Sunday, May 15, 2022

कहानी- आत्‍मा का प्रलाप

 

इन दिनो आफीस से आते वक्‍त देर हो जाती थी। गरमीयो में तो इतना पता नहीं चलता था परन्‍तु सर्दीयों में घर पहुंचता थो तो धनघोर अंधेरा हो जाता था। कडाके की ठंड में रात को लौटते वक्‍त ऐसा लगता था कि नौकरी को छोड दूं परन्‍तु फिर भी नौकरी करता। नौकरी करता क्‍या अभी भी कर रहा हूं। अब इतनी देर नहीं होती है जितनी उन दिनो हो जाती थी। उन दिनो आफिस से घ्‍र आते ही ऐसे लगता था कि सीधे सो जांउ। खाने की भी ईच्‍छा नहीं रहती थी। ऐसा महसूस होता था कि मै किसी जेल का कैदी हू और मुझे रोज रात घर पर बिताने की पैरोल मिलती है। उन दिनो में बहुत परेशान रहता था। रात को आफिस से घर आता, खाना खाते ही सो जाता। बाकि दुनिया में क्‍या हो रहा है, उससे मुझे कोई मतलब नहीं रहता था। यहां तक की मैने सामाजिक कार्यक्रमो मे भी जाना बंद कर दिया था। बंद भी क्‍या कर दिया था, दरअसल मुझे सामाजिक कार्यक्रमो में जाने का समय ही नहीं मिल पाता था। उन्‍ही दिनो में एक दिन किसी खास कारण से दिन भर परेशान रहा। रात होते होते परेशानी ज्‍यादा बढ् गयी। परेशानी ऐसी थीकि ऐसा लग रहा था जैसे मेरी आत्‍मा रो रही हो। किसी दुख से बुरी तरह से पीडित हो रही हो। ऐसा महसूस होता था कि आत्‍मा असहाय महसूस कर रही है। थके थके कदमो के साथ मै घर लौट रहा था। माथे में परेशानीयो का बोझ था। कुछ समझ में नहीं आ रहा था। घर पहुच कर खाना खाया और सोने के लिए चला गया। मेरे घर का आंगन खुला है। उन दिनो सर्दी भी कम थी। इसलिए मैं आंगन में खाट डालकर सोता था। उस दिन कुछ ज्‍यादा ही परेशान था। मै आंगन में खाट डालकर सो गया। नींद नहीं आ रही थी। आंगन से आसमान दिखाई देता था। काले आसमान में तारे चमक रहे थे। नजरे तारो पर थी परन्‍तु माथे में परेशानी । सोच रहा था कि मेरी आत्‍मा कभी प्रसन्‍न नहीं रही होगी। मैने अपनी आत्‍मा को बहुत परेशान किया है। मै अपने विचारो में उलझ गया था। इसी उलझन में मेरी आंख लग गयी।

आधी रात को मेरी आंख खुल गयी। मैं उठकर बैठ गया। मेरे को ऐसा लगा किसी ने मेरे को आवाज दी है परन्‍तु मेरे कानो ने तो कोई आवाज सुनी नहीं। फिर मेरे को लगा किसी ने तो मेरे को आवाज दी है। मैने इधर उधर देखा कोई नहीं था। चारो ओर घोर घूप अंधेरा था। दोबारा सोने के लिए वापिस लेटने लगा था तो फिर मेरे को लगा किसी ने आवाज दी है। इस बार भी आवाज सुनाई नहीं दी परन्‍तु मुझे महसूस हुआ कि किसी ने मेरे को आवाज दी है। एक बार फिर मैने दांये बाये और उपर नीचे सभी जगह देखा। कोई नहीं था। पर मेरे को आवाज कौन लगा रहा है। आवाज सुनाई नहीं दे रही है परन्‍तु महसूस हो रही है। फिर आवाज आयी- किसे ढुंढ रहे हो ?

कौन हो ?

मै तुम्‍हारा आत्‍मा ।

आत्‍मा ?

हां। आत्‍मा । वहीं जिसे तुम कोस रहे हो। जिसके लिए तुम दुखी हो रहे हो। वही आत्‍मा ।

यह सुनकर मैने अपने माथे को खुजाया और फिर कहा- मुझे दिखाई नहीं दे रही ।

मै दिखाई नहीं देती हूं।

पर आवाज कैसे लगायी।

आवाज तुमको सुनाई दी।

नहीं।

मेरी आवाज भी सिर्फ महसूस की जा सकती है।

मैंने फिर आसमान की ओर देखा। कुछ दिखाई नहीं दिया। कोई धुआ धुआ सा देखने की कोशिश की। कुछ दिखाई नहीं दिया परन्‍तु सब कुछ महसूस किया। ऐसा लगा कोई तो है जो मुझसे बात कर रहा है। मैने पूछा- मै तुम्‍हे कैसे जान सकता हूं।

तुम मुझे महसूस कर रहे हो न ।

हां। कर रहा हू।

हां मै वही हूं।

यहां क्‍यों आयी हो ?

आयी हो? मै गयी कहां थी। मै तो हमेशा तुम्‍हारे पास हूं।

मेरा मतल‍ब मुझे आवाज क्‍यों दी ? मैने हैरान होते हुए पूछा।

आवाज तो तुमने दी थी। मेरी आत्‍मा रो रही है। मेरी आत्‍मा दुखी है। मै यह पूछ रही हूं कि मै दुखी क्‍यों हू। मै रो क्‍यों रही हूं।

मै सोच रहा था इसका मैं क्‍या जवाब दूं। फिर भी मैने रूक कर कहा- जब मै तुम्‍हे प्रसन्‍न करता हूं तो भी तो कहता हूं कि मेरी आत्‍मा आज प्रसन्‍न है।

ऐसा कब कहा तुमने ?

आत्‍मा के इस जवाब के बाद मै एक बार फिर सोचने लगा।  सोच कर मैने कहा – तीन महीने पहले की बात है। शादियो को सीजन था। मैं मेरे दोस्‍त की शादी में गया था। दोस्‍त पैसे वाला था। उसने शानदार आयोजन किया था। उसकी शादी में पहुचते ही मन प्रसन्‍न हो गया। शहर के बडे होटल में शादी थी। शानदार शामियाना लगाया हुआ था। अंदर प्रवेश करते ही विभिन्‍न प्रकार की खूशूबूओ का स्‍प्रे किया जा रहा था। मधुर संगीत बज रहा था। दुल्‍हा दुल्‍हन मंहगे स्‍टेज पर बैठे थे। बहुत खूबसूरत लग रहा था। मेहमानो को सबसे पहले सूप दिया जा रहा था ताकि अच्‍छी भूख लग सके। खाने में सैकडो प्रकार की वैरायटी थी। मैने हर आईटम का आनंद लिया। राजभोग से लेकर आईसक्रीम तक हर एक चीज लाजवाब थी। पूरी शादी का एंजोय करने के बाद बाहर निकला तो मेरे मुंह से एक ही बात निकली कि – आज तो मेरी आत्‍मा प्रसन्‍न हो गयी।

आत्‍मा ने जवाब दिया- खाना तुमने खाया और मै प्रसन्‍न कैसे। खाने से मेरी संतुष्टि कैसी। मै तो बदहवास सी संतुष्टि के लिए बैचेन थी और तुमने कह दिया कि मै संतुष्‍ट हूं। तुम्‍हारे खाने ने तो मुझे और बैचेन कर दिया। मेरी प्रसन्‍नता को कभी महसूस करो तो पाओगे कि मुझे क्‍या चाहिए। तुमने कभी इसका प्रयास ही नहीं किया।

मैने आत्‍मा को अपने जवाब से संतुष्‍ट करने के लिए एक और घटना सुनायी – मै पिछली गरमियों में घूमने के लिए  अपने दोस्‍तो के साथ मसूरी गया। पहाडो का सौंदर्य देखकर मन प्रसन्‍न हो गया। वहां कंपनी बाग में तो दिल बाग बाग हो गया। वहां हजारो तरह के फूल है। आदमी फूलो के सौंदर्य में खो जाता है। वहां बडे लेकर छोटे छोटे फूल भी थे। बडे फूल मैने पहली बार देखे थे। उनके नजदीक जाकर कुछ देर खडा हो गया। सब कुछ भूल गया था। वहां मुझे लगा आज मेरी आत्‍मा संतुष्‍ट हो गयी।

मेरे इतना कहने के बाद कुछ देर शांति छायी रही । फिर आत्‍मा ने जवाब दिया- तुम इसे कैसे मेरी संतुष्टि समझ सकते हो। फूलो के बाग से तुम्‍हारा मन प्रसन्‍न हो मै कैसे प्रसन्‍न हो गयी। तुम तो उस बाग के सौंदर्य में खो गये। मै तुम्‍हे बैचेन होकर ढुंढती रही कि तुम कहां चले गये। इस संतुष्टि को तुम मेरी संतुष्टि कैसे मान सकते हो। पहाडो के सौंदर्य और फूलो की कोमलता के बीच तुम मुझे तो भूल गये। वास्‍तविकता यह है कि तुमने कभी मुझे प्रसन्‍न करने का प्रयास किया ही नहीं ।

आत्‍मा के इस जवाब के बाद एक बार फिर मै सोच में पड् गया कि मै अब कौनसी घटना का स्‍मरण आत्‍मा को कराउ ताकि वो मान जावे कि मैने हमेशा से ही उसे संतुष्‍ट रखने का प्रयास किया। मुझे तत्‍काल एक घटना स्‍मरण हो आयी जिसे मैने आत्‍मा को सुना दिया- एक रात मै अपने दोस्‍त के साथ रेल्‍वे स्‍टेश्‍न से घर आ रहा था। स्‍टेशन से थोडी दूर चलते ही सडक के किनारे एक बुजुर्ग हमारे पीछे हो गया। वो हमसे भोजन की गुहार कर रहा था। कह रहा था कि उसके बच्‍चे दो दिन से भूखे है। मेरे दोस्‍त ने कहा कि ये इनका रोज का नाटक है। ऐसा कह कर वो आगे चलने लगा। मुझे लगा कि बाबा भूखा है। मैने उससे कहा कि – बच्‍चे कहा है। तो वो अपने बच्‍चो के पास ले गया। बच्‍चे भूख से तडप रहे थे। मैने उसको बहुत सारा भोजन और दूध्‍ दिलाया। मैने वहां देखा कि बच्‍चे भोजन खाते हुए अत्‍यंत प्रसन्‍न हो रहे थे। उस दिन मेरी आत्‍मा बहुत प्रसन्‍न हुई। मुझे लगा कि मेरी आत्‍मा आज प्रसन्‍न है। उस दिन वाकई मेरी आत्‍मा प्रसन्‍न थी।

मेरे इस वाकिये के बाद एक बार फिर शांति छा गयी। फिर आत्‍मा बोली- ये तो तूने अच्‍छा किया। परन्‍तु ये तूने कैसे मान लिया कि मै प्रसन्‍न हूं। तेरे इस काम से वो बाबा और तुम प्रसन्‍न हुऐ। मेरा तो इसमे कुछ हुआ ही नहीं। मुझे इसमें क्‍या मिला? जब मुझे कुछ मिला ही नहीं तो मै कैसे प्रसन्‍न हो सकती हूं। तुमने मुझे कभी प्रसन्‍न करने का प्रयास किया ही नहीं। तुम सब काम अपने लिए करते रहे ।

मैन कुछ देर सोचा और फिर कहा- तेरे को प्रसन्‍न करके मेरे को क्‍या मिलेगा । मै इस आत्‍मा को क्‍यों प्रसन्‍न करूं?

मेरे इस सवाल का जवाब आत्‍मा ने तुरंत दिया- सूकून।

मैने इतनी जल्‍दी जवाब की प्रत्‍याशा नहीं की थी। मैने भी पूछ लिया कि तुम्‍हे क्‍या चाहिए ?

आत्‍मा ने कहा – मुझे तुम चाहिए। तुम दुनिया में खोये रहते हो तो मै अकेली पड जाती हूं। मेरी दुनिया तुम हो। तुम मुझ में मिल जाओ । मेरी दुनिया प्रसन्‍न हो जायेगी। तुम मुझ में समा जाओ। मै तुम्‍हे अपने भीतर समा लेना चाहती हूं परन्‍तु तुम दुनिया में भागते रहते हो। मै दुनिया के दुख से दुखी और सुख से सुखी नहीं होती हूं। मै राह तक रही हूं कि कब तुम मुझ में समाओ और मै प्रसन्‍न हो जाउं।

इस जवाब के बाद में सुन्‍न हो गया। घोर घूप रात फिर दिखाई देने लग गयी। आसमान के तारे फिर टिमटिमाने लगे। एक क्षण रूककर आत्‍मा के जवाब पर सोचा। मनन किया तो पाया कि मुझे मेरी परेशानियो का हल मिल गया। मुझे मेरी खुशी मिल गयी।

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