ट्रेन अपनी तेज रफतार के साथ दौड़ रही थी। ठंडी हवा के झौंके गर्म हवा मे बदल रहे थे। उड़ रही धूल यह अहसास करा रही थी कि ट्रेन उतरांखड के ठंडे मौसम से मरूस्थली राजस्थान में प्रवेश कर रही ही है। खिड़की पर अपनी गर्दन टिका कर आशीष बैठा था। उसने अपना ऐनक उतारा और उसके कांच साफ किये और वापिस पहन लिया। ऐनक लगाये हुए उसके चेहरे में किसी इन्टेलैक्चुअल व्यक्तित्व की झलक दिखाई दे रही थी। टी शर्ट और पेंट पर जमी रेत का हाथो से साफ कर वापिस खिडकी से सिर को सटाकर बैठ गया। आस पास के सहयात्रियों में उसकी रूचि प्रतीत नहीं हो रही थी। धड़ाम धड़ाम ट्रेन की आवाज उसे अतीत की यादो में खींच रही थी। उडती हुई रेत सहयात्रियों के लिए परेशानी का कारण हो सकती थी। उसे तो इस रेत की छुअन अपने गांव का अहसास करा रही थी। रेत के सुनहरे धोरो उसकी यादो में लहरा रहे थे। गांव के इन्ही धोरो पर शाम को स्कूल की छुटटी होने के बाद सोनिया लेट जाती थी। स्कूल की यूनिफॉर्म पहने हुए। बैग को एक किनारे पटक कर। ढलते सूरज के साथ अपनी गरमाहट कम करते हुए धोरे अपनी ठंडी होती रेत की छुअन से पन्द्रह साल की सोनिया को धीमी आंच में परिपक्वता को पका रहे थे। एकदम शांत । आस पास कोई नहीं । तेज हवा का झोंका उसके पूरे बदन पर रेत बिखेर देता। उसके शरीर में कोई हलचल नहीं होती । वो शायद अपने जीवन के मायने तलाशती। निढाल पडी । अपने जीवन को पढती। रेत से सने हुए बाल और चेहरा । उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
एक दिन शाम ऐसे ही धोरो पर लेटी हुई थी। किसी ने आवाज दी – ‘ सोनिया............। तेरा भाई भगत मंदिर के पास गिर गया। रो रहा है।‘ आवाज के साथ ही सोनिया उठ खडी हुई। एक हाथ में बैग उठाकर धोरो पर फर्लांगे मारते हुए दौड पडी। धोरो पर शायद इतना तेज उंट भी नहीं चल पाये। धोरो में धंसते पैरो को तेजी निकालते हुए उसने दौडने की रफतार बनाये रखी। मंदिर के पास अपने भाई को रोते हुए देखते ही अपना बैग एक और फेंक कर भगत के सामने बैठकर पूछा- ‘किसने गिराया । भगत बता किसने गिराया’ अपनी आंखो को मलते हुए भगत ने वहां खड़ी एक लड़के की ओर ईशारा कर दिया । फिर क्या था। सोनिया ने अपनी चप्पल उतारी और लडके को चटाक चटाक धुनाई कर दी। मरूस्थल में आये धतूलिये (एक जगह रेत का तेज हवा के साथ उडना) की तरह सोनिया उस लडके पर टूट पडी। वहां खड़े कुछ लोगो ने दौडकर बीच बचाव किया। लेकिन सोनिया की आंखे एकदम लाल। हाथ में चप्पल लिये । जैसे आज वो सबसे लड़ लेगी। भगत भी डर गया। दौडकर अपनी बहिन के लिपट गया। ऐसी ही थी । सोनिया अपने भाई के लिए मर मिटने को तैयार।
गांव में आशीष के घर से थोडी दूर पर ही रहती थी सोनिया। दुनिया में कोई नहीं । भाई के सिवा। गांव में अपने मामा और मामी के साथ रहती थी। मामा –मामी के कोई औलाद नहीं थी। पर जैसा कहानियों में होता है। दोनो भाई बहिन को मामा से स्नेह ज्यादा मिलता था। ट्रेन की धड़ धड़ की आवाज आशीष के मन को लपेट कर ठेठ गांव में ले गई।
‘ आसू तुं फिर आ गया । ‘ सोनिया ने धोरे पर लेटे हुए कहा। सोनिया को अक्सर धोरो पर अकेला लेटा देख कर आशीष भी वहां पहुंच जाया करता था।
‘ मैं देखने आया हू। तुम यहां लेटे हुए क्या सोचती हो।‘
‘ देखकर पता लगा लेगा।‘
‘ लगा लिया है। ‘
‘तो बता।‘
‘ तुम अपने मां बाउजी से बात करती हो।‘ आशीष की इस बात को सूनते ही सोनिया उठकर बैठ गई। चेहरे पर आ गये बालो को हाथो से पीछे कर गर्दन घूमा कर आशीष की ओर देखा। फिर नजरे धोरो पर टिका दी। आंखो में आंसूओ की परत चमक रही थी। आंसूओ को आंखो से बाहर नहीं आने देने की जुगत करते हुए उसने कहा’ ‘ आसू । याद करके दुख होता है। इसलिए कभी याद नहीं करती । बस । सोचती हू। भगत को डाक्टर बनाना । कैसे बनाना है।‘
’ अभी बहुत वक्त है। अभी वह बहुत छोटा है।‘
’ आसू । वक्त मेंरे पास कम है।‘
’ अच्छा। बता। भगत को डाक्टर बना देगी। पर तुं क्या बनेगी। विश्व सुंदरी। धूल से सनी हुई। बिखरे बालो वाली विश्व सुंदरी। यह कहते हुए आशीष वहां से उठ कर भागा।
‘ ठहर । अभी बताती हू।‘ कहते हुए धोरो पर फर्लागे मारती हुए सोनिया हंसते हुए उसके पीछे दौड पडी।
‘ बाबूजी । चाय ।‘ चाय वाले ने जोर से आशीष के नजदीक आकर कहा। यादो की श्रंखला टूट गई। शायद कोई स्टेशन आया होगा। अब गांव ज्यादा दूर नहीं है। दो चार घंटे में ट्रेन गांव के स्टेशन पहुंच जायेगी। चाय की चुस्कियो के साथ आशीष के दिमाग में फिर से सोनिया दौड़ने लगी। मानो सोनिया के पैर रेत के धोरो मेंनहीं धंस रहे हो, उसके दिमाग में धंस कर यादो को ताजा कर रहे हो। हमेंशा स्कूल की यूनिफार्म में इधर उधर दौड़ती रहती। आवाज इतनी तेज की ऐसा लगता गांव में केवल एक सोनिया ही है। आशीष ने कॉलेज और आगे की पढाई के लिए गांव छोड़ा तो सोनिया अपने पढाई छोड भगत का पढाने के लिए जी जान से जूट गई। अपनी मामी से झगडते हुए वह देख सकता था । जब भी आशीष बीच बचाव की बात करता सोनिया कह देती । आसू । मेरे और भगत के मामले में कुछ मत बोलना। आशीष शहर आकर कब आसू से आशीष बन गया । उसे अहसास ही नहीं हुआ। नौकरी लगने के बाद पहली बार गांव आया तो दौड़कर धोरो पर गया। यहीं लेटी होगी सोनिया हमेंशा की तरह। परन्तु वहां कोई और बैठी थी। स्कूल की यूनिफार्म भी नहीं थी। आशीष पहचान नहीं पाया। नजदीक गया।
‘ कौन हो तुम।‘
’ विश्व सुंदरी।‘
’ हो हो सोनिया। बहुत बदल गई। वाकई विश्व सुंदरी लग रही हो।‘
’मजाक कर रहे हो।‘
गूंथे हुए बाल। रंग बिरंगी घाघरा कुर्ता पहने हुए। हाथ में एक तिनका लिये हुए। जिसे अपने दांतो से कुतर रही थी। आशीष नजदीक गया और हाथ से तिनका छिन कर नीचे फेकते हुए कहा – मैं तो मात खा गया। तुमने मुझे पहचान लिया। तुम्हे पता है । शहर में मेरी नौकरी लग गई है। मां बाउजी को लेन आया हू। ‘ खूशी के साथ सोनिया को एक साथ सब बता दिया। सोनिया अपने हाथो से घाधरे को पकड कर धोरे पर बैठते हुए कहा – ‘ बस । बता दिया। और कुछ। ‘
’ सोचता हू। तुम्हे भी ले जाउं।‘
’ क्यों?’
’ ब्याह करके।‘
’ मैं ब्याह नहीं करूंगी। खासकर तुमसे। ‘
’ क्यों । मैं बुरा हू।‘
’ मैं भगत के डाक्टर बनने तक ब्याह नहीं करूंगी और तब तक तुम्हे इंतजार नहीं करना चाहिए। ‘ यहां आते ही आशीष निराश हो गया। कुछ नहीं कह पाया। घर जाकर रवानगी की तैयारी में जुट गया। मां बाउजी के साथ सारा सामान भी ले जाना था। शहर में सरकारी क्वाटर जो मिल गया था। दो दिन में सारी तैयारी कर ली। रवानगी का वक्त भी आ गया। सारा सामान तांगे में रख लिया था। अचानक दौडकर सोनिया के घर गया। सोचा सोनिया के मामा- मामी से बात कर लूं। घर की चौखट पर पहुंचा ही था, अंदर से आ रही आवाजे उसके कानो से टकराने लगी।
’ मै कुछ नहीं समझती। मेरे बाउजी जो 2लाख रूपये छोड गये है मुझे चाहिए।‘
’ ऐ छोरी । बडी आई हिसाब करने वाली । तेरे को रोटियां खिलाने में खर्चा नहीं लगा।‘
’ मैं उसकी एक एक पाई चुका दुगी। परन्तु इन पैसो पर मेरे भाई का हक है। बडी मुश्किल से उसका डाक्टरी में दाखिला हुआ है।‘ मै यह पैसे लेकर छोडूगी। उसकी फीस इसी पैसे से जमा होगी।‘
’ मै भी देखती हुं। कैसे लेती है तु पैसे।‘
इस क्लेश को सुनकर आशीष तय नहीं कर पा रहा था। अंदर जाये या नहीं । इतने में उसे बाउजी ने आवाज लगा दी। ट्रेन का वक्त हो रहा था। वह लौट गया। गांव में उसकी यह आखिर शाम थी। उसके बाद वो गांव नहीं गया। नहीं कोई खबर ली। शहर में अपने कामो में व्यस्त हो गया।
ट्रेन के रूकते ही एक बार फिर यादो का सिलसिला थम गया। शायद गांव नजदीक था। हां । अगला स्टोपेज आशीष का गांव ही था। आशीष ने अपना सामान नीचे उतारा। सामान क्या। एक सूटकेस था। उठाकर वह दरवाजे के नजदीक खडा हो गया। ट्रेन चल पडी । अब दस-पन्द्रह मिनट का सफर था। दरवाजे के बाहर ट्रेन के गति पकडने के साथ ही आशीष के आंखो के सामने झाडिया और रेत के धोरे सब दौड़ रहे थे। धड़ धड़ की आवाज फिर उसे यादो में खींच रही थी। पूरे चार साल के बाद सोनिया से मिलने जा रहा है। भगत डॉक्टर बन गया होगा। मामी ने जरूर सोनिया की शादी कर दी होगी। वो तो चाहती थी कि सोनिया से उसका पीछा जल्दी छूटे। देखे । गांव में जाकर क्या हुआ । आशीष अपने ही मन से कहता है। मैंने नहीं की तो। उसने भी शादी नहीं की होगी। गांव के कुंए पर पानी भरती हुई। धोरो पर धीमे धीमे चलती हुई। सोनिया। उसे मालूम ही नहीं था कि वो खूबसूरत है। उसने तो अपने भाई के लिए अपने आप को तपाया। आशीष के दिमाग में चित्र ईधर उधर दौड़ रहे थे। रेउसर ..... रेउसर .........। आवाजो से आशीष का ध्यान टूटा। ट्रेन रूकी हुई थी। उसका गांव आ गया ।
सूटकेस लेकर प्लेटफार्म पर पैर रखते ही ट्रेन आगे रवाना होगई। आशीष ने सूटकेस नीचे रखकर आसमान की ओर देखा और अपने दोनो हाथ फैला दिये । अपने गांव की आबो हवा। शरीर से टकरा कर मानो दुलार करना चाह रही हो। एक उर्जा भर देती है अपने गांव की हवा। अब आशीष के पैरो में बचपन वाली तेजी नहीं थी। चाल में मैच्योरिटी आ गई थी। स्टेशन से बाहर आकर सोचा। धोरो की ओर से निकल लूं। सोनिया गांव में ही है तो वहीं मिल जायेगी। सूटकेस हाथ में लिये हुए धोरो पर चल पड़ा । कोई नहीं बिलकुल सुनसान। रेत में धंसते हुए पैरो को किसी तरह बाहर निकाल कर चलता हुआ। तेज हवा के साथ धोरो से रेत की चादर उड़ कर आशीष के आंखो के आगे छा गई। हाथो को हिला कर आंखो के आगे से रेत को हटाया। फिर भी कोई दिखाई नहीं दिया। तेज हवा के साथ एक लय में उड़ती हुई रेत में संगीत सी झनझनहाट उसे महसूस नहीं हो रही थी। हर एक झौंका सूनेपन का अहसास दे रहा था। वो यहां नहीं है। मन कुछ ठीक नहीं है। अच्छा नहीं लग रहा है। मन में दुविधा है। वह यहां क्यो आया है। सोनिया से मिलने । शादी करने । हालचाल जानने। कुछ पता नहीं । सूटकेस को नीचे रखा। दोनो हाथो की अंगुलियो बालो में डालकर आगे से पीछे ले गया। रूमाल निकाल कर अपना ऐनक साफ किया। फिर चल पड़ा। अपने मकान को संभालने की बजाय पहले सोनिया के घर की ओर गया। मामा जी बाहर ही खड़े थे।
‘ पायं लागू।‘
’ अरे । आसू तुम। खुश रहो । चलो चलो अंदर चलो। ‘ मामाजी के शब्दो में उत्साह नहीं था। वह उनके पीछे हो लिया। ड्रांईग में जाकर बैठ गया। मामीजी चाय पानी रखकर चली गई। दोनो कुछ देर खामोश बैठे रहे ।
‘ कैसे हो। मां बाउजी कैसे है। ‘ मामाजी ने बात शुरू की।
’ ठीक है। परन्तु आप बताओ सोनिया दिखाई नहीं दे रही है। ‘
खामोशी। मामा ने सांस अंदर खींची और एक साथ छोड़ दी। सोनिया के नाम से ही आंखे गलगली हो गई। लगो उनके पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई। दोनो हथेलियो को कंधो पर फेरते हुए नजरे दरवाजे पर टिका कर कहा ‘आसू। तुम्हारे जाने के बाद भगत चंडीगढ में डाक्टरी की पढाई करने लगा। सोनिया मजदूरी भी करने लगी थी। जिदगी चल रही थी। मामी के साथ खटपट रहती थी। पर जिदगी रूकी नहीं चलती रही। अभी हाल ही में भगत डॉक्टरी पूरी करके गांव में आने वाला ही था। बहुत तैयारी कर रही थी। भाई के स्वागत की । दुलार की। किसी ने आवाज लगाई । भगत आ गया है। दौड़ते हुए बाहर की ओर गई। थोड़ी दूर ही चल पाई थी कि..........। मामा का गला रूंघ गया । आवाज भर्राने लगी। आशीष मामा के पास जाकर बैठगया। कंधे पर हाथ रखकर कहा ‘ बताओ मामाजी क्या हुआ ।‘
’ आसू। बस सोनिया वही गिर पड़ी। मुंह से खून आने लगा। भगत दौड़ कर आये। गांव के अस्पताल ले गया। उसने एक बार आंखे खोली । भगत को देखा। फिर उसने आंख नहीं खोली। भगत की गोद में ही दम तोड़ दिया। डाक्टरो ने बताया उसे कैंसर था। ‘
आशीष बिलकुल सुन्न हो गया। जैसे रेत के धोरो पर सन्नाटा पसरा हो। बूत की तरह बैठा था।