Sunday, December 22, 2024

लिखे जो खत तुझे

 


 मै जब यह पढ़ रहा था तो यह कभी लगा ही नही कि मै एक खिलाड़ी को लिखे पत्र को पढ़ रहा हूं। मुझे ऐसा लगा कि किसी शास्‍त्रीय संगीत की धारा में बह रहा हूं या फिर किसी प्रतिष्ठित साहित्‍यकार की किताब को पढ़ रहा हूं। बिलकुल ऐसा ही लगा जब मै इस साल के खेलो की दुनिया में हुए दो रिटायरमेंट के बाद लिखे पत्रो को पढ़ रहा था। ऐसा लगा जैसे एक सरल सलि‍ल नदी बह रही है और उसके पानी के साथ एक शास्‍त्रीय धुन के साथ जा रहा हूं। इस साल टेनिस से रिटायर हुए रफाल नाडेल को लिखा गया उसके प्रतिद्वन्‍द्वी फेडरर का पत्र और क्रिकेट आर. अश्विन के रिटायर होने पर उसकी पत्‍नी का लिखा गया पत्र। ये दोनो पत्र किसी खेल के नही बल्कि साहित्‍य के पत्र मालूम होते है। उनके एक एक शब्‍द उन दोनो खिलाडि़यो के पूरे खेल जीवन में शीतल हवा की ठंडी बयार है।

क्रिकेट आर. अश्‍वनि ने हाल ही में आस्‍ट्रेलिया दौर के बीच में ही अपने रिटायरमेंट की घोषणा की। उन्‍होने क्‍यों घोषणा की और कैसे की यह सब क्रिकेट का विषय हो सकता है परन्‍तु उनकी पत्नि प्रीति ने अपने पति को जो पत्र लिखा उसे पढकर आपके पास भावुक होने के लिए पर्याप्‍त कारण है। वो लिखती है बड़ी जीत, प्‍लेयर ऑफ द सीरीज पुरस्‍कार, एक गंभीर मुकाबले के बाद हमारे कमरे में एकदम शांति, कभी भी शाम में खेल के बाद शॉवर की देर तक आती आवाज, सामान्‍य से अधिक दौड़ना, कागज के उपर अश्विन का लिखते हुए पेंसिल की खरोंच, जब वह गेम प्‍लान बना रहा होता है तो फुटेज वीडियो की लगातार स्‍ट्रीमिंग, प्रत्‍येक मुकाबले के लिए निकलने से पहले एक लंबी सासं लेते हुए खुद का शांत रखने की कोशिश, आराम करते हुए गाने सुनना और उसे लूप कर लगातार दोहराना....... वह समय जब हम खुशी में रोए थे – चैम्पियस ट्रॉफी फाईनल के बाद, मेलबर्न जीत के बाद, सिडनी ड्रा के बाद, गाबा की जीत, टी२० में वापसी करने के बाद..... वह समय जब हम मौन बैठे थे और वह समय जब हमारे दिल टूट गये थे। वो अपने पति को एक गर्ल फैन की तरह लिखते हुए कहती है कि प्रिय अश्विन, किट बैग कैसे रखा जाता है ये ना जानते हुए भी दुनिया भर के स्‍टेडियमो मे आपके साथ चलना, आपका समर्थन करना, आपको देखना और आपसे सीखना परमआनंददायक रहा।  वो अंत में लिखती है कि यह आपके उपर बोझ कम करने का समय है। आप अपनी शर्तो पर जीये, उन अतिरिक्‍त कैलोरिज के लिए जगह बनाऐ, अपने परिवार के लिए समय निकाले, कुछ भी न करने के लिए समय निकाले, पूरे दिन मीम्‍स साझा करे, हमारे बच्‍चो के दिमाग से गंदगी निकाले, बस यह सब करे। यह पत्र उनके पूरे क्रिकेट कैरियर पर एक ठंडी बयार है। अश्विन की पत्‍नी के ये शब्‍दो में साहित्‍य प्रभाव है। उनका यह लिख्ना कि कुछ भी न करने के लिए समय निकाले, दिल को छु गया। यह पत्र रिटायरमेंट पर एक क्रिकेटर के लिए सबसे बड़ा तोहफा है।

ऐसा ही एक रिटायरमेंट टेनिस खिलाड़ी राफेल नडाल का हुआ। नडाल के रिटायरमेंट से पूर्व उनके सबसे बड़े प्रतिद्वन्‍द्वी रोजर फेडरर जो उनसे पहले रिटायर हो चुके थे ने राफेल नडाल को जो पत्र लिखा उसे भी साहित्‍य के क्षेत्र में उच्‍च श्रेणी में रखा जायेगा। उनका पत्र पढ़कर आपको ऐसा लगेगा कि आप बादलो के बीच तैरते हुए संगीत का आनंद ले रहे हो। वेा लिखते है आपने मुझे अपने खेल की फिर से कल्‍पना करने पर मजबूर कर किया। यहां तक कि मैने अपने रैकेट के सिर का आकार भी बदल दिया ताकि किसी भी तरह की बढ़त हासिल कर सकूं। मै बहुत अंधविश्‍वासी व्‍यक्ति नही हूं, लेकिन आपने इसे अगले स्‍तर तक पहुंचा दिया। आपकी पूरी प्रक्रिया। वो सभी रस्‍मे। अपनी पानी की बोतल को खिलौने के सैनिको की तरह फॉर्मेशन में इकटठा करना, अपने बालो को ठीक करना, अपने अंडरवियर को एडजेस्‍ट करना......... ये सब तीव्रता के साथ। गुप्‍त रूप से , मुझे यह सब पसंद आया, क्‍योंकि यह बहुत अनोखा था- यह बिलकुल आपकी तरह ही था और आप जानते है कि खेल का और ज्‍यादा मजा लेने के लिए आपने प्रेरित किया।

वो इससे आगे और भावुकता के साथ लिखते है कि जब मैने नंबर 1 रैंकिंग हासिल की थी तो मुझे लगा था कि मै दुनिया में सबसे उपर हूं और मै था -दो महीने बाद तक, जब आप मियामी में अपनी लाल स्‍लीपलेस शर्ट में कोर्ट में उतरे, अपनी बाईसेप्‍स दिखाते हुए  और आपने मुझे आसानी से हरा दिया। इसके बाद वो यह भी लिखते है कि मै उन यादो के बारे में सोचता हूं जो हमने साझा की है.... साथ में खेल को बढ़ावा देना। वह मैच आधी घास, आधी मिटटी पर खेलना। दक्षिण अफ्रीका के कैप टाउन में ५०,००० से ज्‍यादा फेंस के सामने खेलना। हमेंशा एक दूसरे को हंसाते रहना। कोर्ट में एक दूसरे को थका देना और फिर कभी कभी ट्राफी समारोहो के दौरान एक दूसरे को थामना। वो यह भी लिखते है कि जब भी मै क्‍ले कोर्ट में हराने के लिए कोर्ट में उतरता तो मुझे लगता कि मै आपके आंगन मे पैर रख रहा हूं। वो लिखते है कि आपका पूराना दोस्‍त आपका हमेशा उत्‍साहवर्द्धन करता रहेगा। राफा हमेंशा शुभकामनाऐं, आपका प्रशंसंक, रोजर।

ये दोनो पत्र ऐसा भाषा शैली में लिखे गये है कि ये न केवल खेलो की बल्कि साहित्‍य की धरोहर बन गये है। अश्‍विन की पत्‍नी  प्रीति के पत्र ने अश्‍विन के रिटायरमेंट को खास बना दिया। उसने उनके खेल के दौरान जिये उन एकांत क्षणो को साझा किया है जिसे पढकर हर कोई भावुक हो जाये। यह अश्‍विन के लिए तो सचमुच बहुत भावुकता वाला क्षण होगा। ऐसा ही क्षण रोजर फेडरर का पत्र पढ़कर राफेल नडाल ने जीया होगा। ऐसे पत्र और शब्‍द आपके जीवन का भावुकता भरा विश्‍लेषण करते है।

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Sunday, September 29, 2024

हाथी घोडा पालकी..........................।

 

बादशाह की किलेबंदी कर ली गयी है। सैनिक आगे बढ चुके है। घोडे और हाथी सवारो ने अपने निशाने तय कर लिये है। भीषण युद्ध छिड चुका है परन्‍तु यह कैसा युद्ध है। इस युद्ध में कोई शोर नही है। दोनो तरफ के सैनिक आगे बढ रहे है परन्‍तु युद्ध के मैदान में कोई शोर नही है। पूरे मैदान मे पिन ड्राप साईलेंस है। एक पिन ड्रॉप करने पर उसकी आवाज को भी सुना जा सकता है। कप्‍तानो की सांसो की आवाजाही की आवाज भी आप सुन सकते हो। फिर ये कैसा युद्ध है। फिर भी युद्ध है और तनाव पैदा करने वाला युद्ध है। इस युद्ध में बादशाह, मंत्री, घुडसवार, हाथी सवार और सैनिक सबकुछ है और मारकाट भी है। फिर भी इतनी शांति । मै बात कर रहा हूं शतरंज की। शतरंज के बोर्ड पर ये सब होता है परन्‍तु खेला जाता है पिन ड्रॉप साईलेंस मे। इन्‍ही हाथी घोडो से दुश्‍मनो के बादशाहो को शह मात देकर भारत के युवा विश्‍व चैम्पियन बने है।


पिछले दिनो आपने शोर सुना होगा कि भारत ने शतरंज ओलम्पियाड जीत लिया है। शतरंज ओलम्पियाड दरअसल शतरंज की टीम प्रतियोगिता है। ९७ वर्ष पूरानी इस प्रतियोगिता को शतरंज का जन्‍म देने वाला भारत आज तक नही जीत पाया था। भारत के युवाओ ने वो कमाल कर दिया जो विश्‍व चैम्पियन विश्‍वनाथन आनंद भी नही कर पाये। आनंद भी ओलम्पियाड मे भाग ले चुके है परन्‍तु भारत को चैम्पियन नही बना पाये। भारत के बिलकुल युवा शातिरो ने दुनिया के शातिरो को धूल चटा दी। भारत के ऐसे शातिर इस ओलम्पियाड में खेलने गये थे जो आज भी अपनी मां के बिना सो नही सकते है। मेगा ईवेंट जहां दुनिया भर के शातिर मोहरे लडाते है वहां भारत के १७-२१ बरस के बच्‍चो ने कमाल कर दिया और खिताब जीत लिया। भारत की महिला टीम की वंतिका तनाव में सो नही सकती है। रात जाग कर गुजारती है परन्‍तु मां की गोद में सिर रखने के बाद सारा तनाव भूल जाती है। ओलम्पियाड में भी वंतिका के साथ उसकी मां गयी। मैच के दौरान तनाव होने के कारण रात को उसको नींद की समस्‍या रहती है परन्‍तु मां साथ होने से तनाव को बिलकुल भूल जाती है।

इसी ओलम्पियाड में अर्जुन जो कैंडिड चैस टुर्नामेंट के लिए क्‍वालिफाई नही होने के कारण घनघोर तनाव में आ गया था। वो अपने एक दोस्‍त के घर रहने लग गया। उसने तनाव ओर डिप्रेशन को कम करने का कोर्स किया। उसे लगा कि उसका कैरियर अब खत्‍म हो गया है। उसने अपना मनोबल बढाने के लिए सदगुरू की इनर इंजीनीयरिंग पढी। फिर वो ओलम्पियाड में भाग लेने गया और भारत को चैम्पियन बना कर लौटा।

भारत के ग्राण्‍ड मास्‍टर और छोटी उम्र में विश्‍व चैम्पियन को चुन्‍नौत्‍ती देने वाले प्रगनंदा अपनी बहिन के साथ ओलम्पियाड खेलने आये। बहिन भी भारत के लिए मोहरे लडा रही थी। दोनेा भाई बहिन एक दूसरे से बात करके तनाव को कम कर लेते । दोनो में भारत को स्‍वर्ण दिलाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। सबसे बडा रोल रहा है डी मुकेश का। छोटी सी उम्र में ग्राण्‍ड मास्‍टर बन जाने वाले मुकेश को आशातीत सफलता नही मिल रही थी। १७ वर्ष के मुकेश ने ओलम्पियाड में दिग्‍गज शातिरो को शह और मात दी। उसकी विशेषता है कि वह समय बचाता है। एक मैच के अंत में उसके पास लगभग ६० मिनिट थे जबकि उसे प्रतिद्वदन्‍द्वी के पास कुछ ही मिनट। जीत के प्रति इतना आश्‍वस्‍त की अंतिम चाल चलकर वो दूसरे बोर्ड पर मैच देखने चला गया। विरोधी शातिर ने अपनी मात स्‍वीकार कर ली। ऐसे नन्‍हे शातिरो के साथ भारत ओलम्पियाड में गया था जहां युवा शातिरो ने पूरी दुनिया को शह और मात दे दी।

हिन्‍दुस्तान ने ९७ में साल में पहली बार खिताब जीता है इससे पहले उसका बेस्‍ट तीसरा स्‍थान रहा है। भारत दो बार तीसरा स्‍थान प्राप्‍त कर चुका है परन्‍तु खिताब के बिना भारत का सफर अधूरा था। भारत के किशोरवस्‍था से निकले युवा राजकुमारो ने अपने हाथी और घोडो के साथ पूरी दुनिया को मात दे दी और भारत को विश्‍व चैम्पियन बना दिया। पूरा देश इन युवा शातिरो का स्‍वागत हाथी घोडा और पालकी के साथ कर रहा है। युवाओ ने पूरे देश को अपनी छाती को चाहे जितना चौडा करने का मौका दे दिया है। अब आनंद की विरासत की बागडोर मुकेश और प्रगनंदा ने थाम ली है। इसलिए तो अब सारा देश कह रहा है- हाथी घोडा पालकी जय देश के लालकी ।

Sunday, September 15, 2024

कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे।

 




सितम्‍बर का महीना है। नीला सा आसमान है जो धूप में चमक रहा है। एक बडा सा सफेद बादल जिसे बादल का टुकडा तो नही कहेंगे बल्कि बादल ही कहेगे, सूरज को घेर लिया है। मौसम सुहावना लगने लगा है परन्‍तु यह बादल निकलते ही धूप फिर हम लोगो की देह पर चिपक जायेगी। इस महीने ऐसे ही होता है कभी तल्‍ख धूप होती है तो अगले ही क्षण निहायत ही ठंडा मौसम। सर्दियां दस्‍तक देने लगी है। हमारा दरवाजा बार बार खड़ाखड़ रही है। सुबह सुबह वो झांक कर देख लेती है कि उसके स्‍वागत की हमने कितनी तैयारी कर रखी है। ऐसे मौसम में कहीं निकल जाने का मन करता है। चल तो हम बरसो से रहे है परन्‍तु मंजिल का पता नही है। एक गाने में कहा भी है कि मंजिले अपनी जगह है और रास्‍ते अपनी जगह। मै मंजिलो तक तो पहुंच गया हुं परन्‍तु मंजिल मुड गयी है। केवल मुडी ही नही बल्कि कई जगहो से टूट भी गयी है। कुछ लोग मेरी मंजिलो के टुकडो को उठा कर ले जा रहे है और मै उन मंजिलो के टुकडो को देख रहा हूं।


मंजिले मुड़ गयी है, टूट गयी है और सफर ने पूराने शायरो और कवियो के जुमलो को भी रौद दिया है। मै अकेला ही चला था मंजिल की ओर, अकेला ही चलता गया और अकेला ही रहता गया। लूट गये श्रंगार सभी बाग के बबलू से और हम खडे खडे बहार देखते रहे, कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे।


सितम्‍बर माह में मै अपने घर के आगे से कारवां गुजरते हुए देखता हूं। एक नही कई कारवां गुजरते है। नाचते हुए गाते हुए मानो उन्‍हाने मंजिल पा ली है। उसकी राह मंजिल पर एकदम सीधी है। मैने भी मन बनाया कि इन कारवांओ को देखने जाना चाहिए। ये लोग अपनी मस्‍ती में एक अविरल भक्ति की धारा लेते हुए बाबा रामदेव को धोक लगाने जाते है। ऐसा लगता है कि उन्‍हाने सबकुछ पीछे छोड़ दिया है। अपनी जिम्‍मेदारियों, परेशानियों और कष्‍टो को कुछ क्षणो के लिए अपनी देह से झटक दिया है। अपनी देह जो भीतर से स्‍वच्‍छ होकर सीधे बाबा के चरणो की ओर जा रही है। मै अपनेी सहकर्मी मित्रो के साथ एक शाम को निकल गया भक्‍तो के कारवां को देखकर अपनी आंखो को सुकून देने के लिए।


हम चार जने थे मै विवेक, राजेश, मुकेश और जगदीश। शुक्रिया बनता है विवेक का जिसके वाहन पर हमने इस सफर का आनंद लिया। हमारी सफर गजनेर रोड़ से शुरू हुआ। शुरूआत में ही भक्‍तो के कारवां नाचते गाते हुए मिल गये। लंबे सफर की थकान उनकी देह पर बिलकुल भी नजर नही आ रही थी मानो वे किसी उत्‍सव में भाग लेने जा रहे हो और देखने वालो को भी इस उत्‍सव में शामिल होने का निमंत्रण दे रहे हो। गजनेर टोल नाके तक पहुंचते पहुंचते सूरज की आंख मिचौली खत्‍म हो चुकी थी। सूरज किसी दूसरे देश में अपनी रोशनी बिखेरने जा चुका था। यहां अंधेरे ने दस्‍तक दे दी थी। भजनो की सुर लहरीयां संध्‍या को शुभ बना रही थी। रास्‍ते में जगह जगह कैंप लगे थे। हर कैंप पर जैसे उत्‍सव का पडाव था। एक जगह विवेक ने गाडी की रफतार कम की तो डीजे की धमक गाडी के अंदर तक मदमस्‍त कर रही थी। विवके ने गाडी रोकी तो हम गाडी से उतरे। गाडी से उतरते ही कान हमें सुर लहरियों में ले गये। जोर जोर से भजन चल रहा था – डीजे रा धमीड़ा भाई जोर सूं पडे। वाकई डीजे रा धमीडा जोर सूं पड़ रैया हा। परन्‍तु यह जोर के धमीडे पैरो को थिरकने के लिए आमंत्रित कर रहे थे। बडे से डीजे के आगे बहुत ही सुंदर कृष्‍ण बने बालक के साथ गोपियां बनी हुई दूसरे बालक आकर्षक नृत्‍य कर रहे थे। ऐसा नृत्‍य कर रहे थे जो गांव के लोकरंजन को साकार कर रहे थे । इस नृत्‍य के आगे टीवी शो के सभी डांस शो फीके नजर आ रहे थे। इस डांस का आनंद लेने के बाद विवेक ने गाडी को फिर रफतार दे दी और हमारी गाडी कोलायत जाकर ही रूकी। कोलायत में मेले में जाने वाले इन टोलियों का रात्रि ठहराव होता है। यहां चारो और जातरू ही जातरू नजर आ रहे थे। हम जातरूओ की भीड से निकलते हुए कोलायत सरोवर तक पहुंचे। सरोवर का पानी प्‍लेटफार्म पार कर चुका था। जाने को रास्‍ता नही था। राजेश दूसरे रास्‍ते से हमें मंदिर तक ले गया। यह क्‍या मंदिर तक पानी ही पानी। एक जन ने बताया कि कल तक पानी मंदिर की सीढियो तक था।  आज थोडा उतरा है। पानी ने अपनी हदे पार कर दी परन्‍तु शीघ्र ही अपनी हद में आ गया। जातरूओ को हिदायते दे रहा था कि कोई पानी में अपनी हद नही पार करे नही तो वो उसे अपने आगोश में ले लेगा। सरोवर में चक्‍कर निकाल रही लाईफ बोट यही संदेश दे रही थी। हमने सरोवर में हाथ मुंह धोये और कपिल मुनि के दर्शन को चले गये। सांख्‍य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनी का यह दुनिया भर में प्रसिद्ध मंदिर है परन्‍तु यहां मंदिर में कही भी सांख्‍य दर्शन का जिक्र नही है और ना ही यहां सांख्‍य दर्शन का साहित्‍य मिलता है। फिर भी कपिल मुनी के दर्शन मात्र से उस परम तत्‍व साक्षात्‍कार का अनुभव कर सकते है। कपिल मुनि के दर्शन के बाद सीधे हम गाडी में बैठे और चल दिये वापसी की ओर । वापसी में एक कैप हमारे एक और साथी का था। जहां बाबा रामदेव की आरती के बाद हमने प्रसाद ग्रहण किया। प्रसाद नही वो अमृत के समान था। मन और पेट दोनो तृप्त हुए। इसके बाद हमने समय जाया नहीं करते हुए गाडी में बैठे और घर के लिए रवाना हुए क्‍योंकि आसमान में सभी तारो ने आकर डेरा डाल दिया था। जातरूओ का आना अब भी जारी था।


सितम्‍बर का महीना भक्ति भाव का महीना है। रामदेवरा का मेला देखने के दोदिन बाद ही मैं अपने भांजे और भतिजो, बच्‍चो के साथ पूनरासर में जाने वाले भक्‍तो का कारवां देखने चला गया। इन भक्‍तो की मंजिले भी एकदम साफ और स्‍पष्‍ट थी। जिनकी मंजिले मुडी हुई थी उनके साथ विश्‍वास था कि पूनरासर हनुमान जी उनकी मंजिलो को सीधा कर देगे। यहां हम अपनी बाईक पर गये थे। यहां जातरूओ की भीड बहुत ज्‍यादा थी। कैम्‍पो पर सेवा करने वालो की भीड थी। सेवा लेने वाले अनुशासन के साथ लाईन में लगे हुए थे। यह लाईने बताती है कि सेवा में मिलने वाली हर चीज पूनरासर हनुमान जी का प्रसाद है और लोग प्रेम से खा रहे है। यहां गाडो पर डीजे की धमक सुनाई दे रही थी। किसी गाडे पर हनुमान चालीसा तो किसी गाडे पर हनुमान जी के चमक दमक वाले भजन चल रहे थे। एक कैम्‍प के आगे युवाओ का हजूम डीजे के आगे थिरक रहा था। हर एक को यह थिरकन आनंद दे रही थी। हम आगे गये तो श्‍याम बाबा का मंदिर था। इस मंदिर में भी सेवा चल रही थी। लोगो का हजूम था। दूसरी तरफ महिलाऐ नत्‍य कर रही थी। हमने सेवा का प्रसाद तो नही लिया हम श्‍याम बाबा के दर्शन करने मंदिर गये। हारे का सहारा बाबा श्‍याम की दर पर भी लोगो की भीड जुटी थी। हम दर्शन करने के बाद लौट आये थे। भीड बढती जा रही थी। हमने बाईक लेकर घर लौटना उचित समझा क्‍योंकि अगले दिन हमे पूनरासर दर्शन के लिए भी निकलना था। वापसी में भी भक्‍तो के कारवें मिल रहे थे। भक्ति का ऐसा ज्‍वार सितम्‍बर माह में ही देखने को मिलता है।


मेरी मंजिले भले ही मुड गयी और टूट गयी हो परन्‍तु परम पिता परमेंश्‍वर हर की मंजिल को सुस्‍पष्‍ट और भेदने योग्‍य बनाते रहे। मेरे आगे से कारवां गुजर रहे थे। जयकारो की आवाजे आ रही थी परन्‍तु मेरा मन कह रहा था कि

गीत अश्‍क बन गये,

छंद हो हवन गये

साथ के सभी दिए, धुआं पहन पहन चले

और हम झुके झुके

मोड पर रूके रूके

उम्र के चढाव का उतार देखते रहे

कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे।

 

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Thursday, August 15, 2024

ओलंपिक का विवादो से वास्ता

 

 


खेलो का महाकुंभ पेरिस २०२४ कुछ खटटे तो कुछ मीठे अनुभवो के साथ सम्‍पन्‍न हो गया। ओलम्पिक हमेशा से ही पूरी दुनिया में किसी भी देश द्वारा खेल कौशल द्वारा अपने आपको साबित करने का सबसे बडा मंच रहा है। दुनिया भर के एथलीटो ने इस महाकुंभ को अपने रोचक खेलो के जरिये इसे रंगीन बना दिया। कई युवा खिलाडियो ने अपने खेल कौशल से अपने देश को गौरान्वित किया। कई एथलीटो हार बाद हताश हुए मैदान में लेटे हुए रोते नजर आये। यही खेल सिखाते है कि खेल के बाद एक दूसरे को बधाई दो और हारने पर अगली बार जोरदार प्रदर्शन का अपने आप से वादा करो। इन सभी रंगीन यादो के बीच पेरिस ओलम्पिक कई कडवी यादे छोड गया। हर ओलम्पिक में छोटी मोटी घटनाऐं होती है जो सावधानी बरतने के बाद भी हो ही जाती है परन्‍तु इस ओल‍िम्‍पक में ऐसे विवाद और घटनाऐं हुई जिसके लिए भी पेरिस २०२४ को कभी भुलाया नही जा सकेगा।

इस ओलम्पिक के उदघाटन समारोह से चंद घंटो पूर्व ही फ्रांस में हिसा शुरू हो गयी। कई रेलगाडियां रोक दी गयी। समाचार पत्रो के अनुसार रेल्‍वे स्‍टेशनो पर कई घंटो तक अफरातफरी मची रही। इस हिंसा के पीछे बाहर की ताकतो केा जिम्‍मेदार बताया गया। कई लोगो ने इस युक्रेन रूस युद्ध के तनाव को बताया। फ्रांस की मीडिया ने फ्रासं मे एक वर्ग की कारस्‍तानी बतायी जो पेरिस ओलम्पिक का विरोध कर रहा था। आगजनी और हिंसा से पेरिस ओलम्पिक को बदनाम करने की साजिश मानी गयी। पेरिस २०२४ के उदघाटन समारोह में प्रसिद्ध कलाकार अेयो नाकामुरा ने प्रसिद्ध दी। नाकामुरा पर रंगभेद टिप्‍पणी की गयी। एक सर्वे के अनुसार फ्रांसिस लोगो ने नाकामुरा के उदघाटन समारोह में प्रस्‍तुती को स्‍वीकार नही किया था। उदघाटन समारोह में कोरिया जैसे देशो के नाम को लेकर भी विवाद खडा हुआ। विवाद क्‍या हुआ और कैसे हुआ परन्‍तु हुआ तो ना। ओलम्पिक जैसे बडे आयोजनो में विवाद की परछाई पड जाने को भी असफलता का कारण मान लेते है वहां इतने बडे विवाद ओलम्पिक की छवि खराब करते है।

ओलम्पिक खेल जिस शहर में होते है उस शहर में एक खेल गांव बनाया जाता है जहां पूरी दुनिया के एथलीट अपने देश के एथलीटो के साथ रहते है। इस बार ओलम्पिक में ठहराने और खाने की व्‍यवस्‍था को लेकर बहुत विवाद हुआ। कई देशो के एथलीटो ने कहा कि उन्‍हे जहां ठहराया गया है वहां हवा और रोशनी पर्याप्‍त नही है। कई देशो के एथलीट ऐसी अपने साथ लाये थे। कई एथलीट खेल गांव छोडकर होटलो में जाकर रूके। खेल गांव में पानी की भी पूरी व्‍यवस्‍था नही थी। कई एथलीटस ने खेल गांव में खाने की क्‍वालिटी को सबसे घटिया बताया। एथलीटो ने कहा कि वो खेल गांव में खेल पर फोकस नही कर पा रहे है। ८०० मीटर स्‍वर्ण पदक विजेता कीली हॉंजकिसन ने आरोप लगाया कि उनको परोसी गयी मछलियों में कीडे थे। ग्रेट ब्रिटेन के एथलीटो ने शिकायत की कि उन्‍हे कच्‍चा मांस परोसा जा रहा है। बडे खेल आयोजनो में खाने जैसी शिकायत होनी चाहिए। ब्रिटिश एथलीट एडम पीटी ने कहा कि खाने के नाम पर समझौता किया जा रहा है। खबरो के अनुसार खेलगांव में एथलीट खाने और ठहराने की व्‍यवस्‍थाओ से नाराज नजर आये।

पेरिस ओलम्पिक में यही नही हुआ बल्कि लिंग विवाद भी हुआ। अल्‍जीरीया की इमान खलीफ ने अपनी बाउट में प्रतिपक्ष बॉक्‍सर को ४५ सैकेण्‍ड में हरा देने पर उसके लिंग पर शक किया गया। पूरी दुनिया में खलीफ को पुरूष मानते हुए महिला के विरूद्ध खेलने का आरोप लगाया गया। इस बात को लेकर पूरी दुनिया में पेरिस ओलम्पिक आयोजको की जमकर आलोचना हुई परन्‍तु बॉक्‍सर खलीफ ने कह दिया कि वो भी और औरतो की तरह ही औरत है। उसने कहा कि वो एक महिला की तरह ही पैदा हुई और महिला की तरह ही हूं। लोग मेरी सफलता को पचा नही पा रहे है। पेरिस ओलम्पिक के दौरान यह विवाद छाया रहा ।

खेल विवाद में भी एक विवाद और जुड गया जब भारत की विनेश फोगाट ५० केजी वर्ग में सेमिफाईनल जीतकर फाईनल में पहुंची। पूरे भारत में खुशियां मनायी जाने लगी क्‍योंकि देश का एक और पदक पक्‍का हो गया था परन्‍तु फाईनल मुकाबले से कुछ समय पूर्व ही उसे ज्‍यादा वजन होने के कारण उसे अयोग्‍य करार दे दिया गया। भारत से लेकर फ्रांस तक इस अयोग्‍यता के विरूद्ध बहुत हंगामा मचा। आखिर में विेनेश फोगाट द्वारा अपील करने पर यह गुस्‍सा थमा। इससे पूर्व आयोजन समिति ने फोगाट को दोबारा खेलाने या पदक देने से साफ इनकार कर दिया था।

इसी प्रकार जब ट्रायथलॉन में हिस्‍सा लेने वाले कनाडाई खिलाडी मिसलाचूक ने सीन नदी में तैरने के बाद लगातार दस बार उल्‍टी कर दी। यह घटना सोशल मीडिया के जरिये पूरी दुनिया में फैल गयी। कई दूसरे खिलाडियो ने भी सीन नदी के गंदे पानी को स्‍वास्‍थ्य के लिए हानिकारक बताया। ओलम्पिक जैसे आयोजनो में गंदे पानी में एथलीट को उतारना आयोजको की बहुत बडी असफलता है।

 

और अंत में ---------

इन विवादो के बीच एक विवाद ऐसा भी हुआ जिसे पढकर आपके बदन में सिहरन सी दौड जायेगी। पेरिस ओलम्पिक से एक ऐसी एथलीट को बाहर कर दिया गया जो बेहद खूबसूरत है। उसकी खूबसूरती के कारण ही उसे पेरिस ओलम्पिक से बाहर होना पडा। पैराग्‍वे की २० वर्षीय तैराक लुआना अर्लासों की खूबसूरती उसके लिए मुश्किल बन गयी। पैराग्‍वे के कई खिलाडियो ने एक बात की शिकायत अपने अधिकारियों से की थी कि लुआना की खूबसूरती के कारण हम अपने खेल पर ध्‍यान नही लगा पा रहे है। पैराग्‍वे अधिकारियों ने इस शिकायत को गंभीरता से लिया और पैराग्‍वे की एथलीट लुआना को कमरा खाली कर देश लौटने का आदेश सुना दिया गया। इस प्रकार लुआना मात्र अपनी खूबसुरती के कारण ओलम्पिक से बाहर कर दी गयी।  

पेरिस ओलम्पिक में सभी तरह के विवाद हुए परन्‍तु ठहरने, खाने पीने और लिंग विवाद जैसे विवाद ओलम्पिक की प्रतिष्‍ठा को ठेस पहु्ंचाते है। जहां खिलाडी शिकायत करते है, उसको ओलम्पिक समिति को गंभीरता से लेना चाहिए। इन विवादो के बावजूद पेरिस ओलम्पिक बेहद रोमांचक और खूबसूरत रहे जहां कईयो के सपने पूरे हुए तो कईयो ने नये सपने अपनी आंखो में देखे।

Wednesday, July 17, 2024

भारतीयो को सोच बदलने की जरूरत मनीष कुमार जोशी

 


विम्‍बलडन २०२४ में चैक गणराज्‍य की क्राजिकोवा के रूप में नयी चैम्पियन मिली। वहीं पुरूष वर्ग में भी अपेक्षित चैम्पियन मिला। विम्‍बलडन २०२४ में दर्शक दीर्घा में दिग्‍गज भारतीय दिखाई दिये। इनमें सचिन तेंदुलकर, रोहित शर्मा, सुनील गावस्‍कर, आमीर खान, सिद्धार्थ मल्‍होत्रा और किराया आडवाणी जैसे दिग्‍गज शामिल है। ये विम्‍बलडन में भारत की शान बढा रहे है परन्‍तु ये भारत की शान दर्शक दीर्घा तक ही बढा रहे है परन्‍तु कोर्ट में भारतीयो को परचम लहराने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी। विम्‍बलडन २०२४ में एक साक्षात्‍कार में पूर्व टेनिस खिलाडी विजय अमृतराज ने यह कह कर भारत की चिंताए बढा दी कि निकट भविष्‍य में कोई भी भारतीय खिलाडी विम्‍बलडन में सफलता प्राप्‍त करता नही दिखाई दे रहा है। उन्‍होने भारतीयो की सफलता को मानसिकता से जोड दिया। इस साल भारत की ओर से सुमित ने पुरूष एकल वर्ग में क्‍वालिफाई किया था परन्‍तु पहले ही दौर में हार कर बाहर हो गये। पिछले पांच सालो में पहला भारतीय है जिसने विम्‍बलडन के मुख्‍य ड्रा के लिए क्‍वालिफाई किया था।

यूं तो भारतीयो का विम्‍बलडन में शानदार रिकार्ड है। १९९९ में लिऐंडर पेस और महेश भूपति की जोडी ने युगल का विम्‍बलडन का खिताब जीता था जिसे विम्‍बलडन को एकमात्र खिताब कहा जा सकता है जिसे भारतीयो ने सीनीयर वर्ग में जीता। इससे पहले रमेंश कृष्‍णन और लिऐंडर पेस ने बालक वर्ग में भी एकल विम्‍बलडन खिताब जीता है। लिऐंडर पेस, महेश भूपित और सानिया मिर्जा ने विभिन्‍न वर्गो में एक से ज्‍यादा विम्‍बलडन खिताब जीते है। इन्‍होने एकल वर्ग में भी कोशिश की थी परन्‍तु यह कोशिश काम्‍याब नही हो पायी परन्‍तु अब तक के सफल खिलाडियो में इनकी गिनती की जा सकती है। एकल वर्ग में विजय अमृतराज का रिकाड कोई नही तोड पाया है।विजय अमृतराज भारत के सबसे सफल एकल टेनिस खिलाडी है जिन्‍होने दो बार विम्‍बलडन के क्‍वाटर फाईनल में प्रवेश किया था। पहली बार १९७३ में और फिर १९८१ में उन्‍होने विम्‍बलडन का क्‍वार्टर फाइनल खेला था। रमेश कृष्‍णन का भी प्रदर्शन एकल मुकाबलो में संतोषजनक रहा था। लिऐंडर पेस, महेश भूपति, सानिया मिर्जा और रोहना बोपन्‍ना के बाद एकल मुकाबलो में भारत के लिए कोई खिलाडी उभर कर नही आया।

भारतीय खिलाडी दूसरे एटीपी टुर्नामेंट में एकल मुकाबलो में ग्राण्‍ड स्‍लेम से बेहतर प्रदर्शन करते है परन्‍तु ग्राण्‍ड स्‍लेम में फिसडडी साबित होते है। विम्‍बलडन का एक अपना अलग महत्‍व है। यह ग्रास कोर्ट पर खेली जाने वाली प्रतिष्ठित प्रतियोगिता है। इसमें खेलना अपने आप में एक प्रतिष्‍ठा का प्रश्‍न होता है। भारतीयो ने विम्‍बलडन में विभिन्‍न वर्गो में सफलता हासिल कर ली परन्‍तु एकल मुकाबलो से दूर रहे । कई भारतीयो ने तो पश्चिमी देशो के खिलाडियो के साथ जोडी बनाकर युगल, मिश्रित युगल और वेटर्न वर्ग में खिताबी सफलता हासिल कर ली । भारत अभी भी विम्‍बलडन में एकल सफलता से कोसो दूर है। विजय अमृतराज ने कहा कि भारतीयो के लिए निकट भविष्‍य में एकल मुकाबलो में सफलता की कोई संभावना नही है। उनका कहना है कि भारत डेविस कप में अभी टॉप १६ में भी नही है। एशिया में हम टॉप ५ टीमो में भी नही है।  ऐसे में कोई कैसे सफलता की कामना कर सकता है। उनका कहना है कि हमें एकल मुकाबलो के लिए 4-5 सर्वश्रेष्‍ठ खिलाडी चाहिए। तब हम ग्राण्‍ड स्‍लेम में सफलता की कामना कर सकते है। उनका कहना है कि पश्चिमी देशो के खिलाडियो से सीख लेनी चाहिए कि वे कैसे पहले जूनियर टुर्नामेंटस में खेलते है और साथ मे एटीपी टूर प्रतियोगिताओ में एक दो मैच जीतते रहते है और फिर टॉप 50-100 में आकर ग्राण्‍ड स्‍लेम उलटफेर कर देते है। विजय अमृतराज जो कि भारत के सर्वश्रेष्‍ठ एकल खिलाडी रहे है और दो बार इस ग्राण्‍ड स्‍लेम में क्‍वाटर्र फाईनल तक खेले है। उन्‍होने कहा कि भारतीयो को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। उन्‍हे भारत का सर्वश्रेष्‍ठ खिलाडी बनने के लिए नही बल्कि पश्चिमी देशो के खिलाडियो से आगे निकलने के लिए खेलना होगा। उनकी यही मानसिकता उन्‍हे सफलता दिलायेगी।

भारतीयो का विम्‍बलडन में शानदार रेकार्ड रहा है। १९९९ में लिऐंडर पेस और महेश भूपति की जोडी ने युगल का खिताब जीता। किसी भी भारतीयो द्वारा विम्‍बलडन के सीनीयर वर्ग मे जीता गया यह एकमात्र खिताब है। वैसे लिऐंडर पेस, महेश भूपित, सानिया मिर्जा और रोहना बोपन्‍ना किसी न किसी वर्ग में विम्‍बलडन में खिताब जीतते रहे है। वे किसी विदेशी खिलाडी के साथ जोडी बनाकर युगल, मिश्रित युगल और वेटर्न वर्ग में खिताब जीतते रहे है। रमेश कृष्‍णन और लिऐंडर पेस बालक वर्ग में भी एकल खिताब जीत चुके है। रमेश कृष्‍णन एकल मुकाबलो में भारत के महत्‍वपूर्ण खिलाडी रहे है। सानिया मिर्जा ने भी शुरूआत में एकल मुकाबलो में शानदार प्रदर्शन किया था। एकल मुकाबलो में विम्‍बलडन में अब के सबसे सफल खिलाडी विजय अमृतराज रहे है। वे दो बार क्‍वार्टर फाईनल तक पहुंचे। १९७३ और १९८१ में उन्‍होने अपनी चुन्‍नौत्‍ती क्‍वार्टर फाईनल तक पेश की। इसके बाद लिऐडर पेस, भूपित और सानिया मिर्जा का दौर भारतीयो के लिए स्‍वर्णिम दौर था परन्‍तु इस दौर में भी एकल मुकाबलो में भारतीय विम्‍बलडन या अन्‍य ग्राण्‍डस्‍लेम में सफलता नही हासिल कर सके। भारतीय थोडी सी सफलता के बाद खिताब जीतने के लिए विदेशी खिलाडियो के साथ जोडी बनाकर युगल और मिश्रित युगल मुकाबलो में उतरने लगे। एकल मुकाबलो के लिए एकाग्रता और पूर्ण रूप से अपने खेल पर फोकस की जरूरत होती है। युगल मुकाबलो में उतरने के बाद एकल मुकाबलो के लिए अपने आपको तैयार करने में दिक्‍कत होती है।

वर्तमान में सुमित की सफलता एक अच्‍छा संकेत है। मुख्‍य ड्रा के लिए क्‍वालिफाई करना एक उम्‍मीद जगाता है। विजय अमतराज की बात से सहमत है कि इस समय भारत को  4-5 एकल खिलाडी चाहिए और उनकी सोच ऐसी होनी चाहिए कि वे अपने आपको पश्चिमी देशो के खिलाडियो से बेहतर बनाने के लिए मेहनत करे और ज्‍यादा से ज्‍यादा टूर प्रतियोगिताओ में भाग ले। प्रतियोगिताओ में भाग लेने से अभ्‍यास की निरंतरता बनी रहती है। उन्‍हे पूर्ण रूप से एकल मुकाबलो पर ही फोकस करना होगा। इस समय हम एशिया के टाप 5 में भी नही है। इसलिए पहली जिम्‍मेवारी फेडरेशन ही है और उसके बाद खिलाडी की होगी कि वो अपनी नयी मानसिकता के साथ कोर्ट में उतरे। उन्‍हे यह याद रखना चाहिए कि उन्‍हे देश में बेहतर नही बनना है बल्कि दुनिया में सबसे बेहतर बनना है। बडी सोच से खिताब तक पहुंचा जा सकता है। फिलहाल यह उम्‍मीद की जानी चाहिए कि सुमित जैसे खिलाडी भारतीयो के नये आयकॉन बनेंगे।

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सीताराम गेट के सामने, बीकानेर ९४१३७६९०५३

Sunday, June 30, 2024

जहां मुकम्‍मल हुआ

 


एक पूराना गाना है कभी किसी को मुकम्‍मल जहां नहीं मिलता, किसी को जमीं तो किसी को आसमां नहीं मिलता परन्‍तु २९ जून की रात को जब तारो से भरे आसमां ने धरती को चूम लिया तो ऐसा लगा हर किसी को आज मुकम्‍मल जहां मिल गया। मेरे शहर के कोटगेट पर तिरंगा हाथ में लिये दौडते और शोर मचाते बच्‍चे जब झूम रहे थे तो ऐसा लगा वाकई इन्‍होने वो पा लिया है जो सभी स्‍वार्थो से परे है जो परमानंद है। हार्दिक पांडया की अंतिम गेंद पर ज्‍योही रबाडा ने सिंगल रन लिया त्‍यों ही दूर कहीं आसमां धरती को चूम रहा था। आसूंओ की शीतल धाराऐ रोहित शर्मा और विराट कोहली के गालो पर बहने लगी। इन धाराओ की शीतलता बयां कर रही थी कि एक मुकम्‍मल जहां के सपने को इन बंदो ने हासिल कर लिया है। युवाओ का शोर बता रहा था कि ऐसी जीत ऐसा जहां कभी किसी को नहीं मिलता जहां उम्‍मीद हो वहां नहीं मिलता।

इस जीत ने हर किसी को जहां मुकम्‍मल दिया। किसी को जमीं तो किसी को आसमां दिया। इस बार जहां उम्‍मीद थी वहां मुकम्‍मल जहां मिला। किसी एक को नहीं हर एक मिला। विराट कोहली मुकम्‍मल जहां की तलाश में थे। गेंद उनके बल्‍ले से मुंह मोड रही थी परन्‍तु फाईनल में उसने उनके बल्‍ले से ऐसा ईश्क किया कि टीम को विश्व कप खिताब दिलाकर ही दम लिया। इससे पहले विराट कोहली को टीम से बाहर बिठाने की बाते हो रही थी। उनके बल्‍ले की बेवफाई के कारण उन्‍हे अनगिनत गालियां पड रही थी। भारतीय टीम के पिछले बारह सालो से कभी सेमिफाईनल तो कभी फाईनल में हारने का गम भी उन्‍हे सता रहा था। इस बार विराट के सारे शिकवे २९ जून की रात ने पूरे कर दिये। ऐसा ही सलूक रोहित शर्मा के साथ हो रहा था। उनका जहां तो वनडे विश्‍वकप की हार के बाद से ही लुट रहा था। उन्‍हे मुंबई इंडियंस की कप्‍तानी से हटा दिया गया। एक मस्‍त मौला इंसान के साथ वो हो रहा था जो किसी घोर असफल खिलाडी के साथ हो रहा था। २९ जून की रात ने चारो और बिखरे गये जहां को समेट कर रोहित शर्मा की गोद में डाल दिया गया। नीली छत्‍तरी वाला इतना दयालु है कि सारा जहां आज रोहित शर्मा के हाथो मे था जो भी उनसे छिन लिया गया था। जब विराट कोहली और रोहित शर्मा ने रिटायरमेंट की घोषणा की तो पूरा क्रिकेट जगत स्‍तब्‍ध हो गया। जमीं को चूमने आया आसमां अवाक रह गया परन्‍तु ये बता रहा था कि विराट और रोहित का जहां मुकम्‍मल हो गया। ऐसा मौका बिरलो को ही मिलता है जब सब कुछ हासिल करने के बाद अलविदा कहे। पूरी दुनिया उन्‍हे रोकना चाहे और वे अपना थैला लेकर घर की ओर लौट चले। दोनो ने ऐसे अलविदा कहा जैसे किसी शांत नदी के ठंडे पानी पर नौको बहकर जा रही हो। 

मुकम्‍मल जहां विराट और रोहित को ही नहीं हार्दिक पांडया को भी मिला जिसके सिर पर बहुत बडा बोझ था। रोहित शर्मा को हटाकर हार्दिक पांडया को मुंबई इंडियंस को कप्‍तान बनाने पर पांडया पर बहुत बडा ऋण था। यह कप्‍तानी रोहित शर्मा के विशाल रेकार्ड और अनुभव का बोझ थी पांडया पर। रोहित के स्‍थान पर कप्‍तानी करके वो सहज नहीं था परन्‍तु अब रोहित के विश्‍व चैम्पियन बनने पर वह बोझ पांडया के माथे से उतर गया। उसका जहां भी मुकम्‍मल हो गया। जहां मुकम्‍मल सूर्य कुमार यादव का भी हुआ जिसे रन बनाने के बाद भी भरोसे की पहचान नहीं मिल रही थी परन्‍तु फाईनल में एक कैच ने उसे पूरी दुनिया का भरोसा पुरस्‍कार में दे दिया। पूरी दुनिया का भरोसा जीतने के बाद उसका भी जहां मुकम्‍मल हो गया।

इसी प्रसिद्ध गाने के आगे बोल है कि तेरे जहां में ऐसा नहीं के प्‍यार न हो, जहां उम्‍मीद हो इसकी वहां नहीं मिलता। परन्‍तु २९ जून की रात बहुत सारा प्‍यार वहां मिला जहां उम्‍मीद नही थी। राहुल द्रविड की कप्‍तानी में २००७ में वेस्‍टइंडीज में ही भारत की टीम वनडे विश्‍वकप से शुरूआती दौर में ही बाहर हो गयी थी। उसके बाद द्रविड के कोच बनने के बाद भारतीय टीम सेमिफाईनल और फाईनल में हार रही थी। राहुल द्रविड के कार्यकाल का यह अंतिम टुर्नामेंट था। इस बार भी हार की आशंकाऐ मंडरा रही थी परन्‍तु २९ जून की रात ने राहुल को पकडा कर सारा जहां दे दिया। राहुल द्रविड का जहां भी उस रात को मुकम्‍मल हो गया। वो भी अपना बैग लेकर सूकून से रवाना हो गया। पीछे पूरी दुनिया उसे बुला रही थी परन्‍तु वो मुस्‍कुराते हुए बाय बाय करते हुए चला गया।

मुकम्‍मल जहां जय शाह का भी हुआ। जब से वो बीसीसीआई के चैयरमैन बने है तब से सवाल उठ रहे है कि भारतीय टीम कोई आईसीसी खिताब नहीं जीत रही है। जय शाह को भारतीय टीम के लिए अशुभ बताने वालो को २९ जून की रात में छुपकर निकलना पडा क्‍योंकि नीली जर्सी वाले विश्‍व कप खिताब के साथ झूम रहे थे। हालांकि मैदान के खेल में बीसीसीआई अध्‍यक्ष का कोई रोल नहीं होता है परन्‍तु फिर भी जो बात चल रही थी वो खत्‍म हो गयी। एक नयी कहानी शुरू हेा गयी। जय शाह को भी जहां मुकम्‍मल हुआ।

अंत में जहां मुकम्‍मल देशवासियो का भी हुआ। पिछले वनडे विश्‍वकप मे फाईनल हार के बाद देश के प्रधानमंत्री टीम को सात्‍वंना देने आये थे और वैसे ही देने आये थे जैसे पहले चंद्रयान के असफल रहने पर उनकी टीम को दी थी। देखिऐ चंद्रयान के दूसरे अभियान ने चांद पर तिरंगा फहरा दिया और अब रोहित शर्मा की टीम ने पूरे देश में तिरंगा लहलहा दिया। पूरे देशवासियो को मुकम्‍मल जहां मिल गया। फाईनल और सेमिफाईनल में हार की कहानी खत्‍म हुई। हम चोकर नहीं है। हम विश्‍व विजेता है। अब कोई यह गाना ऐसे नहीं गायेगा कि कभी किसी को मुकम्‍मल जहां नहीं मिलता। इस गाने को अब ऐसे गाया जायेगा हर किसी का जहां मुकम्‍मल होता।

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Saturday, June 29, 2024

रूके रूके से कदम -----------------।


 


इस समय मै अपने कमरे में बैठा हूं। कमरे की खिडकी की जाली पर लगी लोहे की डण्डियो पर पानी की बूंदे जगह जगह थोडे अंतराल के साथ लटकी हुई है। खिडकी जाली मे से निरा आसमान दिखाई दे रहा है बादलो से घिरा हुआ। चलते हुए बादलो के गरजने की आवाजे भी रूक रूक कर आ रही है। कमरे के दरवाजे के बाहर पडा कूलर बंद है। बारिश में भीगने के कारण उसकी बॉडी पर बहता हुआ पानी दिखाई दे रहे है। कूलर के पीछे पूरी छत्‍त पर बरसात का पानी बिखरा हुआ चमक रहा है जिसमें आस पास के उंचे मकानो की प्रतिछायाऐं दिखाई दे रही है। कभी उस पानी में उडते हुए पंछी की छाया भी दिखाई दे जाती है। कूलर के उपर से ठंडी हवा के झोंके कमरे में आकर मेरे बदन पर गिर रहे है। मै लैपटॉप पर कहानी लिख रहा हूं।

दरवाजे के बाहर एक पडोस का उंचे मकान की दीवारे दिखाई दे रही है जिस पर पानी के निशान साफ दिखाई दे रहे है। कुछ घरो की छत्‍तो की दीवारो पर भी बहे हुए पानी के निशान साफ दिखाई दे रहे है। एक नन्‍ही गौरया मेरे छत्‍त की दीवार पर बैठी हुई ईधर उधर अपनी गर्दन घूमा रही है। कभी पंखा फडफडा कर उडने का विचार करती है और फिर शायद उडने का विचार छोड देती है। वो दीवार पर बैठी हुई  छत्‍त पर गिरे हुए घास फूस को देख रही है। फिर उडकर घसा फूस के पास आकर बैठ जाती है। भीगे हुए घास फूस पर चढकर कुछ देकर उस पर घूमती है। फिर उड जाती है। मै उठकर कमरे से बाहर छत्‍त पर उस दीवार तक जाता हूं जहां पर गौरया बैठी थी। नीचे गली में बरसात का पानी सडक पर फैला हुआ था। कोई बाईक निकलती तो आस पास बहुत सारा पानी उछालते हुए जाती। गली से बाहर मुख्‍य सडक व बाजार है। वहां से भीगे हुए स्‍वरो के साथ गाने की आवाज आ रही थी – रूके रूके से कदम रूक कर कई बार चले। करार दे के तेरे दर से बेकरार चले।रूके रूके से कदम------।

गाने अक्‍सर मुझे ख्‍यालो मे लेजाते है। मै अपने भीतर चल रहे ख्‍यालो की धाराऐ देखता रहा। मन के भीतर ख्यालो का आवागमन तेजी से चल रहा था। कौन सा ख्‍याल कहां जा रहा है कोई पता नही। मै हर एक ख्‍याल का देख पा रहा था। हर एक ख्‍याल में उलझन थी। एक भी अपनी मंजिल तक नही जा पा रहा था। एक नया ख्‍याल लहर की तरह भीतर की राहो को तरंगित कर रहा था। जैसे शांत पानी में कोई नयी धारा आ गयी हो। जैसे सात रंगो में कोई नया रंग आ गया हो। जैसे सात सुरो में कोई नया सुर आ गया हो। जैसे ख्‍यालो की बगिया में कोई नया फूल महक रहा हो। ऐसा ख्याल जिसने मेरी समस्‍त पीडाओ को हर लिया। पीडाऐ उससे हारकर कहीं छुप गयी थी। यह ख्‍याल  मन के भीतर की पूरी दुनिया पर छा गया। जैसे मैने भोलेनाथ की भांग में तरंगित हो गया। जैसे परमानंद का नशा मुझे हो गया। मेरे उपर बारिश की बूंदे गिर रही थी। मेरे भीतर के ख्‍याल मेरे बदन पर गिरी बारिश की बूंदो से कहीं अधिक सूकून दे रहा था। मैने आंखे बंद कर ली। कुछ देर आंखे बंद कर बारिश की बूंदो में भीगता रहा ।

सहसा मेरे कानो में गाने की अगली पंक्तियां पडी  - सुबह न आयी कई बार नींद से जागे। थी एक रात की ये जिंदगी गुजार चले। रूके रूके से कदम।

मैने आंखे खोल ली। बारिश तेज हो गयी। बारिश गिरने की आवाज के बीच उस गाने की आवाज कानो तक आ रही है – करार देके तेरे दर पे बेकरार हो चले। रूके रूके से कदम -------।

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Wednesday, June 19, 2024

बाहर से लायी गयी पिच.. खरी नहीं

 

टी 20 विश्‍वकप अमेरीका और वेस्‍टइंडीज में संयुक्‍त रूप से हो रहा है। टी 20 विश्‍कप में अमेरिका को इसलिए जोडा गया ताकि क्रिकेट का दायरा बढाया जा सके। जब खेल मे दुनिया का सबसे ताकतवर देश भी जुडेगा तो खेल की ताकत बढेगी। इस लिहाज से टी 20 का प्‍लेटफार्म सबसे उपयुक्‍त है। टी 20 क्रिकेट में चौको छक्‍को की बौछार देखकर लोग सहज ही इस खेल की ओर आकर्षित होंगे, यह मंशा आईसीसी की रही होगी। इस कारण विश्‍व कप में १६ मैच अमेंरीका में रखे गये परन्‍तु शुरूआती कुछ मैचो के बाद ही पिच को लेकर विवाद हो गया। ड्राप इन पिचो के कारण मैचो में कोई भी टीम १४० का स्‍कोर भी पार नही कर पायी। पाकिस्‍तान, न्‍यूजीलैण्‍ड ओर श्रीलंका जैसी टीमे पहले ही दौर में बाहर हो गयी। ड्राप इन पिचो को लेकर पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है। शुरूआती दौर के बाद कुछ मैचो को दूसरी जगह स्‍थानान्‍तरित करने की भी चर्चा चली थी और खबरो के अनुसार बकायादा आईसीसी ने इस पर विचार भी कियाा बाद में इससे इनकार किया। 

टी 20 को चौको छक्‍को की क्रिकेट कहा जाता है और लोग इसे देखने के लिए मैदान में आते भी इसीलिए है परन्‍तु इस विश्‍वकप में अमेरीका में खेले गये मैच निम्‍न स्‍कोर वाले रहे और बल्‍लेबाजो की बजाय गेंदबाज हावी रहे । पहले दो चार मैचो के बाद भारत पाक मैच दूसरी जगह शिफट करने की चर्चाऐं होने लगी। भारत ने पाक के विरूद्ध निर्धारित ओवरो में ११९ रन बनाये और टी 20 के लिहाज से यह जीतने लायक स्‍कोर नही था। पाक ने अपनी पारी शुरू की तब यह लग रहा था कि यह एक आसान मैच है परन्‍तु ९०रन तक आते आते पाकिस्‍तान के हाथ पांव फूलने लगे और मैच धीरे धीरे भारत के पक्ष में आने लगा। भारत ने यह मैच ६ रनो से जीत लिया। पाकिस्‍तान अमेंरिका के विरूद्ध भी एक निम्‍न स्‍कोर वाला मैच हार गयी। इस तरह से विश्‍वकप खिताब  की प्रबल दावेदार टीम टुर्नामेंट  से बाहर हो गयी। यह कहीं न कहीं आयोजको की असफलता है क्‍योंकि केवल पाकिस्‍तान ही बाहर नही हुई बल्कि श्रीलंका और न्‍यूजीलैण्‍ड में भी बाहर हो गये। इन उलटफेरो का कारण ड्राप  इन पिचो को बताया जा रहा हे। खबरो के अनुसार इस विश्‍कप के लिए १० ड्राप इन पिचे एडिलेड से लायी गयी थी जिसे तैयार कर न्‍यूयॉक के नसाऊ स्‍टेडियम में बिछायी गयी जो गेंदबाजो के लिए स्‍वर्ग और बल्‍लेबाज के लिए कब्रगाह साबित हुई। 

ड्राप इन पिचे मुख्‍यत उन मैदानो पर बिछायी जाती है जो मैदान मुख्‍य रूप से क्रिकेट के लिए नही बने होते है। ऐसी पिचो का प्रयोग मुख्‍य रूप से आस्‍ट्रेलिया में होता है। मेलबर्न क्रिकेट ग्राउण्‍ड में २४ मीटर लंबाई और ३ मीटर चौडाई वाली पिच तैयार की जाती है। काली मिटी की परत के बाद ऊपर घास उगाई जाती है और यह सारी प्रक्रिया स्‍टील के फ्रेम में की जाती है। जब क्रिकेट मैच होता है तो ३० टनी वजनी इन पिचो को कस्‍टमाइड ट्रेलर से उठाकर २७ मीटर गहरे सीमेंट के स्‍लैब के ऊपर डाल दिया जाता है। चूंकि ये पिच स्‍टील के फ्रेम के भीतर बनती है ऐसे में यह सख्‍त होती है, परंपरागत पिचो की तरह यह टूटती नही हैा इस पर घास कम या ज्‍यादा रखी जा सकती है। मैच खत्‍म होने के बाद इन पिचो को वापिस हटा लिया जाता है और यहां पर क्रत्रिम घास लगाकर वापिस मैदान अन्‍य खेल के लिए तैयार हो जाता है। विश्‍कप में ड्राप इन पिचे बल्‍लेबाजो के लिए भयावह बन गयी। 

इसको लेकर पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है। पूर्व क्रिकेटर और कोमेण्‍टेटर इरफान पठान ने इन पिचो को असुरक्षित बताया। आस्‍ट्रेलियाई क्रिकेटर माईकल वान ने कहा है कि अमेरीका में क्रिकेट का प्रचार प्रसार अच्‍छी बात है परन्‍तु इस प्रकार की पिचो पर खिलाडियो को खेलना अच्‍छी बात नही है। जिम्‍बाब्‍वे के पूर्व क्रिकेटर एंडी फलावर ने कहा है कि अंतर्राष्‍ट्रीय मैचो के लिए इस प्रकार की पिच ठीक नही है। कोमेण्‍टेटर सुशील दोषी ने अपने एक लेख में कहा कि भारत में ऐसी पिचे होती तो पूरी दुनिया इसे बहुत तूल देती है और भारत की चारो तरफ से आलोचना की जाती है परन्‍तु अमेरीका में होने के कारण सभी लोग इसका बचाव कर रहे है। 

अमेरीका में क्रिकेट का प्रचार प्रसार होना ही चाहिए परन्‍तु ऐसी पिचे क्रिकेट के लिए भी खतरा है। इन पिचो के कारण विश्‍वकप का मजा किरकिरा हो गया। क्रिकेट की असली जंग देखने को नही मिली। टी 20 क्रिकेट का असली रूप देखने को नहीं मिला। ड्राप इन पिचे इतने बडे टुर्नामेंट के लिए उपयुक्‍त नही हो सकती है। संजय मांजरेंकर ने सही कहा है कि पिचे तो पहले भी खराब होती रही है परन्‍तु इस बार लगता है आईसीसी की तैयारी में कहीं कोई कमी है। फिलहाल विश्‍वकप का पहला दौर समाप्‍त हो चुका है और अब सभी मैच में वेस्‍टइंडीज में होगे और वहां उम्‍मीद की जानी चाहिए कि पिच का बवाल नही होगा। क्रिकेट प्रेमियो को पसंदीदा टी 20 क्रिकेट देखने को मिलेगी। 

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सीतराम गेट के सामने, बीकानेर ९४१३७६९०५३

Wednesday, May 22, 2024

टी 20 विश्‍वकप में भी बड़े स्‍कोर बनेंगे?




अगले सप्‍ताह अमेरीका और वेस्‍टइंडीज में संयुक्‍त रूप से टी 20 विश्‍व कप शुरू हो रहा है। यह विश्‍वकप भारत में आईपीएल समाप्‍त होने के तुरंत बाद शुरू होगा। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्‍या टी 20 विश्‍वकप में भी आईपीएल की तरह बड़े स्‍कोर बनेंगे। आईपीएल में जिस तरह से इस बार बड़े स्‍कोर बने उससे यह लगने लगा कि टी 20 क्रिकेट में कुछ भी असंभव नही है। इसीसे लोगो ने उम्‍मीदे लगा ली कि विश्‍वकप में भी इसी प्रकार से धमाकेदार बल्‍लेबाजी देखने को मिलेगी। लोगो की उम्‍मीदो को देखते हुए यह सवाल तैरने लगे है कि क्‍या विश्‍वकप में भी चौको और छक्‍को की बौछार देखने को मिलेगी? 


आईपीएल में इस बार बल्‍ले का जादू सिर चढकर बोला। दुनिया की सबसे बडी क्रिकेट लीग में इस बार आठ बार से ज्‍यादा २५० का स्‍कोर बना। सनराईजर्स हैदराबाद ने तो मुंबई के खिलाफ लीग मैच में ३ विकेट पर अब तक का सबसे बडा स्‍कोर २८७ बना डाला। एक समय ऐसा लगने लगा कि वे ३०० का आंकडा भी पार कर जायेंगे। अं‍तिम ओवर में ३० रनो का स्‍कोर भी बल्‍लेबाज पार करने लगे। आईपीएल २०२४ में बल्‍लेबाजो ने जिस प्रकार से रन बनाये उन्‍हे महामानव ही कहा जायेगा। दुनिया की सिरमौर लीग में जब तुफानी रफतार से रन बनने लगे तो क्रिकेट प्रेमी यह उम्‍मीद करने लगे कि टी 20 विश्‍वकप में भी यह रफतार जारी रहेगी। जब टी 20 विश्‍वकप में रनो की रफतार की बात आती है तो इस सवाल का जवाब हलक तक आकर रूक जाता है। जवाब जबान के पीछे छिप जाता है। यह इसलिए कि विश्‍वकप में टीम का स्‍कोर बहुत कम रहा है। विश्‍वकप २०२२ में केवल दो बार ही स्‍कोर २०० से पार गया है। २१० का स्‍कोर तो बना ही नही। इस विश्‍वकप में विनिंग टोटल १५० से १७० रहा है जबकि आईपीएल में विनिंग टोटल २५० प्‍लस रहा है। तो क्‍या विश्‍वकप मे भी इस बार स्‍कोर २०० से पार होना आसान हो जायेगा। इस संबधं में शिखर धवन कहते है कि टी२० विश्‍वकप में बडे स्‍कोर नही बन पायेगे। उन्‍होने इसका कारण टी 20 विश्‍वकप में ईम्‍पेक्‍ट  प्‍लेयर का नियम नही होना है। उनके अनुसार आईपीएल में बडे स्‍कोर का कारण ईम्‍पेक्‍ट प्‍लेयर का नियम होना है जिस कारण टास हारने के बाद भी टीम रणनीतिक तौर पर अपना खिलाडी बदल लेती थी। ईम्‍पेक्‍ट प्‍लयेर नियम के कारण टीम बारह खिलाडियो से खेलती थी। यही कारण रहा कि आईपीएल में बडे स्‍कोर बने। दक्षिण अफ्रीका के डेविड मिलर का कहना है कि‍ आईपीएल में बडे स्‍कोर बनने का कारण ईम्‍पेक्‍ट प्‍लेयर तो है ही साथ में परिस्थितियां बल्‍लेबाजो के अनुकूल होना है। पिच बल्‍लेबाजो के अनुकूल होने से बल्‍लेबाजी आसान हो जाती है। टी 20 विश्‍वकप में बडे स्‍कोर नही बनेगे क्‍योंकि वहां परिस्थितियां बल्‍लेबाजो के अनुकूल नही होगे। वहां पिच धीम होने की उम्‍मीद है। ऐसे में आईपीएल की तरह वहां छक्‍के लगना मुश्किल है। मिशेल स्‍टार्च भी इस बात से सहमत है कि टी 20 विश्‍वकप में आईपीएल की तरह बडे स्‍कोर नहीं बनेंगे। 


यह सही है कि आईपीएल में परिस्‍थ‍ितियां बल्‍लेबाजो के अनुकूल होती है। इसके अलावा सभी श्रेणियो के खिलाडी यहां खेलते है जबकि विश्‍वकप में दुनिया का श्रेष्‍ठतम खिलाडी खेलते है और श्रेष्‍ठ खिलाडी समूह में एक साथ खेलते है। आईपीएल में सभी खिलाडी नही खेलते है जबकि विश्‍वकप में  दुनिया के सभी खिलाडी भाग लेते है। ऐसे में टीम बडे स्‍कोर बना नही पाती है। जहां तक पिचो की बात है तो हर बार पिच धीमे नही होते है फिर भी विश्‍वकप में अंगुलियो पर गिनने लायक संख्‍या में टीमो ने २०० का स्‍कोर पार किया है। फिर भी विश्‍वकप में आईपीएल का प्रभाव तो आये बिना नही रहेगा। इस बार औसत स्‍कोर बढने की संभावना है। ऐसी आशा की जानी चाहिए कि इस बार स्‍कोर १८० से २०० के बीच सामान्‍य होगा। जहां तक ईम्‍पेक्‍ट प्‍लेयर का सवाल है, उसका फर्क पडता है परन्‍तु इतना बडा फर्क नही पडता कि स्‍कोर ५० रन ज्‍यादा हो जाये। फिर भी इस बार विश्‍वकप में टीमो का स्‍कोर थोडा बडा रहने वाला है। 


आईपीएल की आलोचना भी काफी होती है परन्‍तु इसका सकारात्‍मक प्रभाव भी है। आईपीएल के प्रभाव से टेस्‍ट मैचो में भी परिणाम आने लगे है और टेस्‍ट मैच तीन से चार दिन में समाप्‍त हो रहे है। उसी प्रकार से विश्‍वकप में भी अब स्‍कोर पहले के मुकाबले बडे होगे क्‍योंकि इस लीग से बल्‍लेबाजी की तकनीक में न केवल सुधार हुआ है  बल्कि नयी तकनीक भी सामने आयी है। विश्‍वकप में आईपीएल जितने बडे स्‍कोर भले ही ना बनो परन्‍तु रनो की संख्‍या पहले से बडी होगी। 


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सीताराम गेट के सामने, बीकानेर

Wednesday, April 24, 2024

टेनिस में सन्‍यास की उम्र का सवाल



दो बार की ग्राण्‍ड स्‍लेम चैम्पियन और पूर्व नंबर एक टेनिस खिलाडी गारबाइन मुगुरूजा ने ३० साल की उम्र में सन्‍यास ले लिया है। उसने २०१६ के फ्रेच ओापन फाईनल में सेरेना विलियम्‍स और २०१७ के विम्‍बलडन फाईनल में वीनस विलिम्‍यस को पराजित किया और इस प्रकार दोनो विलिम्‍स बहिनो को हराने वाली एकमात्र खिलाडी बन गयी। मुगुरूजा ने अपना रैकिट खूंटी पर टांगने की घोषणा करते हुए कहा कि वो अब एक नया अध्‍याय शुरू करेगी। मुगुरूजा के सन्‍यास के साथ ही एक बार फिर यह बहस छिड गयी है कि टेनिस में सन्‍यास की उम्र क्‍या होनी चाहिए। टेनिस की सन्‍यास की उम्र तय नही है परन्‍तु आमतौर जो टेनिस विज्ञ बताते है उस उम्र को तो टेनिस खिलाडी कई बार धत्‍ता बता चुके है। मुगुरूजा के ३० साल की उम्र में सन्‍यास के बाद एक बार फिर टेनिस में सन्‍यास की उम्र पर सवाल खडे होने शुरू हो गये है। 
मु्गुरूजा ने हालांकि अपने कैरियर में दो ही ग्राण्‍ड स्‍लेम जीते परन्‍तु उसका रिकार्ड शानदार रहा है। उसने कुल १० डबल्‍यूटीए खिताब जीते और डबल्‍यूटीए में नंबर एक भी रही है। वह ग्राण्‍ड स्‍लेम जीतने वाली प्रथम स्‍पेनिश महिला रही है। व‍ह जनवरी २०२३ के बाद से टेनिस से दूर थी। उसने उस समय कहा था कि वो टेनिस में खेलने का अंतराल बढा रही है जिससे के वो अपने परिवार और दोस्‍तो के साथ समय बीता सके। उसने सन्‍यास लेते वक्‍त भी कहा कि वो एक नया अध्‍याय शुरू करेगी। इससे सवाल उठता है कि मु्गुरूजा द्वारा ३० वर्ष की उम्र में लिया गया सन्‍यास सही वक्‍त पर है। टेनिस की एक बडी संस्‍था अपने विश्‍लेषण के आधार पर टेनिस में रिटायरमेंट की उम्र २७.५ वर्ष मानती है। संस्‍था ने रिटायरमेंट की उम्र फिटनेस और क्षमता के आधार पर बतायी है। यह आकलन कोर्ट पर सही भी साबित होता है। उस लिहाज से मुगुरूजा के सन्‍यास का निर्णय सही प्रतीत होता है परन्‍तु कुछ समय पहले एशली बार्टी ने २५ साल की उम्र में सन्‍यास ले लिया था। ऐसा माना जाता है कि टेनिस में कोर्ट पर खेलने के लिए जिन क्षमताओ की जरूरत होती है वो २५ साल की उम्र के बाद कम होने लगती है और इस कारण से प्रतियो‍गी टेनिस छोडने की उम्र २८ वर्ष के करीब मानी जाती है। टेनिस में कमोबेश सन्‍यास लेने वालो की उम्र २८ से ३० साल होती है। उसके बाद १७ से २० की उम्र के नये खिलाडी आ जाते है जिनकी चुन्‍नौती का सामना करना कठिन होता है। 
यह विश्‍लेषण उस समय झूठा साबित होने लगता है जब रोजर फेडरर ४१ साल की उम्र तक खेलते है। जोकोविच और राफेल नडाल ३७ साल की उम्र में भी कडी चुन्‍नौती युवाओ केा पेश कर रहे है। सेरनेा विलियम्‍स ४० साल की उम्र में भी वो ही फूर्ती दिखाती है। इससे पहले मार्टिना नवरातिलोवा ५०साल उम्र तक  और जॉन मेकनरो ४६ साल की उम्र  तक खेलेते रहे है। इवान लैण्‍डल, पैट केश, आन्‍द्रे अगासी ३५ साल की उम्र के बाद भी खेलते रहे है। जब इन खिलाडियो की रिटायरमेंट उम्र देखते है तो टेनिस की मानक रिटायरमेंट उम्र बेमानी लगती है। दरअसल हर एक टेनिस खिलाडी जब तक अपनी आय और क्षमता को सुरक्षित मानता है तब तक कोर्ट में डटा रहता है। उक्‍त सभी खिलाडी उम्र बढने के साथ भी युवा चुन्‍नौती के सामने टिके रहे है। एकल नहीं तो युगल के साथ कोर्ट में टिके रहे। रोजर फेडरर तो एकल में भी चुन्‍नौती के साथ खडे रहे । उनके लिए कोर्ट में जीतना सामान्‍य बात हो गयी थी। 
जो खिलाडी २५ से ३० साल की उम्र में सन्‍यास लेते है। उनके पास दूसरा कैरियर शुरू करने का विकल्‍प भी होता है जबकि ४० साल की उम्र में रिटायर होने के पास ऐसी संभावना कम होती है। रिटायरमेंट का सीधा संबध आय और भविष्‍य की सुरक्षा से है। जब तक खिलाडी को लगता है कि टेनिस में उसका भविष्‍य और आय सुरक्षित है,वह‍ खेलता रहता है। इस समय युवा खिलाडी भी अपना स्‍थान बनाने में नाकाम रहे है। हाल ही के वर्षो में ऐसा युवा नहीं आया है जो एक ग्राण्‍ड स्‍लेम जीतने के बाद अपनी रैकिंग में स्थिरता लाये । यदि ऐसा होता है तो पूराने खिलाडियो स्‍वत ही कोर्ट से हटना पडता है। इसलिए टेनिस में रिटायरमेंट की मानक उम्र बेमानी हो गयी है। अब बहुत कम ऐसे खिलाडी है जो ३०साल की उम्र तक सन्‍यास लेते है। अब ३० साल की उम्र के बाद तक खिलाडी खेलते रहते है परन्‍तु जिन खिलाडियो की रेकिंग गिरने लगती है वो जरूर २८ से ३० की उम्र में सन्‍यास ले लेते है। शीर्ष रैंकिंग के चलते बहुत कम खिलाडी कोर्ट छोडते है। मुगुरूजा की रैकिंग नहीं खेलने के कारण कम थी। मुगरूजा ने अपने कैरियर के उंचाईयो पर सन्‍यास लिया है। अब एशली बार्टी और मुगुरूजा जैसे उदाहरण कम है। 
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