Friday, January 3, 2020

जब अटलजी प्रधानमंत्री बने

               जब अटल जी प्रधानमंत्री बने




किस्सा बहुत पूराना है। उस समय का जब मेरे लिऐ बाते कम सपने ज्यादा हुवा करते थे।यह मेरे मुहल्ले का किस्सा है। हमारे मुहल्ले मे रहते थे डागाजी। एक सफेद बनियान और धोती उनका पहनावा था। सर्दी और गर्मी बारह महीने वो बनियान और धोती पहनते थे। सर्दी मे काले रंग का शाल ओढ़ लेते थे। मेरे पड़ोसी थे। हमारे घर के नजदीक एक परचुन की दुकान थी। उनका ज्यादातर समय वहीं बितता था। वो बीजेपी के बड़े समर्थक थे। दुकान पर बैठकर बीजेपी की ही बाते करते। दुकानदार भी बुजुर्गवार ही थे। हम लोग उन्हे जीसा कहकर बुलाते थे। जीसा और डागाजी बीजेपी के भविष्य को लेकर बाते करते। जीसा कहते डागाजी देखना एक दिन बीजेपी का प्रधानमंत्री जरूर बनेगा। इस बात पर डागा जी के झुरियां पड़े चेहरे पर चमक आ जाती। उस समय बीजेपी की लोकसभा मे दो ही सीटे थी।  पर डागा जी को उम्मीद थी। मै उन दिनो छोटा ही था। मै सुबह घर निकलकर बाहर दुकान पर आता तो डागा जी मेरे पैर छुते। मै पीछे हटता तो कहते आप ब्राहम्ण देवता हो। उनके कोई औलाद नही थी। अपनी पत्नि के साथ किराये पर रहते थे। मंदिर जाना और भागवत् कथा सुनने जाना, दिनभर उनका यही काम होता था। वे रामसुखदास जी महाराज के बड़े भक्त थे। महाराज जी जब भी बीकानेर आते रोज उनको सुनने जाते। उनकी आय का क्या जरिया था। इस बारे मे मुझे कुछ पता नही था। मेरा बचपन था तो मुझे इन बातो से कुछ लेना देना नही था। घर के नीचे एक बंद कमरा था जिसमे बड़ा सा काटा लगा था। वहां पांच, दस और बीस किलो के बाट पड़े रहते थे। वो यह कभी कभार ही खोलते थे।  हमारा मुहल्ला बड़ा था। आगे खुला मैदान की तरह चौक था। शाम को चोक मे बच्चो का हुजुम इकट्ठा होता था।  डागाजी को यही पसंद नही था। बच्चो को तो देखना ही पसंद नही करते थे। बच्चो ने उसे क्रिकेट का मैदान बना लिया था। शाम को रोज वहां क्रिकेट होती।  बच्चे जोर से शाट रगाते तो बाल लोगो के घरो मे चली जाती। प्राय
सभी लोग बच्चो को बाल वापिस कर देते।  डागाजी के घर बाल जाती तो वे देने से मना कर देते। बच्चे कुछ देर तो गुहार लगाते फिर नाराज होकर चले जाते। अगले दिन डागाजी वो बाल मेरे को दे देते। मै वह बाल उन बच्चो को दे देता। कुछ दिन यह सिलसिला चला।  फिर एक बार डागाजी को पता चल गया कि मै उन बच्चो को बाल दे देता हुं तो मेरे को बाल देना बंद कर दिया। अब उनके घर बाल गिरती तो वो उसे दो टुकड़ो मे काटकर फेंक देते।  बच्चे कुछ देर शोर करते फिर चले जाते। डागाजी की और बच्चो की लड़ाई ऐसे ही चलती रहती। कोई दूसरा इनके बीच मे नही आता। कोई किसी से डागा जी को समझाने की गुहार लगाता तो वो इनकार कर देते। मुझे बच्चो के लिए क्रूर लगते थे लेकिन मेरे प्रति  सह्दय थे।मैने उनसे ज्यादा बात नही करता था। मै समझता था कि उनके औलाद नही होने से वे दूसरे बच्चो के लिए इतने कठोर है लेकिन जीसा ने मुझे बताया कि वो बरसो से मुहल्ले की स्कूल मे एक हजार रूपये हर महीने देते है ताकि कोई बच्चा फीस नही भर पाये तो इन पैसो से उसकी पूर्ति कर ली जावे तब से उनके प्रति मेरी राय बदल गयी। हमने अपना वो घर छोड़ दिया और शहर के किसी दूसरे कोने मे रहने लग गये। मै डागाजी को भूल गया था। मै कालेज मे पढ़ने लगा था। उसी समय अटल बिहारी देश के प्रधानमंत्री बने। टीवी पर अटल बिहारी का शपथ ग्रहण समारोह चल रहा था मुझे डागाजी की याद आ गयी। मै उसी समय उन्हे बधाई देने निकल पड़ा। मेरा पूराना मुहल्ला बीजेपी विचारधारा का समर्थक था। मुहल्ले मे भीड़ थी। नारे लग रहे थे। मै सीधा जीसा के पास गया। जीसा और डागाजी की बहुत बनती थी। दोनो सगे भाई की तरह थे।  जीसा भी नारे लगाते और नाचते युवाओ को देख रहे थे। मैने जीसा को डागा जी के  बारे मे पूछा। वो कुछ नही बोले। अपनी गर्दन घुमाकर डागाजी के घर की ओर देखा और मेरी तरफ चेहरा किया। उनकी आंखो मे पानी की पतली लहर झिलमिलाने लगी।

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