Sunday, July 31, 2022

धुली हुई धूप

 

सावन और भादो में धूप धुली हुई होती है। बिलकुल सफेद और चमकती हुयी। बरसात के दिनो में हम घर से बाहर बाजार में आते है तो सडक पर इकटठे हुए थोडे से पानी पर धूप गिरती है तो बहुत सारी चमक पैदा कर देती है। उसकी चमक सीधे हमारी आंखो पर आती है। आंखे चूंधियाने लगती है। बरसात से गीली हुई सडक पर गिरी हुई धूप सडक पर चांदी की परत सा अहसास कराती है। मेरे घर से कुछ दूर निकलते ही बाजार है। बाजार में दुकानो के आगे कई तरह के ठेले लाईन से लगे रहते है। इनमें ज्‍यादातर ठेले खाने पीने की चीजो के होते है। हर ठेले का अपना स्‍थान होता है परन्‍तु होते सारे एक पंक्ति मे है। उनके ठेलो पर खाने पीने की चीजो के नीचे फॅाईल पेपर लगा होता है। इन दिनो इन पर धूप गिरने से ऐसा लगता है कि सबने खाने पीने की चीजो के नीचे कोई बडी सी जलती हुई टार्च रख दी हो। यहां सडक पर आपको धूप की सफेदी दिखाई नहीं देती है। यहां पर आपको धूप चीजो को पॉलिश कर चमकाती हुई दिखती है। आप थोडा और आगे जाओ जहां सडक बिलकुल साफ हो। जहां बिलकुल भी पानी न हो। वहां जब इन दिनो धूप गिरती है तो आपकेा बिलकुल सफेद और धुली हुई धूप दिखाई देती है। इतनी साफ और सफेद धूप आपको और किसी मौसम मे नहीं मिलेगी1 कुछ देर जमीन पर गिरी होने के बाज ज्‍यो ही मैली होने लगती है वह फिर बादलो के पीछे चली जाती है। बादलो में धुल कर फिर जमीन पर आकर फैल जाती है।

सावन और भादो मे धूप का आना जाता लगा रहता है। एक क्षण के लिए धूप होती है और अगले ही क्षण छाया। मुझे याद आता है कि जब में बिलकुल छोटा था। अपने बचपन में। मै कोई दस बारह साल का रहा होंउंगा। सावन के दिनो में मै मां के साथ हर सोमवार को मेले जाया करता था। मारकण्‍डेश्‍वर महादेव मंदिर परिसर में सावन के प्रत्‍येक सोमवार मेला लगता था। शायद अब भी लगता है। हमारे घर से 5 से 7 किलोमीटर दूर पडता है। मै मां के साथ पैदल मंदिर तक जाता था। रास्‍ते में मुझे दूर धूप दिखाई देती थी। हम लोग छांव मे चल रहे होते । मेरे लिए आश्‍चर्य की बात होती कि दूर सामने धूप है और जहां हम चल रहे है वहां छाया। मां का ईशारा पाकर मै दौडकर धूप में जाता परन्‍तु मै जब धूप में पहुंचता तो धूप पीछे चली जाती । मेरे लिए यह खेल हो जाता। सावन भादो में धूप ऐसी ही आंख मिचौली करती है।


आफिस में काम करते करते जब थक जाता हूं तो नयी उर्जा भरने के लिए मै बाहर आकर खडा हो जाता हूं। बाहर पोर्च में लगी कुर्सियो पर गांव के बुढे लोग ऊंघ रहे होते है। बिलकुल सफेद कपडो में। मै बादलो को देखकर वहां खडा हो जाता हूं। फिर थोडी देर में बादलो की ओट से सूरज निकल कर आता है। इस समय जो धूप अपने शरीर पर पडती है तो वो जलाती नहीं है। गर्मियो में हमारे शरीर पर धूप पडती है जो शरीर को जला देती है। शरीर को सेकने लगती है। सावन भादो की धूप ठंड मिला हुआ ताप देती है। हमारी देह पर धूप गिरती है तो गरम तो लगता है परन्‍तु देह अंदर से शीतल होती है। इस कारण धूप में खडे रह सकते है। सर्दी और गर्मी की बीच की धूप होती है ये। यह एक दिव्‍य अहसास होता है जो आप इस धूप मे खडे रहकर ही महसूस कर सकते हो।

सावन भादो के दिनो मे ही मै एक बार अपने मित्र के खेत गया। उसके खेतो में बहुत से पेड भी लगे थे। बरसात के पानी से पेडो के पत्‍तो पर एक दो बूंद पानी रह जाता है। जब इन पर धूप गिरती है तो ऐसा लगता है कि इन पत्‍तो पर सफेद हीरे के नग रखे है। इस समय धूप गिरने से रेत के धारे सोने जैसे चमकते है। बरसात के बाद गीले हुए धोरो पर सफेद धूप गिरती है तो अहसास होता है कि कुदरत ने सारी जमीन पर सोने की परत बिछा दी है। यह कुदरत का करिश्‍मा है कि सडको पर यह धूप चांदी का अहसास कराती है वहीं धोरो पर सोने का। धूप स्‍वयं होती है बिलकुल सफेद। कोई रंग नहीं । कोई आकार नहीं । बिलकुल धुली हुई। जब यह मनुष्‍यो के चेहरो पर गिरती है तो चेहरो पर मुसकुराहट ला देती है। एक बारगी ताजगी भर देती है। यह धूप धुल कर जो आती है। कुदरत की धुली हुई धूप। सब कुछ धुल जाने का अहसास कराती हुई।

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