वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम को भारत में होने वाले वनडे विश्व कप से बाहर होना एक सामान्य घटना नहीं है बल्कि क्रिकेट की दमकती ईमारत के एक कोने पर लगा दाग है। चाहे इसके लिए कोई दोषी हो परन्तु वेस्टइंडीज के बाहर होने से दुनिया भर के करोडो क्रिकेट प्रेमियों को निराशा हुई है । एक टीम जिसने कभी दुनिया ए क्रिकेट पर राज किया था उसे क्रिकेट की जंग के सबसे बडे जलसे में शामिल होने का हक अब हासिल नहीं है। पूरी दुनिया जिन खिलाडियो की गेद और बल्ले से कांपती थी आज उसी वेस्टइंडीज की टीम के कदम जंग के मैदान के बाहर ही ठिठक गये है। जिस वेस्टइंडीज के गेंदबाजो के सामने दुनिया की कई पूरी की पूरी टीमे सामना करने से कांपती थी आज उसी वेस्टइंडीज टीम को एक क्वालिफायर टीम ने पराजित कर विश्व कप में खेलने का अधिकार छिन लिया । दो बार की विश्व चैम्पियन के बाहर होने पर क्रिकेट के दीवानो को बेहद अफसोस हुआ। जिस वेस्टइंडीज टीम के बिना क्रिकेट की कल्पना करना संभव नहीं था आज उसके बिना विश्वकप खेला जायेगा। एक टीम जिसने क्रिकेट को अपना अविस्मरणीय योगदान दिया उसी टीम के बिना क्रिकेट की सबसे बडी जंग आयोजित होगी। अब यह तय हो ही गयी है कि वेस्टइंडीज आने वाले विश्वकप का हिस्सा नहीं होगा तब यह विचारणीय प्रश्न है कि कभी अपनी कलाईयों के दम पर पूरी दुनिया को अपने बल्ले के नीचे रखने वाली टीम की इतनी दुर्दशा कैसी हुई।
वर्ष १९७५ में जब पहला विश्वकप आयोजित होना तय हुआ तब वेस्टइंडीज ने अपनी प्रतिभा के दम पर पूरी क्रिकेट की दुनिया का अपने कब्जे में कर रखा था । किसी भी टीम के पास उस टीम का सामना करने की क्षमता नहीं थी। मैल्कम मार्शल, ज्यॉल गॉर्नर जैसे गेंदबाज अपनी गेंदो से आग उगलते थे। दुनिया के बडे बडे बल्लेबाज इनके आगे धराशायी हो जाते थे। क्लाईव लॉयड और विव रिर्चडस, डेसमंड हेंस और गॉडर्न ग्रीनीज जैसे बल्लेबाज से सुसज्जित टीम ने पहला और दूसरा विश्वकप आसानी के साथ जीत लिया था । उस समय लग रहा था कि यह टीम अजेय है। १९८३ में कपिल देव की कप्तानी में भारत की टीम ने फाईनल में पहली बार विश्वकप में पराजित किया। उसके बाद से वेस्टइंडीज टीम वापिस कभी भी फाईनल में नहीं पहुंच पायी है। विश्वकप के फाईनल में भारत के हार जाने के बाद भी वेस्टइंडीज टीम अपने विरोधियों पर भारी पडती रही । दुनिया भर के क्रिकेट खेलने वाले देश वेस्टइंडीज से निपटने की युक्तियां खोजते रहते। उस समय श्रीलंका के खिलाडी तो वेस्टइंडीज के गेंदबाजो का सामना ही नहीं कर पाते थे। १९८७ के विश्वकप में वेस्टइंडीज पहले दौर में बाहर हो गयी। पाकिस्तान के विरूद्ध एक मैच हार कर टीम बाहर हो गयी थी तब विव रिचर्डस मैदान में रो पडे थे। उस समय रोने का वक्त नहीं था क्योंकि टीम संघर्ष कर हारी थी परन्तु आज वेस्टइंडीज के लिए रोने का वक्त है। १९९० तक वेस्टइंडीज विश्वकप नहीं जीतने पर भी सिरमौर रही । विव रिचर्डस, रिचि रिर्चडसन, डेसमंड हेंस, लैरी गोम्स, जैफ डुजो, रोजर हार्पर जैसे खिलाडियो ने वेस्टइंडीज की मान मर्यादा बनाये रखी।
दुनिया की सिरमौर टीम का पतन १९९० के बाद से शुरू हो गया था जब विव रिचर्डस ने संन्यास लिया। उसके बाद कमान रिची रिर्चडसन को सौंपी गयी। गेंदबाजी मे कर्टनी वाल्श बडा हथियार था परन्तु धीरे धीरे वेस्टइंडीज अपनी लय खोने लगी। उस समय ब्रायन लारा उनके साथ बडा बल्लेबाज था जिसने सचिन की तरह कई रिकार्ड बनाये। ब्रायन लारा ने काफी हद तक वेस्टइंडीज के पतन को रोके रखा। १९९६ के विश्वकप में टीम सेमिफाईनल तक पहुंचने में सफल रही । एम्ब्रोस, इयान बिशप गेंदबाजी के उच्च मानको को बनाये रखने में असफल रहे। फिर भी खिलाडियो ने टीम को स्वर्णकाल में ले जाने का प्रयास किया। एक बार चैम्पियंस ट्राफी भी जीतने में सफल रहे । २०१२ में आईसीसी टी २० चैम्पियनशिप भी जीती । १९९५ से २०१५ तक वेस्टइंडीज का प्रदर्शन मिश्रित रहा। कभी जीत जाते जो कभी बुरी तरह हार जाते। इस दौरान टीम का दबदबा नहीं रहा परन्तु टीम का एक औसत प्रदर्शन रहा ।
वेस्टइंडीज टीम के लिए बडी दिक्क्त यह है कि यह एक देश नहीं है। यह एक कैरबियन देशो का समूह है जिसके देशो के खिलाडियो से मिलकर टीम बनती है। इस कैरेबियन समूह का एक ही क्रिकेट बोर्ड है। बोर्ड और खिलाडियो के बीच २००५ में विवाद शुरू हुआ जो अभी तक किसी न किसी रूप में जारी है। एक बार तो कैरेबियन समूह के देशो की अलग अलग टीम के रूप में खेलने की भी कल्पना की जाने लगी। एक बार शिव चन्द्रपॉल कप्तानी में दूसरी टीम भेज दी गयी। खिलाडियो ने कई बार टीम से बगावत कर दी। उसके बाद टी २० आने के बाद वेस्टइंडीज के खिलाडियो को नया रोजगार मिल गया। वे राष्ट्रीय टीम से बगावत करके टी२० लीग में खेलने लग गये। पोलार्ड और दूसरे खिलाडी अपना अधिकांश वक्त टी २० लीगस को देने लग गये। इससे वेस्टइंडीज टीम को बहुत बडा नुकसान हुआ। उसकी राष्ट्रीय टीम कमजोर हो गयी। टीम का मैनजमेंट विव रिचर्डस के सन्यास के बाद ही हो गया क्योंकि उसके बाद डेसमेंड हेंस को बीच में ही हटा दिया गया। बार बार कप्तान बदले गये। गस लोगी को अंदर बाहर किया गया। २००५ के बाद टीम पूर्णत गर्त के रास्ते पर आ गयी। जिसकी परिणित यह हुई कि क्वालिफायर स्कॉटलैंड से हार कर बाहर हो गयी।
वेस्टइंडीज के पतन में वहां का बोर्ड पूरी तरह से जिम्मेवार है। जब टीम का स्वर्णकाल था तो भविष्य की टीम के बारे में नहीं सोचा गया। प्रतिभाऐं अपने आप नहीं आती है उन्हे खोजना पडता है और अवसर देना पडता है। एम्ब्रोस और वाल्श के बाद तेज गेंदबाजो को नहीं तराशा गया। वेस्टंडीज बोर्ड की ओर से प्रोत्साहन नहीं मिलने से गुयाना और बारबोडोस के प्रतिभाशाली युवाओ ने अपना रूख ऐथेलेटिक्स की ओर कर लिया। मनोरंजन के नये साधान आने से युवा संगीत की ओर भी मुड गये। क्रिकेट में विवादो के चलते युवा क्रिकेट की ओर आकर्षित नहीं हुए। टीम का धरेलू क्रिकेट ढांचा भी दरकने लगा था जिसका नुकसान टीम को हुआ। किसी भी देश की क्रिकेट के लिए घरेलू क्रिकेट का मजबूत होना जरूरी है। वेस्टइंडीज टीम के गर्त में जाने का सबसे बडा कारण उनकी घरेलू क्रिकेट का विवादो में घिर जाना है।
वेस्टइंडीज दुनिया के सबसे बडे क्रिकेट जलसे से बाहर है। इसका दुख सभी क्रिकेट प्रेमियों केा है परन्तु एक कमजोर वेस्टइंडीज टीम को भी हम स्वीकार नहीं कर सकते है। अब जरूरत है कि आईसीसी वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम को मजबूत करने का जिम्मा ले क्योंकि वेस्टइंडीज क्रिकेट की विरासत है। उस विरासत को बचाये रखना जरूरी है। नयी टीमे आती रहेगी और क्रिकेट से जुडती रहेगी परन्तु हमें विरासत को भी लुप्त होने से बचाना जरूरी है। वेस्टइंडीज टीम के बिखरने के बाद क्रिकेट अधूरा हो जायेगा। इसलिए अब वक्त है कि वेस्टइंडीज टीम को एक विरासत के तौर पर बचाया जाय। वेस्टइंडीज का क्रिकेट की मुख्य धारा से बाहर होना वैसा ही जैसे चिरागो से रोशनी जा रही है।
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