Tuesday, August 15, 2023

दी हेयर एण्‍ड दी टॉरटाईज




 

मै दसवीं मे था तो मेरे मास्‍टरजी हमेंशा मुझे हेयर एण्‍ड टॉरटाईज की कहानी रटने को कहते थे। मास्‍टरजी का कहना था कि अंग्रेजी में यह कहानी याद कर ली तो पन्‍द्रह नंबर तो पक्‍के हो जायेंगे। हम लोगो उन दिनो हिन्‍दी मीडियम स्‍कूलो में पढते थे। पढाने वाले भी हिन्‍दी मीडियम के ही होते थे। कहने का मतलब उनकी भी अंग्रेजी कोई ज्‍यादा स्‍ट्रांग नहीं हुआ करती थी। हम बच्‍चो को रटा रटा करके तैंतीस नंबर लायक तैयारी करवा देते थे। मैने हैयर एण्‍ड टारटाईज कहानी का मतलब समझा तब से मै इसे झूठ मानता था। मेरा मानना था कि कछुआ कभी भी खरगोश से जीत नहीं सकता है। मेरा नाना हमेंशा कहते कि जीवन का अनुभव आयेगा तो समझ आयेगा। नाना घर के अहाते मे बैठे धनजी से बाते करते रहते । धन जी लकडी पर रन्‍दा चलाते हुए किस्‍से बताते रहते । दरअसल अहाता धन जी को किराये पर दे रखा था वहां लकडी का काम करते थे। नजदीक ही उनके लडके की लटठ बेचने की दुकान थी। उसकी दुकान में बहुत सारे लटठ पडे रहते। रस्‍सीयां और फावडे भी उनकी दुकान में थे। उनकी दुकान पर गांव वाले ही आते थे। गरमियों की छुटिटयों में सुबह मै तैयार होकर छत्‍त पर खड होता तो मेरे माथे पर पसीने की बूंदे चमकने लगती थी। मेरी नानी मेरे चेहरे पर तेल लगाती थी। इसलिए पसीने की बूंद माथे पर चमकती थी। मै छत्‍त पर खडा नीचे सडक पर देखता था। सुबह फटफटियों की आवाज कानो में गूंजती थी। ग्‍यारह बजे तक सभी दुकाने खुल जाती थी। दूर से श्‍यामजी को साईकिल पर आते मै देख लेता था। श्‍यामजी साईकिल पर आगे अपने बेटे को बैठाकर लाते थे। धूप से आंखो को अंदर धंसाते हुए वो साइकिल के हैडिल को कसकर पकडे रखता । श्‍यामजी को दुकान खोलने में आधा घंटा लगता था। दुकान खोलने के बाद सामान लगाने में उन्‍हे समय लगता था। वो अपने बेटे बाबू को सामने गददी पर बैठा देते थे। बाबू दिनभर गददी पर बैठा रहता। दरअसल बाबू मंदबुद्धि था और गूंगा था। मै दुकान खुलने के थोडी देर बाद दुकान पर चला जाता । बाबू से खेलता रहता। बाबू कुछ बोलता नही था। पर वो समझता था। बाबूलाल जी दुकान के अंदर बैठे उपन्‍यास पढते रहते । उन्‍हे वेदप्रकाश के उपन्‍यास पसंद थे। वे वर्दी वाला गुण्‍डा, सलाखो का बदला, बिना मांग सिंदूर जैसे उपन्‍यास पढते थे। मै कभी समझ नहीं पाया कि बिना चित्रो की किताब पढने में उन्‍हे क्‍या मजा आता है।

धन जी श्‍याम जी के पिता थे। धन जी हमारे अहाते में लकडी का काम करते । तैयार काम दुकान भिजवा देते । श्‍यामजी कई बार अहाते में आते और बाउजी को बताते कि क्‍या सामान तैयार करना है और ग्राहक कैसा सामान चाहते है। धन जी लकडियो पर रन्‍दा फेरते हो और फिर एक आंख बंद करके उस लकडी को जांचते। नानी चाय लाती तो धनजी लकडी को एक आंख से जांचते हुए बोलते मांजी सा भूखे पेट चाय भी नहीं निगली जाती। चाय भी कुछ पेट में हो तो अच्‍छी लगती है। नानी भी धन जी को कहती – खाली पेट है। इसलिए कहती हूं पी लो। आधार रहेगा। इतना कहने के बाद धनजी चाय पीने बैठ जाते। धन जी चाय पीते हुए अपने दुकान पर बैठे अपने पोते को देखते रहते । पोते के चेहरे पर धूप आती तो वो ऐं ---- ऐं------ ऐं --- करता तो श्‍यामजी उसके उठाकर छाया में बिठा देते । धन जी कभी अपने पोते के बारे में बात नहीं करते । ना ही श्‍याम जी कभी अपने बेटे के बारे में बात करते । श्‍याम जी दिन भी दुकान में काम करते तो बाबू चुपचाव उसे देखता रहता। शाम को मै कभी गली में फुटबाल से खेलता तो वो मुझे देखकर खुश होता। धन जी ने एक बार नाना जी से कहा था कि डाक्‍टर को दिखाया था । डाक्‍टर ने कहा एक आपरेशन के बाद यह बोलने लगेगा। तीन लाख का खर्व आयेगा। श्‍यामू मेहनत कर रहा है। पैसे इकक्टठे होते ही इसका इलाज करायेंगे। श्‍यामू ने पैस काफी इकटठे कर लिये है। जल्‍दी ही इलाज करायेगा। ये बोलने लगेगा। श्‍याम जी कम बात करते थे। त्रिशूल फिल्‍म के अमिताभ की तरह मुस्‍कुराहट उनके चेहरे के आस पास भी नहीं फटकती थी। धनजी की नजर अपने बेटै की दकान पर बराबर बनी रहती थी। उनका व्‍यवहार एक खामोशी का था। खामोशी श्‍याम जी की दुकान में तैरती रहती थी। अपने बेटे के साथ उन्‍होने भी खामोशी को ओढ लिया था।

एक दोपहर मै श्‍यामजी की दुकान पर बैठा था। एक युवा अमिताभ जैसे जूते पहने हुए और काला चश्‍मा लगाये हुए आया। उसने बाबू के गाल छेडे और श्‍याम जी को एक पर्ची दी । श्‍याम जी ने उसे पैसे दे दिये। उसने मेरी तरफ देखा और बोला – मुकरी । मुकरी दरअसल एक फिल्‍मी कलाकार का नाम था। उसने बताया कि वो बाबू का चाचा है। बाहर पढकर आया है। अमिताभ का बडा फैन था। बाते भी अमिताभ की तरह ही करता था। लंबाई भी उसकी थी। आज पहली बार आया था परन्‍तु अब वो रोज आने लगा। कभी धनजी के पास चला जाता । कभी मेरी नानी से बाते करता। वो कहता मां सा मुंबई पैसेा की फैक्‍ट्री है। वहां पैसा डालो दुगुना पैसा निकलता है। हर्षद मेहता को देखो करोडो कमा लिये। मेरे पास पैसे हो तो मै सबके वारे न्‍यारे कर दूं। नानी उसे कहती कि मेहनत का कमाया हुआ पैसा बरकत करता है। पर वो अपने उलटे सीधे तर्क देता। फिर चाय पीकर चला जाता। फिर हमारे लिये रह जाती वही श्‍याम जी की दुकान जिसमें वो उपन्‍यास पढते रहते। बाबू बाहर दौड रहे फटफटयिो को देखता रहता। कभी दिक्‍कत होती तो ऐं -----ऐं-------ऐं-----------करता तो श्‍याम जी उसे ठीक कर देते।उसका चाचा भगवान आता तो पैसा की बाते करता या फिर फिल्‍मो की। कभी बताता कि धीरूभाई कैसे धनवान बना। बडे बडे सपने दिखाता। मै तो उसकी बाते सुनकर विस्मित रह जाता । कभी कभी धन जी भगवान को डांट लगा देते परन्‍तु भगवान की बाते साईकिल की तरह दौडती रहती। हम लोग भगवान कही बाते बडे चाव से सुनते। मुझे लगता था कि ये एक दिन बहुत पैसे वाला आदमी बनेगा। कभी कोई पेन लाकर दिखाता कि यह मेड इन जापान है। कभी कैमरा लाता और कहता कि यह मेड इन रसिया है। हम इन चीजो को देखकर दांतो तले अंगुली दबा लेते।

श्‍याम जी ने कहा था कि दो दिन या तो भगवान बैठ जायेगा दुकान में या फिर बंद रखनी पडेगी। बाबू का ओपरेशन कराना है। सब बाते तय हो गयी है। दो दिन बाद आपरेशन था। अगले दिन सुबह दुकान बंद थी। कोई नहीं आया था। नाना ने कहा ओपरेशन तो दो दिन बाद था आज दुकान बंद कैसे है। उन दिनो फोन भी नहीं थे। नाना ने कुछ देर इंतजार किया। फिर अखबार पढने लग गये। मै बैचेन हो गया । क्‍या हो गया । वे आये क्‍यों नहीं। पास की दुकान के अग्रवाला साहब आ गये थे। मैने उनसे श्‍याम जी के बारे मे पूछा तो उन्‍होने बताया कि कल रात उनका भाई भगवान घर से तीन लाख रूपये लेकर भाग गया। नाना खबर सुनकर बाहर आये और बोले थाने में रपट लिखवाई है क्‍या। अग्रवाल साहब नहीं नहीं में सिर हिलाया। नाना अंदर आ गये। हाथ टुठी पर रखकर बैठ गये। तीन बजे के करीब श्‍याम जी साईकिल पर बाबू को बिठाकर आये। दुकान खोलकर जंचाई और सामान बेचना शुरू कर दिया। अग्रवाल साहब श्‍याम जी से पूछने गये कि भगवान कैसे पैसे लेकर भाग गया तो श्‍याम जी ने कहा – आपसे किसने कहा। वो भाग कर नहीं गया है। वो पढने गया है। सुनकर अग्रवाल साहब अपनी दुकान पर चले गये। श्‍याम जी ग्राहक को सामान देने के बाद वापिस एक उपन्‍यास जिस पर बंद दरवाजे लिखा था पढने बैठ गये। बाबू बाहर फटफटिये की आवाजे सुनकर ऐ ऐ कर रहा था।

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