चैत्र नवरात्रा में धूप तीखी होने लगती है। फर्श पर बिछी चमकती हुई धूप आंखो
पर किसी कांच के रिफ्लेक्शन की तरह पड्ती है। एक बार तो आंखे चुंधियाने लगती है।
इस समय हमारे यहां ऐसी ही धूप है। नवरात्रा में चार दिन का वीकेंड था। नवरात्रा
चल रहे है तो उपवास भी है। चार दिन के वीकेंड का अधिकांश समय तो पूजा पाठ में ही
बीता। सुबह दोपहर और शाम का वक्त पूजा में ही निकला। फिर भी कुछ कामो और आयोजनो
के लिए समय निकाल लिया। आयोजन अपनी पंसद के हो तो समय का रूम निकल ही जाता है।
वीकेण्ड के पहले दिन एक नाटक देखने जाने का निश्चय था। अमर कला महोत्सव में
पहले दिन बालीगंज 1990 नाटक खेला जाना था। इस नाटक का नाम पढते ही मैने इसे देखने
जाने का निश्चय कर लिया था। नाटक बालिका वधू फेम अनूम सोनी द्वारा अभिनीत होना
था। मेरे लिए यह पहला अनुभव था कि किसी ख्यातनाम कलाकार को नाटक करते हुए
देखूं।
शाम तक सारे काम निपटाकर मै ठीक 7;30 बजे रविन्द्र रंगमंच पहुंच गया। कोई साथ नहीं था। अकेला ही गया था। रविन्द्र रंगमंच के बाहर भीड नहीं था। जब अंदर हॉल में प्रवेश करने वाला दरवाजा खोला तो देखा कि हॉल लगभग हाउस फुल था। बैठने को कहीं जंगह नहीं मिल रही थी। योगेन्द्र बैठा मिल गया। उसके पास एक सीट पर बैग रखा हुआ था। उसने वो सीट मुझे दे दी । नाटक का सेट शानदार था। एक बंगाली घर के ड्राईग रूम का सैट था। बंगाली मकानो में होने वाले दरवाजे और दीवारो पर टंगी पेंटिग बंगाली माहौल का अहसास करा रही थी। थोडी देर में हॉल की लाईट बंद कर दी गयी। सब लोगो की नजरे स्टेज पर थी। नाटक अनूप सोनी की एन्ट्री के साथ शुरू हुआ। कमाल का अभिनय था। अनूप सोनी के साथ थी निवेदिता । दोनो के अभिनय से पूरे हॉल में पूरे डेढ घंटे पिन ड्रॉप साईलेंस रहा। हम लोग जैसे नाटक मे खो गये थे। यह दो प्रेमियो की कहानी थी। नाटक में थ्रिलर और सस्पेंस था। ऐसा लगता है जिसने इस नाटक को नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा। नाटक खत्म होने के बाद मै वहां से निकलने लगा तो दो चार लोग और मिल गये। सबसे मिले और बातचीत की और वहां से निकल लिया।
वीकेंड का तीसरा दिन
बेहद खास रहा । इस दिन मेरे सहकर्मी और मित्र गोपाल जी सोनी का सुबह सुबह फोन
आया कि एक कार्यक्रम 11 बजे है तो आपको जरूर आना है। पूजा पाठ का समय था इसलिए
इतना ध्यान नहीं दिया। फिर पूजा पाठ निपटाने के बाद कुछ काम नहीं था तो
गोपालजी वाले कार्यक्रम की याद आ गयी। फिर निकल पडा इस कार्यक्रम के लिए। स्थानीय
मोहता भवन में यह कार्यक्रम था। यह एक संगीत का कार्यक्रम था। कार्यक्रम कोई बडा
नहीं था परन्तु दोस्तो ने इसे बडा बना दिया। मंझे हुए कलाकार विजय स्वामी और
संजय पूरोहित ने मनभावन गीत सुनाये। हम सब गीतो को पूरी तरह से इंजॉय किया। एक
साथी ने जब नगमा छेडा – ‘ फिर छिडी बात फूलो की ........ तो उसका भरपूर आनंद लिया।
यह कर्णप्रिय गीत सुनते ही हर कोई खो जाता है। मैने भी माईक लेकर दो चार हाथ मार
लिये। कुछ साथियो के साथ और कुछ अकेले दो चार लाईने गुनगुना दी। मैने हर एक गीत
का आनंद लिया। इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए वाकई गोपाल जी सोनी धन्यवाद के
पात्र है।
इस वीकेंड में यह दो
आयोजन बेहतरीन रहे। वीकेंड के अंतिम दिन में अजित फाउण्डेशन गया। वहां संजय
श्रीमाली से बैठकर लंबी चर्चा की। मैने अपनी किताब मोळियो अजित फाउण्डेशन को
भेंट की। यह किताब अब अजित फाउण्डेशन पुस्तकालय की शोभा बढायेगी।
अब शाम हो रही है तो
बता रही है कि लंबा वीकेंड अब समाप्त हो रहा है। अब कार्यालय दिखाई देने लग गया
है। बहुत सारा काम और देर रात तक घर लौटना। अब अगले हफते यही रहने वाला है।