Sunday, June 11, 2023

हडताल के दिन और बादलों के फौव्‍वे काटने के दिन




हडताल के दिन । वे हडताल के ही दिन थे। पूरा दिन पिन ड्रॉप चुप्‍पी में चिंघाडता था। मै अपनी छत्‍त पर बने कमरे में बैठा रहता । पूरी छत्‍त पर धूप पसर जाती थी । धूप भी ऐसी कि उसकी सेक फर्श से उठकर सीधे कमरे में आती थी जो मेरे बदन को जला देती थी । मै लैपटॉप लिये कमरे के बाहर देखा करता था। कमरे से छत्‍त के सिवा नीला आसमान दिखाई देता था। नीले आसमान में सफेद बादल फव्‍वो की तरह चिपके हुये दिखाई देते थे। ये सफेद बादल ही एक तरह की उम्‍मीद थे कि ये काले होयेगे और बरस कर धूप के ताप को कम करेगे। हमारी हडताल भी इसी उम्‍मीद पर थी कि सरकार भी कभी राहत का बादल बन कर बरसेगी। सरकार से अपनी मांगो को लेकर हम अपने कार्यालयो से हडताल पर चल रहे थे। यह हमारा 15 वां दिन था। मै कर्मचारी मैदान जाकर वापिस आकर अपने इस क्रियेटिव रूम में बैठ जाता हूं। पंखा तेज गति से चल रहा है। बाहर से आने वाली गर्म हवा को पूरे कमरे में फैला रहा है। मै लैप टॉप पर कई किताबो की पीडीएफ और दूसरे लेखको को एक्‍सप्‍लोर कर रहा हूं। मेरे पलंग पर मारकेज की अमरूद की महक, रस्किन बाण्‍ड की नाईट ट्रेन ऐट देओली और आचार्य श्रीराम की ज्ञानखण्‍ड उपनिषद भाग 3 बिखरी पडी है। लैपटॉप से उबता हूं तो इन में से कोई किताब पढ लेता हुं।

लैपटॉप पर गुगल क्रोम में मुझे एक कविता दिखाई पडी। किसी को बददुआ देनी थी, मै तेरा नाम देर तक बुदबुदाता रहा। यह कविता थी गौरव सोलंकी की । मुझे कविता अच्‍छी लगी। मैने गौरव की एक दो और कविताऐं खोजी। वो भी मुझे अच्‍छी लगी। फिर मुझे उसका ब्‍लॉग मेरा सामान मिला। उसमे उसकी लिखी बहुत सारी कविताऐं थी। उसकी कल्‍पनाऐं सोच से परे थी। ये कल्‍पनाऐं मुझे लुभाने लगी। मेरे अंदर का कवि भी जागने लगा। मुझे लगा कि सामने आसमान पर लगे बादल के फौव्‍वो को काटकर कविताऐं बना ली जावे। मै हमेशा कविताऐं करने से डरता था। लल्‍लन टॉप वेबसाईट पर मैने गौरव सोलंकी का इंटरव्‍यू सुना जिसमें उन्‍होने बताया कि कविताऐं मै अपने लिए करता हूं। वो चाहे किसी को पसंद आये या नहीं आये। यहां तक कि मेरी कविता कोई एक आदमी भी नहीं पढेगा तो मै कविताए करूंगा । गौरव सोलंकी से इसलिए भी प्रभावित हुआ कि उसने आईआईटी करने के बाद फैसला लिया कि वो सिर्फ लिखेगा। पीलीबंगा में सरकारी मास्‍टर रहे उसके पिता को कितना दुख हुआ होगा। एक आई आईटी किया हुआ लडका कहता है कि मै सिर्फ लिखने का काम करूंगा वो भी हिन्‍दी मे । हिन्‍दी में भी उसने अपना नवलेखन ज्ञानपीठ पुरस्‍कार स्‍वीकार करने से मना कर दिया। आज वह बॉलीवुड में सफल स्क्रिप्‍ट राईटर है। उसे फिल्‍म फेयर पुरस्‍कार भी मिल चुका है। मै उससे बहुत प्रभावित हूं। उसको देखकर मैने कविताऐ लिखने की हिम्‍मत की । हडताल के दौरान मैने करीब ५० -६० कविताऐ लिख डाली।

हडताल चलते हुए करीब ३५ दिन हो गये थे। मैने काफी कुछ नयी रचनाऐं कर ली थी। अब नयी रचनाऐं करने का विचार था। नीचे कमरे मे टीवी के सामने बैठा था। रिमोट को घुमाते हुए सत्‍या फिल्‍म दिख गयी। सत्‍या फिल्‍म देखनी शुरू कर दी । मनोज वाजेपयी की गजब फिल्‍म है। कुडी मेरी सपने मे मिलती है, गाने में तो मनोज वाजपेयी ने कमाल कर दिया। फिल्‍म के अंत में उर्मिला मातोडकर सब पर भारी पडी । उसके चेहरे के भावो में झकझोर दिया। उसके अगले दिन गैगस आफ वासेपुर देख डाली । नवाजुदीन सिदकी के अभिनय ने दिल छु लिया। फिल्‍म में सबसे ज्‍यादा प्रभावित किया बेकडोर गानो ने। फिल्‍म की शुरूआत में नवाजुदीन के घर से शव यात्रा निकल रही थी, वहीं दूसरी और एक स्‍टेज पर गायक कलाकर तेरी मेहरबानियां गाना गा रहे थे। यह फिल्‍म नहीं देखी उसने कुछ नहीं देखा। इन दिनो सिर्फ एक बंदा काफी है कि चर्चा बहुत सुनी थी। वो भी अगले दिन देख डाली। सिर्फ एक बंदा पूरी तरह से मनोज वाजपेयी की फिल्‍म है। मनोज वाजपेयी का अभिनय इतना अच्‍छा है कि उसने दर्शको का कलेजा निकाल कर जीत लिया। इस फिल्‍म के बाद मुझे मनोज वाजपेयी इतना पसंद आया कि उसके बहुत सारे इंटरव्‍यू देख डाले । एक इंटरव्‍यू में वो कहते है कि उन्‍होने यश चौपडा से काम मांगा तो यश चौपडा ने कह दिया कि वो उनके लायक फिल्‍मे नहीं बनाते है। जिंदगी के बारे में मनोज वाजपेयी कहते है कि आदमी के पास इतना पैसा होना चाहिए कि वो अच्‍छा ईलाज करा सके, मनपसंद जगह जा सके, मनपसंद गाडी में बैठ सके, मनपसंद मकान में रह सके। मनोज वाजपेयी ने बताया कि वो शुरू मे पैसे के लिए छोटा मोटा रोल भी कर लेते थे। मैने मनोज वाजपेयी को बहुत एक्‍सप्‍लोर किया। इसके लिए उसके कपिल शर्मा में आये सारे एपिसोड खोज कर देख लिये।

हडताल के दिनो में शाम को घर के पास पार्क है, उसमें घूमने के लिए जाया करता था। घूमते हुए सोचता था कि नौकरी छोड दू और क्रिऐटिव काम करूं। जीवन का बाकि हिस्‍सा में अपनी मनपसंद का काम करते हुए बिताउं। बिना मनपसंद के काम में मैने इतना मन दे दिया कि मन वहां से निकलने के लिए छटपटाने लगा। वहां भ्रमण पथ पर घूमते हुए मेरे उपर पेडो से पत्‍ते टूटकर गिर रहे थे। हर चक्‍कर मे दो चार पत्‍ते मेरे बालो मे जमा हो जाते । इसी दौरान चंडीगढ से आया मेरा दोस्‍त मिल गया। वो पांच बरस बाद आया था। बालघोटिया भायला था। दो दिन उसके साथ घूमा। वो बता रहा था आपकी हडताल का ऐसा हो जायेगा वैसा हो जायेगा। मै उसकी सुनता रहा । मैने कहा बहुत बोल रहा है क्‍या बात हो गयी। उसने कहा सुनने की आदत डाल ले मेरा ट्रांसफर बीकानेर हो गया है। मैने अपनी आने वाली किताबो की तैयारी भी कर ली परन्‍तु हडताल के दौरान मैने यह भी सीख लिया कि लिखने का काम अपनी संतुष्टि के लिए होता है। इसे अपनी संतुष्टि के लिए करके भी देखा।

आज कर्मचारी मैदान गया था। धूप बहुत तेज थी । एक छाया में कर्मचारी बैठे थे। सब अपनी अपनी राय व्‍यक्‍त कर रहे थे। ऐसा लग रहा था कि सभी कुऐं में से अपनी राय निकाल रहे है। लू के थपेडे हमारे गालो पर गिर कर यह संदेष दे रहे थे कि हम घर जाकर कुछ दिन और आराम करे। हमारे किसी साथी ने छाछ के पैकेट मंगा लिये। हमने छाछ पीकर भीतर की गर्मी और लू के थपेडो की गर्मी को कुछ हद तक शांत किया। सब अपने अपने दोस्‍तो के साथ अपनी राय बना रहे थे। पार्क में कुछ बुजुर्ग ताश के पत्‍ते खेल रहे थे। गर्म हवाऐं उनको छुकर जा रही थी। उन गर्म हवाओ के थपेडो को अपना कवर बनाकर मै बाईक पर बैठकर तपती सडको से चलते हुए घर आ गया। कूलर चालू किया और सो गया।

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