Sunday, September 18, 2022

मनीष कुमार जोशी की कहानी - बर्थडे गिफ्ट

 


करीब छ: महीनो बाद वो अपने फार्म हाउस आया था। हाउस उसने शिमला के मकानो के डिजायन का बनवाया था। पगडंडियो पर खरपतवार उग आयी थी। पगडंडियो पर चलने में घास फूस आडे आ रही थी। उसकी पेंट घासफूस से पूरी तरह से खराब हो चुकी थी। खेत में बना हाउस पतथर और लकडी से बना था। पिछले दिनो अच्‍छी बारीश हुई थी। खेत लहलहा रहा था। मकान में पतथरो के बीच में हर पत्‍ते निकल आये थे। छत्‍त पर भी बहुत ख्‍रपतवार इक्‍टठी हो गयी थी। वो निकल कर बाहर लटक रही थी। इन दिनो धूप तेज होने से कुछ पत्तियां जल गयी थी। हरे पत्‍तो के बीच चली हुई टहनियां लटक रही थी। बारिश से इतनी हरियाली हुई कि हाउस के ताले पर भी हरि टहनियां आ गयी थी। चारो तरफ हरियाली होने के बावजूद वो थके मन से चल रहा था। उसका मन कहीं ओर था। पगडंडी पर उगी हुई घास फूस उसके मन को लौटाकर फार्म हाउस पर नहीं ला पायी। वो हर दो महीने में फार्म हाउस आ जाता है। पिछले साल शादी के बाद उसका यहां आना कम हुआ है। मुश्किल से एक दो बार आया है। वो भी आने के बाद रात को यहां नहीं रूका था। वो हाउस के पास आकर खडा हो गया। उसने पूरे हाउस पर एक नजर दौडाई। धूप आज तेज थी। उसके सिर पर सीधे पड रही थी। उसे गरम लग रही थी। उसके माथे पर पसीना आ गया था। धूप में पैदल चलने से पसीना आ ही जाता है। उसके जल्‍दी आता है। रिंकू भी कहती है कि उसे पसीने की बीमारी है। चलते है तो पसीना। खाते है तो पसीना। कुछ पीते है तो पसीना । कोई काम करते वक्‍त उसके माथे पर पसीना आ जाता है। उसका मन उलझाव में खोया हुआ था। उसने ताले की तरफ नहीं देखा। दीवार में उग आयी पत्तियो को तोडने लगा। हर बार तो उसके आने पर किसना दौडकर आ जाता है परन्‍तु आज वो अभी तक नहीं आया। उसे भी ख्‍याल नहीं आया कि किसना को यहां रखवाली के लिए रखा हुआ है। वो दीवार को देखता रहा। फिर उसे ख्‍याल आया चाबी तो उसके पास है। उसने जेब से चाबी निकाली और ताले में लगायी। ताले को खोलने में थोडी मशक्‍कत करनी पडी। थोडी कोशिश के बाद ताला खुल गया। छ- हीने से बंद घर में एक अजीब सी बदबू आ रही थी। घर के अंदर धूल ही धूल थी। वो अंदर चला गया। उसने किसना को आवाज भी नहीं दी। घर में घूसते ही एक कमरा है। उसने कमरे को खोला। कमरे में भी मिटटी जमी हुई थी। वो कमरे के अंदर गया। वहां आरामदायक कुर्सी खिडकी के पास थी। उसने अपनी जेब से रूमाल निकाला और कुर्सी पर से रूमाल से धूल हटाई। फिर खिडकी खोलकर उस आरामदायक कुर्सी पर बैठ गया। खिडकी से उसका हरा भरा खेत दिखाई दे रहा था। आराम दायक कुर्सी पर अपनी गर्दन पीछे कर कुर्सी को आगे पीछे हिला रहा था। मन में विचारो का सैलाब उमड रहा था। अंदर विचारो का सैलाब बाहर की शांति को भंग नहीं कर पा रहा था। यह जरूर था बाहर की शांति अंदर मची हुयी उमड घुमड को रोकने में विफल थी। 



उसे लग रहा था कि रिंकू ने ठीक नहीं किया। उसकी भावनाओ का ख्‍याल उसे रखना चाहिए था। वो उसका ख्‍याल रखता है। उसे भी भावनओ को समझना चाहिए था। अब वो वापिस घर नहीं जायेगा। फार्म हाउस में ही रहेगा। रिंकू उसकी छोटी छोटी जरूरतो का ख्‍याल नहीं रख सकती तो शादी करने का मतलब ही क्‍या था। अब उसे यहीं रहना है। रिकू नौकरी करती है। अपना पेट खुद पाल सकती है। मेरी जरूरत क्‍या है। यह ठीक है कि मुझे समय नहीं मिलता है परन्‍तु फिर मै उसका ख्‍याल रखता हुं। परन्‍तु वो। वो मेरे लिए रूमाल जैसी चीज की भी व्‍यवस्‍था नहीं कर सकती। रोज होता है । वो रूमाल मांगता है और रिंकू कहती है भूल गयी। जब उसकी रिंकू के लिए अहमियत ही नहीं है तो उसे साथ क्‍यों रहना है। दुनिया बहुत बडी है। वो तो अपनी जिंदगी इस फार्म हाउस पर बिता सकता है। विचारो का सैलाब तुफान की तरह चल रहा था।

थोडी देर में किसना दोडकर आ गया। साब माफ करना। मैने आपको देखा नहीं । वो हाथ जोडकर बोलने लगा।

नहीं कोई बात नहीं । पानी लेकर आ।

अभी लाया।

किसना दौडकर पानी लेकर आया। उसने पानी पीया और थोडी देर तक कुर्सी पर टहला और खडा हो गया। उसने किसना से कहा कि आज से वो यहीं रहेगा। उसके हिसाब से ही सब कुछ ठीक कर देना। किसना ने पूछा मैम साहब भी आयेगी क्‍या। उसने मना कर दिया और कह दिया अब वो अकेले ही यहां रहेंगे। किसना कुछ बोला नहीं और घर की सफाई में लग गया।

वो खेत में आ गया। खेत के बीच मे चलता रहा। खेत में फसल उसके कमर तक आ गयी थी। चलते हुए वो टहनियो को अपने हाथो से किनारे कर रहा था। मन में विचारो की रेल अभी भी सरपट दौड रही थी। रिंकू के लिए उसने कितना कुछ किया। शादी के बाद से ही उसने रिंकू की भावनाओ का सम्‍मान किया है और वो उसे लज्जित करने का एक भी मौका नहीं छोडती है। आज उसने एक रूमाल की बात पर बखेडा खडा कर दिया। उसे समझाने के लिए उसके पास दिमाग नहीं है। वो तो अब सब कुछ छोड आया है। यही फार्म हाउस उसका घर है। अब वो संभाल लेगी अपना घर। एक बादल का टुकडा आसमान में आ गया था। उससे थोडी बहुत छाया खेत में हो गयी थी। वो चलते चलते किसना की झोंपडी तक पहुंच गया था। किसना की झौपडी के बाहर पेड के नीचे खाट बिछी थी और पास में ही भैंस बंधी हुई थी। वो खाट पर बैठकर लेट गया। पेड पर चिडियाऐं चहचहा रही थी। सभी चिडियाओ के एक साथ चहचहाने से शोर जैसा महसूस हो रहा था परन्‍तु उसे कुछ महसूस नहीं हो रहा था। उसके मन में तो रिंकू के प्रति गुस्‍सा निकल रहा था। आज जैसे उसने ठान लिया था कि वो फार्म हाउस में ही रहेगा। वो रिंकू को बताकर भी नहीं आया था। रिुकू काम पर चली गयी थी। वो इधर चला आया। सुबह झगडे के बाद रिंकू का फोन भी नहीं आया था। उसने भी फोन करने की जरूरत नहीं समझी थी।


किसना घर साफ करने के बाद आकर बोला- साहब । खाना लगा दूं क्‍या। बाजरे की रोटी और सब्‍जी है। उसने कुछ देर सोचा फिर बोला ले आओ। आज सुबह हो झगडे के बाद खाना भी खाकर नहीं आया था। किसना एक थाली में बाजरे की रोटी और सब्‍जी ले आया था। थाली कुछ देर उसके आगे पडी रही। किसना के कहने पर उसने एक कौर तोडा । धीरे धीरे अपने मुंह तक ले गया। उसका खाने का मन नहीं था। उसने आधी रोटी खायी और आगे खाने से मना कर दिया। अब शाम होने लगी थी। सूरज डूब चुका था। पक्षी लौटकर आने लगे थे। वो अभी तक खाट पर ही बैठा था। अब उठकर कमरे की ओर जाने लगा। उस खाट से कमरे की दूरी आधा किमी होगी परन्‍तु उसके लिए वो कई किमी दूर थी। वो धीरे धीरे जा रहा था। हाथ से बाजरे की फलियों को हटाते हुए। एक बार फिर वो घर के आकर खडा हो गया। पत्‍थरो से निकल पत्तियों को उखाडने लगा। फिर धीमे कदमो से अपने कमरे में गया। कमरे में कलैण्‍डर लटक रहा था।हवा तेज हो गयी थी। तेज हवा के झौंको से कलैण्‍डर के पन्‍ने फडफडा रहे थे। पहले उसने सोचा कि खिडकी बंद कर दूं परन्‍तु फिर उसने अपना विचार बदल लिया। कलैण्‍डर अब भी फडफडा रहा था। वो कलैण्‍डर के पास गया और कलैण्‍डर को उतार लिया। कलैण्‍डर को उतार कर उपर रखने लगा तो उसने कलैण्‍डर के महीने  के पन्‍ने को बदल दिया। उसने देखा आज की तारीख पर गोल किया हुआ है। वो महत्‍वपूर्ण दिनो को साल के पहले दिन ही गोल कर देता है। आज उसने याद नहीं आ रहा था कि क्‍यों गोल किया हुआ है। उसने अपने दिमाग पर जोर डाला परन्‍तु उसे याद नहीं आ रहा था। फिर अचानक से याद आया। आज तो रिंकू का बर्थडे है। बर्थ डे का विचार आते ही पहले से चल रही विचारो की रेल रूक गयी। जैसे विचारो की रेल का स्‍टेशन आ गया हो और दूसरी रेल चलने की तैयार हो। उसने अपना बैग उठाया और घर से निकल गया। किसना दौडता हुआ आया। उसने पूछा साहब वापिस आ रहे हो क्‍या। वो हाथो से मना करते हुए गाडी में बैठ गया। गाडी तेजी से दौडाता हुआ शहर में आ गया। उसने अपनी गाडी ज्‍वेलरी शॉप के पास पार्क की और ज्‍वेलरी शॉप में चढ गया। रिंकू पिछले एक बरस से अंगूठी मांग रही थी। उसने ज्‍वेलरी शॉप से एक अंगुठी खरीदी। हीरे की अंगुठी। रिंकू को हीरे की अंगुठी पसंद थी। उसने अंगुठी पैक करवाई और शॉप की सीढिया उतरने लगा। उसकी नजर ज्‍वेलरी शॉप के ठीक सामने गयी जहां से रिंकू उतर रही थी। सामने जैण्‍टस गिफट का शो रूम था। रिंकू शौ रूम की सीढिया उतर रही थी। रिंकू ने उसको देखा नहीं था। दोनो उतरकर बिलकुल एक दूसरे के सामने आ गये। उसके हाथ में रिंग का शो केस था तो रिंकू के हाथ में रूमालो का एक बंच था। दोनो ने एक दूसरे को देखा । दोनो जोर से मुस्‍कुराये । उसने रिंकू का हाथ पकडा और गाडी में बैठ गये। रात चांदनी थी। चांदनी राते में गाडी चमकते हुए हॉर्न बजाती हुई घर की तरफ जा रही थी।

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Sunday, September 11, 2022

असली कबूतर

 






मेरे पापा मेरे लिए किसी हीरो से कम नहीं थे। वे बचपन में मुझे अपनी मास्‍टरी के किस्‍से सुनाया करते थे। वे किसी तरह से गांवो में पढाने जाया करते थे जहां उन्‍हे कई मील धोरो में पैदल चलना पडता था। गांव वाले किसी प्रकार उनकी सेवा करते थे। गांव में उनकी सबसे ज्‍यादा ईज्‍जत होती थी। गांव के लोग राय लेने के लिए उनके पास आते थे। एक बार गांव जाते थे तो एक सप्‍ताह बाद ही उनका आना होता था। पापा बताते थे कि वे जिस गांव में पढाने जाते थे उस गांव में पानी की बहुत कमी थी। पीने के लिए भी मुश्किल से पानी मिल पाता था। पहली बार वे उस गांव गये थे तो पीने का पानी कहीं नही मिला। एक हर एक आदमी छाछ का लौटा ले आता परन्‍तु पानी कोई नहीं लाया । फिर शाम को सरपंच ने पानी का घडा भर कर दिया। पापा काफी सालो तक गांव में पढाते रहे । फिर शहर में नौक्‍री करने लग गये। पढाने का शौक उन्‍हे फिर भी था। शाम को बच्‍चे उनके पास पढने आते थे। वे बच्‍चो से फीस नहीं लेते थे। वो अपनी सेवाऐ ऐसे ही देते थे। उनका मानना था कि विद्या खर्च करने से बढती है। एक बार शहर के एक अमीर व्‍यक्ति ने अपने बच्‍चे को अलग से पढाने के लिए बहुत सारी फीस का आफर दिया। पापा ने उसे साफ मना कर दिया और कह दिया कि पढाई में कोई अमीर और गरीब नहीं होता है। मेरे लिए सारे बच्‍चे बराबर है। उन्‍हाने अमीर व्‍यक्ति को वापिस लौटा दिया। 



पापा के पढाये बच्‍चे जब अच्‍छे नंबरो से पास होने लगे तो पढने आने वाले बच्‍चो की भीड बढ गयी। फिर पापा ने शाम का स्‍कूल खोल लिया। वहां पढाने के लिए दूसरे मास्‍टरो को भी रख लिया। मै उस समय दसवीं में पढता था। मै भी शाम की स्‍कूल में जाने लगा। वहां पढाई को रोचक किस्‍सो के साथ पढाया जाता। हमे पढने में बहुत रूचि आती। बच्‍चे कभी भी कोई क्‍लास मिस नहीं करते । मैं और राजेश दोनो शाम की स्‍कूल में पढने जाते। राजेश मेरा मित्र था। वो मेरे पापा से प्रभावित भी था। वो शुरू से ही पापा के पास पढने के लिए आता था। उसके घर में समस्‍याऐ थी परन्‍तु पापा कभी उसे उदास नहीं होने देते और उसका मन पढाई में लग जाता । शाम की स्‍कूल खुली तो वो सबसे ज्‍यादा खुश हुआ। मेरे साथ वो शाम को स्‍कूल में आने लगा। हम दोनो स्‍कूल में खूब मन लगाकर पढते और क्‍लास में बतायी गयी बात पर खूब चर्चा करते।



एक बार क्‍लास में पापा पशु पक्षियो के बारे में बता रहे थे। पापा  बता रहे थे कि पशु प‍क्षी किसी प्रकार किसी को कोई तकलीफ नहीं देते । कोई मानव उसे प्रेम करता है तो वो भी उसी प्रेम से उसका जवाब देते है। पापा ने बताया किस प्रकार लोग कुत्‍ता पालते है तो कुत्‍ता वफादारी से घर की रखवाली करता है। उसी प्रकार कोई पशु या पक्षी जिसको पालते है तो वो भी अपने मालिक के प्रति प्रेम दर्शाता है। पापा ने बताया कि पशु पक्षियो को कभी भी बांधकर या पिंजरे में नहीं रखना चाहिए। उन्‍हे खुले घूमते रहने देना चाहिए। कुत्‍ता पालते है तो उसे बांधना नहीं चाहिए और पक्षी पालते है तो उन्‍हे पिंजरे में नहीं रखना चाहिए। राजेश ने पूछ लिया – पिंजरे में नहीं रखेगे तो पक्षी उड जायेंगे। इस पर पापा ने बताया कि यदि हम उसे वास्‍तव में प्रेम करते है तो वो हमारे प्रेम के कारण् कहीं नहीं जायेगे। पापा ने एक जीवंत उदाहरण देकर अपनी बात को समझाया। उन्‍होने सफेत कपोतो की बात बतायी। पापा ने पूछा आप सफेत कपोत के बारे मे जानते हो। तो सभी ने ना में अपनी गर्दन हिलायी। फिर पापा ने कहा जिसे आप सफेद कबूतर या असली कबूतर कहते हो वहीं सफेद कपोत होते है। हमारे यहां सफेद कपोत को असली कबूतर के नाम से जाना जाता हे। वे शहर में दिखाई नहीं देते है। उनको चिडियाघर में या जंगलो में देखा जा सकता है। पापा ने बताया कि यहीं जस्‍सूसर दरवाजे के अंदर एक व्‍यक्ति के पास दो असली कबूतर है। उसने दोनो असली कबूतर खुले में रखे हुए है। वो उसके घर में ही घूमते रहते है। शाम को वो छत्‍त पर अपने हाथो से उनको आसमान में छोडता है तो वे आसमान में उडते है और एक घंटे तक उडकर वापिस वो उसी छत्‍त पर लौट आते है। राजेश ने कहा – पक्षी उडने के बाद लौटकर नहीं आते है। पापा ने कहा कभी तुम शाम को उधर जाओ तो देखकर आना किस प्रकार वो लौटते है।



असली कबूतर की क्‍लास हम लोगो को बहुत पसंद आयी। राजेश तो जैसे पापा की बातो में खो गया। वो असली कबूतर की कई प्रकार से कल्‍पनाऐ करता। शाम को अपनी छत्‍त पर खडा हो जाता और असली कबूतरो का इंतजार करता। आसमान में कोई सफेद सा पक्षी दिखाई देता तो मूझे कहता तो देखो वो असली कबूतर जा रहे है। मै आसमान की ओर देखकर मुस्‍कुरा देता। जस्‍सूसर दरवाजा हमारे घर से दूर था इसलिए हमे वहां अकेले जाने की इजाजत नहीं थी। मै और राजेश कभी सोचते की पापा के साथ जायेगे तो पापा को समय नहीं मिलता। राजेश् के पापा रात को देर से आते। हम यह सोचते ही रहते कि किस प्रकार वो व्‍यक्ति असली कबूतरो को पालता होगा। कबूतर उडकर कैसे वापिस उसके पास लौट आते है। राजेश सोचता इंसान ही इंसान का कहना नहीं मानता तो पक्षी इंसान को इतना कैसे मानते है। राजेश की बुआ कॉलेज में पढती थी उस समय घर छोड कर गयी थी परन्‍तु अभी तक लौटकर नहीं आयी। राजेश के पापा ने उसे बहुत ढुंढा। उसके पापा दूसरे शहरो में भी गये परन्‍तु बुआ कुछ पता नहीं चला। कई दिनो तक पापा उदास रहते थे। उस समय राजेश छोटा ही था। उसके दिमाग से बुआ की बात अभी तक नहीं गयी। असली कबूतरो के जिक्र से उसके मन में फिर से बुआ की याद आ गयी । वो मुझे रोज कहता कि हम असली कबूतर देखने चले । उसकी रूचि असली कबूतर देखने से ज्‍यादा उसके लौटकर आने को देखने की थी। कैसे उडे हुए पक्षी लौटकर कैसे आते है। वापिस उसी जगह पर जहां उन्‍हे कैद में रखा गया है। हम दोनो रोज उस ओर जाने की जुगत भिडाते लेकिन जा नहीं पाते। शाम को स्‍कूल का समय हो जाता तो स्‍कूल आ जाते ।

एक बार पापा किसी काम से शहर से बाहर गये हुए थे तो मै अपनी मम्‍मी से परमिशन लेकर राजेश के साथ जस्‍सूसर दरवाजे के अंदर गया। शाम को वक्‍त था। हमे नहीं मालमू था कि असली कबूतर किस घर मे है। हमने आस पास पूछा तो किसी ने ईशारा करके सामने वाला घर बताया। हम उस घर की ओर जाने लगे तो उस घर के छत्‍त पर एक व्‍यक्ति दोनो हाथे में असली कबूतर लिये खडा था। बिलकुल सफेद कबूतर थे। जैसा पापा ने बताया था वैसे ही सफेद थे। हम उन कबूतरो को देखकर रोमांचित हो रहे थे। उस व्‍यक्ति ने कबूतरो को हाथ मे लेकर अपने छत्‍त्‍ के दो चक्‍कर लगाये। फिर अपने दोनो हाथ उपर किए और दोनो असली कबूतर आसमान में छोड दिये। वो दोनो असली कबूतर आसमान में उडते गये। मै और राजेश् बहुत देर तक आसमान में उन सफेद कपोतो को देखते रहे और थोडी देर में वो सफेद कपोत आसमान में दिखने बंद हो गये। मैने राजेश को वापिस चलने के लिए कहा परन्‍तु राजेश ने कह दिया असली कबूतरो के वापिस आने तक हम यहीं है। हम वहीं एक किनारे बैठ गये। धीरे धीरे शाम गहराने लगी। सूरज छिप चुका था। चिडियाओ की चहचहाट  बढ गयी। वो व्‍यक्ति फिर से छत्‍त पर आ गया। हमने आसमान में देखा असली कबूतर फिर आसमान में नजर आने लगे। धीरे धीरे वो उडते हुए नीचे आने लगे। धीरे धीरे वो वापिस उस व्‍यक्ति की छत्‍त पर आ गये। वो दोनो नीचे आकर उस व्‍यक्ति के कंधो पर बैठ गये। हम दोनो यह दश्‍य देखकर बहुत रोमांचित हुए। राजेश बहुत ज्‍यादा रोमांचित था। फिर हम घर लौट आये। मैने अपनी मम्‍मी को बडे कौतूहल से यह किस्‍सा सुनाया।

अगले दिन शाम की स्‍कूल में यही किस्‍सा चलता रहा कि हमने किस प्रकार असली कबूतर देखे और वो किस प्रकार उडकर लौट आये। आज पापा की क्‍लास आयी तो पापा क्‍लास में आये। आज पापा ने वापिस पशु पक्षियो का किस्‍सा छेडा। पापा ने राजेश् से पूछा असली कबूतर देखकर कैसा लगा। उसने रोमांचित होकर वो किस्‍सा सुनाया। फिर उसने एक सवाल पूछ लिया। इस सवाल का जवाब पापा भी नहीं दे पाये। उसने पूछ लिया- असली कबूतर वापिस शाम को अपने मालिक के पास लौट आते है तो क्‍या इंसान वापिस लौटकर आता है क्‍या। इंसान अपना घर छोडकर जाने के बाद क्‍यो नहीं लौटता है। उसको गली गली आवाज देने के बाद भी वो नहीं लौटता है। सर इंसान घर छोडने के बाद क्‍यो नहीं लौटता है। बताइये सर जो इंसान घर छोडकर चला गया है वो क्‍यो नहीं लौटता है। यह कहते हुए राजेश के गालो पर आंसू लुढक गये। पापा कुछ देर खडे राजेश को देखते रहे । फिर क्‍लास के दरवाजे पर खडे होकर आसमान को देखने लगे। मैने राजेश के कंधे पर हाथ रखकर उसे नीचे बैठाया। क्‍लास में बिलकुल शांति थी।