Saturday, August 20, 2011

अभय


जेठ की तपती दुपहरी ढलान की ओर थी। कैफेटेरिया के लान में भी तपती धूप की जगह छाया ने ले ली थी। लान के किनारे लगे पेड़ो की छाया के नीचे बनी कुर्सी पर दोनो चुपचाप बैठे थे। कभी हवा के झोंके से पेड़ो की पतितयों की सरसराट खामोशी तोड़ रही थी। कैफेटेरिया में भी ग्राहको की आवक शुरू होने से युवाओ के पैरो की आवाजे लान तक पहुंच रही थी। उन दोनो को कोई भी आवाज या फुसफुसाट विचलित नहीं कर रही थी। अभय की आंखे बिना पलक झपकाये सामने लान में लगी झाडि़यों पर टिकी थी। उन झाडि़यों में ऐसा कुछ खास नहीं था कि कोई उसे एक टक देखे। एक हाथ बगल में और एक चेहरे पर निकली हल्की दाड़ी पर। माथे पर पड़ी सलवटे अभय के मन की सलवटे जाहिर कर रही थी।

' क्यो? अभय । फिर कुछ हुआ क्या ? ' पास बैठे सुनील ने उसकी तरफ गर्दन घुमाकर तिरछी नजर करते हुए खामोशी को तोड़ा। सुनील के प्रश्‍न पर अभय के अंगो में कुछ हरकत हुई। उसने अपनी चुभती दाड़ी से हाथ हटाकर दोनो हाथ मुटठी बंद कर बगल में रख लिये । अपने दोनो होठो को अंदर की तरफ दाबते हुए उसने आसमान की ओर नजरे की और फिर होठो को दाबमुक्त करते हुए कहा -' सुनील । आज जितना दु:ख मुझे हुआ , कभी नहीं हुआ।  नजरे वापिस ठीक सामने रखते हुए कहना जारी रखा - आज लगा मेरी दुनिया खत्म हो गई। मेरे जीवन का कोर्इ मतलब नहीं है। अब पता नहीं जीवन कैसे चलेगा। मुझे लगता है सब कुछ खत्म । सब कुछ ।
' नहीं अभय । ऐसा नहीं है। पहले मुझे बताओ । आखिर हुआ क्या ।
सुनील को जवाब देने के लिए अभय खड़ा हो गया। दोनो हाथ अपनी जींस पेंट के आगे वाली पाकेट में डालते हुए आंखे बंद कर फिर गर्दन उपर की ओर करते हुए गहरी सांस ली। ' सुनील । मुझे इतना दु:ख उस समय भी नहीं हुआ था। जब पापा ने मुझे घर से निकालते हुए अलग रहने का फरमान सुना दिया था। तुम्हे याद होगा । उस दिन मै तुम्हारे पास बैठकर कितना रोया था। मैं अपने पापा से दूर नहीं रहना चाहता था। बार बार मिन्नते करने के बाद भी पापा का दिल नहीं पिघला। मां ने भी नजरे फेर ली थी। फिर भी जीवन चलने लगा था। परन्तु आज तो .............। बस । मैं  टूट गया। सुनील अब और आगे हिम्मत नहीं है।

सुनील खड़ा होकर अभय के पास गया। पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा -' मैं सब जानता हू। पर धीरज से बताओ । क्या हुआ।
अभय ने अपना एक हाथ सुनील के हाथ पर रख दिया मानो सुनील के हाथ से कोई उर्जा अभय के शरीर मे संचारित हो रही हो। अपने होठ अंदर कर फिर बाहर कर बोलना शुरू किया - सुनील। आज सुबह मैं काम पर निकल रहा था। अचानक सड़क पर देखा बहुत भीड़ थी। मैंने अपनी बाईक रोकी। लोग बात कर रहे थे किसी वृद्ध का एक्सीडेंट हो गया। मैं भीड़ चीरकर अंदर गया। स्कूटर किनारे गिरा हुआ था। मैं देखकर कांप उठा। पापा नीचे गिर हुए दर्द से कहरा रहे थे। उनके पैरो में चोट आई थी। कुछ लोग उन्हे उठाने की कोशि‍श कर रहे थे। मैं दोड़कर पापा के नजदीक गया। परन्तु पापा ने वहीं  खरी खोटी सुनानी शुरू कर दी।  अभय की आंखो में आ रहे पानी को वह आंखे चौड़ी करके रोकने की कोशि‍श कर रहा था। अपनी अंगुलियों को आंखे पर फेर कर साफ करते हुए उसने कहना जारी रखा - और तो और मैने उन्हे उठाना चाहा तो उन्होने हाथ लगाने मना कर दिया। फिर भी भीड़ ने मुझे धक्का देकर किनारे कर दिया। सुनील। मैं पापा को बहुत चाहता हूू। मैं पापा को बहुत चाहता हू।  अभय ने पूरी हथेली से चेहरे को पौछते हुए कहा।
' अब पापा कैसे है। कुछ पता चला।
' हां । मैंने भैया को फोन किया था। वो हास्पीटल पहुंच गये थे। अब ठीक है। एक पैर मे हल्का फैक्चर है।
' अभय। चिंता मत करो । मै शाम को हास्पीटल हो आउंगा।  सुनील ने अभय के सामने आकर उसके चेहरे को अपने हाथ से अपनी तरफ करते हुए आष्वासन दिया।

अभय सुनील के आष्वासन से संतुष्ट था। पर चेहरे पर अभी भी गंभीरता की छाया थी। दोनो हाथ जींस के आगे वाली पाकेटस में डालकर सुनील के दूसरी तरफ चहलकदमी करते हुए अभय की आंखो में पूराने मंजर उभर रहे थे - सुनील । तुम बचपन से मेरे साथ हो। तुम्हे याद है । मै कितना टैलेण्टेड था। मुझे इस बात का गर्व कभी नहीं रहा कि मैं टैलेण्टेड था बलिक इस बात का गर्व था कि इससे पापा मुझ से कितना खुश थे। तुम्हे याद है जब मैंने पांचवी कक्षा में स्कूल टाप किया था। मैं जैसे ही स्कूल से रिजल्ट लेकर बाहर आया । पापा ने मुझे गोद में उठा लिया। पापा की आंखो की खुशी ने मेरे अंदर जादुई तरंगे भर दी। मानो सारा संसार मुझ से खुश है। उसके बाद पापा का अपनी साईकिल के आगे बैठाकर घूमाने ले जाते थे। पापा की खुषी साईकिल की गति में झलकती थी। मुझे ऐसा लगता था कि ऐसा सुख भगवान कृष्ण को भी नहीं मिला होगा। बाजार से मन पसंद खिलौने दिलाते थे। बड़े भाई की नाकाम्याबी पर मां मुझसे नाराज होती थी । मैनें कभी बुरा नहीं माना। पापा के प्यार में सब कुछ सिमट गया। पापा की अंगुली पकड़ कर चलता था तो ऐसा लगता था कि मैं दुनिया का सबसे धनवान बच्चा हू। मेरे पैसे वाले दोस्तो के पापा की नई माडल की कारे मुझे मेरे पापा की अंगुली के आगे बहुत छोटी लगती थी। मुझे लगता था कि पापा की अंगुली पकड़ पर चलने में जो आनंद है वो मंहगी कारो की गददेदार सीटो पर भी नहीं है और आज भी मुझे ऐसा ही लगता है।

अभय के चेहरे के आगे अतीत लौटकर आ रहा था। पापा के साथ बिताये खुशी के पल याद आते ही उसके चेहरे और आंखो में खुशी झलक रही थी। उसने चेहरे पर हलकी मुस्कान के साथ कहना जारी रखा -  सुनील तुम्हे याद होगा। हायर सैकेण्डरी में जब पूरे जिले मेें अव्वल आया था तो मानो पापा हवा में उड़ने लगे। मानो झूम रहे थे। हर एक को गर्व से बता रहे थे कि मैरा बेटा पूरे जिले में अव्वल आया है। खुशी इतनी कि उन्हे कोई बड़ा खजाना मिल गया हो। लोगो की बधाई स्वीकार करते हुए उनका सीना गर्व से चौड़ा हो रहा था। कैसे उन्होने मेरी फोटो वाले अखबार को दीवार पर सजाकर रखा। पापा ने मुझे उस दिन साईकिल पर खूब घुमाया । जब तुम्हारे पापा ने कहा कि शर्मा जी आज आप अभय को साईकिल पर घूमा रहे हो एक दिन यह आपको हवाई जहाज मेे घूमाऐगा तो पापा की आंखे गर्व से दमकने लगी। सुनील । मेरे लिए पापा मेरी सबसे बड़ी पूंजी है। मुझे आज भी याद है जब मैं एमबीए के एग्जाम देने के लिए बाहर जाता था वो मेरे साथ चलते थे। कैसे मेरी एक एक चीज का ख्याल रखते थे। वो मुझ में एक उम्मीद देखते थे। जो वो नही कर पाये । वो मुझ में देखते थे। 

चेहरे के रंग अतीत की यादो के मंजर के साथ बदलते है। ऐसा ही अभय के साथ था। अब अभय के चेहरे पर फिर से गंभीरता हावी थी। अपनी हथेली से पूरे चहेरे पर हाथ फेरते हुए उसने कहना जारी रखा - सुनील । मुझे दुख है कि मै पापा की उम्मीदो पर खरा उतर नहीं पाया। परन्तु इसमे मेरी क्या गल्ती है ? एमबीए करने के बाद भी मुझे जाब नहीं मिला तो , मैं क्या कर सकता हू। सिविल सर्विसेज में टाप में रहने के बाद भी चयन नहीं हो पाया तो मेरी क्या कर सकता हू। मैंने हर जगह अपनी किस्मत आजमायी। र्इमानदारी से कोशि‍श की । उसके बावजूद थोड़े फासले से मंजिल दूर रह गर्इ तो मै क्या करूं। पेणिटग शौक तक सीमित थी। लेकिन हर तरफ नाकाम्याबी मिली तो मैने उसे व्यवसाय बनाया। उसके बावजूद वहां भी काम्याबी नहीं मिली  तो मेरा दोष क्या है।? भैया मेरे टेलैण्ट से काफी पीछे थे इसके बावजूद उन्हे बिजनेस में काम्याबी मिल गर्इ तो मैं भी बिजनेस करू । यह जरूरी तो नहीं । भैया की आय छ: अंको में है और मेरी चार अंको में तो यह मेरी किस्मत है। परन्तु मै अपने प्रति ईमानदार हूं । मैं जितनी मदद हो सकती थी। घर मेे करता था। लेकिन पापा ने मुझे घर से अलग होने का फरमान जारी कर दिया। अपनी पतिन और बच्चो को लेकर मैं घर ढुंढता रहा। सब कुछ बदल गया। मै पापा की उम्मीदो को पूरा नहीं कर पाया सुनील ।

सुनील ने अभय को ढांढस बंधाने उसके नजदीक गया और कहा --' देखो । अभय । तुम्हारे पापा आज भी तुम्हे उतना ही चाहते है। तुम्हे घर से अलग इसीलिए किया कि तुम एकाग्रता से प्रयास कर काम्याबी हासिल कर सको। इसमें भी तुम्हारा भला ही सोचा था।

' सुनील। जानता हू। पापा ने मेरे भले के लिए मुझ से अलग किया। लेकिन मेरे उपर तो नाकाम्याबी का ठप्पा लग चुका है। पापा को यह बात कितनी चुभती होगी। जिस बेटे पर उन्हे इतना गर्व था आज वो अपना पेट पालने लायक भी नहीं कमा पा रहा है। दुनिया भूल चूकी है कि अभय नाम का कोर्इ टैलेण्टेड लड़का था। तुम्हे राजा याद होगा। वहीं जिसने दसवी कक्षा पांच बार पढ़ी। आज वो एक बड़ा आर्ट डीलर है। दो दिल पहले एक कलाकारो का कार्यक्रम था। कार्यक्रम समापित के बाद मैने उसके पास जाकर हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे किया तो वह दूसरी तरफ निकल गया। मैं अपना हाथ मलता गया। वह उन लोगो की पेंटिग्स बड़े दामो में खरीद रहा था जिन्हे कभी अपना नाम ठीक ढंग से लिखना नहीं आया। मैं समझ नहीं पाया कि आज टेलेण्ट और कला नहीं काम्याबी देखी जाती है। यह मेरे पास नहीं है। शायद मैं दुनिया का सबसे नाकाम्याब इंसान हू। अब तो  मैने भी मान लिया है कि मै बिलकुल नाकाम्याब हू  और मुझे जीवन चलाने के लिए पूरी जिंदगी संघर्ष करना पड़ेगा। मै इसके लिए किसी को दोष नहीं दे सकता।

सुनील सुनते हुए भांप गया कि मामला गंभीरता पकड़ता जा रहा है। इस बहाव को रोका नहीं गया तो अभय के जीवन से यह बहुत कुछ बहा ले जायेगा। सुनील  अभय से कुछ कदमो की दूरी पर खड़ा था। सुनील ने वहीं खडे़ खड़े कहा - ' अभय। भाभी के बारे में तो सोचो । वो तुम्हे कितना सपोर्ट करती होगी। उसे ही उम्मीद मान लो। उसके लिए इस निराषा को छोड़ दो और आगे बढ़ो।
सुनील की इस बात ने अभय के चेहरे पर और चिंता बढ़ा दी । उसने नीचे गिरी हुई पेड़ की छोटी टहनी हाथ में उठाते हुए कहा - ' सुनील। तेरी भाभी से मुझे कोर्इ शि‍कायत नही है। वो भोली है। मेरे व मुन्ने का पूरा ख्याल रखती है। जितने पैसे मैं लाता हू उसमें एडजेस्ट कर लेती है। लेकिन कहीं न कहीं उसने भी मान लिया है कि मैं नाकाम्याब हू। मेरे बस में कुछ नहीं है। कुछ दिन पहले की ही बात है । मै घर पर आया तो देखा कि मेरी बनार्इ पेंटिग पर सब्जी बिखेर रखी थी। मेंरा बनाया एक स्केच एक कचरे के डिब्बे में पड़ा था। मैं उसे कुछ कह नहीं पाया। मैने भी मान लिया कि मै कुछ नहंी कर सकता। इसके लिए मैं तेरी भाभी को दोष नहीं दे सकता । जैसा सारी दुनिया मानती है उसने भी मान लिया कि मैं समय बर्बाद कर रहा हूं। मैं तो कभी मुन्ने को भी बताने की हिम्मत नहीं कर पाया कि मैं अव्वल छात्र था, अव्वल कि्रकेटर था और अव्वल चित्रकार था। मुझे नहीं लगता कि उसका बालमन भी इस बात को मानेगा। मुझे पापा की बात मानकर भैया के बिजनेस में काम कर लेना चाहिए। पापा गलत कैसे हो सकते है। पापा सही है। भैया के बिजनेस में कोई काम मिलेगा । मुझे करना चाहिए। मैं सब कुछ छोड़ दूंगा। पापा की बात मानूंगा।

अभय पूरी तरह से निराश और थका हुआ दिखाई दे रहा था। आत्मबल पूरी तरह निर्बलता के कगार पर था। सुनील ने धीरे धीरे कदमो को आगे बढ़ाया। वह समझ गया था कि सुनील को अब कुछ भी कहना उसके दर्द को और बढ़ाना होगा। उसने एक बार फिर उसके कंधो पर हाथ रखा और कहा - अभय। चलो पास के मैदान में चलते है। मैं जब भी उदास होता हू । वहीं जाता हूू। बच्चो को खेलते देख मन हल्का हो जाता है। चलो ।  अभय का हाथ पकड़ कर सुनील चलने लगा। अभय सुनील को मना नहीं कर सका। सड़क के उसपर हल्के हल्के कदमो से चलते हुए मैदान में आ गये। हरा भरा मैदान था। मैदान के एक कोने मे बच्चे खेल रहे थे। सुनील अभय के साथ बच्चो के नजदीक जा रहा था। बच्चो के कुछ नजदीक पहुंच कर वे घास पर बैठने ही वाले थे कि विकेटो के बीच में दो बच्चे बहस कर रहे थे। एक कह रहा था कि सचिन तुम बनना । मै तो अपने पापा जैसा बनूंगा। मेरे पापा बहुत अच्छे कि्रकेट खेलते थे। मेरे पापा तो क्रि‍केट और पढाई दोनो में अव्वल थे। मेंरे पापा बहुत अच्छे चित्रकार है। मेरे पापा की फोटो भी अखबार में छपती है। मैं सचिन नहीं मेरे पापा जैसा बनूंगा।  उसकी बाते सुनकर दोनो उस बच्चे के नजदीक गये। बच्चे ने जैसे ही गर्दन घूमार्इ ।  पापा! यह कहते हुए अभय से लिपट गया। यह तो मुन्ना ही था। अभय ने आंखे बंद कर ली। कुछ देर में आंखे खोलकर मुन्ने से पूछा- ' यह सब तुम्हे किसने बताया।   मुन्ने ने बहुत ही मासूमियत से कह दिया - मम्मी ने। आप घर पर नहीं होते हो तो मम्मी आपके बारे में बहुत अच्छी अच्छी बाते बताती है। अभय ने सुनील की ओर देखा। फिर आसमान की ओर ।  उम्मीद के आंसू उसकी आंखो की गीला कर रहे थे। ठंडी हवा के झोंके बारिश आने के संकेत दे रहे थे।

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