी। किसी पिता को दुल्हन के रूप  में अपनी बेटी रानी ही लगती है। छवि वास्तव में रानी ही थी। आज तो दुल्हन के रूप  में बिलकुल रानी परी लग रही थी मानो परी लोक पर उसका राज हो। कभी मां के पल्लू में छिप जाने वाली छवि के सर पर आज पल्लू था। जब वह पैदा हुई थी तो डाॅक्टरो ने कह दिया था कि उसकी मां अब दोबारा मां नहीं बन सकेगी। मेरी पत्नि और परिवार रिष्तेदार बहुत दुःखी हुए। सबने सात्वनां दी। सबने अब लड़का नहीं हो सकने का दुख जताया। मुझे कोई दुख नहीं था। मेरे लिए तो छवि ही मेरी दुनिया हो गयी थी। मैंने अंगुली पकड़कर उसको चलना सिखाया।  मैं उसके लिए लड़को वाले खिलौने लाता लेकिन वो लड़कियो वाले खिलौनो की मांग करती । दरसअल वो लड़की ही रहना चाहती थी। वो गुडडे गुडियो के खेल खेलती । मै भी उसके साथ खेलने लग जाता । गुडे और गुडिया की शादी जैसे खेल में मै शरीक होता था। उसकी सहेलिया कम थी। या यों कहे मै उसे सहेलिया बनाने के लिए वक्त ही नहीं देता था। मै चाहता था कि वो ज्यादा से ज्यादा समय मेेरे साथ बिताये। कई बार तो उसकी मां भी मुझे टोक देती परन्तु मै जब भी समय मिलता छवि के साथ ही बिताता था।

बचपन में छवि अक्सर प्लेन की आवाज से डर जाया करती थी। जब भी कोई प्लेन हमारे शहर के ऊपर से गुजरता वो मां के पल्लू में जाकर छुप जाती । हमारी छत बहुत बड़ी थी। एक छोटे मैदान की तरह । मै उसके लिए कागज का प्लेन बनाता और वो उसके पकड़ने के लिए दौड़ती । इस खेल में उसका  प्लेन से डर भी जाता रहा । जब भी हम छत पर होते छवि कागज आगे कर प्लेन बनाने के लिए कहती। मै उसे सीखाता कि देख कागज का प्लेन ऐसे बनता है। वो कभी सिखने की कोषिष नहीं करती। मै उसे कहता कि छवि तुम प्लेन बनाना सीख क्यों नहीं लेती।  वो कहती पापा मै तो प्लेन बनाना सीखूंगी नहीं मैं तो प्लेन में उडकर स्विटजरलैण्ड जाउंगी। मै कहता जब तक तुं कागज का प्लेन बनाना सीखोगी नहीं मै तुम्हे प्लेन में जाने नहीं दूंगा। इस पर वो मेरे पीछे आकर गले में हाथ डालती  और कहती कि तब तो मै सीखूंगी नही क्योंकि मुझे तो मेरे पापा के साथ ही रहना है।
छवि के सर पर पल्लू और माथे पर टीका लटक रहा था। वैसे ही जैसे किसी परियों की रानी के माथे पर होता है। टीके की चमक बता रही थी कि वो दुनिया की सबसे सुंदर दुल्हन है। वैसे भी उसकी चकोचैंध में मेरा घर हमेंषा दमकता रहा । शुरू से ही होनहार थी। हमेषा अव्वल । मैंने उसको डाॅक्टरी की पढाई कराई। यहां भी वो अव्वल रही । वो पहली बार एप्रीन पहन कर घर आई तो मेरी आंखे छलकने लगी तो वो मेरा हाथ पकड़ कर आंगन में खुषी से झूमने लगी और मेरी आंखो से आंसूओ को बाहर नहीं आने दिया। मै उसके लिए आज के जमाने के लड़को वाले कपड़े खरीदता। उस समय तक लडकियो के  जींस और टी शर्ट पहनना आम हो गया था लेकिन छवि लड़कियो वाले कपड़े ही पहनती थी।

छवि की आंखो में आज भी सपने ही थे। मै उसकी आंखो में उसके सपने ढुंढा करता था  लेकिन उसकी आंखो में पापा के लिए सपने थे। पापा आप आज यह ड्रेस पहनोगे । पापा आप यह हेयरस्टाईल रखोगे। कई प्रकार से हमंषा निर्देष देती रहती थी। मेरा आलेख या कहानी जब भी अखबार में छपती वो बाजार से ले आती । मेरी लिखी किताबो और अखबारो को उसने एक आलमारी में सहेज कर रखा था। मेरे लेखन की एक पूरी लाईब्रेरी बना रखी थी। मुझे जब पहली बार साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला तो सबसे ज्यादा खुष छवि ही थी। उसकी आंखो में पिता के सम्मान का गर्व देखा जा सकता था। पर मैं तो उसकी आंखो में उसके सपनो का ढुंढा करता था। मै उसे अक्सर कहता था कि मेरे लिए तुम लड़के की तरह ही हो। तुम्हे कोई लड़का पसंद हो तो मुझे खुलकर बता देना। पर उसने कभी बताया नहीं । जब भी पूछने की कोषिष करता बात को टाल देती । सिरीष का रिष्ता आया तो परिवार और रिष्तेदारो ने मुझे बात आगे बढ़ाने से मना किया था। सिरीष न्यू जर्सी में सोफ्टेवेयर इंजीनीयर था। उसका परिवार दिल्ली में रहता था और वो न्यू जर्सी में सैटल हो गया
था। उसकी मां को भी दूरी ज्यादा लग रही थी। रिष्ता अच्छा था लेकिन एक बार तो मेरे कदम भी रूक गये। परन्तु मैने छवि की आंखो में उसके सपने का पढ़ लिया था। मैने छवि को बुलाकर पूछा । उसने सिरीष का फोटो भी नहीं देखा और बात करने पर शरमा कर अंदर चली गयी। एक बार फिर वह लड़की बन गयी। मेरे जोर देने पर भी लड़का नहीं बनी। पूरानी लड़कियो की तरह शरमा कर चली गयी। मैने उसकी मां को बात करने को कहा । उसकी मां ने बताया कि छवि राजी है।

मै छवि को देख रहा था। मेरी राजकुमारी रानी बनने जा रही थी। टयूबलाईट की सफेद रोषनी में उसकी आंखो में पानी चमक रखा रहा था। मेरे अंदर भी पानी का बहाव नीचे उठकर गले तक आ चुका था। गला भारी हो गयी था। मै जोर लगाकर आंसूओ के दरिया को पीछे धकेल रहा था। ऐसा लगा कि छवि के आंसू भी छलक कर बाहर आ जायंगे। वो उठकर खड़ी होने ही वाली थी । मै कमरे से निकल कर बाहर आ गया। अंदर के दरिया को किसी तरह से रोक दिया। काम में लग गया। बारात आ चुकी थी। सभी अपने काम में व्यस्त हो गयें। मै भी व्यवस्थाओ में लग गया।
 धीरे धीरे रात बीत गयी। अब विदाई की तैयारी हो रही थी । लगभग सब कुछ पैक हो गया था। अब विदा होने की तैयारी थी। यहां से छवि और सिरीष सीधे फलाईट से दिल्ली जायेगे और दिल्ली से न्यू जर्सी । मै ऊपर कमरे में था। दो तीन बार बुलावा आ गया था। मै जा नहीं पा रहा था। मै एक वृक्ष की तरह महसूस कर रहा था जिसकी सबसे हरी भरी डाली काटने की तैयारी हो रही हो। मुझे पता था अब छवि खुद आ जायेगी। ऐसा ही हुआ। छवि खुद आ गयी। हाथ में एक डिब्बा लिये हुए। डिब्बा मेरे हाथ में पकड़ा कर छलक पड़ी। आंखो में आंसूओ का सैलाब आ गया। मै भी अपने आंसूओ के दरिया को रोक नहीं पाया। ऐसा लग रहा था दोनो के आंसू अब नहीं रूकेंगे। पीछे पीछे सिरीष भी आ गया। वो चल कर हमारे नजदीक आया। मेरे पांव छुये। मैने आर्षीवाद दिया। उसने छवि का हाथ पकड़ा और बाहर की तरफ ले जाने लगा। छवि का हाथ मुझसे छुटता जा रहा था। ऐसो लग रहा था छवि का हर एक कदम पेड़की हरी भरी डाली पर कुल्हाड़ी का वार था। ज्यो ज्यो वो कदम बढ़ाती मैं कुल्हाड़ी के वार जैसी आवाज महसूस करता । ज्योही उसने अंतिम कदम कमरे के बाहर रखा, मुझे लगा जोरदार अंतिम वार से मेरी हरी भरी डाल काट दी गयी । मैने झटके जैसा महसूस किया। हाथ का डिब्बा छिटक कर नीचे जा गिरा। डिब्बे से कागज का प्लेन निकल फर्ष पर गिर गया था। मैने कागज का प्लेन उठाया। प्लेन पर लिखा था - ‘ पापा मैने कागज का प्लेन बनाना सीख लिया है। ’ मैं दोड़कर नीचे गया । छवि और सिरीष की गाड़ी एअरपोर्ट के लिए रवाना हो चुकी  थी।