बादशाह की किलेबंदी कर ली गयी है। सैनिक आगे बढ चुके है। घोडे और हाथी सवारो ने अपने निशाने तय कर लिये है। भीषण युद्ध छिड चुका है परन्तु यह कैसा युद्ध है। इस युद्ध में कोई शोर नही है। दोनो तरफ के सैनिक आगे बढ रहे है परन्तु युद्ध के मैदान में कोई शोर नही है। पूरे मैदान मे पिन ड्राप साईलेंस है। एक पिन ड्रॉप करने पर उसकी आवाज को भी सुना जा सकता है। कप्तानो की सांसो की आवाजाही की आवाज भी आप सुन सकते हो। फिर ये कैसा युद्ध है। फिर भी युद्ध है और तनाव पैदा करने वाला युद्ध है। इस युद्ध में बादशाह, मंत्री, घुडसवार, हाथी सवार और सैनिक सबकुछ है और मारकाट भी है। फिर भी इतनी शांति । मै बात कर रहा हूं शतरंज की। शतरंज के बोर्ड पर ये सब होता है परन्तु खेला जाता है पिन ड्रॉप साईलेंस मे। इन्ही हाथी घोडो से दुश्मनो के बादशाहो को शह मात देकर भारत के युवा विश्व चैम्पियन बने है।
पिछले दिनो
आपने शोर सुना होगा कि भारत ने शतरंज ओलम्पियाड जीत लिया है। शतरंज ओलम्पियाड दरअसल
शतरंज की टीम प्रतियोगिता है। ९७ वर्ष पूरानी इस प्रतियोगिता को शतरंज का जन्म देने
वाला भारत आज तक नही जीत पाया था। भारत के युवाओ ने वो कमाल कर दिया जो विश्व चैम्पियन
विश्वनाथन आनंद भी नही कर पाये। आनंद भी ओलम्पियाड मे भाग ले चुके है परन्तु भारत
को चैम्पियन नही बना पाये। भारत के बिलकुल युवा शातिरो ने दुनिया के शातिरो को धूल
चटा दी। भारत के ऐसे शातिर इस ओलम्पियाड में खेलने गये थे जो आज भी अपनी मां के बिना
सो नही सकते है। मेगा ईवेंट जहां दुनिया भर के शातिर मोहरे लडाते है वहां भारत के १७-२१ बरस के बच्चो ने कमाल कर दिया और खिताब जीत लिया। भारत की महिला टीम की
वंतिका तनाव में सो नही सकती है। रात जाग कर गुजारती है परन्तु मां की गोद में सिर
रखने के बाद सारा तनाव भूल जाती है। ओलम्पियाड में भी वंतिका के साथ उसकी मां गयी।
मैच के दौरान तनाव होने के कारण रात को उसको नींद की समस्या रहती है परन्तु मां साथ
होने से तनाव को बिलकुल भूल जाती है।
इसी ओलम्पियाड
में अर्जुन जो कैंडिड चैस टुर्नामेंट के लिए क्वालिफाई नही होने के कारण घनघोर तनाव
में आ गया था। वो अपने एक दोस्त के घर रहने लग गया। उसने तनाव ओर डिप्रेशन को कम करने
का कोर्स किया। उसे लगा कि उसका कैरियर अब खत्म हो गया है। उसने अपना मनोबल बढाने
के लिए सदगुरू की इनर इंजीनीयरिंग पढी। फिर वो ओलम्पियाड में भाग लेने गया और भारत
को चैम्पियन बना कर लौटा।
भारत के ग्राण्ड
मास्टर और छोटी उम्र में विश्व चैम्पियन को चुन्नौत्ती देने वाले प्रगनंदा अपनी
बहिन के साथ ओलम्पियाड खेलने आये। बहिन भी भारत के लिए मोहरे लडा रही थी। दोनेा भाई
बहिन एक दूसरे से बात करके तनाव को कम कर लेते । दोनो में भारत को स्वर्ण दिलाने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सबसे बडा रोल रहा है डी मुकेश का। छोटी सी उम्र में ग्राण्ड
मास्टर बन जाने वाले मुकेश को आशातीत सफलता नही मिल रही थी। १७ वर्ष के मुकेश ने ओलम्पियाड
में दिग्गज शातिरो को शह और मात दी। उसकी विशेषता है कि वह समय बचाता है। एक मैच के
अंत में उसके पास लगभग ६० मिनिट थे जबकि उसे प्रतिद्वदन्द्वी के पास कुछ ही मिनट।
जीत के प्रति इतना आश्वस्त की अंतिम चाल चलकर वो दूसरे बोर्ड पर मैच देखने चला गया।
विरोधी शातिर ने अपनी मात स्वीकार कर ली। ऐसे नन्हे शातिरो के साथ भारत ओलम्पियाड
में गया था जहां युवा शातिरो ने पूरी दुनिया को शह और मात दे दी।
हिन्दुस्तान
ने ९७ में साल में पहली बार खिताब जीता है इससे पहले उसका बेस्ट तीसरा स्थान रहा
है। भारत दो बार तीसरा स्थान प्राप्त कर चुका है परन्तु खिताब के बिना भारत का सफर
अधूरा था। भारत के किशोरवस्था से निकले युवा राजकुमारो ने अपने हाथी और घोडो के साथ
पूरी दुनिया को मात दे दी और भारत को विश्व चैम्पियन बना दिया। पूरा देश इन युवा शातिरो
का स्वागत हाथी घोडा और पालकी के साथ कर रहा है। युवाओ ने पूरे देश को अपनी छाती को
चाहे जितना चौडा करने का मौका दे दिया है। अब आनंद की विरासत की बागडोर मुकेश और प्रगनंदा
ने थाम ली है। इसलिए तो अब सारा देश कह रहा है- हाथी घोडा पालकी जय देश के लालकी ।