गर्मियो की रात थी। छत्त पर बैठा था। ठंडी हवा
चल रही थी। हमारे यहां गर्मियो मे राते ठंडी होती है। इस कारण रात को अक्सर छत्त
पर बैठता हूं। कुछ साल पहले तक लोग रात को छत्त पर ही सोते थे। छत्त पर सोने का
आनंद ही अलग होता था। ठंडी हवा में छत्त् पर सोना और देर रात तक चांदनी रात में
बाते करना। इस सुख के सामने दुनिया के सारे सुख फीके है। अब नित्य बदल रहे जीवन
में इस आनंद की कोई वैल्यू नहीं रह गयी है। अब अपनी छत्त से देखता हूं तो दूर
दूर तक खाली छत्ते दिखाई देती है। कुछ
छत्तो पर सोलर सिस्टम लगने से छत्त ही सोने लायक नहीं रही। आधुनिक जीवन में
पूराने सूखो को बेचकर नया सुख खरीदा जा रहा है। मैने छत्त पर सोने का सुख बहुत
लिया है या यों कहे मैने छत्त के सारे सुखो को बटोरा है। मैं याद करता हूं तो
मेरी आंखो के आगे नानी के घर की छत्त सामने आ जाती है। उस छत्त पर हमने कई सपने
देखे थे। वो छत्त हमारे सपनो की गवाह है। वो हमारे आजाद बचपन की गवाह है। हम बच्चे
नानी के पास ही रहते थे। रात को सभी बच्चे इकटठा होकर खूब मस्ती करते थे। रात
होते ही छत्त को सजाया और संवारा जाना शुरू हो जाता था। शाम होते ही हम बच्चे सब
मिलकर बाल्टी से पानी छत्त पर लाते और पूरी छत्त को पानी से गीला करते ताकि रात
पर सोये तो बिस्तर के नीचे से हमारी देह को ठंडक मिले। फिर रात को पीने के पानी
के लिए मटका लाकर रखते। बिस्तर लगाने के बाद हम बच्चो की मस्ती शुरू होती। हम
देर रात तक दुनिया भर की बाते करते । रात को आसमान से गुजरते हवाई जहाजो को लेकर
भी लंबी लंबी बहसे करते । हमारी बहसो का कोई मतलब नहीं होता था परन्तु एक अजीब सा
सुकून मिलता । इन बहसो से नीद में सपने देखने का मेटिरियल मिलता था। जब तक नानी
सोने के लिए नहीं कहती, हमारी बहसे चलती रहती। हमारी बहसो के सामने आजकल टीवी पर
आने वाली बहसे भी फीकी लगती है। बहुत देर हो जाती तो नानी को कहना पड्ता- अब सो
जाओ। नानी के कहने पर हम सोने के लिए आंख बंद करते।
सुबह होते ही हमारी धमाचौकडी शुरू हो जाती। यही
चीज थी जो हमें नानी के यहां रोकती थी। हमे मना करने वाली कोई नही था। नाना की नजर
हमारे पर रहती परन्तु डांटने पर नानी बीच में बाले पड्ती। इसलिए हमारे बचपन की
मस्ती पर नानी का कवच था। एक ही मिनट में छत्त पर और एक ही मिनट में वापिस नीचे ।
ऐसा दिन भर चलता था। दुनिया भर के खेल हम खेल लेते थे। हमारे लिए भी नानी हमारी
आईडियल थी। नानी देसी चीजे यूज करती और हमे भी वैसा ही करने के लिए कहती। नानी
सुबह सुबह काला दंत मंजन करती और हमे भी काला दंत मंजन ही करने के लिए देती थी। घर
में साबुन केवल नहाने के लिए इस्तेमाल होती थी। हम लोग नानी को बताते थे कि बर्तन
साबुन से साफ करने से जल्दी और अच्छे साफ होते है। ऐसा कहने पर नानी हमे बालू रेत
के गुण् और शासत्रो की बाते बताने लगती।
कई बार तो नानी मिटटी पर शास्त्रो में लिखी कथाऐं बताने लगती। नानी का कहानी
सुनाने का लहजा इतना सुंदर था कि हम सब काम छोड्कर कहानी सुनने बैठ जाते और हमे नानी की बात इतनी खरी लगती जेसे पत्थर
पर लकीर। फिर हम घर जाकर भी अपनी मां को कहते कि बरतन साबुन से नहीं मिटटी से साफ
करने चाहिए। उस समय तक गलियो में सड्के बन गयी थी। अब बालू मिटटी मिलना सहज नहीं
था। गलियो की मिटटी वैसे भी उपयोग के लायक नहीं होती थी। नानी के घर सदबू मियां
मिटटी लेकर आते थे। वो दो हफतो में एक बार मिटटी लेकर आते थे। हम छत्त पर खेलते
थे तो हमे दूर से ही सदबु मियां आते दिख जाते । हम दौड् कर नानी को बताते थे कि
सदबू मियां आ रहे है। सदबू मियां सफेद गांधी टोपी लगाये हुए गधे पर बैठे हुए आते
थे। उनके हाथ मे एक छडी होती थी। आगे चार पांच गधे और होते थे जिन पर मिटटी के
थैले लटकाये हुए होते थे। आगे चार पांच गधे पूरे अनुशासन में चलते थे और पीछे सदबू
मियां चलते थे। नानी के घर मिटटी का आना हमारे लिए उत्सव होता था। सदबू मियां घर
के बाहर रूक कर आवाज देते और नानी गेट खोल देती। सदबू मियां गधो के उपर से थैले
उठाकर लाते और आंगन मे खाली कर देते । हम फिर उस मिटटी के ढेर पर कुछ देर खेलते ।
फिर नानी उस मिटटी को अंदर रखने के लिए कहती। नानी मिटटी रखने के लिए अंदर एक छोटा
कुआ बनाकर रखा था। हम लोग बरतन में भर भर कर मिटटी उस कुऐं में डालते। यह भी हमारे
लिए एक खेल होता । हमारी मस्ती में पता ही नहीं चलता की वह ढेर कब आंगन से कुऐ मे
चला गया। फिर सारा घर उस मिटटी का इस्तेमाल करता। नानी उससे बरतन साफ करती तो
बाकि लोग शौच के बाद हाथ इसी मिटटी से धोते । नानी यह हिदायत भी देती कि हाथ तीन
बार साफ करना। हमारी भी आदत मिटटी से हाथ धोने की पड् गयी । घर आते तो साबुन रखी
होने के बावजूद कहीं से मिटटी लाकर मिटटी से ही हाथ धोते।
शहर में हम ठेठ गांव के हरबल जीवन का मजा ले रहे
थे। सभी नानी की नसीहतो से सहमत थे। नाना और मामा जरूर कई बार नानी को कहते कि अब
जमाना बदल गया है, अब साबुन से सफाई ज्यादा अच्छी होती है। नानी फिर वही पूराने
किस्से सुनाने लगती। उधर सदबू मियां जब भी मिटटी के थैले लाते नानी उसे इसके बदले
उनका महनताना देती। सदबू मियां एक थैले के पूरे पच्चीस पैसे लेते थे। सदबू मियां
कहते थे कि वो ठेठ रोही से शुद्ध बालू रेत लाता है। उस समय पच्चीस पैसे की कीमत
बहुत थी। नानी मियां जी को पैसे ही नही देती थी। कभी कभी पूराने कपडे भी देती थी।
हमारे यहां त्योंहारो पर मिठाई आती तो कुछ वो सदबू मियां के लिए भी रख्ती। मियां
जी भी मिठार्इ मांग ही लेते थे। कभी मियां जी कहते उनके बच्चे की फीस भरनी है तो
नानी उन्हे फीस के भी पैसे दे देती। सदबू मियां बहुत रूचि और खुशी से मिटटी के
थैले लाता था।
बरसो यह सिलसिला चलता रहा। हम लोग नानी को साबुन
के फायदे बताते रहते और नानी मिटटी के फायदे। गली के लगभग सभी घरो में साबुन का
उपयोग होने लगा था। सदबू मियां पहले पांच गधो पर मिटटी लाता था अब दो गधो पर ही
लाता है। दो गधो पर लाना सदबू मियां के पड्ते नही पड्ता था। फिर भी नानी के स्वभाव
के चलते वो ले आता था। मिटटी लाने से नानी की ओर से उसे काफी मदद भी मिल जाती थी।
कई बार वो मिटटी लाकर बैठता तो बताता था कि उसका बेटा अब इजीनियरींग कर रहा है। वो
इसके लिए नानी से कुछ पैसे भी ले गया था। उसका बेटा उसे मिटटी ढोने का काम बंद
करने का कहता परन्तु वो कहता आज जो कुछ भी है इस मिटटी की वजह से ही है। नानी उसे
कहती तु भले ही यह काम बंद करदे लेकिन मेरे लिए तो मिटटी लाकर दे देना। अब हमारे
यहां शहर मे बालू मिटटी मिलती नहीं है। हम उसे देखते रहते कि वो अभी तो मिटटी लाता
रहेगा। हमारे लिए साबुन से हाथ धोने की उम्मीद खत्म हो जाती। कभी मिटटी कम होती
तो नानी हमे जुगती से मिटटी इस्तेमाल करने के लिए कहती।
एक दिन सदबू मियां अपनी गरदन नीचे किये गधे पर
बैठा हुआ आया। नानी ने पूछा कि आज वो उदास सा क्यो है। उसने कहा आज वो अंतिम बार
मिटटी लाया है। अब वो मिटटी नहीं लायेगा। नानी ने कारण पूछा तो उसने बताया कि मेरा
बेटा मना करता है। मै बेटे की बात मानता भी नहीं । परन्तु बेटे की नौकरी बाहर आ
गयी है। हम सब उसके साथ बाहर जा रहे है। यह सुनकर नानी ने मुझे आवाज लगायी जा
मिठार्इ लेकर आ। सदबू के बेटे की नौकरी लगी है। मै दौड्कर पास की दुकान से मिठाई
ले आया। सदबू मियां की आंखो में आंसू आ रहे थे। नानी ने कहा – सदबू ये तो खुशी की
बात है। मेरे पोते की नौकरी लगी है। मिटटी की तो कोई बात नहीं है। अब तक बहुत सारे
साधन हो गये। अब तक लोग साबुन काम में लेने लगे है। तुं चिंता न कर । आराम से जा।
कोई जरूरत हो तो मुझे बताना। सदबू मियां नानी के पैरे छुने लगा तो नानी ने पैर
छुने से मना कर दिया। उधर हम लोग मन ही मन खुश हो रहे थे कि अब साबुन से हाथ
धायेंगे। हमारे यहां भी साबुन इस्तेमाल होगा। मेरा भाई कहता इतना खुश मत हो। नानी
दूसरी व्यवस्थ कर लगी।
सदबू मियां को नानी ने रवाना किया। फिर मेरे को
आवाज लगायी कि इस बार महीने के सामान में एक बरतन धोने की साबुन लिख देना।
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बचपन की प्यारी यादें 👍👍
ReplyDeleteशानदार कहानी लिखी हे
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