सितम्बर का महीना है। नीला सा आसमान है जो धूप में चमक रहा है। एक बडा सा सफेद बादल जिसे बादल का टुकडा तो नही कहेंगे बल्कि बादल ही कहेगे, सूरज को घेर लिया है। मौसम सुहावना लगने लगा है परन्तु यह बादल निकलते ही धूप फिर हम लोगो की देह पर चिपक जायेगी। इस महीने ऐसे ही होता है कभी तल्ख धूप होती है तो अगले ही क्षण निहायत ही ठंडा मौसम। सर्दियां दस्तक देने लगी है। हमारा दरवाजा बार बार खड़ाखड़ रही है। सुबह सुबह वो झांक कर देख लेती है कि उसके स्वागत की हमने कितनी तैयारी कर रखी है। ऐसे मौसम में कहीं निकल जाने का मन करता है। चल तो हम बरसो से रहे है परन्तु मंजिल का पता नही है। एक गाने में कहा भी है कि मंजिले अपनी जगह है और रास्ते अपनी जगह। मै मंजिलो तक तो पहुंच गया हुं परन्तु मंजिल मुड गयी है। केवल मुडी ही नही बल्कि कई जगहो से टूट भी गयी है। कुछ लोग मेरी मंजिलो के टुकडो को उठा कर ले जा रहे है और मै उन मंजिलो के टुकडो को देख रहा हूं।
मंजिले मुड़ गयी है, टूट गयी है और सफर ने पूराने शायरो और कवियो के जुमलो को भी रौद दिया है। मै अकेला ही चला था मंजिल की ओर, अकेला ही चलता गया और अकेला ही रहता गया। लूट गये श्रंगार सभी बाग के बबलू से और हम खडे खडे बहार देखते रहे, कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे।
सितम्बर माह में मै अपने घर के आगे से कारवां गुजरते हुए देखता हूं। एक नही कई कारवां गुजरते है। नाचते हुए गाते हुए मानो उन्हाने मंजिल पा ली है। उसकी राह मंजिल पर एकदम सीधी है। मैने भी मन बनाया कि इन कारवांओ को देखने जाना चाहिए। ये लोग अपनी मस्ती में एक अविरल भक्ति की धारा लेते हुए बाबा रामदेव को धोक लगाने जाते है। ऐसा लगता है कि उन्हाने सबकुछ पीछे छोड़ दिया है। अपनी जिम्मेदारियों, परेशानियों और कष्टो को कुछ क्षणो के लिए अपनी देह से झटक दिया है। अपनी देह जो भीतर से स्वच्छ होकर सीधे बाबा के चरणो की ओर जा रही है। मै अपनेी सहकर्मी मित्रो के साथ एक शाम को निकल गया भक्तो के कारवां को देखकर अपनी आंखो को सुकून देने के लिए।
हम चार जने थे मै विवेक, राजेश, मुकेश और जगदीश। शुक्रिया बनता है विवेक का जिसके वाहन पर हमने इस सफर का आनंद लिया। हमारी सफर गजनेर रोड़ से शुरू हुआ। शुरूआत में ही भक्तो के कारवां नाचते गाते हुए मिल गये। लंबे सफर की थकान उनकी देह पर बिलकुल भी नजर नही आ रही थी मानो वे किसी उत्सव में भाग लेने जा रहे हो और देखने वालो को भी इस उत्सव में शामिल होने का निमंत्रण दे रहे हो। गजनेर टोल नाके तक पहुंचते पहुंचते सूरज की आंख मिचौली खत्म हो चुकी थी। सूरज किसी दूसरे देश में अपनी रोशनी बिखेरने जा चुका था। यहां अंधेरे ने दस्तक दे दी थी। भजनो की सुर लहरीयां संध्या को शुभ बना रही थी। रास्ते में जगह जगह कैंप लगे थे। हर कैंप पर जैसे उत्सव का पडाव था। एक जगह विवेक ने गाडी की रफतार कम की तो डीजे की धमक गाडी के अंदर तक मदमस्त कर रही थी। विवके ने गाडी रोकी तो हम गाडी से उतरे। गाडी से उतरते ही कान हमें सुर लहरियों में ले गये। जोर जोर से भजन चल रहा था – डीजे रा धमीड़ा भाई जोर सूं पडे। वाकई डीजे रा धमीडा जोर सूं पड़ रैया हा। परन्तु यह जोर के धमीडे पैरो को थिरकने के लिए आमंत्रित कर रहे थे। बडे से डीजे के आगे बहुत ही सुंदर कृष्ण बने बालक के साथ गोपियां बनी हुई दूसरे बालक आकर्षक नृत्य कर रहे थे। ऐसा नृत्य कर रहे थे जो गांव के लोकरंजन को साकार कर रहे थे । इस नृत्य के आगे टीवी शो के सभी डांस शो फीके नजर आ रहे थे। इस डांस का आनंद लेने के बाद विवेक ने गाडी को फिर रफतार दे दी और हमारी गाडी कोलायत जाकर ही रूकी। कोलायत में मेले में जाने वाले इन टोलियों का रात्रि ठहराव होता है। यहां चारो और जातरू ही जातरू नजर आ रहे थे। हम जातरूओ की भीड से निकलते हुए कोलायत सरोवर तक पहुंचे। सरोवर का पानी प्लेटफार्म पार कर चुका था। जाने को रास्ता नही था। राजेश दूसरे रास्ते से हमें मंदिर तक ले गया। यह क्या मंदिर तक पानी ही पानी। एक जन ने बताया कि कल तक पानी मंदिर की सीढियो तक था। आज थोडा उतरा है। पानी ने अपनी हदे पार कर दी परन्तु शीघ्र ही अपनी हद में आ गया। जातरूओ को हिदायते दे रहा था कि कोई पानी में अपनी हद नही पार करे नही तो वो उसे अपने आगोश में ले लेगा। सरोवर में चक्कर निकाल रही लाईफ बोट यही संदेश दे रही थी। हमने सरोवर में हाथ मुंह धोये और कपिल मुनि के दर्शन को चले गये। सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनी का यह दुनिया भर में प्रसिद्ध मंदिर है परन्तु यहां मंदिर में कही भी सांख्य दर्शन का जिक्र नही है और ना ही यहां सांख्य दर्शन का साहित्य मिलता है। फिर भी कपिल मुनी के दर्शन मात्र से उस परम तत्व साक्षात्कार का अनुभव कर सकते है। कपिल मुनि के दर्शन के बाद सीधे हम गाडी में बैठे और चल दिये वापसी की ओर । वापसी में एक कैप हमारे एक और साथी का था। जहां बाबा रामदेव की आरती के बाद हमने प्रसाद ग्रहण किया। प्रसाद नही वो अमृत के समान था। मन और पेट दोनो तृप्त हुए। इसके बाद हमने समय जाया नहीं करते हुए गाडी में बैठे और घर के लिए रवाना हुए क्योंकि आसमान में सभी तारो ने आकर डेरा डाल दिया था। जातरूओ का आना अब भी जारी था।
सितम्बर का महीना भक्ति भाव का महीना है। रामदेवरा का मेला देखने के दोदिन बाद ही मैं अपने भांजे और भतिजो, बच्चो के साथ पूनरासर में जाने वाले भक्तो का कारवां देखने चला गया। इन भक्तो की मंजिले भी एकदम साफ और स्पष्ट थी। जिनकी मंजिले मुडी हुई थी उनके साथ विश्वास था कि पूनरासर हनुमान जी उनकी मंजिलो को सीधा कर देगे। यहां हम अपनी बाईक पर गये थे। यहां जातरूओ की भीड बहुत ज्यादा थी। कैम्पो पर सेवा करने वालो की भीड थी। सेवा लेने वाले अनुशासन के साथ लाईन में लगे हुए थे। यह लाईने बताती है कि सेवा में मिलने वाली हर चीज पूनरासर हनुमान जी का प्रसाद है और लोग प्रेम से खा रहे है। यहां गाडो पर डीजे की धमक सुनाई दे रही थी। किसी गाडे पर हनुमान चालीसा तो किसी गाडे पर हनुमान जी के चमक दमक वाले भजन चल रहे थे। एक कैम्प के आगे युवाओ का हजूम डीजे के आगे थिरक रहा था। हर एक को यह थिरकन आनंद दे रही थी। हम आगे गये तो श्याम बाबा का मंदिर था। इस मंदिर में भी सेवा चल रही थी। लोगो का हजूम था। दूसरी तरफ महिलाऐ नत्य कर रही थी। हमने सेवा का प्रसाद तो नही लिया हम श्याम बाबा के दर्शन करने मंदिर गये। हारे का सहारा बाबा श्याम की दर पर भी लोगो की भीड जुटी थी। हम दर्शन करने के बाद लौट आये थे। भीड बढती जा रही थी। हमने बाईक लेकर घर लौटना उचित समझा क्योंकि अगले दिन हमे पूनरासर दर्शन के लिए भी निकलना था। वापसी में भी भक्तो के कारवें मिल रहे थे। भक्ति का ऐसा ज्वार सितम्बर माह में ही देखने को मिलता है।
मेरी मंजिले भले ही मुड गयी और टूट गयी हो परन्तु परम पिता परमेंश्वर हर की मंजिल को सुस्पष्ट और भेदने योग्य बनाते रहे। मेरे आगे से कारवां गुजर रहे थे। जयकारो की आवाजे आ रही थी परन्तु मेरा मन कह रहा था कि
गीत अश्क बन गये,
छंद हो हवन गये
साथ के सभी दिए, धुआं पहन पहन चले
और हम झुके झुके
मोड पर रूके रूके
उम्र के चढाव का उतार देखते रहे
कारवां गुजर गया गुबार देखते
रहे।
------------------
No comments:
Post a Comment