Sunday, July 10, 2022

एना कैथरीन

ठंडे प्रदेशो में और समुद्रो के किनारे रहने वालो को हमेंशा यही लगता है कि रेगिस्‍तान में खूबसूरती नहीं होती है। पहाडो पर रहने वाले कभी रेगिस्‍तान में गांव की कल्‍पना भी नहीं कर पाते है। बडे शहर वालो को लगता है कि रेगिस्‍तान में गांव की खूबसूरती तो दूर वे जीवन के बारे में भी नहीं सोच पाते है परन्‍तु रेगिस्‍तान के गांवो में न सिर्फ जीवन होता है बल्कि प्रक़ति की खूबसूरती भी होती है। कॉलेज में आने तक मेरा भी यही ख्‍याल था। कॉलेज के दिनो में मुझे मेरे शहर के पास के गांव में एक आवासीय शिविर में जाने को मौका मिला तो मैने पाया कि रेगिस्‍तान के गांव की खूबसूरती तो देखते ही बनती है। भोर में नाचते हुए मोर आपके दिल में रंग भर देते है।

कॉलेज में समाज सेवा का शिविर अटेण्ड करना जरूरी होता है। इस बार शिविर के इंजार्च भी सख्‍त थे इसलिए शिविर को बंक भी करना संभव नहीं था। मैं भी एडवेंचर के लिए शिविर चला गया। मेरे शहर के बिलकुल नजदीक सागर गांव में शिविर था। जहां शिविर था वहां एक बडा खुला मैदान था । वहां हम सब लोगो के टैंण्ट लगे थे। हमें एक सप्‍ताह टैण्‍ट में ही बिताना था। दस टीमे बनायी गयी थी और एक टीम में पांच सदस्‍य थे। हमारे ग्रुप का लीडर देवा था। हमारा टैण्‍ट सबसे अंत में था। टैण्‍ट के बाद एक खूबसूरत सी झौपडी बनी हुई थी। झौपडी के नजदीक ही बडा सा पीपल का पेड था। पीपल का पेड बहुत पूराना लगता था। बहुत घना और फैला हुआ था। शाम का वक्‍त था तो बहुत सारे पक्षी उस पेड पर चहचहा रहे थे। पक्षियो की चहचहाट से लगता था कि शाम हो गयी है। झोपडी के आगे सफाई अच्‍छी थी। झौपडी के बारह एक लकडी की टेबिल और दो कुर्सिया रखी हुर्इ थी। कुल मिलाकर पूरे मैदान में झौपडी सबसे खूबसूरत थी बाकि हमारे टैण्‍ट थे।

मै दौड कर स्‍टोर से ग्रुप के लिए जो सामान मिलना था ले आया। खाना हमे खुद ही बनाना था और खाना था। हम में से किसी को खाना बनाना आता नहीं था। हम एक दूसरे की ओर देख रहे थे। हमारे लीडर देवा ने कहा कि रोटियां तो मै बना लूंगा। सब्‍जी का क्‍या करें। देवा ने अधपक्‍की और कुछ गोल व कुछ चपटी रोटिया जैसे तैसे बनायी। हम सभी रसोई के काम में इतने व्‍यस्‍त हो गये कि पता नहीं चला कि हमारे टैण्ट के बाहर क्‍या हो रहा है। मैने सुझाव दिया कि पापड् की सब्‍जी बना लेते है। सबके यह आयडिया जंच गया। हमने पापड की सब्‍जी के लिए तपेला चूल्‍हे पर चढाया। पानी, तेल और पापड डालने के बाद तपेले में से धुंआ ही धुआ निकला। सारा तपेला जल गया। अंदर से काला काला हो गया। अब हम सारे टैण्‍ट के बाहर बैठ गये। मेरी नजर पास वाली झौपडी पर पडी। बाहर कुर्सी पर एक लडकी बैठी थी। लडकी विदेशी लग रही थी। उसकी पीठ हमारी तरफ थी और चेहरा पीपल के पेड की तरफ था। अंधेरा हो चुका था। झौंपडी में रोशनी में थी। हमें तो पंचलैट जलाना था जो देवा ने चार बार कोशिशो के बाद जला लिया। अब खाना समस्‍या थी। अधपक्‍की रोटिया खायें कैसे। मै खडा होकर टैण्‍ट के किनारे झौपडी तक गया। मैने आवाज दी – हैलो। पीछे से साथियो ने मुझे खींचा। मैने उनसे हाथ छुडाया और एक बार और आवाज दी – हैलो। उस लडकी ने कॉफी का कप हाथ में लिये पीछे मुडकर देखा। मुडकर देखने से बाल उसके चेहरे पर आ गये थे। उसने बाल चेहरे से हटाते हुए हमारी तरफ देखा। मैने फिर कहा – मे यू हैल्‍प अस टू प्रीपेयर समथिंग टू ईट।

उसने काफी का कप टेबिल पर रखते हुए जवाब दिया- व्‍हाई नाट। श्‍योर। यहां आओ।

मै चक्‍क्‍र में पड गया। यूरोपियन दिखने वाली लडकी हिन्‍दी कैसे बोल रही है। मैने फिर पूछा तो फिर जवाब हिन्‍दी में आया। मैं गोबर के लेप से बनी अस्‍थाई दीवार फांद कर झौपडी के आगे चला आया। वो अपने बाल पीछे करते हुए बोली – आप बिना पूछे दीवार फांदकर आ गये हो।

मैने सॉरी बोला। फिर कुछ देर चुप रहा । मेरे मन में बहुत सारे सवाल उठ रहे थे। वो चुपचाप मुझे देखती रही । मैने पुछ ही लिया- मैम आपका नाम ।

‘मेरा नाम एना कैथरीन है।‘

आप शक्‍ल से तो यूरोपियन लगती है परन्‍तु हिन्‍दी अच्‍छी बोल लेती है। ‘

उसने काफी का कप एक बार फिर टेबिल पर रखा और अपने दोनो हाथ टैबिल पर समेट कर रखते हुए बोली- हूं । यह बात तो है। आप बताओ । क्‍या मदद चाहिए।‘

उसने मदद के बारे मे पूछ लिया परन्‍तु उसके हिन्‍दी बोलने के आश्‍चर्य से मैं अभी भी बाहर नहीं निकला। अभी भी मै स्‍त्‍ब्‍ध था। मैने फिर पूछा – ‘आपने बताया नहीं कि आप हिन्‍दी कैसे बोल लेती है।‘

वो अपने हाथो की अंगुलियो से बाल पीछे करते हुए जोर से हंसते हुए बोली – मैं इंडिया में दो साल से सोशल वर्क पर कोर्स कर रही हूं। अपने कोर्स के प्रैक्टिल के लिए यहां हूं। अब दो साल पूरे हो रहे हे। इन दो सालो में लोगो को समझने के लिए मुझे हिन्‍दी सीखनी पडी। हो गया। अब बताओ आपको क्‍या मदद चाहिए।

मैने अपने बालो में अंगुलिया डालकर माथे को खुजाया। फिर बोला- हमें थोडी सी सब्‍जी चाहिए। हमें किसी को सब्‍जी बनानी नहीं आती है।

‘बनानी तो तुम्‍हे खुद चाहिए।‘

’ पर मैम वो क्‍या है ना। बनायी तो थी परन्‍तु सारी जल गयी।‘

मेरी मासूमयित से उसे हंसी आ गयी। वो उठकर अंदर गयी। वो करेले का अचार लेकर आयी। उसने अचार का डिब्‍बा मुझे देते हुए कहा – यह मैने अभी दो दिन पहले सीखा है और बनाया है। मै तो खाती नहीं। आपके काम आ जायेगा। परन्‍तु कल से तुम्‍हे खुद ही बनाना होगा।

मैं वो डिब्‍बा लेकर आ गया। उस शाम तो हमारी अच्‍छी पार्टी हो गयी। हमने रात को पंचलैट बंद किया और हमारी गानो की महफिल सजी। हमने जोर जोर से फिल्‍मी गाने गाये। ठंडी ठंडी बयार के बीच गुनगुनाकर सभी मस्‍ती कर रहे थे। मेरी नजर पडोस की झौपडी पर थी। ऐना दो ती बार बाहर आयी और हमें देखकर चली गयी। मैने देवा से कहा अब हमें सो जाना चाहिए। रात बहुत हो चुकी है।

सुबह मेरे कानो में आवाज पडी- जो सोवत है वो खोवत है। जो जागत है वो पावत है। अब रैन कहां जो सोवत है। ‘ यह गीत गाते हुए मेरे टैण्‍ट के आगे से प्रभात फेरी निकल रही थी। मेरे टैण्‍ट मे मै ही सो रहा था। मैने चददर हटाकर अपनी गर्दन बाहर निकालकर देखा। प्रभातफेरी में आगे आगे एना चल रही थी। पीछे बाकि सारे लोग जिसमें हमारा लीडर देवा भी था। मैं उठकर खडा हुआ। जल्‍दी से दैनिक कार्य निपटाये। हैण्‍ड पम्‍प से पानी निकाल कर नहाया और तैयार हो गया। एना प्रभात फेरी से आ गयी थी। उसकी झौपडी के आगे दो मोर घूम रहे थे। ऐना उनको दाने खिला रही थी। पीछे पीपल का पेड था। यह बहुत खूबसूरत तस्‍वीर थी। हम नाश्‍ते के लिए चले गये।

फिर दोपहर में हमारी क्‍लास थी। क्‍लास ऐना ले रही थी। ऐना अपने सोशल वर्क के अनुभव बता रही थी। उसने बताया कि यह उसका अंतिम कैम्‍प है। इसके बाद वापिस फ्रांस चली जायेगी। उसका पढाने का तरीका बहुत प्रभावी था। वो मोटिवेशनल स्‍पीकर की तरह क्‍लास लेती थी।

हमारा कैम्‍प ऐसे ही चला दोपहर में ऐना की क्‍लास होती थी। फिर शाम को फिल्‍ड में काम करते। रात को खाना और मस्‍ती । मै ऐना के बारे में सोचा करता था कि वो हजारो मील दूर एक गांव में कैसे जीवन गुजारती है। वो शाम को साईकिल पर गांव में जाती। गांव से कुछ सामान लाती और लोगो से बाते करके आती। शाम को बाहर कुर्सी पर बैठकर काफी पीती। एक सप्‍ताह कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। कल अंतिम दिन था। आज सुबह हमने सोचा एक बार फिर एना से करेले का स्‍वादिष्‍ट आचार ले लेते है। दरअसल करेले की सब्‍जी कडवी होती है परन्‍तु आचार स्‍वादिष्‍ट था। ऐचा आचार मैने पहले कभी नहीं खाया था तो एक बार फिर तलब हो गयी। मैने पहले तो संकोच किया। फिर मन बना लिया। मै सीधे रास्‍ते से ऐना की झोपडी पर गया। दरवाजे के बाहर खडा होकर दरवाजे को खटखटाया। ऐना झौपडी में लेटी हुई एक किताब पढ रही थी। दरवाजे पर मेरी खटखटाहट सुन कर वो बाहर आयी। उसने मुझे पूछा –कैसे आये हो। मैने बता दिया – मैम । कल अंतिम दिन है तो सोचा एक बार आपके हाथ का करेले का आचार खा लिया जावे। ऐना मुझे देखती रही। उसने इस बार श्‍योर नहीं कहा । वो मेरे सामने खडी रही। फिर कुछ सोच कर बोली – मैने थोडा सा बनाया है। अभी देती हूं। मै तो वैसे भी नहीं खाती हुं। वो अंदर जाकर आचार के डिब्‍बे को उठा लायी और मुझे दे दिया। मैने उसे थैक्‍स कहा और अपने टैण्‍ट में चला आया। हमने मस्‍ती से खाना खाया। ऐना यूरोपियन होकर जबरदस्‍त आचार बनाती थी। मै इस बात से भी आश्‍चर्यचकित था कि वो करेला पसंद नहीं करती थी फिर भी करेले का आचार बनाती थी। आज शाम का खाना और था अगले दिन सुबह तो कैम्‍प प्रशासन से खाना मिलना था। वैसे हम पांच दिनो में काम चलाउ खाना बनाना सीख गये थे।

शाम को ऐना झौपडी की सफाई करके बाहर टेबिल पर बैठी थी। थोडी देर बैठती फिर उठकर मैदान के गेट पर जाती और फिर आकर बैठ जाती। मै समझ नहीं पाया कि वो ऐसा क्‍यो कर रही है। शायद किसी का इंतजार कर रही है। शायद उसका मंगेतर आने वाला हो। थोडी देर टेबिल पर बैठी रहने के बाद वो उत्‍साह से उठ खडी हुयी। मैने सामने देखा। मैदान के दरवाजे से एक अंग्रेज युवा हाथ में एक बैग लिये दौडता आ रहा था। झौपडी के नजदीक आते ही ऐना भी दौड पडी। दोनो ने एक दूसरे को पकड लिया। वो झोपडी के नजदीक आते आते अपनी आंखे बंदकरके बोल रहा था- व्‍हेअर इज माई स्‍पाईसी बीटर गोर्ड (करेला)। आई एम हियर फार यॉर स्‍पाईसी बीटर गोर्ड नॉट फार यू। देट इज माई मोस्‍ट अवेटिंग डिश। व्‍हैअर देट इज।‘

यह सब बाते झोपडी के बाहर हो रही थी। हमे स्‍पष्‍ट सुनायी दे रही थी। ऐना कुछ बोल नहीं रही थी। उसके मुंह पर जैसे ताला लग गया हो। मै डस्‍टबिन में हमारे द्वारा फेके गये खाली करेले के आचार के डिब्‍बे को देख रहे थे। हमारे कानो में आवाजे आ रही थी – वहेअर इज माई इंडियन गिफट । वहैअर ।

सारी आवाजे उसके मंगेतर की थी। ऐना की कोई आवाज नहीं थी। वो निर्दोष अपराधी की तरह उसको सुन रही थी। हम यह सब देख रहे थे।

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