Sunday, July 24, 2022

कहानी - हुक्‍म का गुलाम




वह एक बहुत लंबा पुल था परन्‍तु संकरा था। संकरा होने के बावजूद खूबसूरत था। पुल पर विन्‍टेज रोड लाईटे लगी थी। पुल के बीचो बीच किनारे पर एक रेस्‍टोरेंट था। पुल पर कोई रेस्‍टोरेंट होता नहीं है। परन्‍तु इस पुल के किनारे रास्‍ता बनाकर बनाया हुआ था। पुल के देानेा ओर जगह बहुत कम छोडी हुई थी। दोनो ओर मकान और दुकान पुल के बिलकुल पास थी। अनुराग पुल पर खडा था। वह वहां  खडा इंतजार कर रहा था। पुल के सामने उपर पूरा आसमान दिखाई देता था। नीले आसमान पर एक बडा सा बादल का टुकडा आया हुआ था। बहुत सुंदर द़श्‍य दिखाई दे रहा था। वो खडा खडा नीचे पटरियो को देख रहा था। शाम का वक्‍त था सूरज भी ढल रहा था। पुल से सूरज पूरा ढलता हुआ दिखाई देता है। इतनी अच्‍छी शाम का लुत्‍फ उठाने लोग इस पुल पर आते थे। पुल पर शाम को आवागमन रहता है परन्‍तु आज छुटटी का दिन होने से आवागमन कम था। पास के लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे दो चार लड्के खडे थे। वे सिगरेट पीते हुए धुंआ छोड रहे थे। शाम की धूप में धूंऐ के छल्‍ले मेरे उपर से निकल रहे थे। वो एक दो कस लगाते और जोर जोर से ठहठहाकर हंसते थे। उसका ध्‍यान उन पर बिलकुल नहीं था। उसकी निगाहे तो उसके आने पर थी । लडके जिस लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे खडे थे वह रेस्‍टोरेंट से थोडी दूरी पर था। लडके किसी को तंग नहीं कर रहे थे परन्‍तु चारो एक साथ सिगरेट पी रहे थे उससे बहुत सारा धुंआ हवा में उडता हुआ निकल रहा था। उन चारो में एक हैट पहनी हुयी थी। 

लडके जिस लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे खडे थे। उनके ठहाके लगाने से उसका ध्‍यान उस लैम्प पोस्‍ट पर जा रहा था। लैम्‍प पोस्‍ट से उसे याद आया कि उसने शादी से पहले यहीं उसका इंतजार किया था। उसने यहीं खडा रहकर उसका इंतजार किया था। वह बहुत देर से आयी थी। वो जब देर से आने का कारण बता रही थी तो रेल बहुत जोर से हॉर्न बजाते हुए पुल के बिलकुल नीचे से निकली। वो बोलती रही अनुराग को कुछ सुनाई नही दिया। रेल के गुजरने के बाद वो चुप हो गयी। उसने अनुराग की तरफ देखा फिर वो जोर से हंस पडी। उसकी हंसी उस नीले आसमान मे फैल गयी। अनुराग को अपने लिए वो परफेक्‍ट लगी। अनुराग ने उसी समय उससे शादी करने का फैसला कर लिया था।


रेस्‍टोरेंट पर कांच का दरवाजा था। बाहर की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती थी। रेस्‍टोरेंट का मैनेजर हाथ में चाय का कप लिए रेस्‍टोरेंट से बाहर आया। चाय से धुआं निकल रहा था। धुआं मैनेजर के चेहरे के आगे निकल हुए जा रहा था। मैनेजर ने लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे खडे लडको पर निगाहे डाली। लडको की ठहाको की आवाज धीमी हो गयी थी। मैनेजर के लगतार देखने से लडके वहां से चल दिये। अब सभी लैम्‍प पोस्‍ट अब खाली थे सिवाय एक लैम्‍प पोस्‍ट के जिसके नीचे वो खडा था। मैनेजर चाय खत्‍म करने के बाद भी वहीं खडा था। चाय का कप अंदर से बैरा आकर ले गया। शादी के बाद पहली बार वो लोग बाहर चाय पीने यहीं आये थे। उस दिन भी मैनेजर बाहर खडा चाय पी रहा था। रेस्‍टोरेंट के आगे टीन का शेड था। उस दिन बारिश हो रही थी। मैनेजर टीन शैड के नीचे चाय पीते हुए बारिश्‍ का आनंद ले रहा था। वो चाहती थी कि वे भी यहीं चाय पीये परन्‍तु मैनेजर ने मना कर दिया था। अनुराग को बुरा लगा था। उसका मन था किसी और रेस्‍टोरेंट में चला जाय परन्‍तु वो चाहती थी कि यहीं ठीक है। पुल के नीचे ट्रेन की शंटिग हो हो रही थी1 उसके शोर से वह यादो से बाहर आ गया। रेल्‍वे स्‍टेशन पुल से ज्‍यादा दूर नहीं है। शंटिग पुल के नीचे ही होती है। शंटिग होने के बाद  ट्रेन के कुछ डिब्‍बे पुल के नीचे एक पटरी पर ही रह गये और  ट्रेन दूसरी पटरी से हॉर्न बजाते हुए निकल गयी। शादी के बाद उनके बीच सब कुछ ठीक चल रहा था। कभी ऐसा नहीं लगा कि उनके बीच कोई मतभेद और मनमुटाव होगा। सब कुछ ठीक था। ठीक ही नहीं उनके बीच बहुत प्रेम था। वो अपना समय टीवी के आगे नहीं बाते करने में ज्‍यादा बिताते थे। उसे ताश खेलने का बहुत शौक था। वो दोनो रोज रात को सोने से पहले ताश खेलते थे। वो हमेशा जीतती थी। अनुराग कभी जीत नहीं पाया। उसके पास हमेशा हुक्‍म का गुलाम कम रह जाता था। हुक्‍म का गुलाम हमेंशा उसकी पत्‍नी के पास ही आता था। वो ताश की खिलाडी थी। ताश हमेंशा वो ही फेंटती थी। फेंटने के बाद तीन गुलाम अनुराग के पास आते और हुक्‍म का गुलाम उसके पास ही जाता। वो जीतने के बाद जोर से हंसती थी। अनुराग उसे हंसते हुए देखता रहता था। वो कहता कि जिस दिन हुक्‍म का गुलाम उसे मिल जायेगा वो जीत जायेगा। वो कहती हुक्‍त का गुलाम तुम्‍हे कभी नहीं मिलेगा। उसने पूछा वो इसे कैसे हासिल कर सकता है। उसने कहा कि यदि मै किसी दिन तुम्‍हे छोडकर जांउगी तो हुक्‍म का गुलाम तुम्‍हे देकर जाउंगी। ऐसा कहने पर वो उदास हो जाता । वो जोर से हंसकर कहती कि मै तो मजाक कर रही थी।


पुल के नीचे से ट्रेन निकल चुकी थी। अब अंधेरा हो चुका था। पुल पर अनुराग अकेला आदमी ही दिखाइ दे रहा था। पुल पर वाहनो की रेलमपेल कम हो चुकी थी। सारे लैम्‍पपोस्‍ट जल चुके थे। रेस्‍टोरेंट का मैनेजर उसे घूर रहा था। उसे लगा कि वो जाकर मैनजर को कह दे कि वो किसी का इंतजार कर रहा है। मैनेजर अभी भी उसे घूर रहा था। अब वो खडा रहने में असहज हो गया था। वो मैनेजर की ओर जाने लगा। मैनेजर रेस्‍टोरेंट का दरवाजा खोलकर अंदर चला गया। वो फिर जाकर लैम्‍प पोस्‍ट ने नीचे खडा हो गया। वो अभी तक नहीं आयी थी। आज उसे फैसला सुनाना था। शादी के बाद उनके बीच ऐसा कुछ नहीं था। वो बहुत खुश थे। उसे पता नहीं था कि एक छोटी सी बात के लिए मामला इस हद तक चला जायेगा। उसने कभी भी उस पर कोई पाबंदी नहीं लगायी। वह महिलाओ की आजादी का हिमायती था। वो चाहता था कि वह इसी शहर में जॉब करे। उसके पास मल्‍टी नेश्‍नल कंपनी का आफर था। नोयडा में जॉब आफर थी। बहुत बडा पैकेज था। अनुराग ने उसे मना कर दिया। इस बात को लेकर दोनो के बीच कभी एकमत नहीं हो पाया। दोनो अपनी जिद पर अडे थे। अनुराग इस मामले को सुलझा लेना चाहता था। अनुराग ने उसे बता दिया कि वो तय करले क्‍या करना है। उसे नोयडा जाना है तो उसे अनुराग को छोडना होगा। वो कतई नहीं चाहता था कि वो छोडकर जाने का फैसला करे। सामने के लैम्‍प पोस्‍ट के उपर पूर्णमासी का चांद दिखाई दे रहा था। वो लैम्‍प पोस्‍ट से दूर आसमान में था परन्‍तु लैम्‍प पोस्‍ट पर टंगा हुआ महसूस हो रहा था। उसके इंतजार का तीसरा घंटा था। इतना इंतजार उसने शादी से पहले भी नहीं किया था। उसे लगा था कि वो नहीं आयेगी। आज फैसला नहीं हो पायेगा। वो कई दिनो से अपनी मां के घर रह रही है। आज उसने अपना फैसला बताने का तय किया था। अनुराग उसे छोडना नहीं चाहता था। वो चाहता था कि वो रूक जाये। अनुराग उसका नोयडा जाना भी स्‍वीकार नहीं चाहता था। रात के वक्‍त रेस्‍टोरेंट में भीड थोडी बढ जाती है। ज्‍यादा लोगो की आवाजाही से वो असहज महसूस करने लगा था। रेस्‍टोरेंट में जाने वालो में से एक महिला निकल कर उसकी ओर आ रही थी। अंधेरे में चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। नजदीक आने पर पता चला था वो ही है। वो चुपचाप लैम्‍प पोस्‍ट पर आकर खडी हो गयी। दोनो चुप थे। उनके बीच में लैम्‍प पोस्‍ट था और नीचे दो पटरियां जो अलग अलग दिशा में जा रही थी। उसने अनुराग की ओर कम और पटरिया की ओर ज्‍यादा देखा। कुछ देर अनुराग भी चुपचाप खडा रहा । फिर अनुराग ने उसकी तरफ देखे बिना कहा – फैसला कर लिया। इस पर उसने कोई जवाब नही दिया। उसने अपने बैग मे से लिफाफा निकाला और अनुराग को देते हुए कहा- इसमें मेरा फैसला है और यही अंतिम फैसला है। यह कहकर वह निकल गयी। अनुराग चाहता था कि रेस्‍टोरेंट में उसके साथ एक चाय पी जाये। लेकिन वो हैरान था उसके हाथ में लिफाफा था और वो जा रही थी। वो आंखो से ओझल हो गयी तो अनुराग ने लिफाफा खोला। लिफाफे में कोई चिटठी नहीं थी। लिफाफ में सिर्फ ताश का पता था – हुक्‍म का गुलाम।

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