गीता भवन के बाहर से हमने गुगल मैप देखना शुरू किया। गुगल मैप देखते हुए गीता भवन के पीछे की सडक पर गये। एक ऐसी गली में भी घुस गये जो आगे बंद थी। गुगल मैप से मिलान करने मे हम गलती कर गये। आगे गली में कुछ लोग आते हुए दिखे। हम भी गुगल मैप वाली गली मानकर उसमें चलने लगे। गली में चढाई बहुत थी। हर पांच मिनट बाद रूकना पड रहा था। गली पार करने के बाद एक थडी पर मै बैठ गया। मानस मेरी हालत देखकर हंसने लगा। मयंक मेरे लिए नारियल पानी लाया। नारियल पानी पीने के बाद गुगल नक्शा देखकर चलने लगे। सामने भूतनाथ मंदिर था। उससे सीधे जाना था। हम उस ओर चल पडे। आते जाते लोगो से पूछ रहे थे हिमशेल वाटर फाल कहां है। किसी ने सही उत्तर नहीं दिया। अधिकांश लोगो ने तो कहा कि आगे कोई वाटर फाल नहीं है। रास्ता चढाई का था तो हम वापिस लौटने का सोचने लगे। आगे दो लडकियां दुकान लगाकर बैठी थी। उन्होने आवाज देकर कहा कि हिमशैल वाटर फाल आगे है। हमारे मन में नई उम्मीद जगी। उन्होने बताया थोडी दूर चलने पर उसका पानी सडक पर फैला हुआ दिखाई देने लग जायेगा। मानस ने कहा तो फिर ठीक है, चलते है परन्तु लडकियो ने कहा वो वाटर फाल बंद हो गया। किसी हाथी के हमले के बाद बंद कर दिया गया है। अब वहां पाईप लगा दिया गया है जिससे पानी आता है। हर मन मसोस कर लौट गये। लौटकर भूतनाथ मंदिर के बाहर थडी पर बैठ गये। मैने हिसाब लगाया और सोचा कि यदि 1000 रू तक कोई गाडी नीलकंठ चलती है तो नीलकंठ चल लेते है। मयंक ने वहां खडी गाडी वालो से पूछो तो किसी ने 2000रू से कम नहीं कहा । पहले हमने वहां कटा हुआ खीरा खाया तो वहां बैठे दो लोगो ने बताया हम अभी नीलकंठ जाकर आये है। एक आदमी का दो सौ रूपये लगे। मैने पूछा – कैसे । उन्होने बताया कि आगे एक टैक्सी स्टैण्ड है वहां 200 रू सवारी में आप जा सकते है। मै बहुत खुश हुआ। मैने कहा चलो नीलकंठ चलते है।
टैक्सी स्टैण्ड पर जाते ही टेक्सी मिल गयी। टैक्सी में हमारे साथ
बिहार से आये हुए चार युवक भी थे। वे पूरे रास्ते भोजपुरी में बाते कर रहे थे।
इसका हमने बहुत मजा लिया। उन मेसे एक महाराज जैसा था । जिससे वो लोग हर बात की हां
करवाते थे। वो बोल रहा था – हम तो सावन में यहां आते है। सावन में ससुरी यहां इतनी
भीड होती है कि दर्शन करते में चार घंटे से नंबर आता है। हम तो यहां तक पैदल आते
है। वो इतनी बाते कर रहे थे कि हम आपस में बात ही नहीं कर पा रहे थे।
मैने मानस
से मोबाईल से रास्ते का वीडियो बनाने के लिए बोला। साथ में यह भी बोला कि मेरा भी
फोटो साथ आना चाहिए। मै मानस का बता रहा था कि यहां से राफटिंग होती है। वहां
राफटिंग वाले नावे लेकर खडे थे। कुछ लोग नदी में राफटिंग कर रहे थे। हमारी टैक्सी
काफी उंची चल रही थी। गंगा में राफटिंग करने वाले काफी छोटे छोटे दिखाई दे रहे थे।
एक तरफ गंगा नदी बह रही थी और दूसरी और विशालकाय पहाड थे जो हरियाली से आच्छादित थे।
हमारी गाडी कुछ देर में राजाजी नेशनल पार्क से भी गुजरी। यहां गाडी रोकना मना था क्योंकि
यहां जंगली जानवरो का भय था। पास बैठे युवक ने कहा वो देखो सुसरा शेर। दूसरे ने कहा-
कहां है कहां है। गाडी मे बैठे सभी उत्सुकता से देखने लगे। महाराज ने कहा – वो सुसरी
बकरी है। तुमको पता नहीं क्या क्या दिख जाते है। हम सभी ने महाराज की बात सुनकर जोर
से ठहाका लगाया। गाडी अब नीचे घाटी में उतर रही थी। हमें अब वो सडक दिखाई दे रही थी
जहां से चलके हम आये थे। सडक पर गाडियो की लंबी लाईन लगी थी। हम घाटी में उतर रहे थे।
पहाडो पर सफेद बादल रूई के फौव्वो की तरह दिखाई दे रहे थे। हरियाली में सफेद बादल
पहाडो पर गहनो के श्रंगार की तरह लग रहे थे। गाडी हमारी टैक्सी स्टैण्ड पर रोक दी।
हम सब ने एक दूसरे के नंबर लिये ताकि समय पर लौट सके। गाडी टैक्सी स्टैण्ड पर खडी
थी।
अब हम नीलकंठ में थे। चारो और पहाडो से घिरा हुआ। सारे पहाड हरे भरे। रोमांचित करने वाला दृश्य था। यहां फोटो खिंचवाने का मोह छोड नहीं पाया। मंदिर जाते हुए रास्ते में एक दो फोटो तो खिंचवा ही लिये। हम जहां खडे थे उसके नीचे और घाटी थी। एक ओर चाय पानी और प्रसाद की दुकाने लगी थी। सभी दुकानदार अपने यहां से प्रसाद लेने की मनुहार कर रहे थे। मंदिर के नजदीक पहुंच गये थे। मंदिर सीढिया उतर कर था। हम लोगो ने एक दुकान से प्रसाद लिया और वहीं चप्पले खोल दी। यहीं से मंदिर के द्वार में प्रवेश किया। लंबी लाईन थी।
आगे जबरदस्त भीड दिखाई दे रही थी। लोग बम बम भोले बोल रहे थे। मैने भी हर हर महादेव का उदघोष किया। लाईन में हम आगे पीछे हो गये थे। निज मंदिर में बहुत भीड थी। महोदव की लिंगी पर मैन जलाभिषेक किया। यह जलाभिषेक कुछ ही सैकिण्ड में पूजारी ने करवा दिया। पीछे भीड बहुत थी। मै जलाभिषेक कर आगे आ गया। मानस और मयंक भी पीछे पीछे आ गये। मंदिर के बाहर आने पर देखा मंदिर के बाहर बहुत सारे धागे बंधे थे। कुछ मन्नतो के लिए बांधे हुए थे और कुछ प्रसाद की थाली में आने वाले धागे को वैसे ही बांध देते थे। मैने मंदिर के बाहर अपने स्नैप खिंचवाये। मैने मानस से कहा फोटा में लगना चाहिए कि हम नीलकंठ महादेव के मंदिर में है। मंदिर में लगातार बम बम भोले के स्वर सुनाई दे रहे थे।
मंदिर के बाहर आकर चारो ओर घिरे पहाडो को फिर से देखा। अपने जूते चप्पल पहन कर सबसे पहले कुछ खाने पीने का काम किया। एक रेस्टोरेंट में गये। जिसके पीछे बालकॉनी से नीचे घाटी और पहाड दिखाई दे रहे थे। हमने वहां बैठकर चाय का आनंद लिया। यहां के स्नैप अलग से लिये। नीचे घाटी में भी कुछ अस्थायी मकान बने हुए थे। चाय पानी करने के बाद बाहन निकले तो एक हैण्डपंप पर पानी भरा। मैने हैंड पंप चला कर देखा। फिर घाटी के सुंदर दश्य में कुछ योगा करते हुए स्नैप खिंचवाये।
आने वाले सावन मास को देखते हुए परिसर में तैयारियां चल रही थी। ठंडी हवा में हम लोग हाथ फैलाकर खडे हो गये। हवा का भीतर तक अहसास किया। वहां दश्य इतना सुंदर था कि आधे घंटे तक हम वहां वीडियो सैल्फी और फोटो बनाते रहे । मैने कहा हम लोगो को साथ में दो ड्रेस और लानी चाहिए थी। शाम हो रही थी। हम जल्दी से टैक्सी की ओर गये। बिहारी युवक पहले से ही आ चुके थे। जल्दी से हम गाडी में बैठे। गाडी में बैठ कर हर हर महादेव का उदघोष किया और गाडी रवाना। लौटते वक्त समय का पता ही नहीं चला। गाडी राम झुले पर रूकी। हम लोग वहां उतर गये और वहां से हर हर महादेव का उदघोष करते हुए गीता भवन की ओर चल दिये।
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