Sunday, July 31, 2022

धुली हुई धूप

 

सावन और भादो में धूप धुली हुई होती है। बिलकुल सफेद और चमकती हुयी। बरसात के दिनो में हम घर से बाहर बाजार में आते है तो सडक पर इकटठे हुए थोडे से पानी पर धूप गिरती है तो बहुत सारी चमक पैदा कर देती है। उसकी चमक सीधे हमारी आंखो पर आती है। आंखे चूंधियाने लगती है। बरसात से गीली हुई सडक पर गिरी हुई धूप सडक पर चांदी की परत सा अहसास कराती है। मेरे घर से कुछ दूर निकलते ही बाजार है। बाजार में दुकानो के आगे कई तरह के ठेले लाईन से लगे रहते है। इनमें ज्‍यादातर ठेले खाने पीने की चीजो के होते है। हर ठेले का अपना स्‍थान होता है परन्‍तु होते सारे एक पंक्ति मे है। उनके ठेलो पर खाने पीने की चीजो के नीचे फॅाईल पेपर लगा होता है। इन दिनो इन पर धूप गिरने से ऐसा लगता है कि सबने खाने पीने की चीजो के नीचे कोई बडी सी जलती हुई टार्च रख दी हो। यहां सडक पर आपको धूप की सफेदी दिखाई नहीं देती है। यहां पर आपको धूप चीजो को पॉलिश कर चमकाती हुई दिखती है। आप थोडा और आगे जाओ जहां सडक बिलकुल साफ हो। जहां बिलकुल भी पानी न हो। वहां जब इन दिनो धूप गिरती है तो आपकेा बिलकुल सफेद और धुली हुई धूप दिखाई देती है। इतनी साफ और सफेद धूप आपको और किसी मौसम मे नहीं मिलेगी1 कुछ देर जमीन पर गिरी होने के बाज ज्‍यो ही मैली होने लगती है वह फिर बादलो के पीछे चली जाती है। बादलो में धुल कर फिर जमीन पर आकर फैल जाती है।

सावन और भादो मे धूप का आना जाता लगा रहता है। एक क्षण के लिए धूप होती है और अगले ही क्षण छाया। मुझे याद आता है कि जब में बिलकुल छोटा था। अपने बचपन में। मै कोई दस बारह साल का रहा होंउंगा। सावन के दिनो में मै मां के साथ हर सोमवार को मेले जाया करता था। मारकण्‍डेश्‍वर महादेव मंदिर परिसर में सावन के प्रत्‍येक सोमवार मेला लगता था। शायद अब भी लगता है। हमारे घर से 5 से 7 किलोमीटर दूर पडता है। मै मां के साथ पैदल मंदिर तक जाता था। रास्‍ते में मुझे दूर धूप दिखाई देती थी। हम लोग छांव मे चल रहे होते । मेरे लिए आश्‍चर्य की बात होती कि दूर सामने धूप है और जहां हम चल रहे है वहां छाया। मां का ईशारा पाकर मै दौडकर धूप में जाता परन्‍तु मै जब धूप में पहुंचता तो धूप पीछे चली जाती । मेरे लिए यह खेल हो जाता। सावन भादो में धूप ऐसी ही आंख मिचौली करती है।


आफिस में काम करते करते जब थक जाता हूं तो नयी उर्जा भरने के लिए मै बाहर आकर खडा हो जाता हूं। बाहर पोर्च में लगी कुर्सियो पर गांव के बुढे लोग ऊंघ रहे होते है। बिलकुल सफेद कपडो में। मै बादलो को देखकर वहां खडा हो जाता हूं। फिर थोडी देर में बादलो की ओट से सूरज निकल कर आता है। इस समय जो धूप अपने शरीर पर पडती है तो वो जलाती नहीं है। गर्मियो में हमारे शरीर पर धूप पडती है जो शरीर को जला देती है। शरीर को सेकने लगती है। सावन भादो की धूप ठंड मिला हुआ ताप देती है। हमारी देह पर धूप गिरती है तो गरम तो लगता है परन्‍तु देह अंदर से शीतल होती है। इस कारण धूप में खडे रह सकते है। सर्दी और गर्मी की बीच की धूप होती है ये। यह एक दिव्‍य अहसास होता है जो आप इस धूप मे खडे रहकर ही महसूस कर सकते हो।

सावन भादो के दिनो मे ही मै एक बार अपने मित्र के खेत गया। उसके खेतो में बहुत से पेड भी लगे थे। बरसात के पानी से पेडो के पत्‍तो पर एक दो बूंद पानी रह जाता है। जब इन पर धूप गिरती है तो ऐसा लगता है कि इन पत्‍तो पर सफेद हीरे के नग रखे है। इस समय धूप गिरने से रेत के धारे सोने जैसे चमकते है। बरसात के बाद गीले हुए धोरो पर सफेद धूप गिरती है तो अहसास होता है कि कुदरत ने सारी जमीन पर सोने की परत बिछा दी है। यह कुदरत का करिश्‍मा है कि सडको पर यह धूप चांदी का अहसास कराती है वहीं धोरो पर सोने का। धूप स्‍वयं होती है बिलकुल सफेद। कोई रंग नहीं । कोई आकार नहीं । बिलकुल धुली हुई। जब यह मनुष्‍यो के चेहरो पर गिरती है तो चेहरो पर मुसकुराहट ला देती है। एक बारगी ताजगी भर देती है। यह धूप धुल कर जो आती है। कुदरत की धुली हुई धूप। सब कुछ धुल जाने का अहसास कराती हुई।

Sunday, July 24, 2022

कहानी - हुक्‍म का गुलाम




वह एक बहुत लंबा पुल था परन्‍तु संकरा था। संकरा होने के बावजूद खूबसूरत था। पुल पर विन्‍टेज रोड लाईटे लगी थी। पुल के बीचो बीच किनारे पर एक रेस्‍टोरेंट था। पुल पर कोई रेस्‍टोरेंट होता नहीं है। परन्‍तु इस पुल के किनारे रास्‍ता बनाकर बनाया हुआ था। पुल के देानेा ओर जगह बहुत कम छोडी हुई थी। दोनो ओर मकान और दुकान पुल के बिलकुल पास थी। अनुराग पुल पर खडा था। वह वहां  खडा इंतजार कर रहा था। पुल के सामने उपर पूरा आसमान दिखाई देता था। नीले आसमान पर एक बडा सा बादल का टुकडा आया हुआ था। बहुत सुंदर द़श्‍य दिखाई दे रहा था। वो खडा खडा नीचे पटरियो को देख रहा था। शाम का वक्‍त था सूरज भी ढल रहा था। पुल से सूरज पूरा ढलता हुआ दिखाई देता है। इतनी अच्‍छी शाम का लुत्‍फ उठाने लोग इस पुल पर आते थे। पुल पर शाम को आवागमन रहता है परन्‍तु आज छुटटी का दिन होने से आवागमन कम था। पास के लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे दो चार लड्के खडे थे। वे सिगरेट पीते हुए धुंआ छोड रहे थे। शाम की धूप में धूंऐ के छल्‍ले मेरे उपर से निकल रहे थे। वो एक दो कस लगाते और जोर जोर से ठहठहाकर हंसते थे। उसका ध्‍यान उन पर बिलकुल नहीं था। उसकी निगाहे तो उसके आने पर थी । लडके जिस लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे खडे थे वह रेस्‍टोरेंट से थोडी दूरी पर था। लडके किसी को तंग नहीं कर रहे थे परन्‍तु चारो एक साथ सिगरेट पी रहे थे उससे बहुत सारा धुंआ हवा में उडता हुआ निकल रहा था। उन चारो में एक हैट पहनी हुयी थी। 

लडके जिस लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे खडे थे। उनके ठहाके लगाने से उसका ध्‍यान उस लैम्प पोस्‍ट पर जा रहा था। लैम्‍प पोस्‍ट से उसे याद आया कि उसने शादी से पहले यहीं उसका इंतजार किया था। उसने यहीं खडा रहकर उसका इंतजार किया था। वह बहुत देर से आयी थी। वो जब देर से आने का कारण बता रही थी तो रेल बहुत जोर से हॉर्न बजाते हुए पुल के बिलकुल नीचे से निकली। वो बोलती रही अनुराग को कुछ सुनाई नही दिया। रेल के गुजरने के बाद वो चुप हो गयी। उसने अनुराग की तरफ देखा फिर वो जोर से हंस पडी। उसकी हंसी उस नीले आसमान मे फैल गयी। अनुराग को अपने लिए वो परफेक्‍ट लगी। अनुराग ने उसी समय उससे शादी करने का फैसला कर लिया था।


रेस्‍टोरेंट पर कांच का दरवाजा था। बाहर की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती थी। रेस्‍टोरेंट का मैनेजर हाथ में चाय का कप लिए रेस्‍टोरेंट से बाहर आया। चाय से धुआं निकल रहा था। धुआं मैनेजर के चेहरे के आगे निकल हुए जा रहा था। मैनेजर ने लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे खडे लडको पर निगाहे डाली। लडको की ठहाको की आवाज धीमी हो गयी थी। मैनेजर के लगतार देखने से लडके वहां से चल दिये। अब सभी लैम्‍प पोस्‍ट अब खाली थे सिवाय एक लैम्‍प पोस्‍ट के जिसके नीचे वो खडा था। मैनेजर चाय खत्‍म करने के बाद भी वहीं खडा था। चाय का कप अंदर से बैरा आकर ले गया। शादी के बाद पहली बार वो लोग बाहर चाय पीने यहीं आये थे। उस दिन भी मैनेजर बाहर खडा चाय पी रहा था। रेस्‍टोरेंट के आगे टीन का शेड था। उस दिन बारिश हो रही थी। मैनेजर टीन शैड के नीचे चाय पीते हुए बारिश्‍ का आनंद ले रहा था। वो चाहती थी कि वे भी यहीं चाय पीये परन्‍तु मैनेजर ने मना कर दिया था। अनुराग को बुरा लगा था। उसका मन था किसी और रेस्‍टोरेंट में चला जाय परन्‍तु वो चाहती थी कि यहीं ठीक है। पुल के नीचे ट्रेन की शंटिग हो हो रही थी1 उसके शोर से वह यादो से बाहर आ गया। रेल्‍वे स्‍टेशन पुल से ज्‍यादा दूर नहीं है। शंटिग पुल के नीचे ही होती है। शंटिग होने के बाद  ट्रेन के कुछ डिब्‍बे पुल के नीचे एक पटरी पर ही रह गये और  ट्रेन दूसरी पटरी से हॉर्न बजाते हुए निकल गयी। शादी के बाद उनके बीच सब कुछ ठीक चल रहा था। कभी ऐसा नहीं लगा कि उनके बीच कोई मतभेद और मनमुटाव होगा। सब कुछ ठीक था। ठीक ही नहीं उनके बीच बहुत प्रेम था। वो अपना समय टीवी के आगे नहीं बाते करने में ज्‍यादा बिताते थे। उसे ताश खेलने का बहुत शौक था। वो दोनो रोज रात को सोने से पहले ताश खेलते थे। वो हमेशा जीतती थी। अनुराग कभी जीत नहीं पाया। उसके पास हमेशा हुक्‍म का गुलाम कम रह जाता था। हुक्‍म का गुलाम हमेंशा उसकी पत्‍नी के पास ही आता था। वो ताश की खिलाडी थी। ताश हमेंशा वो ही फेंटती थी। फेंटने के बाद तीन गुलाम अनुराग के पास आते और हुक्‍म का गुलाम उसके पास ही जाता। वो जीतने के बाद जोर से हंसती थी। अनुराग उसे हंसते हुए देखता रहता था। वो कहता कि जिस दिन हुक्‍म का गुलाम उसे मिल जायेगा वो जीत जायेगा। वो कहती हुक्‍त का गुलाम तुम्‍हे कभी नहीं मिलेगा। उसने पूछा वो इसे कैसे हासिल कर सकता है। उसने कहा कि यदि मै किसी दिन तुम्‍हे छोडकर जांउगी तो हुक्‍म का गुलाम तुम्‍हे देकर जाउंगी। ऐसा कहने पर वो उदास हो जाता । वो जोर से हंसकर कहती कि मै तो मजाक कर रही थी।


पुल के नीचे से ट्रेन निकल चुकी थी। अब अंधेरा हो चुका था। पुल पर अनुराग अकेला आदमी ही दिखाइ दे रहा था। पुल पर वाहनो की रेलमपेल कम हो चुकी थी। सारे लैम्‍पपोस्‍ट जल चुके थे। रेस्‍टोरेंट का मैनेजर उसे घूर रहा था। उसे लगा कि वो जाकर मैनजर को कह दे कि वो किसी का इंतजार कर रहा है। मैनेजर अभी भी उसे घूर रहा था। अब वो खडा रहने में असहज हो गया था। वो मैनेजर की ओर जाने लगा। मैनेजर रेस्‍टोरेंट का दरवाजा खोलकर अंदर चला गया। वो फिर जाकर लैम्‍प पोस्‍ट ने नीचे खडा हो गया। वो अभी तक नहीं आयी थी। आज उसे फैसला सुनाना था। शादी के बाद उनके बीच ऐसा कुछ नहीं था। वो बहुत खुश थे। उसे पता नहीं था कि एक छोटी सी बात के लिए मामला इस हद तक चला जायेगा। उसने कभी भी उस पर कोई पाबंदी नहीं लगायी। वह महिलाओ की आजादी का हिमायती था। वो चाहता था कि वह इसी शहर में जॉब करे। उसके पास मल्‍टी नेश्‍नल कंपनी का आफर था। नोयडा में जॉब आफर थी। बहुत बडा पैकेज था। अनुराग ने उसे मना कर दिया। इस बात को लेकर दोनो के बीच कभी एकमत नहीं हो पाया। दोनो अपनी जिद पर अडे थे। अनुराग इस मामले को सुलझा लेना चाहता था। अनुराग ने उसे बता दिया कि वो तय करले क्‍या करना है। उसे नोयडा जाना है तो उसे अनुराग को छोडना होगा। वो कतई नहीं चाहता था कि वो छोडकर जाने का फैसला करे। सामने के लैम्‍प पोस्‍ट के उपर पूर्णमासी का चांद दिखाई दे रहा था। वो लैम्‍प पोस्‍ट से दूर आसमान में था परन्‍तु लैम्‍प पोस्‍ट पर टंगा हुआ महसूस हो रहा था। उसके इंतजार का तीसरा घंटा था। इतना इंतजार उसने शादी से पहले भी नहीं किया था। उसे लगा था कि वो नहीं आयेगी। आज फैसला नहीं हो पायेगा। वो कई दिनो से अपनी मां के घर रह रही है। आज उसने अपना फैसला बताने का तय किया था। अनुराग उसे छोडना नहीं चाहता था। वो चाहता था कि वो रूक जाये। अनुराग उसका नोयडा जाना भी स्‍वीकार नहीं चाहता था। रात के वक्‍त रेस्‍टोरेंट में भीड थोडी बढ जाती है। ज्‍यादा लोगो की आवाजाही से वो असहज महसूस करने लगा था। रेस्‍टोरेंट में जाने वालो में से एक महिला निकल कर उसकी ओर आ रही थी। अंधेरे में चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। नजदीक आने पर पता चला था वो ही है। वो चुपचाप लैम्‍प पोस्‍ट पर आकर खडी हो गयी। दोनो चुप थे। उनके बीच में लैम्‍प पोस्‍ट था और नीचे दो पटरियां जो अलग अलग दिशा में जा रही थी। उसने अनुराग की ओर कम और पटरिया की ओर ज्‍यादा देखा। कुछ देर अनुराग भी चुपचाप खडा रहा । फिर अनुराग ने उसकी तरफ देखे बिना कहा – फैसला कर लिया। इस पर उसने कोई जवाब नही दिया। उसने अपने बैग मे से लिफाफा निकाला और अनुराग को देते हुए कहा- इसमें मेरा फैसला है और यही अंतिम फैसला है। यह कहकर वह निकल गयी। अनुराग चाहता था कि रेस्‍टोरेंट में उसके साथ एक चाय पी जाये। लेकिन वो हैरान था उसके हाथ में लिफाफा था और वो जा रही थी। वो आंखो से ओझल हो गयी तो अनुराग ने लिफाफा खोला। लिफाफे में कोई चिटठी नहीं थी। लिफाफ में सिर्फ ताश का पता था – हुक्‍म का गुलाम।

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Sunday, July 10, 2022

एना कैथरीन

ठंडे प्रदेशो में और समुद्रो के किनारे रहने वालो को हमेंशा यही लगता है कि रेगिस्‍तान में खूबसूरती नहीं होती है। पहाडो पर रहने वाले कभी रेगिस्‍तान में गांव की कल्‍पना भी नहीं कर पाते है। बडे शहर वालो को लगता है कि रेगिस्‍तान में गांव की खूबसूरती तो दूर वे जीवन के बारे में भी नहीं सोच पाते है परन्‍तु रेगिस्‍तान के गांवो में न सिर्फ जीवन होता है बल्कि प्रक़ति की खूबसूरती भी होती है। कॉलेज में आने तक मेरा भी यही ख्‍याल था। कॉलेज के दिनो में मुझे मेरे शहर के पास के गांव में एक आवासीय शिविर में जाने को मौका मिला तो मैने पाया कि रेगिस्‍तान के गांव की खूबसूरती तो देखते ही बनती है। भोर में नाचते हुए मोर आपके दिल में रंग भर देते है।

कॉलेज में समाज सेवा का शिविर अटेण्ड करना जरूरी होता है। इस बार शिविर के इंजार्च भी सख्‍त थे इसलिए शिविर को बंक भी करना संभव नहीं था। मैं भी एडवेंचर के लिए शिविर चला गया। मेरे शहर के बिलकुल नजदीक सागर गांव में शिविर था। जहां शिविर था वहां एक बडा खुला मैदान था । वहां हम सब लोगो के टैंण्ट लगे थे। हमें एक सप्‍ताह टैण्‍ट में ही बिताना था। दस टीमे बनायी गयी थी और एक टीम में पांच सदस्‍य थे। हमारे ग्रुप का लीडर देवा था। हमारा टैण्‍ट सबसे अंत में था। टैण्‍ट के बाद एक खूबसूरत सी झौपडी बनी हुई थी। झौपडी के नजदीक ही बडा सा पीपल का पेड था। पीपल का पेड बहुत पूराना लगता था। बहुत घना और फैला हुआ था। शाम का वक्‍त था तो बहुत सारे पक्षी उस पेड पर चहचहा रहे थे। पक्षियो की चहचहाट से लगता था कि शाम हो गयी है। झोपडी के आगे सफाई अच्‍छी थी। झौपडी के बारह एक लकडी की टेबिल और दो कुर्सिया रखी हुर्इ थी। कुल मिलाकर पूरे मैदान में झौपडी सबसे खूबसूरत थी बाकि हमारे टैण्‍ट थे।

मै दौड कर स्‍टोर से ग्रुप के लिए जो सामान मिलना था ले आया। खाना हमे खुद ही बनाना था और खाना था। हम में से किसी को खाना बनाना आता नहीं था। हम एक दूसरे की ओर देख रहे थे। हमारे लीडर देवा ने कहा कि रोटियां तो मै बना लूंगा। सब्‍जी का क्‍या करें। देवा ने अधपक्‍की और कुछ गोल व कुछ चपटी रोटिया जैसे तैसे बनायी। हम सभी रसोई के काम में इतने व्‍यस्‍त हो गये कि पता नहीं चला कि हमारे टैण्ट के बाहर क्‍या हो रहा है। मैने सुझाव दिया कि पापड् की सब्‍जी बना लेते है। सबके यह आयडिया जंच गया। हमने पापड की सब्‍जी के लिए तपेला चूल्‍हे पर चढाया। पानी, तेल और पापड डालने के बाद तपेले में से धुंआ ही धुआ निकला। सारा तपेला जल गया। अंदर से काला काला हो गया। अब हम सारे टैण्‍ट के बाहर बैठ गये। मेरी नजर पास वाली झौपडी पर पडी। बाहर कुर्सी पर एक लडकी बैठी थी। लडकी विदेशी लग रही थी। उसकी पीठ हमारी तरफ थी और चेहरा पीपल के पेड की तरफ था। अंधेरा हो चुका था। झौंपडी में रोशनी में थी। हमें तो पंचलैट जलाना था जो देवा ने चार बार कोशिशो के बाद जला लिया। अब खाना समस्‍या थी। अधपक्‍की रोटिया खायें कैसे। मै खडा होकर टैण्‍ट के किनारे झौपडी तक गया। मैने आवाज दी – हैलो। पीछे से साथियो ने मुझे खींचा। मैने उनसे हाथ छुडाया और एक बार और आवाज दी – हैलो। उस लडकी ने कॉफी का कप हाथ में लिये पीछे मुडकर देखा। मुडकर देखने से बाल उसके चेहरे पर आ गये थे। उसने बाल चेहरे से हटाते हुए हमारी तरफ देखा। मैने फिर कहा – मे यू हैल्‍प अस टू प्रीपेयर समथिंग टू ईट।

उसने काफी का कप टेबिल पर रखते हुए जवाब दिया- व्‍हाई नाट। श्‍योर। यहां आओ।

मै चक्‍क्‍र में पड गया। यूरोपियन दिखने वाली लडकी हिन्‍दी कैसे बोल रही है। मैने फिर पूछा तो फिर जवाब हिन्‍दी में आया। मैं गोबर के लेप से बनी अस्‍थाई दीवार फांद कर झौपडी के आगे चला आया। वो अपने बाल पीछे करते हुए बोली – आप बिना पूछे दीवार फांदकर आ गये हो।

मैने सॉरी बोला। फिर कुछ देर चुप रहा । मेरे मन में बहुत सारे सवाल उठ रहे थे। वो चुपचाप मुझे देखती रही । मैने पुछ ही लिया- मैम आपका नाम ।

‘मेरा नाम एना कैथरीन है।‘

आप शक्‍ल से तो यूरोपियन लगती है परन्‍तु हिन्‍दी अच्‍छी बोल लेती है। ‘

उसने काफी का कप एक बार फिर टेबिल पर रखा और अपने दोनो हाथ टैबिल पर समेट कर रखते हुए बोली- हूं । यह बात तो है। आप बताओ । क्‍या मदद चाहिए।‘

उसने मदद के बारे मे पूछ लिया परन्‍तु उसके हिन्‍दी बोलने के आश्‍चर्य से मैं अभी भी बाहर नहीं निकला। अभी भी मै स्‍त्‍ब्‍ध था। मैने फिर पूछा – ‘आपने बताया नहीं कि आप हिन्‍दी कैसे बोल लेती है।‘

वो अपने हाथो की अंगुलियो से बाल पीछे करते हुए जोर से हंसते हुए बोली – मैं इंडिया में दो साल से सोशल वर्क पर कोर्स कर रही हूं। अपने कोर्स के प्रैक्टिल के लिए यहां हूं। अब दो साल पूरे हो रहे हे। इन दो सालो में लोगो को समझने के लिए मुझे हिन्‍दी सीखनी पडी। हो गया। अब बताओ आपको क्‍या मदद चाहिए।

मैने अपने बालो में अंगुलिया डालकर माथे को खुजाया। फिर बोला- हमें थोडी सी सब्‍जी चाहिए। हमें किसी को सब्‍जी बनानी नहीं आती है।

‘बनानी तो तुम्‍हे खुद चाहिए।‘

’ पर मैम वो क्‍या है ना। बनायी तो थी परन्‍तु सारी जल गयी।‘

मेरी मासूमयित से उसे हंसी आ गयी। वो उठकर अंदर गयी। वो करेले का अचार लेकर आयी। उसने अचार का डिब्‍बा मुझे देते हुए कहा – यह मैने अभी दो दिन पहले सीखा है और बनाया है। मै तो खाती नहीं। आपके काम आ जायेगा। परन्‍तु कल से तुम्‍हे खुद ही बनाना होगा।

मैं वो डिब्‍बा लेकर आ गया। उस शाम तो हमारी अच्‍छी पार्टी हो गयी। हमने रात को पंचलैट बंद किया और हमारी गानो की महफिल सजी। हमने जोर जोर से फिल्‍मी गाने गाये। ठंडी ठंडी बयार के बीच गुनगुनाकर सभी मस्‍ती कर रहे थे। मेरी नजर पडोस की झौपडी पर थी। ऐना दो ती बार बाहर आयी और हमें देखकर चली गयी। मैने देवा से कहा अब हमें सो जाना चाहिए। रात बहुत हो चुकी है।

सुबह मेरे कानो में आवाज पडी- जो सोवत है वो खोवत है। जो जागत है वो पावत है। अब रैन कहां जो सोवत है। ‘ यह गीत गाते हुए मेरे टैण्‍ट के आगे से प्रभात फेरी निकल रही थी। मेरे टैण्‍ट मे मै ही सो रहा था। मैने चददर हटाकर अपनी गर्दन बाहर निकालकर देखा। प्रभातफेरी में आगे आगे एना चल रही थी। पीछे बाकि सारे लोग जिसमें हमारा लीडर देवा भी था। मैं उठकर खडा हुआ। जल्‍दी से दैनिक कार्य निपटाये। हैण्‍ड पम्‍प से पानी निकाल कर नहाया और तैयार हो गया। एना प्रभात फेरी से आ गयी थी। उसकी झौपडी के आगे दो मोर घूम रहे थे। ऐना उनको दाने खिला रही थी। पीछे पीपल का पेड था। यह बहुत खूबसूरत तस्‍वीर थी। हम नाश्‍ते के लिए चले गये।

फिर दोपहर में हमारी क्‍लास थी। क्‍लास ऐना ले रही थी। ऐना अपने सोशल वर्क के अनुभव बता रही थी। उसने बताया कि यह उसका अंतिम कैम्‍प है। इसके बाद वापिस फ्रांस चली जायेगी। उसका पढाने का तरीका बहुत प्रभावी था। वो मोटिवेशनल स्‍पीकर की तरह क्‍लास लेती थी।

हमारा कैम्‍प ऐसे ही चला दोपहर में ऐना की क्‍लास होती थी। फिर शाम को फिल्‍ड में काम करते। रात को खाना और मस्‍ती । मै ऐना के बारे में सोचा करता था कि वो हजारो मील दूर एक गांव में कैसे जीवन गुजारती है। वो शाम को साईकिल पर गांव में जाती। गांव से कुछ सामान लाती और लोगो से बाते करके आती। शाम को बाहर कुर्सी पर बैठकर काफी पीती। एक सप्‍ताह कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। कल अंतिम दिन था। आज सुबह हमने सोचा एक बार फिर एना से करेले का स्‍वादिष्‍ट आचार ले लेते है। दरअसल करेले की सब्‍जी कडवी होती है परन्‍तु आचार स्‍वादिष्‍ट था। ऐचा आचार मैने पहले कभी नहीं खाया था तो एक बार फिर तलब हो गयी। मैने पहले तो संकोच किया। फिर मन बना लिया। मै सीधे रास्‍ते से ऐना की झोपडी पर गया। दरवाजे के बाहर खडा होकर दरवाजे को खटखटाया। ऐना झौपडी में लेटी हुई एक किताब पढ रही थी। दरवाजे पर मेरी खटखटाहट सुन कर वो बाहर आयी। उसने मुझे पूछा –कैसे आये हो। मैने बता दिया – मैम । कल अंतिम दिन है तो सोचा एक बार आपके हाथ का करेले का आचार खा लिया जावे। ऐना मुझे देखती रही। उसने इस बार श्‍योर नहीं कहा । वो मेरे सामने खडी रही। फिर कुछ सोच कर बोली – मैने थोडा सा बनाया है। अभी देती हूं। मै तो वैसे भी नहीं खाती हुं। वो अंदर जाकर आचार के डिब्‍बे को उठा लायी और मुझे दे दिया। मैने उसे थैक्‍स कहा और अपने टैण्‍ट में चला आया। हमने मस्‍ती से खाना खाया। ऐना यूरोपियन होकर जबरदस्‍त आचार बनाती थी। मै इस बात से भी आश्‍चर्यचकित था कि वो करेला पसंद नहीं करती थी फिर भी करेले का आचार बनाती थी। आज शाम का खाना और था अगले दिन सुबह तो कैम्‍प प्रशासन से खाना मिलना था। वैसे हम पांच दिनो में काम चलाउ खाना बनाना सीख गये थे।

शाम को ऐना झौपडी की सफाई करके बाहर टेबिल पर बैठी थी। थोडी देर बैठती फिर उठकर मैदान के गेट पर जाती और फिर आकर बैठ जाती। मै समझ नहीं पाया कि वो ऐसा क्‍यो कर रही है। शायद किसी का इंतजार कर रही है। शायद उसका मंगेतर आने वाला हो। थोडी देर टेबिल पर बैठी रहने के बाद वो उत्‍साह से उठ खडी हुयी। मैने सामने देखा। मैदान के दरवाजे से एक अंग्रेज युवा हाथ में एक बैग लिये दौडता आ रहा था। झौपडी के नजदीक आते ही ऐना भी दौड पडी। दोनो ने एक दूसरे को पकड लिया। वो झोपडी के नजदीक आते आते अपनी आंखे बंदकरके बोल रहा था- व्‍हेअर इज माई स्‍पाईसी बीटर गोर्ड (करेला)। आई एम हियर फार यॉर स्‍पाईसी बीटर गोर्ड नॉट फार यू। देट इज माई मोस्‍ट अवेटिंग डिश। व्‍हैअर देट इज।‘

यह सब बाते झोपडी के बाहर हो रही थी। हमे स्‍पष्‍ट सुनायी दे रही थी। ऐना कुछ बोल नहीं रही थी। उसके मुंह पर जैसे ताला लग गया हो। मै डस्‍टबिन में हमारे द्वारा फेके गये खाली करेले के आचार के डिब्‍बे को देख रहे थे। हमारे कानो में आवाजे आ रही थी – वहेअर इज माई इंडियन गिफट । वहैअर ।

सारी आवाजे उसके मंगेतर की थी। ऐना की कोई आवाज नहीं थी। वो निर्दोष अपराधी की तरह उसको सुन रही थी। हम यह सब देख रहे थे।