Saturday, April 8, 2023

लैम्‍प पोस्‍ट वाली लडकी

 


यह शहर पढने वालो के लिए एक हैरिटेज शहर था। प्रतियोगी परिक्षाओ की तैयारी करने वालो के लिए यह एक मुश्किल शहर था। उन्‍हे काफी कुछ सामान्‍य ज्ञान इसी शहर से मिलता था। पूराने पत्‍थरो से बने हुए मकान और एक पंक्ति में बने हुए पूराने शिल्‍प के मकान देख कर लगता था कि किसी ठंडी दुनिया में हम आ गये है। ऐसा लगता था कि इस शहर की दीवारो पर शहर के लोगो की भोली भोली बाते बह रही है। यह जीवन धीमा चलता है परन्‍तु सकून से चलता है। शहर की सडको की बनावट भी पूरानी थी। इन सडको पर चलते हुए ऐसा लगता था कि हम किसी राजा महाराजा के राज में चल रहे है। सडको के बीच में थोडे थोडे गैप के बाद लगी हुई हैरिटैज लैम्‍प इस शहर को और खूबसूरत बनाते थे। छोटा सा शहर था। शहर में एक ही बडा सा पार्क था। पार्क में इस शहर के लोग कम आते थे। इस पार्क में पर्यटक ही देखे जा सकते थे। पार्क में एक पेड के नीचे एक चित्रकार कैनवास लगाकर पैंटिंग किया करता था। वो अभी अभी कई दिनो से पार्क में पेंटिंग कर रहा है। दिन भर वो पेंटिंग करता रहता है। शाम को शहर के कुछ लोग उसे पेंटिंग करते हुए कौतूहलवश देखने आ जाते है। लगता है ज्‍यादा भीड उसे डिस्‍टर्ब करती है। वो शाम को सामान समेट कर सामने बने रेस्‍टारेंट में आ जाता है।

पार्क में बना यह रेस्‍टोरेंट इस इलाकै में इकलौता रेस्‍टोरेंट है। रेस्‍टोरेंट के सामने पार्क की दीवारो के सहारे पूराने हैरिटेज लैम्‍प लगे है। इन लैम्‍पो से रेस्‍टोरेंट की शोभा बढती है। इन लैम्‍पो से यह रेस्‍टोरेंट खास बन गया है। दूसरे देशो से आये हुए पर्यटको के लिए यह रेस्‍टोरेंट भी एक हैरिटैज लुक का रेस्‍टोरेंट है। वह चित्रकार शाम को रेस्‍टोरेंट में चाय पीने आता है। रेस्‍टारेंट के बाहर दो पत्‍थर की टेबिले बनी है। उसके पर हैरिटेज लैम्‍प है। वो वहां बैठकर चाय पीता है और पार्क को देखता है। कुछ बोलता नही है। उसके बाल लंबे है। चाय पीते हुए कई बार वो अपनी बालो में हाथ फेरता है और फिर चश्‍मा ठीक करके पार्क मे देखने लगता है। चाय पीने के बाद एक किताब निकालता है और उसके कुछ पन्‍ने पढता है। फिर बंद करके अपने बैग मे डाल लेता है। फिर खडा होकर रेस्‍टोरेंट के काउण्‍टर पर आता है और बिल का बिना पूछे पैसे दे देता है। तब तक अंधेरा हो चुका होता है और पार्क में होकर पार्क के दूसरे दरवाजे से निकल जाता है। वो किसी से बात नहीं करता है। रेस्‍टोरेंट में भीड होने पर भी वह अकेला बैठा रहता है। कोई उससे मिलने नहीं आता है और ना ही वो किसी से मिलता है। दिन में एक लडकी रेस्‍टोरेंट में आती है। वो रेस्‍टोरेंट के अंदर बैठकर चाय पीती है और रेस्‍टोरेंट के कांच के गेट से पार्क मे देखती रहती है। वो उस चित्रकार को चित्र बनाते हुए देखती है परन्‍तु कभी उसके नजदीक नहीं गयी। चाय पीने के कुछ देर तक वो चित्रकार को देखती रहती है और फिर निकल कर लैम्‍प पोस्‍ट पर कुछ समय रूकती है और फिर रेस्‍टोरेंट के पास वाली सडक से निकल जाती है। ऐसा लगता है नदी चित्रकार की ओर बहना चाहती है परन्‍तु दूसरी ओर निकल जाती है।

रेस्‍टोरेंट का मालिक उस लडकी को कुछ कहने का विचार करता है परन्‍तु निजि मामला होने के कारण वो उसे कुछ कह नहीं पाता है। एक दिन लडकी पार्क के अंदर जाती है। चित्रकार को कुछ देर चित्र बनाते हुए देखती है। उसके कैनवास पर आडी तिरछी रेखाऐं खींची हुई है। उनमें वो रंग भर रहा है। वो कुछ देर चित्रकार को देखती है फिर वो निकल जाती है। तीन-चार दिन यही सिलसिला चला। एक दिन लडकी ने उससे पूछा- आप क्‍या बना रहे हो्।

चित्र बना रहा हूं।

ये कैसा चित्र है ।

ये मेरे मन की भावनाऐं है।

ये कैसी भावनाऐं है।

मेरे विचार उलझे हुए और चित्र में समाधान की खोज में बढ रहे है। ‘’

समाधान मिला।

अभी जो मेरे दिमाग की स्थिति है, वो इस पैंटिंग में दिखाया गया है।

लडकी कुछ देर चुप रही । वसंत का मौसम था। पूराने पत्‍ते पेडो से टूट कर पार्क में गिर रहे थे। दो पत्ते टूट कर लडकी के बालो में आकर गिरे। लडकी ने पत्‍तो को निकाल कर फैंकते हुए चित्रकार से कहा- आप मेरी पैंटिग भी बना सकते हो।

चित्रकार पैंटिंग में कलर करते हुए रूक गया और लडकी की तरफ बिना देखे ही कहा मैं पोट्रेट नहीं बनाता हूं।

लडकी पैटिंग की और थोडा झुकी और कहा – नहीं मुझे पोट्रेट नहीं बनवाना। मुझे तो आप जैसी पैटिंग बनानी है। मेरी भावनाओ की।

मुझे कैसे पता तुम्‍हारी भावनाऐं क्‍या हे।

वो मै आपको बता दूंगी।

चित्रकार ने कुछ क्षणो के लिए लडकी के प्रश्‍न का उत्‍तर नहीं दिया। फिर अपने बालो में हाथ फेरते हुए कहा -  शाम को मै सामने वाले लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे चाय पीता हूं। आज जाना। वहीं बात करेंगे।

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लडकी को चित्रकार का स्‍वभाव रूखा सा लगा। उसे बात से लगा वो उसके आग्रह को टाल रहा है। चित्रकार वापिस अपने काम में लग चुका था। लडकी सफेद कपडे पहने हुए अपने खुले बालो को पीछे करते हुए चित्रकार को देख रही थी। कुछ देर वो वहीं खडी रही । फिर चित्रकार को अपने काम में व्‍यस्‍त देख वहां से वापिस मुड गयी। सूखे पत्‍तो पर चलते हुए वो पार्क के बाहर जा रही थी। सूखे पत्‍तो के कुचलने की आवाज पार्क में आ रही थी।

शाम को चित्रकार लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे चाय का कप लिये बैठा था। वो पार्क में खडे अपने कैनवास को देख रहा था। उसी पार्क मे से वो लडकी सफैद कपडो में कैनवास के आगे से आ रही थी। चित्रकार की एकाग्रचितता में अवरोध हुआ। वो लडकी पार्क से निकल कर सीधे चित्रकार के सामने रखी कुर्सी पर बैठ गयी। रेस्‍टोरेंट से वेटर एक चाय का कप और लेकर आया। चित्रकार अभी चुप था। लडकी अपने काले बाल जो उसके चेहरे पर आ रहे थे, पीछ कर रही थी। चित्रकार ने चाय का कप टेबिल पर रखते हुए पूछा- आप सचमुच चित्र बनवाना चाहती है।

हां

आपको पता है इसकी कीमत क्‍या होगी।

मै इसकी कीमत चुका दूंगी।

चित्रकार ने अपना कप वापिस अपने होठो तक ले जाते हुए कहा – ‘ तो ठीक है। आप बताईये आप जीवन के बारे में क्‍या सोचती है।

लडकी ने चाय का कप उठाते हुए कहा – देखिये । मेरे ख्‍याल से जीवन का रंग सफेद है। जीवन शांत नदी की तरह है। उस शांत नदी पर चलते हुए उस परम परमात्‍मा को प्राप्‍त किया जा सकता है। मै हमेंशा उस परम पिता परमात्‍मा को प्राप्‍त करने की साधाना करती हूं। इसलिए मै हमेंशा सिंगल रहना चाहती हूं। घरवालो का हमेंशा मेरे पर शादी करने का दबाव रहता है जो मेरी साधना मे मुझे डिस्‍टर्ब करता है। उस परमपिता परमात्‍मा को प्राप्‍त कर लेने के बाद आपको पूर्णता के लिए किसी की जरूरत नही है। आप परमात्‍मा को प्राप्‍त करने के बाद पूर्ण हो जाते हो। घरवालो को कहना है कि पूर्ण होने के लिए आपको साथी की जरूरत होती है। उनका यह दबाव और सलाह मेरे लिए अवरोध पैदा करती है। यूं कहे मै खीझ सी जाती हूं।



चित्रकार ने चाय का घूंट लेते हुए कहा –मै आपके जीवन का सार समझ गया। अब मै आपकी भावनाओ को कैनवास पर उकेर सकता हूं। आपको मेरे पास बैठे हुए समय देना होगा ताकि मै आपके बारे मे और जान सकूं।

दोनो ने थोडी ही देर में अपनी बात समाप्‍त कर दी। दोनो ने अभी चाय भी पूरी नहीं पी थी। लडकी चाय का कप नीचे रखकर खडी हो गयी और पार्क के पास वाली सडक से निकल गयी। चित्रकार कुछ देर वहां बैठा बैठा उस लडकी के बारे में सोचता रहा।

अगले दिन पार्क में बसंत की धूप खिली हुयी थी। घास पर सुबह की ओस की बूंदे धूप में चमक रही थी। चित्रकार कैनवास लेकर चित्र बनाना शुरू कर दिया था। वो लडकी सफेद कपडो में नीचे घास पर बैठी थी। चित्रकार ने चित्र बनाते हुए कहा – आपकी सोच अच्‍छी है। परमपिता परमात्‍मा को प्राप्‍त करने के लिए जीवन में शांति होना जरूरी है।

हां । बिलकुल सही है जब तक आपके मन में ठहराव नहीं होगा आप परमपिता के रास्‍ते तक भी नहीं पहुंच सकते। लडकी ने कहा ।

चित्रकार ने अपने चश्‍मे को ठीक करते हुए कहा – आपका अपना मत है परन्‍तु मेरा मत है कि भगवान ने यह प्रकृति बनायी है। इस प्रकृति में कितने सुंदर रंग है। परमपिता तक उसके बनायी प्रकृति के सहारे ही पहुंचा जा सकता है। मै प्रकृति का आनंद लेता हूं और परमपिता का शुक्रिया अदा करता हूं। मै वसंत में पीला वस्‍त्र पहन कर महसूस करता हूं कि परमपिता मेरे नजदीक है। देखो आज मेरे पीले वस्‍त्र पहने हुए है। मै प्रकति के बनाये फल खाता हूं। इस प्रकति के जरिये ही परमपिता तक पहुंचा जा सकता है। चित्रकार बोलता रहा और चित्र बनाता रहा । इतना चित्रकार शायद कभी बोला नहीं था। लडकी उसकी बात ध्‍यान से सुन रही थी। उसके मन में प्रश्‍न कौंध रहे थे। उसने पूछ ही लिया – रंग आपकी एकाग्रता को भंग नहीं करते।

भंग नहीं करते एकाग्रता बनाते है। रंग मेरे अंदर की भावनाओ को तृप्‍त करते है। भावनाऐं तृप्‍त होने के बाद डिस्‍टर्ब नहीं करती। उपर सफेद पहन कर भावनाओ को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।

लडकी को चित्रकार की यह बात ठीक लगी। वो एक टक घास की ओर देखती रही। बातो बातो में शाम हो गयी थी। पहले लडकी फिर चित्रकार पार्क से निकल गये थे।

अगले दिन फिर सुबह चित्रकार अपने कैनवास में व्‍यस्‍त था। लडकी अभी आयी नहीं थी। आज धूप थोडी तेज थी। पार्क में धूप घास पर गिर कर चमक रही थी। कैनवास बनाते हुए उसने सामने देखा पीले लडको में वही लडकी आ रही है। उसने अपनी आंखो को बंद करके एक बार फिर देखा वो सफेद कपडे पहनने वाली लडकी आज पीले कपडे पहन कर आयी थी। चित्रकार ने उसके पहनावे के बारे में कोई सवाल नहीं किया वो चित्र बनाता रहा। उसने बात शुरू करते हुए कहा – आप अपने जीवन को इतना सादा क्‍यों रखना चाहती है।

मै परमपिता की प्राप्ति के रास्‍ते को एक शांत नदी की तरह देखती हूं। उथल पुथल होकर बहने वाली नदी में नाव डगमगा सकती है। लडकी ने कहा।

आप जिसे उथल पुथल कहती है वो भीतर की भावनाओ को शांत करने का साधन है। उन भावनाओ को समाप्‍त करने के लिए जीवन में रंगो की जरूरत होती है। जब तक आप सकारात्‍मक नहीं होओगे आप परमपिता तक नहीं पहुंच पाओगे। आप गीत संगीत को बाधक मानती है जबकि गीत संगीत से तो परमपिता तक पहुंचने का रास्‍ता सुगम होता है।चित्रकार ने अपने कैनवास पर ब्रश चलाते हुए कहा।

लडकी  चित्रकार की बात सुनते हुए एक टक घास पर देख रही थी। चित्रकार ने अपनी कूंची को बॉक्‍स में रखते हुए कहा कि ये लीजिये आपकी पैंटिंग तैयार है। लडकी ने खडे होकर कैनवास को देखा। पूरा कैनवास सफेद था। सफेद रंग की हल्‍की, मध्‍यम और भारी तीन तरह की लेयर थी। बीच में एक हल्‍के काले रंग का बिन्‍दू था। इन सब एक टेडी मेडी काली लाईन भी बनी हुयी थी। उसने पूछा – इसे मुझे समझाओ कि यह कैनवास मेरी भावनाऐं कैसे व्‍यक्त कर रहा है।

चित्रकार अपना सामान समेटते हुए कुछ देर सोचकर बोला – मुझे लगता है कि यह पैटिंग अभी तक पूरी नही है। यदि यह पूरी होती तो आप समझ जाती है कि यह आपकी भावनाऐ है। चलो ठीक है। आप कल सुबह आना । आपको यह पैटिंग पूर्ण मिलेगी।

चित्रकार शाम को लैम्‍प पोस्‍ट के नीचे चाय पीते हुए सोचता रहा कि पैटिंग को कैसे पूरा करूं। उसने तो उस लडकी की भावनाऐं पूरी तरह से कैनवास पर उकेर दी थी। फिर भी वो अपनी भावनाओ को कैनवास पर कैसे नहीं देख पायी। वो घर पर भी रातभर सोचता रहा। वो इतना परेशान कभी नहीं रहा । उसने पहले कभी अपने आपको इतना असफल  नहीं पाया था। वो अपने आपको दुनिया का सबसे असफल चित्रकार महसूस करने लगा। उसे लगा कि अभी उसे और सीखने की जरूरत है। वो अब कल लडकी को क्‍या जवाब देगा। वो पैटिंग को कैसे पूरा करेगा। यह सोचते हुए उसे नींद आ गयी।

यह बसंत की एक और सुबह थी। रोज की तरह धूप अपनी चमक बिखेर रही थी। पार्क में सूखे पत्‍ते ईधर उधर बिखरे हुए थे। हल्‍की हवा चलने से पत्‍ते उड रहे थे। पार्क में कोई नहीं था। चिडियो की चहचहाट सुनायी दे रही थी। एक पेड के नीचे कैनवास लगा था। कैनवास एक सफेद कपडे से ढका था। चित्रकार वहां नहीं था। दूर से वो लडकी पार्क में चलते हुए आ रही थी। पीले कपडे पहने हुए और लाल बैग लटकाये हुए आ रही थी । वो पेड तक आयी। उसने इधर उधर चित्रकार को देखा। वो रेस्‍टोरेंट तक भी चित्रकार को ढुंढने को गयी । वो उसे नहीं मिला। कैनवास के आस पास उसका सामान भी नहीं था। कैनवास कपडे से ढका हुआ था। उसने कपडे को खींचा। कल वाली पैटिंग थी। सफैद की तीन लेयर के साथ एक टेडीमेडी काली लाईन थी। आज उसमे एक परिवर्तन था। पूरे कैनवास पर सफेद रंग की तीन लेयर थी। कैनवास के एक कौने पर पीला रंगा बिखरा हुआ और उसमें लाल रंग की चार पांच बिन्दिया थी। वो लडकी कैनवास को देखती रह गयी। उसने फिर अपने कपडो और अपने बैग को देखा। फिर पैटिंग को। उसने कैनवास को हाथ में लिया और पार्क के अंदर व बाहर सब जगह चित्रकार को देखा। वह उसे कहीं नहीं दिखाई दिया। उसने उसके बारे मे कुछ भी जानकारी  नहीं ली थी। वो पैटिंग को बार बार देखती रही और फिर अपने आपको।

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