Monday, June 1, 2020

भूरा

मेरा अधिकांश बचपन नानी के पास बीता है। नानी के पास बचपन बिताने का आप यह मतलब कतई ना निकाले कि मेरे घर मे या मेरे साथ कोई समस्या थी। नानी के पास हमे सब कुछ करने की आजादी होती थी या यूं कहे नानी हमे प्यार ही इतना करती थी कि हम अपना ज्यातर समय नानी के साथ ही बिताते थे। हमारा घर और नानी का घर कोई ज्यादा दूर नही था। कभी घर पर रहने की ईच्छा होती तो दौड़कर घर चले जाते थे। कभी दौड़कर नानी के घर पहुंच जाते थे। 

नानी का घर हमारे लिए खुला मैदान था। हम अपनी मर्जी से खेलते थे और पढ़ते भी अपनी मर्जी से। नानी के यहां मेरे भाई बहिन और मेरी मौसी के भाई बहिन सभी इकट्ठे होकर धमाचौकड़ी करते थे। एक दूसरे पर तकिये फेंकना और एक दूसरे पर गिर जाना जैसे काम तो जमकर करते थे । कभी नाना धीरे से आकर बिना आवाज किए चुपचाप आकर खड़े हो जाते। उनकी आंखे देखकर हम जहां जिस स्थिति मे खड़े होते वैसे ही खड़े रह जाते। नाना बोलने के लिए अपने होठ खोलते उससे पहले ही नानी की आवाज आती खेलने दो। दो घड़ी ही तो खेलते है। नानी की आवाज सुनकर नाना अपने कमरे मे चले जाते।
हम सब बच्चो मे सबसे पहले मेरी नींद खुलती।  नानी पास के बाड़े मे पौधौ को पानी दे रही होती। मै भी उनकी मदद मे लग जाता। सर्दी मे नानी एक तपेले मे पानी गरम करती थी । मै बाड़े मे लकड़िया इकट्ठी करता और नानी के निर्देशो के अनुसार उन्हे जलाकर उसके ऊपर पानी का तपेला रखता। फिर नानी मेरे को चाय बनाने को कहती। मै अपनी और नानी की चाय बना लेता। सुबह सुबह मै और नानी खुले आंगन मे बैठकर दोनो चाय पीते। पहले घरो मे आंगन खुला होता था। आज की तरह बंद नही होता था। सुबह की ठंडी हवा मे मै नानी से खूब बाते करता। एक दिन मै और नानी बाते कर रहे थे तो एक बिल्ली का बच्चा हमारे पास आकर बैठ गया। मैने उसे अपने पैर की धमक से भगा दिया। नानी ने मेरे को डांटते हुए कहा ऐसे नही भगाना चाहिए।बेचारे कुछ खाने की आस से आया होगा। वो फिर आया तो नानी ने रोटी का टुकड़ा मंगवाया। उसके छोटे छोटे टुकड़े करके उसके सामने फेक दिए। बिल्ली के बच्चे ने उन्हे सुंघ कर छोड़ दिये। नानी के कहा - एक कटोरी मे दूध ला। मैने दूध लाकर दिया। नानी ने वो कटोरी उस बच्चे के सामने सरका दी। वो अपनी जीभ से सारा दूध चट कर गया। दूध खत्म होते ही उसने नानी की ओर देखा और भाग गया। 
अगले दिन सुबह हम फिर आंगन मे बैठे चाय पी रहे थे तो वह बिल्ली का बच्चा आया। नानी ने दूध की कटोरी मंगवायी और उसके सामने सरका दी। आज फिर वो चट करके भाग गया। उसके जाने के बाद नानी संतुष्टि के साथ चाय पीती। यह रोज का सिलसिला हो गया। रोज सुबह वो आता और नानी एक कटोरी दूध उसे देती। अब वो हम दोनो से हिलने मिलने लगा था। भूरे रंग का  था बीच मे सफेद धारिया थी। आंखे उसकी चमकदार थी। वो अपने कान खड़े कर पहले मेरी तरफ देखता फिर नानी के पास आकर बैठ जाता। अब तो वो नानी की गोद मे आकर बैठने लगा था। नानी उसके माथे पर हाथ फेरती रहती। वो गोद मे बैठा मुझे देखता रहता मानो मुझे चिढ़ा रहा हो।  शाम को नानी खाना बनाती तो वह रसोई के आगे आकर बैठ जाता। नानी रोटी पर घी लगाकर टुकड़े करके उसके सामने रख देती। घी से चुपड़ी हुई ताजी रोटी वो खा लेता परन्तु बासी रोटी के मुंह नही लगाता।  नानी कमरे मे आकर बैठती तो वो आकर नानी के पैरो के पास बैठ जाता । वो नानी के पैरो के नजदीक बैठा अपने कान खड़े करके नाना को देखता रहता। जब नानी इधर उधर होती तो नाना उसे फटकार लगाकर भगा देते। एक बार नानी ने उनको फटकार लगाते हुए देख लिया तो नाना से लड़ पड़ी और कह दिया आप इसे फटकार मत लगाया करो। यह भी जीव है। अब वह नानी के और नजदीक हो गया। नानी अब उसे भूरा नाम से पुकारने लगी। धीरे धीरे यह नाम सब की जबान पर चढ़ गया। अब भूरा दिन मे कभी भी आ जाता। गर्मियो मे नानी के पास कूलर के आगे बैठ जाता। दिनभर कूलर के सामने बैठा रहता। घर मे कोई मेहमान आता तो हमसे कहता -  बच्चो अब नानी का पहला प्यार भूरा हो गया है। अब नानी के लाड मे तुम्हारा दूसरा ऩबर है।   
एक दिन मेरे मामा की बुआ आई। वो भूरा को देख बहुत खुश हुइ। कहने लगी - ये तो आपका तीसरा बेटा हो गया। देखो यह तो आपको छोड़ता ही नहीं है। बुआजी को देखकर भूरा नानी की गोद मे दुबक जाता। नानी कहती - मै तो इसे कभी बुलाती नही, यह खुद ही मेरे पास आकर बैठ जाता है। बुआजी भूरा को देखती रही। फिर कहा - भाभी जी दो दिन के लिए इसे मेरे को दे दो। मेरे यहां चूहे बहुत हो गये है। दो दिन के बाद मै लौटा दूंगी। नानी संकोच वश अपनी ननद को मना नही कर सकी।  बुआजी ने एक खाली थैला मंगवाया और भूरा को पकड़ने लगी। बुआ के आगे हाथ बढ़ाते ही भूरा भाग जाता। बुआ भी उसका पीछा करती रही।  फिर वह छिपकर खड़ी हो गयी। ज्यो ही भूरा वापिस आया, बुआजी ने पकड़ लिया। बुआजी के पकड़ते ही वो जोर जोर से म्यांउ म्यांउ चिल्लाने लगा। वो रोने ही लगा था। बुआजी ने उसे थेले मे डाल लिया। थैले मे हाथ पैर मारने लगा। नानी जी कुछ देर तो यह सब देखती रही। थैले मे उसे तड़पते देख नानी से रहा नही गया। नानी ने कहा- जीजी। आप इसे छोड़ दो। इसे तड़पाओ मत । मै शाम को किसी के साथ भेज दूंगी। बुआजी यह सुनते ही नाराज हो गयी। कहने लगी - आप तो ऐसे कर रही है जैसे यह कोई आपकी कोख से पैदा किया बच्चा हो। कोई अपने कोख के बच्चे के लिए भी ऐसा नही करती। बुआजी ने भूरा को थैले मे से निकाला और वही छोड़ दिया। बड़बड़ाते हुए चली गयी।  उसे जाता देख नाना भी नानी जी पर नाराज हो गये लेकिन नानी जी चुपचाप अपनी गोद मे सिमट कर बैठे  भूरा के कारण पर हाथ फेर रही थी।
अगले दिन सुबह मै और नानी आंगन मे बैठे चाय पी रहे थे। आज भूरा नही आया। हमने चाय पी ली।फिर भी भूरा नही आया। नानी ने मेरे को कहा देख कर आ ।  मै बाड़े मे गया। भूरा दिखाई नही दिया। मैने नानी से कहा - वहां तो नही है। नानी ने कहा डरा हुआ हैः कही छिप के बैठा है। आ जायेगा। दोपहर हो गयी भूरा फिर भी नही आया। नानी ने भूरा की चिंता मे खाना भी ठीक से नही खाया। नानी थोड़ी अनमनी हो गयी थी। भूरा का इंतजार करते शाम हो गयी। भूरा नही आया। हमने इधर उधर चारो तरफ देखा। भूरा नही मिला। नानाजी के कहने पर हम बुआजी के घर पर भी देखकर आये परन्तु भूरा वहां भी नही था। नानी आज खाना बनाने रसोई मे भी नही गयी। कमरे मे कुर्सी पर बैठी थी। हम ढुंढने जाते तो हमारा इंतजार करती। हम सभी जगह ढुंढ कर आ गये। भूरा की कोई खबर नही मिली। नानी मौन हुई कुर्सी पर बैठी थी। किसी से बात नही कर रही थी। कमरे मे एक खिड़की बाहर सड़क पर थी। बाहर मेरा बड़ा भाई बाहर खड़ा था। पास के दुकादार से बात कर रहा था।  बात भूरा के बारे मे होने लगी तो हमने कान लगा लिये। नानी भी सतर्कता के साथ बात सुनने लगी। भाई कह रहा था कि भूरा नही मिल रहा है। दुकानदार ने पूछा- भूरा कौन? भाई ने कहा- बिल्ली का बच्चा। 
वो ही तो नही था। भूरे कलर का।
हां।
अरे। वो तो आज सुबह ही सड़क पर दौड़ता हुआ आया और एक जीप ने कुचल दिया।
यह सुनते ही नानी ने अपना पल्लू अपने चेहरे पर रख लिया। ऐसे लगा किसी ने सटाक की आवाज के साथ कोई चीज तोड़ दी। नानी के पने पल्लू से आंखे पोंछ रही थी। हम बच्चे नानी को देख रहे थे।
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