Saturday, June 29, 2024

रूके रूके से कदम -----------------।


 


इस समय मै अपने कमरे में बैठा हूं। कमरे की खिडकी की जाली पर लगी लोहे की डण्डियो पर पानी की बूंदे जगह जगह थोडे अंतराल के साथ लटकी हुई है। खिडकी जाली मे से निरा आसमान दिखाई दे रहा है बादलो से घिरा हुआ। चलते हुए बादलो के गरजने की आवाजे भी रूक रूक कर आ रही है। कमरे के दरवाजे के बाहर पडा कूलर बंद है। बारिश में भीगने के कारण उसकी बॉडी पर बहता हुआ पानी दिखाई दे रहे है। कूलर के पीछे पूरी छत्‍त पर बरसात का पानी बिखरा हुआ चमक रहा है जिसमें आस पास के उंचे मकानो की प्रतिछायाऐं दिखाई दे रही है। कभी उस पानी में उडते हुए पंछी की छाया भी दिखाई दे जाती है। कूलर के उपर से ठंडी हवा के झोंके कमरे में आकर मेरे बदन पर गिर रहे है। मै लैपटॉप पर कहानी लिख रहा हूं।

दरवाजे के बाहर एक पडोस का उंचे मकान की दीवारे दिखाई दे रही है जिस पर पानी के निशान साफ दिखाई दे रहे है। कुछ घरो की छत्‍तो की दीवारो पर भी बहे हुए पानी के निशान साफ दिखाई दे रहे है। एक नन्‍ही गौरया मेरे छत्‍त की दीवार पर बैठी हुई ईधर उधर अपनी गर्दन घूमा रही है। कभी पंखा फडफडा कर उडने का विचार करती है और फिर शायद उडने का विचार छोड देती है। वो दीवार पर बैठी हुई  छत्‍त पर गिरे हुए घास फूस को देख रही है। फिर उडकर घसा फूस के पास आकर बैठ जाती है। भीगे हुए घास फूस पर चढकर कुछ देकर उस पर घूमती है। फिर उड जाती है। मै उठकर कमरे से बाहर छत्‍त पर उस दीवार तक जाता हूं जहां पर गौरया बैठी थी। नीचे गली में बरसात का पानी सडक पर फैला हुआ था। कोई बाईक निकलती तो आस पास बहुत सारा पानी उछालते हुए जाती। गली से बाहर मुख्‍य सडक व बाजार है। वहां से भीगे हुए स्‍वरो के साथ गाने की आवाज आ रही थी – रूके रूके से कदम रूक कर कई बार चले। करार दे के तेरे दर से बेकरार चले।रूके रूके से कदम------।

गाने अक्‍सर मुझे ख्‍यालो मे लेजाते है। मै अपने भीतर चल रहे ख्‍यालो की धाराऐ देखता रहा। मन के भीतर ख्यालो का आवागमन तेजी से चल रहा था। कौन सा ख्‍याल कहां जा रहा है कोई पता नही। मै हर एक ख्‍याल का देख पा रहा था। हर एक ख्‍याल में उलझन थी। एक भी अपनी मंजिल तक नही जा पा रहा था। एक नया ख्‍याल लहर की तरह भीतर की राहो को तरंगित कर रहा था। जैसे शांत पानी में कोई नयी धारा आ गयी हो। जैसे सात रंगो में कोई नया रंग आ गया हो। जैसे सात सुरो में कोई नया सुर आ गया हो। जैसे ख्‍यालो की बगिया में कोई नया फूल महक रहा हो। ऐसा ख्याल जिसने मेरी समस्‍त पीडाओ को हर लिया। पीडाऐ उससे हारकर कहीं छुप गयी थी। यह ख्‍याल  मन के भीतर की पूरी दुनिया पर छा गया। जैसे मैने भोलेनाथ की भांग में तरंगित हो गया। जैसे परमानंद का नशा मुझे हो गया। मेरे उपर बारिश की बूंदे गिर रही थी। मेरे भीतर के ख्‍याल मेरे बदन पर गिरी बारिश की बूंदो से कहीं अधिक सूकून दे रहा था। मैने आंखे बंद कर ली। कुछ देर आंखे बंद कर बारिश की बूंदो में भीगता रहा ।

सहसा मेरे कानो में गाने की अगली पंक्तियां पडी  - सुबह न आयी कई बार नींद से जागे। थी एक रात की ये जिंदगी गुजार चले। रूके रूके से कदम।

मैने आंखे खोल ली। बारिश तेज हो गयी। बारिश गिरने की आवाज के बीच उस गाने की आवाज कानो तक आ रही है – करार देके तेरे दर पे बेकरार हो चले। रूके रूके से कदम -------।

---------------------------


No comments:

Post a Comment