Sunday, July 16, 2023

सहस्‍त्रधारा की रोमांचक यात्रा

 


ऋषिकेश में गंगा नदी के सामने ही सारे आश्रम बने हुए है। सुबह सुबह मै गीता भवन से निकला। सामने गंगा नदी बह रही थी। मै कुछ देर वहीं खडा हो गया गंगा को देखता रहा । गंगा अपने पूरे आवेग के साथ बह रही थी। कोई उसमें नहाकर रोमांचित हो रहा था तो कोई पुण्‍य कमा रहा था। छोटे छोटे बच्‍चे नदी के अंदर अठखेलियां कर राजी हो रहे थे। गंगा को छुकर आने वाली हवा शीतलता का अहसास करा रही थी। कुछ देर रूकने के बाद मै वहां से चल दिया। आश्रमो के बाहर गली में नये नये रेस्‍टोरेंट बने है। यहां फास्‍ट फुड और भोजन आधुनिकता में उपलब्‍ध है। आश्रमो में सात्विक भोजन मिलता है जबकि यहां आधुनिक परन्‍तु यहां भी वेज ही मिलता है। गली से निकलते हुए साधुओ की टोलियां मिलती है। कुछ साधुओ के काली दाडी और बाकि के सफेद दाडी है। कुछ के हाथ में कमण्‍डल और कुछ के हाथ में गठरी होती है। मौन धारण किये हुए अपने गंतव्‍य की ओर जा रहे होते है। यहां साधुओ की टोलियां प्राय दिख जाती है। मै ट्रैवल ऐजेन्‍सी के यहां गया था । आज हमें देहरादूर जाना था। ट्रैवल ऐजेन्‍सी वाला मिल गया था। पांच हजार रूपये मांग रहा था। कुछ मोल भाव किया तो साढे चार हजार में राजी हुआ ।  बात तय हो गयी। उसने कहा कि गाडी आपको जानकी पुल पर मिल जायेगी। ऋषिकेश में गंगा नदी पर तीन पुल है। एक लक्ष्‍मण झुला, राम झुला और जानकी झुला। लक्ष्‍मण झुला सबसे पुराना है। उसके बाद बना राम झुला और अब नया बना है जानकी झुला। बिना किसी पोल के ये पुल बने है। इन पर चलते है तो ये पुल हिलते है इसलिए इन्‍हे झुला कहा जाता है।


यात्रा में जितने लोग आये थे उनमें से केवल 6 लोग ही देहरादून भ्रमण पर जा रहे थे। धूप बहुत तेज थी। तेज धूप में गंगा नदी किसी आईने की तरह चमक रही थी। हम सब लोग जानकी पुल से गुजर रहे थे। यहां पुल से पैदल ही जाना होता है। इस पर वाहनो की अनुमति नहीं है। स्‍कूटी जरूर इस पर चलती है। माताजी को स्‍कूटी पर बिठाकर पुल के पार भेज दिया। हम सब लोग पैदल मस्‍ती करते हुए चल रहे थे। पुल पर बहुत भीड थी। काफी बच्‍चे सैल्‍फी के लिए पुल पर खडे थे। पुल से निकलते ही हमारी गाडी तैयार थी। ऐ सी गाडी होने से मानस बहुत खुश था। अब तक उसे पैदल ही यात्रा करवायी थी। पुल के बाहर बडा बाजार था। हमने दो पानी की बोतले और खाने पीने का सामान खरीद कर रख लिया। अब हमारी गाडी देहरादून के लिए रवाना हो गयी।


ऋषिकेश की सीमा पार होते ही हम जंगल में आ गये। कार की खिडकी से पहाड और उसके आगे घने जंगल दिखाई दे रहे थे। ये जंगल वैसे ही थे जैसे बेटा फिल्‍म में तु मेरा मै तेरी वाले गाने में बताये हुए थे। कार की खिडकी से जंगल किसी पिक्‍चर की तरह चल रहे थे। ऋषिकेश और देहरादून समुद्रतल की उंचाई मे ज्‍यादा अलग नही है। दोनो लगभग एक ही उंचाई पर है। गाडी में गाने गाते हुए हम जल्‍द ही देहरादून शहर पहुंच गये। यहां के शहर की सडके साफ सुथरी है। सडको पर धूल बिलकुल नहीं है। सडको पर जगह जगह फल के ठेले लगे हुए है जिन में अधिकांश पर लीची लदे हुए है। कई घरो में लीची के पेड भी लगे हुए दिखाई दिये परन्‍तु फिर भी लीची यहां सस्‍ते नहीं है। यहां लीची १४० से १८० रूपये किलो तक है। यह बात जरूर है कि यहां लीची ताजे मिल जाते है। अब हमारी गाडी सहस्‍त्र धारा की ओर जा रही थी। सहस्‍त्र धारा देहरादून में नीचे घाटी की ओर है। ड्राईवर हमें सहस्‍त्रधारा के बारे में बता रहा था। ड्राईवर अच्‍छा आदमी था। उसने बताया कि उसका गांव केदारनाथ के पास है। उसने बताया कि उसका परिवार कैसे मुश्किल में रहता है। वो बर्फबारी का तो वो साल में कई बार सामना करते है। उनके यहां स्‍कूल और अस्‍पताल की दिक्‍कते है। उसने अपने पहाडी खाने के बारे में भी बताया। उसने बताया कि वो ठंड में भटट की दाल बनाते है। पहाडी खाने में भटट की दाल विशेष होती है। उसने बताया कि पहाडो में कितनी ठंड पडती है। हमने भी उससे हमारे यहां पानी की कमी साझा की। हमारा जीवन पानी के बिना कितना मुश्किल है, यह भी बताया। बाते करते करते हम सहस्‍त्र धारा पहुंच गये। गाडी एक किनारे पार्क की। ड्राईवर ने बताया कि एक घंटे में आप आ जाना। हम सब गाडी से निकले और अपने हाथ मुंह धोये।



सबसे पहले मंदिर में गये। यहां शिव मंदिर है। सहस्‍त्रधारा एक बहुत बडा पहाड से जिसमें से लगातार पानी की धाराये निकलती रहती है। कहीं गंधक की धारा तो कहीं दूसरे पानी की सहस्‍त्रो धाराऐ निकलती रहती है। यह धाराऐ बरसो से अनवरत निकल रही है। मंदिर में शिव अभिषेक के लिए भी पानी उन्‍ही धाराओ से ही आ रहा था। पानी एकदम कंचन की तरह साफ था। सबसे पहले हम सब ने पानी से शिवअभिेषेक किया। फिर बाहर सहस्‍त्र धारा की ओर आ गये। सबसे पहले गुरूद्रोण की मुर्ति लगी थी। उस मुर्ति को प्रणाम किया और फोटो खिंचवाये। यहां पहुंचते ही ठंडी हवाऐं  आपको छुने लगती है। पहाडो से गिरने वाली सहस्‍त्र धाराऐं रोमांचित करती है। चारो और पहाडो से घिरा हुआ स्‍थान है ये। इसे घाटी भी कहा जा सकता है। इस पहाड पर कई गुफाऐं भी बनी हुई है। सब जगह से पानी आ रहा है। पहाडो से गिरने वाले पानी को तीन जगह बांध दिया है ताकि लोग वहां नहा सके। कई जगह छोट छोटे झरने बन गये है। हमारे चारो तरफ हरियाली से भरे हुए पहाड थे जिनमें से सहस्‍त्रो धाराऐं बह रही थी। हम दुनिया की सुंदरतम जगहो में से एक पर खउे थे। हमारे पीछे उंचाई पर गुफाऐं थी जिनमेंसे पानी आ रहा था। कुछ लोग उंचाई पर जाकर गुफाओ में जा रहे थे। गुफा से एक साथ पानी आने से वहां झरना बन गया था। दूसरी ओर उंचाई पर एक रेस्‍टोरेंट था जिसमें लोग रोपवे द्वारा जा रहे थे।



अनवरत धाराओ में बहने से बडे बडे पत्‍थर नीचे आ गये थे। उन पत्‍थरो पर चलते हुए हम सुरक्षित स्‍थान देख रहे थे। पानी को देखकर हम लोगो का भी नहाने का मन हो गया था। एक स्‍थान पर हम लोगो ने अपने कपडे रखे और पानी में कूद पडे। हमने ऐसा स्‍थान देखा जहां छोटा झरना भी था। पानी गहरा नहीं था। धाराओ से निकला हुआ पानी था। पानी के अंदर छोटे छोटे पत्‍थर थे जो पांवो में चुभ रहे थे। मै चलता हुआ झरने के पास पहुंचा । कुछ देर झरने के नीचे बैठा रहा। वहां मैने मानस और मंयक को भी बुला लिया था। यहां भी स्‍नैप जरूरी थे। कुछ स्‍नैप हमने वहां खींचे। फिर पानी में चलते हुए दूसरे झरने पर गये। वहां पानी का बहाव तेज था। पानी हमें धक्‍के मार रहा था। रोमांचित करने वाला अनुभव था। पानी के बीचे पडे बडे पत्‍थरो पर हम बैठ गये। कुछ देर बाद फिर पानी में उतर आये। एक पिता अपने छोटे से बच्‍चे को नहला रहा था। बच्‍चे चेहरे की खुशी देखी जा सकती थी। बच्‍चो अठखेलिया कर रहा था। पानी से सहस्‍त्र धाराओ वाला पहाड विशाल दिखाई दे रहा था। यहां से पहाडो से निकलती सहस्‍त्र धाराऐ, झरने और गुफाऐं दिखाई दे रही थी। अदभुत दृश्‍य था । अब एक घंटे से भी ज्‍यादा का समय हो चुका था। हम निकल कर बडे से पत्‍थर पर आ गये थे। वहां खडे होकर कुछ स्‍नैप और कुछ सैल्‍फी ली। फिर वहीं बैठकर भेल मुडी खायी। नहाकर निकले थे तो भेलमुडी बडी स्‍वादिष्‍ट लग रही थी। भेलमुडी खाने के बाद हमने कपडे पहने और बाहर की ओर चल दिये। यहां से जाने का मन नहीं हो रहा था। कुछ दूर जाकर वापिस पीछे आया। एक बार ओर इस अदभुत दृश्‍य को देखा। जी अभी भी नहीं भरा था परन्‍तु जाना तो था।




गाडी पर जाने से पहले हमे चाय की जोरदार तलब हो रही थी। नहाने के बाद ठंडे वातावरण में चाय तो जरूरी थी। गाडी पार्किंग के पास ही एक रेस्‍टोरेंट था। हमने रेस्‍टोरेंट में चाय और नाश्‍ता किया। चाय अच्‍छी थी इसलिए सबने दो दो कप लिये। चाय पीने के बाद वापिस हम अपनी गाडी में बैठ गये और गाडी रवाना हो गयी हमारे अगले डेस्‍टीनेंशन की ओर। अगला पडाव अगली कडी में …………
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