Saturday, April 25, 2020

किस्से पतंगबाजी के

अक्षय तृतीया को हमारे शहर मे खूब पतंगबाजी होती है। पतंगबाजी भी ऐसी कि दुनिया के बड़े बड़े पतंगबाज भी अपनी अंगुलियां दांतो मे फंसा लेते है। जितनी पत़गबाजी उतने ही पतंगबाजी के किस्से। हर उम्र का अलग किस्सा। किस्सा भी ऐसा कि सिकंदर और पौरस की लड़ाई का किस्सा भी पीछे रह जाये। दिनभर पतंगबाजी करते शाम को सारे पंगत बनाकर बैठ जाते। बड़े बुजुर्ग अपनी पतंगबाजी के हुनर का किस्सा हमे बताते। हम अपने हाथो की अंगुलियो पर हाथ टिकाकर एक एक बात सुनते।
मै कोई सात बरस का रहा होउंगा। मेरा भाई पांच बरस का होगा। पतंगे तो हमारा जैसे जीवन थी। पतंग लूटना, उड़ाना और किस्से सुनना और सुनाना सब हमारे शौक थे।  हमारी छत्त बहुत लंबी थी। मैदान जितनी लंबी। छत्त पतग उड़ाने के बिलकुल मुफीद थी। हम भाई भाई छत्त पर खूब पतंगे लूटते और उड़ाते। छोटे थे तो बड़ी पतंग कभी उड़ाई नही थी। उड़ाने से डर भी लगता था। कभी कभार कोई बड़ी पतंग पकड़ते तो हाथ कटने का भय रहता। एक बार अक्षय तृतीया से दो दिन पहले की एक सुबह की बात है। मै अकेला छत्त पर पतंगे देख रहा था कि मेरे कान के पास मांजे की सरसराहट हुई।  मैने हाथ से झटका दिया। मांजा हाथ मे आ गया। मांजे मे भारीपन महसूस हुआ। मै कुछ समझ नही पाया। दोनो हाथो से मांजे को पकड़ लिया। लगा कोई पतंग है। पर पतंग दिखाई नही दी। मै इधर उधर देखता रहा। नीचे गली से आवाज आई भतीजे पतंग है। मैने देखा दूर ऐक काले रंग की पतंग दिखाई दे रही थी। मैने महसूस किया पतंग की डोर मेरे हाथ मे है। इतनी दूर पतंग उड़ाकर पहुंचाना मेरा सपना था। आज सचमुच इतनी दूर की पतंग मेरे हाथ मे थी। बिलकुल बिंदी जैसी पतंग दिखाई दे रही थी। पतंग पकड़े कभी पैर आगे करता तो कभी पीछे। यह सुना था कि इतनी दूर तक गयी पतंगे छोटे बच्चो को साथ ले जाती है। यह डर भी मन मे लग रहा था। मैने भाई को जोर से आवाज लगायी। भाई ने सुना नही। मे कभी उछलता.सभी पैर पटकता। जैसे मैने कोई.शेर पकड़ लिया। नीचे से फिर आवाज आयी। भतीज मुझे दे। मैने नीचे देखा। पड़ोस वाले अंकिल थे। मैने मांजे का एक छोर नीचे कर दिया। अंकिल ने पतंग की डोर पकड़ ली। मै दौड़कर नीचे गया।  अ़किल पतंग उतारने लगे। मेरे चेहरे पर किसी युद्ध के जीतने की गौरान्विती थी। मै मांजे की लच्छी कर रहा था। अंकिल पतंग उतार रहे थे। मै लच्छी करते थकने लगा था। आस पास कुछ लोग इकट्ठे हो गये। मेरे द्वारा इतनी बड़ी पतंग लूटने की बात सुनकर आश्चर्य कर रहे थे। अब पतंग काफी नजदीक आ गयी थी। बहुत बड़ी पतंग थी। हम उसे चौगी पतंग  कहते थे। हमारे यहां इतनी बडी पतंग.बड़े बड़े पतंगबाज ही उड़ाते थे। पतंग को देखकर मेरा छोटा सा सीना चौड़ा हुए जा रहा था। अब थोड़ी देर मे पतंग मेरे हाथ मे आने वाली ही थी। बहुत बड़ी पतंग थी। अंकिल का हाथ भी थकने लगा था। मै भी भाई की बाट देख रहा था। वै चरखी लावे तो मै मांजा उसमे लपेटु। पतंग अब काफी नजदीक थी। अंकिल दूसरी पतंगो से बचाकर उसे उतार रहे थे। अभी उतार ही रहे थे कि एक दूसरी पतंग ने मेरी पत़ंग फर्राट से काट दी। अंकिल हाथ मे धागा लिये असहाय से कभी मुझे कभी पतंग काटने वाली पतंग को देख रहे थे। जिस.पतंग ने हमारी पतंग को काटा वो राक्षस की तरह हमारे ऊपर सरसराट करते हुए उड़ रही थी। मै अपना मुंह ढिला किये सबको देख रहा था।
ऐसे ही किस्से हम गालो पर अंगुलिया टिकाये सुनते थे।

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