Saturday, May 7, 2022

कहानी- बारात फूलो की

हम लोग थार के मरूस्‍थल में रहते है जहां गरमी और सरदी दोनो तकलीफदेह होती है। यहां गरमीयां बहुत सताने वाली होती है। गरमि‍यों में या तो तेज धूप होती है या फि‍र धूल भरी आंधि‍यां  । दो दो दि‍न लगातार आंधि‍या चलती है । हर जगह धूल ही धूल हो जाती है। इन दि‍नो घर के हर कोने मे धूल मि‍लती है। आप सफाई करोगे उसके कुछ ही देर में धूल आ जाती है। थोडी बहुत धूल तो वैसे ही खाने के साथ हमारे पेट मे चली जाती है। हम हम इसके आदि‍ हो चुके है। अब हमे धूल अपनी सी लगती है। रेत के समंदर के कि‍नारे हमारे लि‍ए हरि‍याली तो कि‍ताबो में ही होती है। इसके बावजूद हम प्रकति‍ के प्रेमी होते है। हमे पेड पौधो से बहुत प्‍यार है। मुझे तो पेड् पौधो का बहुत शौक है। मै अपने घर में गमलो मे पौधे रखता हूं। मेरे पास अधि‍कांश फूलो के पौधे है। उसमें गुलाब, गेंदा, रात की रानी के पौधे है। सरदी और बसंत के दि‍नो में तो मेरे घर की बगि‍या फूलो से आच्छादि‍त रहती है। गरमि‍यों में फूल गरमी से सूख जाते है और पौधो की पत्‍ति‍यां झड जाती है। गरमि‍यो में पौधो को कम ही संभाल पाता हू। हमारे घर के नजदीक ही एक नीम का पूराना पेड् है। इस पेड् के नीचे ही फूल वाले की दुकान है। दुकान तो पेड् के पीछे है परन्‍तु वो पेड् के नीचे ही फूलो का काउंटर सजाता है। मै बेरोजगारी के दि‍नो मे अक्‍सर उसके पास जाकर बैठ जाता था। उसकी दुकान का नाम था बारात फूलो की । मै उससे पूछता कि‍ ये क्‍या नाम रखा है। तो वो बताता कि‍ उसे यह गाना बहुत पसंद है कि‍ रात है या बारात फूलो की। वो कई बार इस गाने का सुनता है। मैने भी दुकान पर रेडि‍यो पर इस गाने को सुना है।

     मै सुबह और शाम उसकी दुकान पर बैठता था। जब ग्राहकी ज्‍यादा होती तो मै उससे बात नहीं कर पाता लेकि‍न जब ग्राहक नहीं होते तो वो मूझ से खुलकर बाते करता । वो अपनी जि‍दगी के बारे में सबकुछ मुझे बता देता है परन्‍तु संकोचवश्‍ अपनी कुछ नि‍जि‍ बाते मेरे से छुपा भी लेता था। उस सड्क पर उसके अलावा और भी फूलो की दुकाने थी। इससे उसका कॉम्‍पीटि‍शन बढ गया था। वो बताता था कि‍ पहले उसके अकेले की दुकान थी परन्‍तु दो और दुकाने खुल जाने से उसकी ग्राहकी पर फर्क पडा है। दोपहर में वो अपने फूलो को काउण्‍टर से दुकान के फ्रीज में रख लेता था। वो दुकान में लेटकर संगीत के साथ उपन्‍यास पढा करता था। मै उससे पूछता कि‍ ये कैसे उपन्‍यास पढता है- मौत का सरगना, चालीस चोर, चोर दरवाजा। वो कहता कि‍ ये उपन्‍यास फि‍ल्‍मो की तरह होते है। मुझे कभी ये उपन्‍यास पसंद नहीं आये।

उसकी दुकान के सामने एक बडा सा घर था। एक क्‍या दुकान के सामने बहुत सारे घर थे। परन्तु दुकान के ठीक सामने भी एक घर था। उस घर में एक बुढि‍या रहती थी। उस बुढि‍या के लि‍ए वो रोज फूल ले जाता था। वो रोज कई तरह के ताजा फूल उस बुढि‍या के लि‍ए ले जाता था। बुढि‍या उसका इंतजार करती रहती थी क्‍योंकि‍ बुढि‍या इन्‍ही फूलो से पूजा करती थी। मैने उससे पूछा कि‍ इन फूलो के पैसे कौन देता है। उसने बताया कि‍ जब भी उसका लडका बाहर से आता है तो मेरा हि‍साब कर जाता है। इन दि‍नो वो यहीं आया हुआ है परि‍वार के साथ। उसका टासंफर इसी शहर में होया हुआ है। उसके बच्‍चे और बीवी भी यहीं आये हुए है। उसके दो बच्‍चि‍यां और एक लडका है। मैने इससे आगे और जानने की इच्‍छा नहीं थी। मै तो उसके पास बैठा रहता। एक लडकी साईकि‍ल पर वहां से नि‍कलती। वो उसकी दुकान पर नही रूक कर आगे वाली दुकान पर रूकती। वो अपनी दुकान के फूलो को व्‍यवस्‍थि‍त करता लेकि‍न वो आगे नि‍कल जाती । पास वाली दुकान से वो फूल मालाऐ ख्ररीदती और नि‍कल जाती । मैने उससे पूछा कि‍ वो कौन है तो उसने बताया कि‍ वो उस बुढि‍या की पोती है। मैने कहा यह रोज यहां से नि‍कलती है। उसने हामी भरते हुए बताया कि‍ यह शि‍व मंदि‍र जाते हुए फूल ले जाती है। रोज वो उसकी दुकान के आगे से नि‍कलती परन्‍तु फूल आगे वाली दुकान से लेती। वो अपनी दुकान के फूल सहेजता परन्‍तु उस लडकी को कभी उसके फूल पसंद नहीं आये। वो कभी भी उसकी दुकान पर रूकी नहीं और कभी उसने भी उस लडकी से पूछा नहीं। वो लडकी नि‍कलती तो वो अपने फूलो को व्‍यवस्‍थि‍त जरूर करता। कि‍सी ग्राहक से बात करता तो बात करता रूक जाता। मैने कभी ज्‍यादा उससे उस लडकी के बारे में नहीं पूछा।

सुबह सुबह वो बुढि‍या को फूल देने जाता तो उसकी छोटी पोती उसे मि‍ल जाती। वो बहुत बातूनी थी। वो उससे तरह तरह के सवाल पूछती । बुढि‍या को फूल देने के बाद कुछ देर वो उसकी पोती से बात करता रहता। उसकी पोती उससे कभी फूलो के बारे में तो कभी फित्‍मो के बारे में पूछती रहती और वो जवाब देता रहता। वो कई बार पूछती आप रोज फूल कहां से लाते हो। वो रोज एक ही जवाब देता था कि‍ बाग से। दोपहर में वो कई बार कि‍सी दुकान से सामान लेने जाती तो उसकी दुकान पर रूक जाती। वो कहती आप दुकान में क्‍यो नहीं बैठते, बाहर क्‍यो बैठते हो। वो कहता कि‍ दुकान पेड के पीछे है इसलि‍ए। वो इस तरह की हजार बाते करती। फि‍र सामने से उसकी मां आवाज लगाती छुटकी। तो छुटकी दौडकर घर चली जाती। उसने कभी भी छुटकी से नहीं पूछा कि‍ तेरी दीदी उसकी दुकान से फूल क्‍यों नहीं ले जाती है। उसकी दीदी जब भी वहां से नि‍कलने वाली होती है। उसके उम्‍मीदो के पर लग जाते। वो सारे ताजे फूल आगे रखता। अपने काउण्‍टर के आगे खूशबू वाला छि‍डकाव भी करता परन्‍तु उसकी साईकि‍ल ठंडे हवा के झोंके के साथ वहां से नि‍कल कर पास वाली दुकान पर रूकती। वहां से फूल लेती और मंदि‍र की ओर चली जाती। वो उसे देखता रह जाता। उसकी हमेशा ईच्‍छा रहती कि‍ वो उसकी दुकान से फूल खरीदे परन्‍तु कभी उसने फूल खरीदने के लि‍ए उसने कहा नहीं और जब भी उसके घर गया तो कभी उससे बात नहीं की। जब वो सामने वाले घर में फूल देने जाता तो छुटकी से बात करते वक्‍त वो उपर की बालकानी में खडी रहती। वो छुटकी से बाते करता रहता। छुटकी पूछती आप और भी लोगो के घरो में फूल देने जाते हो क्‍या । वो कहता – नहीं मै तो सि‍र्फ तुम्‍हारे घर पर ही फूल लाता हूं। वो पूछता छुटकी तुम्‍हे कौन से फूल पसंद है तो वो कहती मुझे तो लाल रंग के फूल पसंद है। छुटकी की दीदी काफी देर तक बालकानी में उन दोनो की बाते सुनती रही। उससे अब रहा नहीं गया। उसने छुटकी से पूछ ही लि‍या कि‍ तुम्‍हारी दीदी मेरी दुकान से फूल क्‍यों नहीं खरीदती है। दीदी ने टेडी नजर से उसे देखा। छुटकी ने दीदी की ओर देखा और चपलता से जवाब दि‍या- आपके पास नीला गुलाब नहीं है। दीदी को नीला गुलाब पसंद है। जि‍स दि‍न तुम नीला गुलाब लाओगे उस दि‍न दीदी जरूर तुम्‍हारी दुकान से फूल खरीदेगी। यह जवाब सुनकर उसने उपर देखा- दीदी खि‍डकी बंद करके अंदर चली गयी। वो खि‍डकी की ओर देखते हुए वापि‍स आ गया।

अब उसके दि‍माग में एक ही बात दौडने लगी- नीला गुलाब। उसने अपने फोन पर देखा – नीला गुलाब। नीला गुलाब उसे दि‍या जाता है जो मुश्‍कि‍ल से दोस्‍त बनता है। उसने देखा नीला गुलाब तो जापान में होता है। भारत में कुछ प्रयोगशाला में उगाया जाता है। भारत में यह अधि‍कांश जगहो पर सफेद फूलो को रंग करके बनाया जाता है। वो कहां मि‍ल सकता है। इन सबके बारे मे उसने पता कर लि‍या। कुछ ही दि‍नो में उसे ठि‍काना मि‍ल गया और उसने नीले गुलाब का ऑर्डर भी दे दि‍या। अब वो इंतजार करने लगा कि‍ जब नीला गुलाब आयेगा तो वो मेरी दुकान से फूल खरीदेगी। वो यह कल्‍पना करने लगा कि‍ उसकी दुकान में एक गुलदस्‍ता नीले गुलाबो का होगा। वो साईकि‍ल चलाते हुए आयेगी और नीले गुलाब देख्‍कर वो साईकि‍ल उसकी दुकान की ओर मोड लेगी। वो नीले गुलाबो के साथ दूसरे फूल भी खरीदेगी।

आज वो बहुत खुश था क्‍योंकि‍ आज उसकी दुकान पर नीले गुलाब आने वाले थे। आज शाम तक नीले गुलाब आ जायेगे और कल सुबह वो अपने काउण्‍टर पर लगा लेगा। यह सोचते हुए वो सामने रोज की तरह फूल देने गया। वहां छुटकी ने बताया कि‍ आज वो यहां से वापि‍स जा रहे है। मैने पूछा क्‍यो । तो उसने बताया कि‍ पापा का टासफर हो गया है। इसि‍लए आज ही शाम को हम कानपूर के लि‍ए नि‍कल जायेगे। उसके पैरो तले से जमीन खि‍सक गयी। वो नीले गुलाबो के बारे में सोचने लगा। वो दौड्कर दुकान पर गया। उसने अपने थोक वि‍क्रेता को फोन लगाया। उसने कहा कि‍ वो जल्‍दी से जल्‍दी पांच बचे तक भेज सकता हुं। उसने अंदाजा लगाया कि‍ सवा पांच बजे गाडी जायेगी तब तक गुलाब आ जायेंगे। उसने सौदा पक्‍का कर दि‍या।

वो दि‍न भर नीले गुलाबो के बारे मे सोचता रहा। वो यह भी सोच रहा था कि‍ वो नीले गुलाब तो उसको दे देगा परन्‍तु वो उस सुख का आनंद नहीं ले पायेगा कि‍ वो साईकि‍ल लेकर उसकी दुकान पर फूल लेने आयेगी। कई प्रकार की कहानि‍यां वो बनाता और बि‍गाडता रहा। उसने शाम को चार बजे के करीब देखा कि‍ सारा सामान गाडी में लोड हो चुका था। एक गाडी में घर के सारे लोग बैठ चुके थे। छुटकी कार के अंदर से बाय बाय कर रही थी। वह बाय बाय करके सीधे टान्‍सपोर्ट बाजार भागा। नीले फूल वही आने वाले थे। वो टांसपोर्ट बाजार पहुच कर नीले गुलाबो का इंतजार करने लगा। पांच बजे फूलो वाली गाडी आयी। उसने जरूरी कार्यवाही जल्‍दी से नि‍पटायी और गुलाब के फूल लेकर स्‍टेश्‍न की ओर दौडा। स्‍टेशन के बाहर पहुंचा तब तक सवा पांच बज चुके थे। स्‍टेशन के बाहर से गाडी खडी दि‍खाई दे रही थी। उसे लगा कि‍ अभी गाडी गयी नहीं है। वो प्‍लेटफार्म टि‍कि‍ट लेकर प्‍लेटफार्म पर पहुंचा। प्‍लेटफार्म पर पहुंचते ही गाडी ने आवाज दे दी। वो दौडकर उनका कोच ढुंढने लगा। एक कोच की खि‍डकी से छुटकी हाथ हि‍लाती दि‍ख गयी। साथ में उसकी दीदी भी बैठी थी। वो दौडकर उसके पीछे गया। वो हाथ में नीले गुलाब लि‍ये दौड रहा था। दौडभाग में कि‍सी से टक्‍कर से गुलाब नीचे गि‍र गये। वो उठाने के लि‍ए झुका तब  तक कोई उस पर पांव रख कर चला गया। उसने सीधे होकर देखा गाडी हवा से बाते करती हुइ उससे दूर चली गयी। वो धीमे कदमो से वापि‍स बाहर की ओर चल दि‍या।

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