Sunday, March 19, 2023

गब्बरसिंह की गोली

 


जाडो के दि‍न थे। ठंड बहुत थी। नौ बजे के करीब दि‍न नि‍कलता था और शाम को पांच बजे अंधेरा होने लगता था। शाम छ बजे तक तो सडको और छत्‍तो पर कोहरा छा जाता। हम सब बच्‍चे गर्म टोपि‍यां और स्‍वेटर पहन कर कमरो में दुबक जाते। नानी शाम की चाय नाना के आने बाद ही बनाती थी। नानी मेरे को कहती कि‍ देखना नाना आ रहे है क्‍या। मै कमरे की खि‍डकी से बाहर सडक पर झांकता। सडक पर कोहरा ही कोहरा होता। कुछ दि‍खाई नहीं देता था। आस पास के दुकानो की बत्‍ति‍यां धुंध में लहराती हुई नजर आती। सामने सडक की ओर मै देखता। दूर दूर तक धुंध के सि‍वा कुछ भी नजर नहीं आता था। फि‍र कुछ ही देर में धुंध में से नाना साईकि‍ल चलाते हुए दि‍खाई देते। गर्म कोट पहने हुए लंबी सफेद दाडी में वो यूरोपि‍यन कथाओ के जि‍न्‍न की तरह नि‍कल कर आ रहे होते।
 मै खि‍डकी बंद कर दौडकर नानी के पास जाकर नाना के आने की सूचना देता। नानी झट से चूल्‍हे पर चाय चढा देती।

वो चाय हमेंश कप और प्‍लेट में पीते। आमतौर पर लोग चाय पीते वक्‍त प्‍लेट का प्रयोग नहीं करते है। चीनी मि‍टटी के कप और प्‍लेट में ही वो चाय पीना पसंद करते थे। ठंड के दि‍नो में वो शाम को आफि‍स से आने के बाद आरामदायक कुर्सी पर बैठ कर कुछ देर कुछ न कुछ सोचते रहते । कि‍सी से बात नही करते थे। चाय को कप से प्‍लेट में डालते और प्‍लेट को होठो के पास लेजाकर फूंक मारते । फि‍र अपनी आंखो से एक टक कहीं देखते हुए प्‍लेट से चाय का घूंट लेते। उस समय इतना शांत वातावरण होता कि‍ उनके घूंट लेने की आवाज हम अपने कानो से सुन सकते थे। कभी भी हम बच्‍चे नाना के चाय पीने के घूंट की आवाज को रीदम बना लेते । कभी नाना की नजर हमारे उपर पड्ती तो हैडमास्‍टर की तरह  डांट लगा देते। नाना से मेरा करीबी का रि‍श्‍ता रहा। मुझे लगता है कि‍ वो मेरे सबसे ज्‍यादा करीब रहे। बचपन में उनका हमारे साथ हैडमास्‍टर सा बर्ताव था। हर बात को जोर से बोलकर बताते। सफेद दाडी के उपर भरे हुए गाल और बडी बडी आंखे जि‍नमें हमेंशा पीछे की ओर कुछ चलता रहता। वो हम से बाते करते तो भी लगता कि‍ वो साथ में कुछ और सोच रहे है।

नाना के रि‍टायरमेंट के बाद वो हम से दोस्‍ताना हो गये थे। वो हम बच्‍चो की रूचि‍ के बारे में बात करते । कभी अपनी तरफ से भी कोई नया काम बता देते । एक बार गर्मियो की छुटि‍यो में उन्‍होने हम सबको पूराने अखबारो से लि‍फाफे बनाना सि‍खाये। हम सब बच्‍चो ने मि‍लकर बहुत सारे लि‍फाफे बनाये और फि‍र वो दुकानो में बेचने भी गये। उन दि‍नो टीवी और मोबाईल नहीं थे। रोज शाम को नाना हमें तरह तरह के कि‍स्‍से बताते थे। कि‍स्‍से बताना तो उनकी आदत में शूमार था। दो तीन कि‍स्‍से तो वे हर बार दोहराते थे। हम भी उन कि‍स्‍सो को हर बार सुन लेते । वे अपने आफि‍स के माथुर साहब का कि‍स्‍सा हर बार सुनाते । वैसे उनके पास कि‍स्‍सो की कमी नहीं थी। हर चीज के बारे में उनके पास कोई न कोई कि‍स्‍सा था। वो अपने पलंग पर रजाई ओढ कर बैठे रहते । अपनी लंबी सफेद दाडी पर एक हाथ फेरते रहते और कि‍स्‍से याद कर हमे सुनाते। हमे लगता वो अपनी दाडी में से कि‍स्‍से नि‍कालते है। नानी हमेंशा उनकी दाडी को देखकर चि‍ढती थी। वो हमेशा उनकी दाडी पर छींटाकशी करती। नाना अपनी आंखे नानी की तरफ घूमाकर मुस्‍कुरा देते और फि‍र दाडी पर हाथ फेरने लगते। दाडी को लेकर नाना – नानी में कई बार कहासुनी भी होती थी परन्‍तु नाना के कोई असर नहीं होता। उस समय हमारे पडनाना भी जिंदा थे। पडनाना यानि‍ नाना के पि‍ता जी। मेरे पडनाना का देहांत होने पर नाना को अपनी दाडी मुंडवानी पडी थी। पडनाना के देहांत के बाद उन्‍होने दाडी नहीं रखी थी ।

जाडो में वो छत्‍त पर धूप में बैठते। मेरे से वो दाडी करने का सामान मंगवाते थे। उनका दाडी करने का सामान बहुत पूराना था। ब्रुश और पानी रखने का कप तो बरसो पूराने लग रहे थे। कप के उपर बने हुए फूल के चि‍त्र घि‍स चूके थे। केवल अहसास हो रहा था कि‍ कप के उपर फूल के चि‍त्र थे। वो एक चि‍नी मि‍टटी का सफेद कप था। उसका हैण्‍डि‍ल भी टूट चूका था। हैण्‍डि‍ल के नि‍शान कप पर जरूर थे। मै नाना को कहता कि‍ अब पानी के लि‍ए नया कप ले लेते है। नाना कप का कि‍स्‍सा का सुना देते । वो कहते यह कप उनके पि‍ताजी को पुरस्‍कार में मि‍ला था। उनके पि‍ता जी गणि‍त पढाने वाले मार्जा थे। हमारे यहां उन दि‍नो गणि‍त पढाने वाले शि‍क्षक को मार्जा कहा जाता था। नाना कहते तुम्‍हारे पडनाना की ख्याति‍ दूसरे शहरो तक थी। नागौर से भी बच्‍चे पढने के लि‍ए तुम्‍हारे पडनाना के पास आते थे। एक बार गर्वनर साहब हमारे शहर में आये थे तो उनकी ख्‍याति‍ को देखकर गर्वनर साहब ने उन्‍हे यह कप पुरस्‍कार  के रूप में दि‍या था। उस समय मै बहुत छोटा था। फि‍र जब यह कप पूराना हो गया था तो तुम्‍हारे  पडनानाजी इसे दाडी बनाने के लि‍ए पानी रखने के काम में लेने लग गये। फि‍र मै भी इसी कप में पानी डालकर दाडी बनाले लगा। इसमें दाडी बनाता हूं तो मुझे मेरे पि‍ताजी के गौरव का अहसास होता है। नाना धूप में बैठकर दाडी बनाते रहते और हम लोग उनको घेर कर बैठे रहते। फि‍र सामान को धोकर लोहे की डि‍ब्‍बि‍यां में डाल देते और कप को अलग से सुरक्षि‍त जगह पर रख देते। जब भी नाना दाडी करते तो उस कप को हम लोग बहुत संभालकर लाते थे। मेरे मामा भी उसी कप में पानी रख कर  दाडी करते । हम लोग उस कप को देखते रहते। नाना के लि‍ए वो कप उनके पि‍ताजी की नि‍शानी थी। उनको इस कप से बहुत प्रेम था। वो इसे सोने से भी कीमती मानते थे। हमे भी उस कप का उतना ही ध्‍यान रखना पडता था।

नाना के रि‍टायरमेंट के कुछ समय बाद ही हमारे शहर में टीवी आ गया था। टीवी आने के बाद हम सब लोग एक कमरे में बैठकर टीवी देखा करते थे। टीवी पर फि‍ल्‍म आती तो हम सब लोग कमरे में इकटठा होते। नाना फि‍ल्‍म के बीच में कलाकारो के बारे में बतात रहते। कहते धर्मेन्‍द्र ने इस फि‍ल्‍म की शूटि‍ग राजस्‍थान में की थी। ऐसे कई कि‍स्से वो फि‍ल्‍म के बीच में ही बताते। नाना खाना, चाय और दाडी सभी काम अब टीवी के सामने ही करते थे। एक बार टीवी पर शोले फि‍ल्‍म आ रही थी। हम सब कमरे में बैठकर टीवी देख रहे थे। नाना पीछे पलंग पर बैठकर दाडी कर रहे थे। सामने स्‍टूल पर दाडी का सामान रखा था। उसी कप में पानी रखा हुआ था। टेबि‍ल के आगे मैं बैठा था। सभी फि‍ल्‍म का आनंद ले रहे थे। एक सीन में सभी लोग शांत थे। तभी अचानक से गोली की आवाज आयी। मै डर कर पीछे हुआ। पीछे होते ही टेबि‍ल के धक्‍का लगा। कप टेबि‍ल से नीचे गि‍र गया। कप टूट गया और पानी बि‍खर गया। कमरे में शांति‍ छा गयी। मै बूत की तरह स्‍थि‍र हो गया। नाना अपनी दाडी पर ब्रश फेरते रूक गये। सभी की नजरे मेरे और नाना पर थी। कमरे में केवल टीवी की आवाज आ रही थी परन्‍तु टीवी कोई नहीं देख रहा था। सभी मेरे को और नाना को देख रहे थे। बि‍खरा हुआ पानी मेरे नजदीक आ रहा था परन्‍तु मै फि‍र भी हि‍ल नहीं रहा था। हर कोई सोच रहा था अब क्या होगा। मै मन ही मन बहुत घबरा रहा था। नाना की नजरे मेरे पर टि‍की हुयी थी। कुछ देर कि‍सी की आवाज नही आयी। फि‍र नाना जोर से हंसे और बोले- कि‍तना मजबूत कप था। कोई नहीं तोड पाया। गब्‍बर सिंह की गोली से ही टूटा। नाना के साथ सभी हंसने लग गये।


2 comments:

  1. आपकी लेखनी में बहुत रोचकता है आगे की प्रत्येक लाइन पढ़े बिना नही रह सकते है नाना नानजी और परिवार की बाते ऐसी लगती है कि कमोबेश सभी के साथ हुई है ऐसे कलमबद्ध करना बहुत शानदार है सच में मजा आ गया

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