बसंत के दिन थे।कहीं से कोई आवाज नहीं आ रही थी। इन दिनो चलने वाली हवा का शोर ही सुनाई दे रहा था खासकर पास के पीपल के पेड़ के हिलने का। घर के पास पीपल का पेड़ था जिससे पत्ते गिर गिर कर घर के बरामदे में आ रहे थे। बरामदे में दोपहर तक काफी सूखे पत्ते आ गये थे। हवा के झोंको के साथ सूखे पत्तो के खनकने की आवाज आती। और कोई आवाज मुझे सुनाई नहीं दी। कभी कभार गाय के रंभाने की आवाज कानो में जरूर पड़ती। घर में घूसते ही बडा सा हॉल था। जिसमें एक डायनिंग टेबिल लगी थी। बुढि़या उस डायनिंग टेबिल पर अपने हाथ रखे हुए बैठी थी। उसके ठीक सामने एक खिड़की थी। उसकी नजरे उस खिड़की पर थी। मैं नहाकर आ चुका था। मुझे उपर की बालकानी से बुढि़या दिखाई दे रही थी। मैने कपड़े पहने और फिर बालकानी की ओर आया। बुढिया वैसे ही बैठी थी। मैं जब से आया हू बुढिया वैसे ही बैठी है। मैं बाल बना रहा था तो नीचे से बुढिया की आवाज आयी- खाना तैयार है। मैं दौड्कर नीचे गया और डायनिंग टेबिल पर बैठ गया। बुढिया एक प्लेट में खाना लेकर आयी और मेरे आगे रख दिया। खाने में दाल चावल थे। मैने पूछा- आप घर में अकेली हो। बुढिया की नजरे अभी भी सामने वाली खिड़की पर थी। काफी देर तक बुढिया का कोई जवाब नहीं आया। मुझे लगा उसने मेरी बात को अनसुना कर दिया। कुछ देर बाद वो मेरी तरफ मुंह किए बिना बोली- तुम खाना खाओ। तुम्हे कोई तकलीफ नहीं होगी।‘ मैं खाना खाने लग गया। बुढिया लगातार उस खिड़की की ओर देखती रही। मैने बात करने की कोशिश की लेकिन मेरी किसी बात का जवाब नहीं दिया। मैने खाना खाया और उपर चला आया अपने कमरे में।
आज मेरा उदयपुर में पहला दिन था। अखबार में एक एड को देखकर यहां बुढिया के
यहां पेईग गेस्ट के लिए संपर्क किया था। फोन पर संपर्क किया था तो एक अंकिल बोल
रहे थे परन्तु यहां मुझे आंटी ही दिखाई दी। उपर छत्त पर मेरा अकेले का कमरा है
बाकि सारी छत्त खाली है। आधी छत्त को धूप ने घेर लिया है। इस घर के आस पास दस
बारह सरकारी बंगलेनुमा घर है। घर के सामने वाली सड़क पर ईक्का दुक्का लोग चलते
नजर आते है। आदमियों की आवाज तो न के बराबर सुनाई देती है। पीपल के पेड़ो की और
गायो के रंभाने की आवाजे कानो में पड़ती रहती है। मेरे को एक महीना यहां रहना है। उपर की बालकानी से नीचे का हाल दिखाई देता है। हाल में बुढिया डायनिंग टेबिल
पर हाथ रखे हुए बैठी है। कभी अपने हाथो पर ठुडी रख लेती है। कई बार उठकर दरवाजा
खोलती है और बरामदे जाती है। बाहर की ओर कुछ देर देखती है और फिर वापिस आकर
डायनिंग टेबिल पर बैठ जाती है। शाम की चाय के लिए बुढिया ने आवाज दी। मै नीचे गया
तो एक कप चाय और स्नेक्स की प्लेट मुझे पकड़ा दी। मेरे को बात करने का मौका ही
नहीं दिया। मैने कुछ पूछा तो भी कोई जवाब नहीं दिया। अब शाम को चुकी थी। मैने नीचे
की ओर देखा बुढिया वैसे ही बैठी थी। मै अपनी किताबे संभालने लगा। बाहर अंधेरा हो
चुका था। पहले गर्म हवा आ रही थी परन्तु अब हवा में शीतलता आ गयी है। बाहर कोई ज्यादा
रोशनी नहीं है। रोड़ लाईटो की रोशनी घर तक आ नहीं पाती है। घर के बाहर एक बल्ब जल
रहा है। बुढिया ने खाने के लिए आवाज लगायी तो मै एक बार फिर नीचे डायनिंग टेबिल पर
जाकर बैठ गया। मैने एक बार फिर बात करने की कोशिश करते हुए पूछा- अंकिल कहां है।‘
बुढिया ने खाने की प्लेट मेरे आगे रखते हुए बोली- मैने कहा था ना। तेरे को कोई
तकलीफ नहीं होगी। तुम खाना खाओ। ‘ मैने आगे बात करना उचित नहीं समझा। मै खाना खाने
लग गया। खाने में शाम को भी पुलाव ही बनाये थे। मैने खाने पर कोई टिप्पणी किये
बिना खाना खा लिया। खाना खाने के बाद मै उपर चला गया। मुझे सफर की थकावट हो रही
थी। इसलिए नींद आ रही थी। मैने सोने से पहले नीचे हॉल में देखा। बुढिया वहीं
डायनिंग टेबिल पर बैठी थी। बैठे बैठे उठकर दरवाजे पर गयी। दरवाजा खोला और बरामदे
मे कुछ देर खडी रही । फिर वापिस आ गयी। मेरा मन तो बहुत हो रहा था कि बुढिया से
उसकी चिंता के बारे में पूछूं परन्तु बुढिया कुछ भी बताना नहीं चाहती थी। मुझे
नींद आ रही थी। मै सोने के लिए बिस्तर पर चला गया।
‘कल सुबह हम दोनो में झगड़ा हुआ था। झगड़े में उन्होने कहा मै घर छोड़कर चला
जाउंगा। मैने कहा चले जाओ। वो उसी समय घर से निकल गये। वैसे तो हर बार झगडे के बाद शाम तक लौट आते है। आज दूसरा
दिन हो गया है। अभी तक नहीं आये है’। बुढिया ने उम्मीद देखते हुए कहा।
’आंटी आप चाय पीओ। मेरे को बाजार से कुछ सामान लाना है। मेरे को बताओ अंकिल
कहां कहां जाते है। मै उन सब जगह देखकर आता हूं। वो जरूर आ जायेंगे। किसी रिश्तेदार
के यहां रूक गये होंगे। आप चिंता मत करो । मैं उन्हे ढुंढने जाउंगा’। मैने बुढिया
को दिलासा दिया।
बुढिया ने बताया कि उनका फोन भी कल से बंद आ रहा है। उसने मुझे बताया कि अंकिल
कहां कहां जा सकते है। मै चाय नाश्ता करके बाहर निकल गया। बुढिया ने बताया था कि
अंकिल पान खाने जरूर जाते है। तो सबसे पहले मै पान की दुकान पर गया। पान की दुकान
घर से काफी दूर है। कॉलोनी से बाहर निकलने के बाद भी दो किलोमीटर दूर है। पान की
दुकान के पास चहल पहल थी। यहां लग रहा था कि मै किसी शहर मे हुं वहां तो लग रहा था
कि किसी जंगल में बैठा हूं। पान वाले से अंकिल के बारे में पूछा तो पान वाले ने
बताया कि अंकिल दो दिन से पान खाने नहीं आ रहे है। पान वाले से उनके दोस्तो के
बारे मे जानकारी ली। उसके बाद अंकिल के सब दोस्तो के घर भी गया परन्तु अंकिल का
कोई पता नहीं चला। मुझे बाजार से कुछ सामान भी लेना था परन्तु ज्यो ज्यों अहसास
होने लगा कि अंकिल नहीं मिलेंगे मन दुखी हो गया। मै कुछ भी खरीद नहीं पाया। मैं
थके कदमो के साथ घर आ गया। घर पहुंचते ही बुढिया ने पूछा- ‘कुछ पता चला’। मैने कहा
– ‘नहीं। परन्तु जल्दी ही चल जायेगा।मै कुछ लोगो से बात करके आया हूं। शाम तक
इंतजार करते है। नहीं तो पुलिस थाने मे रपट लिखायेंगे’।
‘नहीं । रपट नहीं लिखायेंगे। ऐसे ही आ जायेगे’। दोपहर का खाना मै कुछ खा नहीं
सका। मेरे को भी अंकिल की चिंता होने लगी थी। मै अपने कमरे में चला गया। मै बीच
बीच में उठकर नीचे बुढिया को देखता। वो अंकिल के इंतजार में डायनिंग टेबिल पर बैठी
थी। उठकर बरामदे में जाती और सड़क को दूर दूर तक देखती। फिर लौटकर डायनिंग टेबिल
पर बैठ जाती। शाम हो चुकी थी। बुढिया वैसे ही अंकिल के इंतजार में बैठी थी। खाने
का समय हो चुका था। मुझे भूख भी लग रही थी परन्तु मैने बुढिया को खाने के लिए
कहना ठीक नहीं समझा। अब तो रात हो रही थी। मै नीचे गया। बुढिया के पास बैठ गया।
मैने कहा’ ‘थाने में रपट लिखा आये’। उसने कहा- नहीं’। मैने पुछा- क्यों’।
‘हम दोनो प्राय झगड़ते है परन्तु कभी भी झगड़ा पुलिस थाना तो दूर की बात है
कभी किसी दूसरे व्यक्ति रिश्तेदार के पास भी लेकर नहीं गये। हमारी कॉलोनी में भी
किसी को पता नहीं है कि हम झगड़ते है। मै उनका इंतजार करूंगी जब तक वो स्वयं नहीं
आ जाते’।
‘इतना विश्वास है’।
’हां’।
’कैसे’।
’ हमारे बीच जब भी झगड़ा होता है। वो मुझ से नाराज होकर चले जाते है। फिर
लौटकर आते मेरी फेविरिट चीज लेकर’।
‘आपकी फेविरिट चीज क्या है’।
‘स्ट्रॉबेरी
। जब भी नाराज होते है और फिर लौटकर आते है तो स्ट्रॉबेरी लाते है’। वो मेरे से बात करते करते पूरानी
यादो में खो गयी। फिर उसे ख्याल आया कि इस बार अंकिल आये नहीं। हर बार तो शाम को
लौट आते है। आज दूसरा दिन है आये नहीं है। वो चुप हो गयी। मैने भी खाना नहीं खाया।
उपर चला गया। उसने खाने के बारे मे पूछा भी नहीं । रात गहराने लगी थी। बाहर सड़क
पर भी एक दो रोड लाईट की रोशनी थी। पेडो के सांय सांय करने की आवाजे आ रही थी।
मैने बुढिया को देखा। बुढिया वहीं डायनिंग टेबिल पर बैठी थी। मुझे लगा कि वो ऐसे
ही जागती रही तो उसकी तबीयत भी खराब हो सकती है। वो अपनी आंखो पल्लू से पोंछती और
नजरे खिड़की पर गढा देती। सड़क पर कोई राहगीर दिखता तो वो खिड़की पर जाती। उस राहगीर
को देखकर वापिस डायनिंग टेबिल पर लौट आती। अब बारह बज रहे थे। मेरा मन आशंकाओ से
भर गया था। आशंकाऐं बुढिया के मन में भी रही होगी। ठीक बाहर बजे दरवाजे की बैल
बजी। मै दौडकर नीचे गया। बुढिया मुझ से पहले ही दरवाजे तक पहुंच चुकी थी। मै
बुढिया के पीछे था। बुढिया ने दरवाजा खोला। खोलते ही सामने बुजुर्ग खड़े थे।
बुढिया कुछ नहीं बोली। वहीं खड़ी रही। उस बुजुर्ग को देखती रही। बुजुर्ग भी बुढिया
को एक टक देखता रहा। बाहर हवा से पीपल के पेड के पत्ते उड़कर उस अंकिल पर गिर रहे
थे। हम तीनो के बीच कोई आवाज नहीं थी। हवा के सांय सांय की आवाज आ रही थी। रोशनी
इतनी ही थी कि दोनो के चेहरे दिखाई दे। सफेद बालो वाले अंकिल कुछ नहीं बोले वे बुढिया
को देखते रहे। बुढिया भी कुछ नहीं बोली । चुपचाप देखती रही। मैने भी कुछ बोलना ठीक
नहीं समझा। कुछ देर बाद अंकिल ने अपने पीछे किऐ हुए हाथ आगे लाये। उनके हाथ में स्ट्रॉबेरी का बडा सा डिब्बा था। उस डिब्बे मेसे लाल लाल
स्ट्रॉबेरी दिखाई दे रहे थे। अंकिल ने
डिब्बा बुढिया के आगे करके कहा- ‘इस बार मुझे याद है। आज तुम्हारा जन्म दिन है।
हैप्पी बर्थडे’। अब बुढिया की आंखो से नहीं रूकने वाला पानी बहने लगा। मैने दोनो
को पकड़ा और डायनिंग टेबिल पर लाकर बैठाया। दोनो एक दूसरे के सामने बैठे थे। हॉल में
अंधेरा था। खिड़की से रोड लाईट की रोशनी आ रही थी जो सीधे स्ट्रॉबेरी पर गिर रही थी। उनके बीच में पड़े लाल लाल रंग
की स्ट्रॉबेरी के गुच्छे चमक रहे थे।